नमस्ते। वणक्कम।
एस.अनंतकृष्णन का।
शीर्षक ,--आसान नहीं होता गृहिणी होना।
विधा --अपनी भाषा अपनी शैली अपने विचार।
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मैं गृहिणी ,
अब मेरी बेटी,
गृहिणी होनेवाली है।
कहा, बेटी! तेरी शादी होनेवाली है।
गृहिणी होना आसान नहीं है,
यहाँ का कुलदेव अलग,
प्रार्थना का ढंग अलग।
खान-पान बनाना अलग।
मिठाई का भेद भी अलग।
वहाँ का आबोहवा भी अलग।।
पहाड़ से घाटी की ओर।
वहाँ गर्मी अधिक।
सास-ससुर का स्वाद अलग।
देवर -देवरानी का पसंद अलग।
घर की सफाई भी अलग।
पानी का स्वाद भी अलग।
खाद्य-पदार्थों में घी ,
तेल डालना भी अलग-अलग।।
आगबबूला होना भी अलग-अलग।
फूँक फूँककर चलना है,
कदम कदम पर, पल पल।।
सावधान रहना।
बेटी ने कहा - हमारा खाना
बिज्जा,बर्गर,नान।
ये फोन रखने पर आएगा।
मैं भी दफ्तर, वह भी दफ़्तर।
सास ससुर भी दफ़्तर ।
हम हैं नयी गृहिणी।।
स्नातक स्नातकोत्तर।
हमारे वेतन ठंडा बना देगी सब को।।
एस.अनंतकृष्णन।
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक
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