Friday, May 27, 2016

साहित्य मंच

लिखा है मंच है साहित्य का सारवजनिक।
जो मन में आये लिखिए पर मनमाना न लिखना।
जो अपना मन  मानता है , जन-हित लिखिए।
प्यार की बात हो तो देश हित लिखिए।
नफरत है तो देश द्रोह की बात लिखना।
जवानी दीवानी अध्खुला अंग आकर्षक
वह नहीं तो जीवन शून्य।
जीना दुश्वार यों ही इश्क भरा लिखकर
युवकों को असंयम की ओर न ले जाना।
धर्म पथ की बात लिखिए।
कर्तव्य निभानने ,सत्य बोलने
दृढ रहने , दैश भक्ति त्याग की भक्ति पर लिखिए।
सिखाइए जग को  नश्वर जग में
न्याय पथ पर जाने , भ्रष्टाचार से दूर रहने।
जवानी अस्थाई, जीवन अस्थाई,
धन जोडने से नहीं बना सकते किसी बात को स्थाई।
साहित्य है हित केलिए।
न ही बलात्कार बढाने केलिए।
सोचिए बढिए आगे। मंच है आपका ।
शोभा बढाना शोभा हटाना है आप का कौशल ।

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