अवकाश ग्रहण के बाद ही सामाजिक और राजनैतिक व्यवहारों पर अधिक विचार करने लगा.
 समय काटने के लिये तो मुझे मिला ईश्वर ध्यान . 
गहरी धार्मिक बातें समझने और आलोचना या अनुसंधान करने का ज्ञान मुझमें नहीं है. 
क्योंकि ईश्वर की  अर्थात अवतार पुरुषों के पक्ष में जो न्याय सुनाया जाता है ,
उसके पाप के लिये दंड है; 
मुक्ति देने के लिये ऐसा किया गया है ?
ईश्वर से भी उनसे लड़ना मुश्किल है.
 उनको इतने बल का वरदान है कि ईश्वर खुद डरकर भाग रहा है. 
या किसी मानव-तपस्वी की रीढ़ की हड्डी की ज़रूरत है. 
 मानव भी त्याग करता है. 
 देव जीतते हैं. 
धर्म की जीत के लिये अधर्म की लड़ाई ,
 पुण्य को भी दान लेने देव तैयार ; 
इन्द्र पदवी बचाने के लिये बामन अवतार 
 सरसरी दृष्टि से देखने पर देव हो या मानव को अधर्म या बेईमानी करनी ही पड़ती है
 तो
 धर्म की जीत कैसी ?
 पता नही. 
 या मुझे समझनी की बुद्धी नहीं .
 समझने के ज्ञान के लिये अज्ञात ईश्वरीय ध्यान में लगा हूँ. 
कोई है तो समझाना.
 यह मानव जन्म सार्थक होगा .
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