Saturday, August 5, 2023

आसान

 नमस्ते। वणक्कम।

एस.अनंतकृष्णन का।

शीर्षक ,--आसान नहीं होता गृहिणी होना।

 विधा --अपनी भाषा अपनी शैली अपने विचार।

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 मैं  गृहिणी ,

अब मेरी बेटी,

गृहिणी होनेवाली है।

कहा, बेटी! तेरी शादी होनेवाली है।

 गृहिणी होना आसान नहीं है,

  यहाँ का कुलदेव अलग,

  प्रार्थना का ढंग अलग।

  खान-पान बनाना अलग।

 मिठाई का भेद भी अलग।

 वहाँ का आबोहवा भी अलग।।

 पहाड़ से घाटी की ओर।

वहाँ गर्मी अधिक।

 सास-ससुर  का स्वाद अलग।

 देवर -देवरानी  का पसंद अलग।

 घर की सफाई भी अलग।

 पानी  का स्वाद भी अलग।

खाद्य-पदार्थों में घी ,

तेल डालना भी अलग-अलग।।

आगबबूला होना भी अलग-अलग।

फूँक फूँककर चलना है,

कदम कदम पर, पल पल।।

सावधान रहना।‌

 बेटी ने कहा - हमारा खाना

 बिज्जा,बर्गर,नान।

ये फोन रखने पर आएगा।

 मैं भी दफ्तर, वह भी दफ़्तर।

 सास ससुर   भी दफ़्तर ।

 हम हैं नयी गृहिणी।।

 स्नातक स्नातकोत्तर।

 हमारे वेतन ठंडा बना देगी सब को।।

एस.अनंतकृष्णन।

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक

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