"भारतियार की कविताओं में से चंद हीरे “
छपने योग्य है तो अनुग्रह करें।
स्वरचित स्वचिंतक मौलिक शैली aatm ननरेेे ाातहमा ழ்
महाकवि भारतियार का असली नाम सुब्रह्मणियम है। वे युगावतार कवी थे,हैं, रहेंगे। भारतीय कवियों में अधिकांश वर कवी हैं। अर्थात उनकी कविताएँ ईश्वर के अनुग्रह से प्रकट होती हैं। वाल्मीकि ,तुलसीदास ,कालिदास की पंक्ति में तमिळ के विश्वविख्यात कवी महाकवी सुब्रह्मणीय भारती के नाम भी स्वर्णाक्षरों में लिखने लायक है। वे सात साल की उम्र में ही प्रसिद्ध कवी बन गए। एट्टायापुरम के राजा ने उनको "भारती " की उपाधि दी। अन्य भक्त कवियों से भारती भिन्न हैं।
वे केवल ईश्वर भक्त ही नहीं ,देश भक्त हैं। ईश्वर भक्ति के सुधारवाती कवी थे।
उन्होंने सभी हिन्दू देवताओं की प्रशंसा की है और ईसा ,अल्ला की भी।
जाति -मजहब से बढ़कर मनुष्यता या इंसानियत को बड़ा माननेवाले थे।
उनके वेदांत चिंतन और ईश्वर से उनकी मांँगे निराली हैं। उनकी भक्ति कविताओं में आत्मचिंतन ,एकाग्रता और समाज और देश के प्रति श्रद्धा भाव दीख पड़ते हैं।
भगवान गणपति से प्रार्थना करते है --
मैं कुत्ते के सामान कई भूलें करके तेरे चरण में आया हूँ। तेरे चरणों में तमिल कविता का समर्पण करुँगा। जो पेशा करता हूँ ,तेरा ही पेशा है। सही ढंग से करने अनुग्रह करो।
मुझे जो वर चाहिए , उन्हें माँगता हूँ , मन निश्चल हो, बुद्धि में कभी तम न हो ,
जब सोचता हूँ तब तेरी मौन दशा मिलें। तुममें सौ साल की उम्र दे सकने की क्षमता है |
मेरे कर्तव्य अपने को काबू में रखना। परायों का दुःख दूर करना ,
परायों की भलाई करना। तेरे रूप और नाम में विविधता है सही ।गणपति देव ! विनायक !शूलधारी कार्तिक ! नारायण ,जटाधारी शिव और विदेशी लोग अल्ला ,येहोवा आदि नामों से इबादत करके सुख का अनुभूति करते हैं। लोकरक्षक की प्रशंसा करना ,
भूलोक के हर एक का कर्तव्य है। प्रार्थना या इबादत के फल चार --
"धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष " क्रमशः इनको नियंत्रण में रखने का अधिकार मिलें तो सभी फल अपने आप मिलेगा ही | मणक्कुल विनायक! (पुदुच्चेरी का प्रसिद्ध मंदिर)
अचल मन, सभी जीवराशियों के सुख की चाह इन के लिए प्रार्थना।
मिलें तो गणपति देव, मैं जीऊँगा अति आनंद से इनमें वे सभी भगवान के नाम में और विदेशी भगवान की प्रशंसा करने को कर्तव्य मानते हैं। साथ ही इन नामों में गणेश को ही देखते हैं। अपने मन को समझाते हुए कहते हैं कि गणपति के रहते शरण मिलेगा ही। अतः आतंक नहीं,दबना नहीं। कम्पन नहीं,संकोच नहीं, पाप नहीं ,छिपना नहीं, जो भी हो जरा भी भय न खाएँगे।भूखंड छोटे हो जाएँ | समुद्र के उफ़ान भी अति भयंकर हो, हम निष्कलंक रहेंगे, डरेंगी कभी नहीं। किसी से न डरेंगे, कहीं न डरेंगे ,
कभी न डरेंगे। आकाश है,वर्षा है ,सूर्य है , स्वच्छ हवा है ,शुद्ध पानी है | अग्नि हैं ,मिट्टी है ,चंद्र है ,नक्षत्र है, शरीर है ,जान है ,ज्ञान है खाने के पदार्थ है ,मिलकर रहने नारी है
सुनने गीत है ,देखने संसार है , खुशी से गाने गणपति का नाम है।
ऊबना कभीनहीं, ईमानदारी से जिओ । ठगने की चिंता को स्थान न देना।हे गरीब मन ! शरण देने भगवान गणेश हैं ! ईश्वर वंदना में मजहबी एकता, भिन्न नाम देव एक ,
पंचतत्व संसार भगवान के रहते भय भीत होने की जरूरत नहीं। आगे कहते हैं --
हमारा धंधा कविता लिखना, देश के लिए परिश्रम करना, पल भर भी सुस्त न रहना --
इन सब के लिए गणनाथ अपने नागरिक को जीवित रखेगा !
हे मन !ये तीनों गुणों को अपनाओ। जिनमें भक्ति है ,कर्म करने विचलित न होंगे।
सब्रता से काम करेंगे जैसे बीज उगता है धीरे धीरे | हे विद्या की देवता !गणनाथ !श्रेष्ठ सेवा में लगाना मुझे। ये गणपति वन्दना में कवी भारती अपने लिए कुछ नहीं माँगते ,
भगवान गणपति जो भी शक्ति देंगे उनसे देश और मानव कल्याण के काम करेंगे।
कवी का धंधा कविता रचना, उन कविताओं के द्वारा ईश्वर की प्रार्थना।
प्रार्थना द्वारा देश का कल्याण कार्य करना , कराना ,करवाना। निस्वार्थ जीवन जीने की माँग अद्भभूत है |
भारतीयार की कविता में भक्ति की श्रेष्ठता :-
भक्ति से चित्त शुद्धि, जो भी काम करें उसमें पवित्रता।कलाओं के ज्ञान विकास।
अच्छे वीरों का नाता, मन में दार्शनिक भाव। जी की चंचलता मिटकर मानसिक दृढ़ता।
काम राक्षस का नाश। तामस का भूत जो बुरे विचारों का मूल।उसका वधकर, मिथ्या का समूल बर्बाद। सच्चे नाम जपने से भक्ति से होगा कल्याण। भक्ति से इच्छाओं को दफनाएँगे। बुरे प्रेम का इन्कार करेंगे। किसी प्रकार का दुख न होगा। सभी प्रकार के सुख प्राप्त करेंगे। आलसी दूर होगा,मिथ्या सुखों को हटा देगा। साँप के डसने पर भी बच जाएँगे।विविध संपत्तियाँ खुद आकर खुशियाँ देंगी। विद्या की उन्नति होगी।
कार्यों में कामयाबी हासिल होंगी। संताप -संकट दूर होंगे। वेद के कथन जैसे लाभप्रद शब्द मुँह से निकलेंगे। वास्तविक शक्ति मिलेंगी | दिव्य जीवन यहीं पाकर जी सकते हैं। भगवान कृष्ण से प्राकृतिक चमत्कार देखकर प्रश्न करते हैं |
कच्चे फल खट्टे !
फल मीठे !
रोग में लेटना !
व्रत में बचना !
वायु में ठंडक!
आग में गर्मी !
कीचड में गंदा !
बहाव में स्वच्छंदता !
तेरे यशोगान में आनंद !
दीनबंधु तो तू !
प्रशंसकों की रक्षा !
झूठों का वध !
तेरे चमत्कार हैं ये सब !
तेरे स्वर्ण चरण का प्रशंसक हूँ ।
महाकवियों की रचनाओं के सागर में एक बूँद का ही उल्लेख कर सका। देश भक्ति, आजादी की भविष्यवाणी, भारतीय आध्यात्मिक चिंतन , मानव प्रेम,निबंध और कई विषयों कीमर्म स्पर्शी रचनाएं हैं। उन्में केवल एक दो पद्यों की व्याख्या हैं। एक अति छोटे हीरे के टुकड़े की चमक ही आप के सामने रखा है।महाकवि सुब्रह्मण्य भारती का योगदान युग युगांतर तक भारत के युवकों को प्रेरणादायक रहेगा। कवी भारती आजादी प्राप्ति के पहले हीगा चुके हैं कि "गाएँगे, नाचेंगे कि आनंद स्वतंत्र पा चुके हैं।" उनका "पापा पाट्टु"अर्थात "शिशु गीत"अति प्रसिद्ध और मार्ग दर्शक है।बच्चों को संबोधित करते हुए गाते हैं - बच्चों!खेलों, तू कभी न बैठो सुस्त ! सब से मिलकर खेलों। अन्य बच्चों को कभी गाली न देना। नन्हीं नन्हीं चिड़िया जैसे उड़ फिर घूमना।
रंग-बिरंगे पक्षी देख आनंद विभोर हो जाना। चुग -फिरकर घूमनेवाली मुर्गी,
उनसे भी खेला करो। ठगकर छीनने वाले कौए, उनपर भी दया करो। गोमाता जो दूध देती है, वह अति अच्छी है।दुम हिलाने वाला कुत्ता, मनुष्य का साथी है। गाड़ी खींचनेवाले घोड़े, खेत जोतने वाले बैल, आश्रित रहनेवाली बकरी- इन सब की रक्षा करनी है | सुबह उठते ही पढ़ना, फिर सुखप्रद गाना गाना | शाम भर खूब खेलना।
इन सब का आदी हो जाना। कभी झूठ मत बोलना। चुगलखोर कभी न करना।
ईश्वर हमारा सहायक। हमें कोई हानी न होगी। द्रोहियों को ,पातकियों को
देखकर कभी न डरना। उनको लात मारकर थूक देना। दुःख आने पर भी तुम हतोत्साहित न होना। प्यार भरा भगवान है, वे सब तरह के संताप मिटा देंगे।
हिचक हिचक रोनेवाले बच्चे अपाहिज। तुमको दृढ़ होकर सामना करना चाहिए।
उत्तर में हिमाचल, दक्षिण में कुमरी अंतरीप। पूर्व व पश्चिम में बडे सागर।
वेदों का देश हमारा। बड़े बड़े वीरों का देश हमारा। अखंड भारत है यह , इसको ईश्वर मानो, स्तुति करो। जातियां नहीं है देश में, ऊंँच नीच कुल भेद कहना बहुत बड़ा पाप।
जिनमें न्याय,धर्म ,शिक्षा,प्यार भरा है, वे ही ऊँचे हैं बड़े हैं। बच्चों में देश भक्ति,ईश्वर भक्ति, पशु पक्षी प्रेम, जाति भेद रहित समाज आदि शिक्षाप्रद यह गीत सदा के लिए अनुकरणीय हैं। भारतीयार की कविता में स्वतंत्रता का महत्व- जो वीर स्वतंत्रता की चाह करते हैं, और कुछ न चाहेंगे ।अमृत की चाह वाले शराब पर ध्यान न देंगे।
स्वतंत्रता का प्रयास - कब यह स्वतंत्रता का प्यास बुझेगा? दास्तां का मोह कब दूर होगा? कब गुलामी का जंजीर छूटेगा? कब यह संताप दूर होगा? भारती की रचनाएँ अति शिक्षाप्रद है। युग-युगों तक अमर रहेगी।