Friday, May 27, 2016

जागो

साहित्य जो है आँखें मारकर ,
आमंत्रित वारांगना नहीं,
देश भक्ति जगने- जगाने-जगवाने  की वीरांगनाएँ।
तुलसी ने कहा ,संतोष हीन संपत्तियाँ  धूरी समान।
उनकी पत्नी ने भयंकर देवी बन चीखा चिल्लाया
अस्थाई  सुंदरता पर मोह, शाश्वत प्रेम तो सर्वेश्वर से।
  कबीर ने कहा बाह्याडंबर छोड,
फूल के सुगंध समान , कस्तूरी मृग के पेट कै
कस्तूरी सम तेरा साई तुझमें।
आज भी अमर साहित्य, हमें देती सीख।
राजा मन पसंद राजकुमारी के लिए
वीरों की विधवाओं पर  किसी का ध्यान नहीं गया।
ईश्वर की आरादना में मनुष्यता मर गई।
निर्गुण - सगुण  के नाम  मनुष्य मन में द्वेष।
रीतिकाल में तो ऐश-आराम,अंग्रेज आये,
प्रेम प्रेम भारतीय लोगों में आयी जागृति।
भेदों को भूल भारतीयों में हुई एकता।
आजादी  के सत्तर साल के बाद
स्वार्थ राजनीति फिर  मजहब,संप्रदाय ,धन के लोभ में
जनता जनता में प्रांतीय, मजहबी, जातीय  मोह भटकाके  देश की प्रगति में आडे पड रहे हैं।
जागो जनता,जागो युवकों! देश द्रोहियों को पहचानो।
हम चंद सालों में मिट जाएँगे ।
देश रहेगा शाश्वत। हमारी पीढी को सुखी  रखना है,
पुर्वजों का गुणगान करना है।
निंदा से हमें दूर रहना है,जागो! जनता जागो।

साहित्य मंच

लिखा है मंच है साहित्य का सारवजनिक।
जो मन में आये लिखिए पर मनमाना न लिखना।
जो अपना मन  मानता है , जन-हित लिखिए।
प्यार की बात हो तो देश हित लिखिए।
नफरत है तो देश द्रोह की बात लिखना।
जवानी दीवानी अध्खुला अंग आकर्षक
वह नहीं तो जीवन शून्य।
जीना दुश्वार यों ही इश्क भरा लिखकर
युवकों को असंयम की ओर न ले जाना।
धर्म पथ की बात लिखिए।
कर्तव्य निभानने ,सत्य बोलने
दृढ रहने , दैश भक्ति त्याग की भक्ति पर लिखिए।
सिखाइए जग को  नश्वर जग में
न्याय पथ पर जाने , भ्रष्टाचार से दूर रहने।
जवानी अस्थाई, जीवन अस्थाई,
धन जोडने से नहीं बना सकते किसी बात को स्थाई।
साहित्य है हित केलिए।
न ही बलात्कार बढाने केलिए।
सोचिए बढिए आगे। मंच है आपका ।
शोभा बढाना शोभा हटाना है आप का कौशल ।

Wednesday, May 25, 2016

हिंदी लेखक

गाडीचलतीतेज़, मन की गतिअतितेज़.
हवामें महल बनाना  आसान,
मनकेघोड़े केरफ्तार कमकरनामुश्किल.
जीकीचंचलताकी स्थिरता के लिए
जी  सेमिलने गया, डर था  किछडीका मार नपड़ें.
सद्यःफलपाने पड़ोसिन साधूसेमिलनेगयी,,
आश्रम मेंहीलींन
होगयी.
हिंदी लेखक बनने बकनेलगातो
याद आयीमुंशीप्रेमचंदजी की
लोगोंने  उपन्यास सम्राटकीउपाधीदी
सुना  उसके घरमें चूल्हा न  जला.
आज देखताहूँ  दो काममें करोडपति
एकतोअपराधकरके बनसांसद.
या बनोमहंतमठाधिपति.
क्या न लिखता पता नहीं,
बन जाते लेखक  कवि.

कितना बका कितनासमझापता नहीं
वहीभ्रष्टाचारीबनामंत्री.

Saturday, May 21, 2016

परिवर्तन

विचारों के  परिवर्तन  विचित्र है जग में ।
जब मैं दस साल का था कहते थै,
पाप का फल बच्चे भौगेंगै।
तभी हुई दैश की आजादी।
जब मैं बीस साल का था ,
तब कहते थे- रिश्वत लिये - दिये जीना मुश्किल।
आजाद होकर बीस  साल बीत गयै।
जब मैं चालीस साल का हूँ
कहतै हैं - वह तो बडा चतुर।
कालाबाजारी, गैर कानूनी काम ।
पुलिस उनकी कठपुतली।
चार पीढियों तक संपत जोड लिया।
आजाद होकर चालीस साल बीत गये।
अब  मेरी उम्र साठ साल हे गयी।
कहते हैं करोडों खरच करके यम.पि. बन गया।
कैंद्र का मंत्री बन गया।
दो लाख करोड भ्रष्टाचार ।
विदेश बैंक में काला धन।
भ्रष्टाचार- खून - हत्याएँ।
अपराधी है बडा,पर जीतेगा वही।
अब एक नये अति शिक्षित वर्ग।
बगैर ब्याह के मिलकर रहेंगे।
जाति के बंधन में नहीं फँसेंगे।
पाप की कमाई हो या पुण्य की ,
खूब मजा। भोग।
न बच्चे , पाप भोगने।
मरना तो अचल सत्य।
धन, धन, धन।
न प्यार करने ,प्यार देने का अवसर ।
धन ही प्रधान आध्यात्मिक क्षेत्र हो या राजनैतित।
विचार बदल गये। न्याय का गला घोंट रहे हैं।
ये अपराध खुल जाते हैं,
मुकद्दमा चलते हैं,पर अपराधी जमानत में बाहर।
राजनैतित कर्ता - धर्ता  वही।
मुकद्दमा चलता रहता है,
अपराधी बन जाता मंत्री या मुख्य मंत्री।
काल परिवर्तन ,विचार परिवर्तन ।
अजीहो गरीब  बन गया प्रधान। ।जय भारत ।

Friday, May 20, 2016

पहचान

पहचान   देश की स्वतंत्रता   के शहीदों को।
  
आजादी  के लिए     प्राण त्यागे थे,
व्यक्तिगत  सुख ,परिवार त्यागा ।
बुद्धि बल  से   सुप्त लोगों को जगाया था।
  उन स्वतंत्र सेनानी तो पहचानना है
अंदमान जेल में कठोर यात्नाएँ   झेली थीं।
देश को ही प्रधान माना था।
लाठियों का मार सहा।
कोल्हू घुमाया।
अनशन रहा।
अग्ञात वास किया
झालियाँ वाले बाग  में 
गोलियों ते शिकार बने।
अपने देश के ही लोग   पुलिस
पैसे के लिए अंग्रेजों की पुलिस बनकर
आजादी सेनानियों तो मारा था।
सर,रावबहादुर उपाधी लेकर विदेशी
शासकों के सामने
दुम हिला रहै थे।
अपनी मातृभाषा  को तज
अंग्रेजी बोलने को सम्मान माना था।
उन दीवानों को राजाओं को  पहचान लो।
देश को अपने धर्म के लिए टुकडा करने के बाद भी
यही् रहकर पंद्रह  मिनट में दिनों में  सरवनाश की बात वाले ओवरसी को पहचान।
पहचान भ्रष्टाचारियों को,
काले धनियों को ।
चुनाव में पहचान तेरा कर्तव्य 
अच्छी चालचलनों के वोट देना ।
प्रशासन के आदर्श जिलादेशों को पहचानो।
शील और अश्लील को पहचान।
आध्यात्मिक  अंधविश्वासों को लो पहचान।
आश्रमों की धूर्तता पहचान।
पहचान जननी जन्म भमिश्च स्वर्ग तभी गरियसी।
सद-बद गुणों के भेद पहचान।

धन्य हिन्दी प्रचारक

मंच न देखा , पंच न देखा
छंद न जाना, पंथ न जाना।
बनाया भाग्य ने हिंदी अध्यापक।
हिंदी विरोध क्षेत्र में।
दूर ही रहा खुद अपने भाग्य को सराहा।
चंद विद्यार्थ, कर्ता -धर्ता हम।
रिटायरड हुआा, नयी नियुक्ति के छात्र नहीं।
  मेरै  दोस्त सब रिटयर्ड ,
हिंदी को स्कूलों में स्थान नहीं।
दूर कोने में  विरेध क्षेत्र में हिन्दी का प्रचार।
न केंद्र का न प्रांत का समर्थन।
न पेंशन , न वेतन, न प्रोत्साहन
फिर भी कर रहे हैं हिंदी का प्रचार।
हमारी स्तुति हम  न करेंगे तो कौन करेगा?
तमिलनाडु के हिंदी प्रचारक घन्य।
जो कर रहे हैं राष्ट्र भाषा प्रचार।गाँव गाँव
शहर शहर   हिंदी है हजारों का जीविकोपार्जन।
धन्य महात्मा करमचंद  जिन्होंने किया
मद्रास में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना।
धन्य है कार्य कारिणी समिति जिनके
अथक परिश्रम से देशोत्तम कार्य
चल रहा है सुचारू रूप से।
केंद्र सरकार के हिन्दी अफसर  वेतन भोगी।
प्रचारक है निस्वार्थ सेवक।

Thursday, May 5, 2016

ईश्वरीय शक्ति


ईश्वरीय शक्ति

सब के सब जानते हैं अशाश्वत है संसार।
अस्थाई संसार  में  जितना  चाहे 
उतना  आनंद लूटना  मनुष्य की चाह  है।
कुदरत  की  देन जो हैं, उसी का नकल 
कृत्रिम  उपकरणों से पाने में समर्थक‍ ‍।
चंद्रमंडल मेंं रहने  की कोशिश।
दीर्घायु जीने की  कोशिश।
रोग मुक्त जिंदगी कीकोशिश।
सफेद बाल काले करने की कोशिश।
बुढापे की झुर्रियाँ निकालने की कोशिश।
बुढापे में  संभोग-शक्ति  बढाने की कोशिश।
अचल-चल  संपत्तियाँ  बढाने की  कोशिश।
पर प्राकृतिक परिवर्तन 
चल बसने को काबू  में रखने में असमर्थ‍
जग  भार  कम करने दुर्घटनाएं।
जलन,घृणा, रण , आतंकवाद,आत्महत्याएँ।
बलात्कार, लूट-मार ,शक-मार,भ्रम मार
नहींं रोक सकता कोई।
तभी होती  हैं पहचान‍
ईश्वरीय पहचान।
अपूर्व चमत्कार।
ध्यान का महत्व।
शांती की खोज।
आत्म संतोष की खोज।
ईश्वर की खोज।
ईश्वर लीला केचिंतन।
ऊँ शांती। 

Tuesday, May 3, 2016

धर्म की जीत कैसी ?


     अवकाश ग्रहण के बाद ही सामाजिक और राजनैतिक व्यवहारों पर अधिक विचार करने लगा.
समय काटने के लिये तो मुझे मिला ईश्वर ध्यान .
गहरी धार्मिक बातें समझने और आलोचना या अनुसंधान करने का ज्ञान मुझमें नहीं है.
क्योंकि ईश्वर की  अर्थात अवतार पुरुषों के पक्ष में जो न्याय सुनाया जाता है ,
उसके पाप के लिये दंड है;
मुक्ति देने के लिये ऐसा किया गया है ?
ईश्वर से भी उनसे लड़ना मुश्किल है.
उनको इतने बल का वरदान है कि ईश्वर खुद डरकर भाग रहा है.
या किसी मानव-तपस्वी की रीढ़ की हड्डी की ज़रूरत है.
मानव भी त्याग करता है.
देव जीतते हैं.
धर्म की जीत के लिये अधर्म की लड़ाई ,
पुण्य को भी दान लेने देव तैयार ;
इन्द्र पदवी बचाने के लिये बामन अवतार
सरसरी दृष्टि से देखने पर देव हो या मानव को अधर्म या बेईमानी करनी ही पड़ती है
तो
धर्म की जीत कैसी ?
पता नही.
या मुझे समझनी की बुद्धी नहीं .
समझने के ज्ञान के लिये अज्ञात ईश्वरीय ध्यान में लगा हूँ.
कोई है तो समझाना.
यह मानव जन्म सार्थक होगा .

यही लीला अद्भुत है.

रोज ईश्वरीय लीला पर ध्यान देता हूँ ,
भगवान की लीला है अद्भुत .
रंक को राजा बनाना ,राजा को रंक बनाने के भाग्य का खेल
या विधि की विडंबना अद्भुत .
विद्वान का बेटा बुद्धु होता है
तो
संगीतज्ञ का बेटा संगीत पर ध्यान ही नहीं देता.
खानदानी कला केवल बोलने में सुनने में तो अच्छा लगता है ,
व्यवहार में तो ऐसा नहीं .

यही लीला अद्भुत है.

शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन

शिक्षा प्रणाली में  परिवर्तन   

मनुष्य   बहुत  कुछ  करना  चाहता  है.
बुद्धि बल से  शारीरिक बल से आर्थिक बल  से।
क्या   वह  करने  में  सफलता  पाता  है ?
हर  एक मनुष्य के  मन में  एक मानसिक प्रेरणा होती  है.
अपने आप एक कौशल  वह महसूस करता है।
किसी को गाने में  रुची हो  तो किसी को सुनने में। 
किसी को चित्रकारी में तो किसी को  साहित्य  में।
किसी को कृषि में तो किसी को विज्ञान  में।
किसी को तकनीकी में।
पर  आज  के  समाज  में  अभिभावक
अपने बच्चे को हर फन  मौला बनाना  चाहते हैं ,
अपने बेटे या बेटी के सहज ज्ञान जानने   के प्रयत्न न करके
अपने मन पसंद पाठ पढ़ने का आग्रह करते हैं।
फलस्वरूप  प्रतिभाशाली पुत्र के  मन पसंद विषय चुनने नहीं  देते.
परंपरागत रीति के  शिक्षा नीति प्राचीन भारत में थी.
तब कृषि  ,हस्तकला ,बढ़ई गिरी, वास्तुकला  ,संगीत ,
जुलाई  सब  में  अति  आगे  था.
मैं इस   बात  पर जोर नहीं देता कि
परंपरागत  ही करें ,
छात्र  की रुची और कौशल जानकर  आगे बढ़ने दें.
सिद्धार्थ की रुचि  आध्यात्मिक चिंतन  थी.
जान कर  भी उनके  पिता  ने राजा बनाने  के प्रयत्न में रहे.
पर सिद्धार्थ ने घर  त्यागा   था.
बुद्ध बनकर एशिया खण्ड के ज्योति बने.
विवेकानन्द के जीवन  में भी मोड़  आ  गया.
एम.इस.सी  प्राणी शास्त्र पढ़कर 
बैंक के गुमाश्ता  या बैंक मैनेजर बन जाते  हैं.
बी.इ।  सिविल पढ़कर  ऐ। टी।  में.
ऐसी शिक्षा प्रणाली में अपने छः साल  की उच्च शिक्षा  के  विषय में
दिमाग लड़ाना कितना कष्टप्रद हो जाता है.
अतः  शिक्षा  में  अनुशासन  की कमी हो जाती है.
गुरु-शिष्य का अन्योन्य भाव  की कमी हो  जाती है.
अतः आज कल की शिक्षा प्रणाली में जड़ मूल  परिवर्तन  की जरूरत है.













Sunday, May 1, 2016

रूठने में आनंद -- काम - तिरुक्कुरळ - १३२० से १३३०



  रूठने  में  आनंद -- काम - तिरुक्कुरळ - १३२० से   १३३०
१. बिना  किसी  कारण के प्रेमियों में   रूठना  भी  आनंदप्रद. है. और प्रेम  अधिक होगा  ही।  

२.  प्रेयसी  कहती  है  कि  रूठने  के कारण  प्रेम जरा  घटने  पर   भी    आनंददायक ही  हैं .

३. पानी -मिट्टी जैसे  मिलकर  रहती  है , वैसे  ही   प्रेम में एकता  होने पर भी  जरा -सा  रूठने से होनेवाला  सुख देवलोक  में भी नहीं  मिलेगा.

४. प्रेमी  के आलिंगन  सदा कसकर रहने में रूठना ही साथ  देता  है. प्रेयसी कहती है कि रूठना प्रेम लूटने की शक्तिशाली  सेना  है.

५. कोई  गलती  के  न होने पर भी प्रेयसी  का रूठना अच्छा  ही  लगता  है.

६. भोजन करने  से जो भोजन खाया है , वह पच जाना ही  सुख. है.    उसी प्रकार प्रेम मिलन. में  रूठना  आनंददायक. है

७.
रूठ. के  मधुर. युद्ध. में जो  हार जाते  हैं 'वे ही  विजयी हैं. यह सच्चाई संभोग के बाद मालूम.होगा.

८. माथे पर पसीने निकलने  के  मिलन. सुख. को  रूठने  के  बाद. ही  महसूस कर सकते हैं.

९. प्रेयसी का रूठ   अधिक होने  के  लिए रात लंबी होनी चाहिए ,वही प्रार्थना है.

१०. कामेच्छा को आनंद   देने  में  रूठना  सहायक  ही  है. रूठने के बाद का आलिंगन और संभोग ही आनंद की चरम सीमा है.

बहाना बनाना-तिरुक्कुरळ -- काम - १३११ से१३२०

    बहाना बनाना-तिरुक्कुरळ -- काम - १३११  से१३२०

१.  प्रेयसी  प्रेमी  से   बहाना बनाती है कि  स्त्रियों   को  तुम आम संपत्ती मानकर सब को घूरकर. देखते  हो. इसलिए मैं तेरी छाती से गले  नहीं  लगाऊँगा.

२. प्रेयसी  कहती  हैं  कि मैं उनसे  रूठी  थी. तब प्रेमी  झूठी छींक छींकने लगे कि मैं कहूँगी कि दीर्घायुष.
क्या मैं कहूँगी न हीं.

   ३. प्रेमी  कहता  है  कि एक दिन फूल गूँथकर  उसकी  चोटी  पर रखा तो वह यह कहकर रूठी  थी  कि  और किसी को लुभाने मैंने  ऐसा  किया  था.

४.
प्रेमी ने कहा  कि और. दूसरों से मैं तुझसे  अधिक. प्यार करता  हूँ. तब वह रूठने  लगी कि औरों से माने

 और दूसरी  से प्यार करते  हैे ?

५.  प्रेमी  ने  प्रेयसी  से कहा  कि इस जन्म में  मैं  तुमसे  बिछुडूँगा नहीं, तब प्रेयसी रूठकर वेना  के आँसू  बहाने लगी  कि  अगले  जन्म. में  बिछुड जाएँगे क्या ?

६ . प्रेमी  ने प्रेयसी  से  कहा  कि  मैंने तुमहारे बारे में सोचा ,तब प्रेयसी रूठने लगी  कि तुमने  मुझे भूलगये ; इसलिए सोचा  है . यें ही वह बगैर. आलिंगन के रूठ गयी.

७. प्रेयसी   ने मैंने छींका तो बधाइयाँ दी. फिर संदेह प्रकट करके पूछा  कि तुम और. किसकी याद. में  हो. रूठकर  रोने लगी.


८. प्रेयसी रूठेगी  सोचकर. छींक दबाया  तो वह रूठने लगी कि किसी  की याद छिपाने के लिए
छींकने को रोका क्या?

९. प्रेयसी के क्रोध दूर. करने  दुलारने लगूँ  तो तब भी  वह रूठती थी  कि अन्य महिलाओं के  साथ भी ऐसा  ही व्यवहार करोगी  क्या ?

१०. प्रेयसी की  अनुपम  सुंदरता  देखकर.  घूर कर देखती  तो  रूठती थी  कि   किसकी तुलिना करके ऐसे देखते  हैं. 

जिद्दी /हठ--- तिरुक्कुरळ - काम १३०१ से १३१०


जिद्दी /हठ--- तिरुक्कुरळ - काम १३०१  से १३१०
१.प्रेमी  के आलिंगन से थोडी देर   रोकेगे  तो तुम्हारे   रूठने के दुख प्रेमी कैसे  अनुभव करते  हैं  उसे   थोडी  देर  तक   देख सकती  हो.

२. रूठने और प्रेम मिलन की देरी भोजन. में नमक के  समान   थोडी ही होनी  चाहिए.
वह. देरी  लंबी  होने  पर. जैसे भोजन में  नमक बढने  पर अच्छा  नहीं लगेगा ,वैसे ही काम बिगड जाएगा.

३. हम. से  रूठनेवालों के रूठ को जल्दी आलिंगन  करके दूर न. करेंगे  तो
दुखी को और दुख बढाने  के  समान  हो जाएगा.

४. क्रोधी प्रेम के क्रोध को दूर करने  का प्रयत्न न करना और प्रेम  न दिखाना पहले ही सूखी

लता को जड से नष्ट करने  के  समान है.

५. अनुशासित  प्रेमी की शोभा  तभी बढती  है , जब कुसुम -सी  सुंदरी  उनके व्यवहार. से  रूठती  है.

६. प्रेम में . रूठ  छोटी - बडी  न  होने पर,   काम अति  पके  फल  के  समान  या  छोटे कच्चे फल के समान  बेकार. हो  जाएगा.

७. संभोग का समय  लंबा होगा या छोटा , यह. सोचकर  रूठने  में भी वेदना बढेगी ही.

८. हमारी वेदना को समझने ,जाननेवाले प्रेमी  न रहने पर दुख होने से क्या लाभ  है.

९. छाया  के  नीचे रहनेवाला  जल ही ठंडा  रहेगा. वैसे  ही रूठ में ही प्रेम आनंदप्रदायिनी है.

१०. रूठी प्रेयसी को खुश प्रदान न करके वेदना बढानेवाले प्रेमी  से प्रिय मिलन. की  चाह
 के कारण चाह. ही  हैं. चाह. ही दुखों  के मूल है.



उलाहना -तिरुक्कुरळ -काम - १२९१ से१३००

उलाहना -तिरुक्कुरळ -काम - १२९१ से१३००

१. अपने दिल से  प्रेयसी  कहती  है  कि  प्रेमी का  दिल  मझसे प्रेम नहीं करता, दिल में मेरी याद. नहीं  है  तो तुम उनको  अपने  दिल. में  रखकर क्यों गलते रहते हो?


२.हे दिल ! तुझे मालूम. है  कि  वे मुझसे प्रेम नहीं करेंगे. फिर भी उनकी याद में ही क्यों उनका  पीछा  करते  हो?

३. हे दिल ! तुम अपनी इच्छा  के  अनुसार उनका  पीछा करने  के कारण यही  होगा  कि दुख में कोई. साथी  न मिलेगा.

४. हे दिल! तुम  रूठकर उसके फल नहीं भोग. सकते ; अतः रूठ की सलाहें  तुमसे  नहीं लूँगी.

५. हे दिल! मेरे भय की कहानी जारी ही रहेगी, पहले प्रेमी के न मिलने  से डरता रहा; मिलने  के  बाद यह. डर. है  कि फिर छोडकर चले जाएँगे तो ? यह भय तो अनंत ही है.

६.  प्रेमी  से  बिछुडकर विरह वेदना  से  तडपते  समय उनके अपराधों की  चिंताएँ ऐसी  ही  लगी कि दिल मुझे  खा  लेगा.

७. प्रेमी के बारे में सोचनेवाले मेरे मूर्ख मन. से  मिलकर  मैं ने  भी अपनी  लज्जा  छोड दी.

८.बिछुडकर गये प्रेमी की निंदा करके   मेरा  दिल. अपमान करना नहीं  चाहता ,अतः वह उनके अच्छे गुणों की प्रशंसा में ही लगा है.

९. हे  दिल ! संताप के समय तू साथ नहीं  देगा  तो  और कौन. देगा.

१०. वेदना के समय अपना  दिल ही साथ नहीं देता  तो दूसरे नाथा छोडना सहज ही  है.


पुनर्मिलन की चाह --तिरुक्कुरळ -- काम - १२८१ से१२९०


पुनर्मिलन  की चाह --तिरुक्कुरळ -- काम - १२८१ से१२९०


१. मद्यपान करने से ही नशा  चढेगी.  कामेच्छा तो देखने -मिलने  से  काम. की  नशा  चढ. जाएगी.और चरमोत्कर्ष  होगा.

२. ताड के पेड बराबर कामेच्छा बढ जाती  है  तो  य्रेससी को अपने प्रेमी  से  तिल. पर. भी रूठना  नहीं  चाहिए.

३.
प्रेमी  मुझे  न. चाहकर अपने कर्म. में ही  लगने  पर. भी  मेरी आँखें उनके दर्शन के बिना  शांति नहीं  पाती.

४. प्रेयसी अपने  सखी  से  कहती  है  कि मेरा  दिल अपने प्रेमी  से  लूटने  गया. पर उनसे  मिलते  ही दिल प्रेम. में मग्न होना ही चाहता  है.

५.
काजल लगाते समय  आँखें काजल लगाने की तूरिका  पर ध्यान. नहीं  देता. उसी प्रकार  प्रेमी  के  देखते  ही उनके अपराध भल जाता है . मिलन सुख भोगना  ही  चाहता  है.

६. प्रेयसी  कहती  हैं कि अपने  प्रेमी  से मिलते  समय  उनके अपराध  की यादें नहीं आती.

उनके बिछुडन. के वक्त सिर्फ. उनके  अपराध  ही याद आती हैं.

७. बाढ के आने  पर. सब को खींचकर  ले  जाता  है.  मालूम होने पर भी बाढ में कूदनेवाले होते  हैें, वैसे  ही
रूठने से फायदा नहीं है,फिर. भी  दिल रूठता  है ,उससे कौन -सा  लाभ मिलेगा?

८. प्रेयसी  कहती  हैं कि प्रेमी के अपमान. के  बाद. भी नशे की गुलाम  जैसे
प्रेमी छाती का नशा बढती  ही  जाती  है. कम. होती  नहीं  है.

९. कामेच्छा फूल. से  अधिक. कोमलतम  है, उसे जान-समझकर भोगनेवाले  बहुत  कम. ही  होते  हैं.

१०. आँखों  से    अति क्रोध दिखानेवाली  मेरी प्रेमिका, संभोग में मुझसे अधिक तेज थी.



भाव मुद्रा अध्ययन -- काम - तिरुक्कुरळ - १२८१ से १२८०.




भाव  मुद्रा  अध्ययन -- काम - तिरुक्कुरळ - १२८१ से १२८०.


१. बिना बताये छिपाने पर. भी  आँखों  के  द्वारा प्रकट होने की एक खबर  है  तो  वही प्रेम .


२. अति सुंदर और कोमल बाँहों वाली  प्रेयसी में जो स्त्रीत्व. है ,वह अति सुंदर. है.

३. मणी माला में छिपे हुए  दागे  के  समान मेरी प्रेमी की  बाह्य सुंदरता  के  अंदर छिपा हुआ भाव -मुद्रा  है.

४. कली  में जैसे  सुगंध दबा हुआ. है ,वैसे  ही प्रेयसी के  मन में प्रेमी  की  यादें दबी  हुई. हैं.

५. रंगबिरंगे चूडियाँ पहनी अति लावण्यमयी  मेरी प्रेमिका में मेरे मनको सतानेवाले दुख मिटाने  की दवा छिपी  हुई. है.

६. अति  प्रेम  दिखाकर  संभोग -सुख देने में  एक सूचना संकेत  छिपा  है  कि वे जलदी ही मुझे  छोडकर चलनेवाले  हैं.

७. मेरे प्रेमी ठंडे दिल से संभोग देना ,मुझे छोडने का संकेत हैं. इसे मेरी पहनी चूडियाँ शिथिल. होकर समझ गई.

८. प्रेयसी  सोचती  है कि मेरे  प्रेमी  कल. ही गये थे  पर ऐसा लगता  है कि  सात. दिन बीत गये.

   ९.  प्रेयसी के भाव मुद्रा देखकर  उसकी  सखी  ने  नायिका  से  बताया  कि    चूडियाँ ढीली  है.,बाँहें दुबली -पतली  हो  गई. हैं, पर उसके चरण प्रेमी के  साथ चलने  तैयार. है.

१०. आँखों  से  ही  अपने काम रोग का संकेत दर्शानेवाली प्रेमिका स्त्रीत्व और साथ रहने का अनुरोध  स्त्रीतव की शोभा  बढा रहा  है.

परस्पर. शौक /अन्योन्य प्रेम --पास्परिक. शौक - /इच्छा- काम-तिरुक्कुरल -१२६१ से १२७०.

परस्पर. शौक /अन्योन्य प्रेम --पास्परिक. शौक - /इच्छा-  काम-तिरुक्कुरल -१२६१ से १२७०.

१.  प्रेयसी  विरह वेदना में तडपती हुई. कहती  है  कि प्रेमी की प्रतीक्षा  करते करते आँखें  थक गई हैं. उनके आने के दिन  के इंतजार. में हर दिन जो निशाना  बनाती थी उनको  गिन गिनकर  उंगलियाँ थक गईं.

२. प्रेयसी अपने  सखी  से  कहती  है कि  मैं अपने प्रेमी की  याद खो  देती  तो मेरे अंग और शिथिल हो जाते और मेरे  हाथ और. दुबली -पतली  हो जाते और चूडियाँ गिर जातीं.

३. प्रेयसी कहती  हैं कि मैं इसलिए  जिंदा हूँ  कि मेरे प्रेमी साहसी हैं  और विजय ही उनका लक्षय है. आशा  है जरूर एक. दिन वापस. आएँगे.

४. मेरे प्रेमी के साथ सानंद बीते उन दिनों की यादों  में मेरा  दिल  पेड कीं ऊँची डाल पर चढकर उनका रास्ता  देख. रहा  है.

५. मेरे प्रेमी के दर्शन के बाद ही मेरे फीके शरीर में  और हाथों में तेजस आएगा.

६.  मेरे प्रेमी जो मुझे  विरह वेदना में तडपाकर गये , वे जरूर एक. दिन आएँगे  ही. तब मैं पूर्ण आनंद  का अनुभव  करूँगा.

७. प्रेयसी सोचती  है कि कई. दिनों के बाद मेरे   नयन  तारे प्रेमी आएँगे तो  पता नहीं ,उनसे रूठूँगी  या प्रेम में लग जाऊँगी  या दोनों करूँगी.

८. प्रेमी  सोचता  है  कि  राजा युद्ध में जीतेंगे तो कई दिनों के बाद प्रेयसी  से मिलूँगी और मिलन  सुख. का अनुभव करूँगी.

९. विरह वेदना की  प्रेयसी  को  एक दिन भी  सातदिन सा लगेगा.

१०. असह्य वेदना  के  कारण  दिल टूट  जाएगा  तो  उनके आने  से , मिलन सुख देने  से  देने  से  या संग रहने से क्या लाभ होगा ? नहीं, दिल. तो टूट गया है न ?