Sunday, February 26, 2023

तमिल सिद्ध मनोशक्ति व अष्टांग योग के कवि तिरुमूलर

 तमिल सिद्ध मनोशक्ति कवि तिरुमूलर 

तमिल में  सिद्ध कवियों ने अष्टांग योग द्वारा ईश्वरीय शक्ति प्राप्त करके अनेकानेक चमत्कारपूर्ण  कार्य करके
आम जनता में अष्टयोग साधना का मार्ग  दिखाया है । तमिल सिद्धपुरुषों की संख्या  अधिक हैं । उनमें अठारह सिद्ध 
अति प्रसिद्ध हैं । आम लोगों का विश्वास है  कि एक दीप जलाकर लौकिकता तजकर इन सिद्धों के नाम जपने से  ये सिद्ध 
प्रत्यक्ष दर्शन  देंगे और हमें दिव्य शक्ति प्रदान करेंगे । 
तमिल के अठारह प्रसिद्ध सिद्ध पुरुष हैं ------
1.अगस्त्यर 2. पुलत्तियर ३.काकभुजंडर ४.नंदीदेवर५.तिरुमूलर् ६ .भोगर७.कोंकणवर ८.मच्छमुनि ९.गोरखर १०.चट्टमुनि 
११.सुंदरानंदर १२.कुदंबै १३.करुऊरार्१४. इडैक्काडार १५.कमलमुनि १६.पतंचलि १७.धनवंत्री १८.बोधगुरु.

इन अठारह सिद्ध पुरुषों  में तिरुमूलर् को अव्वल स्थान   मिला है । तिरुमूलर के गुरु नंदी हैं ।तिरुमूलर  का असली नाम्  सुंदरनाथर था। मूलन नामक गायें चरानेवाला गायें चराते चराते मर गया।  तब सुंदरनाथर ने अपने दिव्य चमत्कार द्वारा अपने शरीर तजकर मूलन के शरीर में प्रवेश कर  मूलन के यहाँ गया। फिर अपने शरीर में घुसने गया तो शरीर नदारद । वे मूलन के शरीर  में ही अपने योग सिद्ध कार्य में रहे.कुल ३०००  पद्यों की रचनाएँ की ।उन्होंने लिखा है कि संस्कृत के आगमों को तमिल में ही लिखने के लिए भगवान शिव ने मेरी सृष्टि की है ।

संस्कृत के ज्ञाता  शिव भगवान के शिष्य सुंदरनाथर  तिरुमूलर्  के नाम से तमिल भाषा में  पहले पहलअष्टांग योग की व्याख्या की है ।
उन्होंने  ही तमिल लोगों को समझाया कि शरीर में छे आधार हैं । १.मूलाधार  चक्र--गुदा के पास है।
२.स्वाधिष्ठान चक्र --गुदा केऊपर और नाभी के नीचे हैै.
३.मणिपुर चक्र--नाभी  है.
४.अनाहत चक्र----छाती है
 ५. विशुद्ध चक्र--कंठ है 
 ६. आज्ञा चक्र -----भौहों के बीच में है .
इन चक्रों को तमिल भाषा में तिरुमूलर ने ही परिचय दिया है । तिरुमूलर के बाद असंख्य सिद्ध पुरुषों ने इन चक्रों को प्रयोग करके सिद्धियाँ प्राप्त की है । 
तिरुमूलर की अष्टमा सिद्धियाँ हैं ---जिनको तमिल में अट्टमा सिद्धिकल्‌ कहते हैं। कट्टर तमिल लोग ष का उच्चारण 
ड ही करते हैं  जैसे वर्ष को वरुडम्, विषय को विडयम्‌ . विष को विडम््आदि  .
अब अट्टमा सिद्धि पर विचार करेंगेे ---
१. अणिमा----शरीर को छोटा बनाा लेना.
२. महिमा---तन को विराट रूप में बना लेना 
३.गरिमा----तन को अत्यधिक मोटा बना लेना 
४. लघिमा----तन को हल्का बना लेना
५. प्राप्ति--जैसा चाहते हैं वैसा बनने की क्षमता
६.प्रकाम्य -   ---अपनी हर इच्छा को पूर्ण करने की क्षमता 
७. ईशतव ---संसार की हर वस्तु को  अपने वश में करने  की क्षमता
 ८. वशित्व ------संसार के जीवों को अपने वश में लाकर अपनी इच्छा के अनुसारर नचाने कीी क्षमता।
तिरुमूलर इन अष्ट सिद्धियों को प्राप्त शिव योगी थे । 
तिरुमंत्र की सक्तिया ँ--
१.एक ही  मानव कुल., एक ही भगवान । भला सोचना,न यम भय ।
२. जो ईश्वरीय सुखानुभूति  मिली,वह सबको  अगजग को मिलें ।
मंत्र तो महसूसस करने,
३.अंतःकरण में देखने में ही आनंद है ।
४.अपने को पहचानने के बाद ,और कुछ न जाना  न पहचाना ।
५. अपने को जानने पहचानने के बाद  न कोई  बरबाद ।
६.सुष्म्ना नाडी के पहचान से दर्पण -सा ईश्वरीय मिलन -मिश्रण।।

७. चेहरे के नयनों से देखने में आनंद नहीं ,मानसिक नेत्रों से देखने में ही  दर्शनानंद।.

तिरुमंत्र के लाभ
नश्वर शरीर को योग शक्ति द्वारा मंदिर बना सकते हैं ।
प्राणायाम् ,ध्यान,तपस्या द्वारा  दीरघायु से बढकर  ज्यादा साल  जी  सकते हैं  ।
आध्यात्मिक  जीवन ब्रह्मानंद जीवन का साधन है ।
मानव को अपने शरीर को  स्वस्थ  रखना चाहिए ।
दुर्बल शरीर कोई भी काम करनेनहीं देता । 
शरीर से प्राण निकल जाने के पहले कुछ करना चाहिए । सवस्थ शरीर मंदिर है । मन ही भगवान है ।










 

Saturday, February 25, 2023

विषय == आधुनिकता वरदान है या अभिशाप.

 एस.अनंतकृष्णन ,चेन्नै का नमस्कार ,भारतीय साहित्य मंच के संचालक,समन्वयक,संयोजकों को।

विषय == आधुनिकता वरदान है या अभिशाप.
विधा -----लेख
इस शीर्षक पर विचार् विमर्श करने पर सरसरी नजर में वरदान सा ही लगता है ।भारतीय दृष्टिकोण में अभिशाप -सा ही लगता है। शिक्षा,अनुशासन,खान -पान ,पोशाक, न्याय व्यवस्था,आविष्कार सब में अभिशापह है या वरदान ?देखेंगे,हर एक विषय पर ।
शिक्षा-- परंपरागत व्वयसायिक शिक्षा नीति में आमूल परिवर्तन आ गया है।
सबको समान मौका । इसमें छात्रों की रुचि और बदधि लब्धि पर ध्यान नहीं दे रहे हैंं। अभिभावक या नाते-रिश्तों की दिलचस्पी प्रधान है. शिक्षा कामाध्यम अंग्रेजी,जो जीविकोपार्जन की भाषा बन गयी । जिनके माता-पिता अंग्रेजी नहीं जानते उनको अधिक खर्च करना पडता है । सरकारी स्कूलों कोभेजना नहीं चाहते. तमिलनाडू जैसे प्रांतीय मोह राष्ट्रीय शिक्षा के विरोध करते हैं। कितने राजनैतिक दल के नेता है सबका एकएक मेडिकल या इंजनियरिंग कालेज.इनमें मेनेजमेंट कोटा ,खोटा . यह एक नवीन आधुनिकक भ्रष्टचार एक अभिशाप है।
खान-पानन में पाश्चात्य भारतीय जलवायु के अनुकूल नहीं है ।आधुनिक शिक्षा बच्चों को
खेलने आजाद नहीं देता.कोच का बेगारर न जते हैं. प्रतिभाशाली छात्र। विदेश के मोह में.
अनुशासन --- स्नातक स्नातकोत्तर संख्याएँ बढ रही हैं, पर वस्त्र अधखुले अंग दिखा रहा है, अनुशासन की कमी,परिणाम तलाक के मुकद्दमे बढ रहे हैं. जितेंद्रियता कम होने से नपुंशकता बढ रही है. अशलील नील चित्रपट शुक्लपतन,पुरुष तीस साल में ही कमजोर. इनफेर्टलिटी केंद्र बढ रहे हैं.
नयेनये आविष्कार हर साल माडल बदलना महँगाई के कारण है. पुलिस,न्यायालय अमीररों और
शासकों कीकठपुतलियाँ हैं। चुनाव जीतने ययोगयता करेडपति बनना।
एक ओर आधुनिकता दिखावे और बाह्यडंबर पर जोर देता है । नैतिक पतन के कारण
आधुनिकता अभिशाप ही के लक्षण है.
स्वरचित,स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन् चेन्नै, तमिलनाडु  

Tuesday, February 14, 2023

प्रेमी दिवस

 [10:16 am, 14/02/2023] sanantha.50@gmail.com: कलमकार कुम्भ को नमस्कार।

इश्क प्रेम प्यार मुहब्बत

१४-२-२०२१

सोचा बार बार प्रेम /इश्क शीर्षक।

संसार इसकी कठपुतलियाँ।

केवल लड़के -लड़की के प्रेम से

चलता नहीं संसार।

देश प्रेम देश के लिए

तन मन धन नाते रिश्ते

तज जीनेवाले जवान सैनिक।

जग शान्ति के लिए सर्वस्व ताज

सन्यासी ,आचार्य ,गुरु बने

आध्यात्मिक प्रेमी।

देश के कल्याण केलिए

वैज्ञानिक प्रेमी आविष्कारक।

यथार्थ -आदर्श सत्य -असत्य धर्म अधर्म के

चित्रण कर समाज को जगाने वाले साहित्य प्रेमी।

साहित्यकारों की रचनाओं को

जगतविख्यात करने वाले कला प्रेमी ,

संगीत प्रेमी कितने प्रकार के प्रेमी है

जगत को स्वर्ग बनानेवाले वास्तुकार ,शिल्पकार अभियंता

सब को अपने अपने विषय पर अति प्रेम श्रद्धा न तो

जग क्या होगा सोचो ,समझो।

इश्क कहते ही तन मन का नाहीं

प्रेम निस्वार्थ न हो तो

हमें रामायण नहीं ,महाभारत नहीं कुरआन नहीं बाइबिल नहीं।

नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल

अली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल।

स्वरचित स्वचिंतक एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै

***************

(

न हीं इस काल में फूल में पराग है, न तो मीठी मधु ही है। अगर अभी से भौंरा फूल की कली में ही खोया रहेगा तो आगे न जाने क्या होगा। दूसरे शब्दों में, 'हे राजन अभी तो रानी नई-नई हैं, अभी तो उनकी युवावस्था आनी बाकी है। अगर आप अभी से ही रानी में खोए रहेंगे, तो आगे क्या हाल होगा।)


स्वरचित स्वचिंतक एस। अनंतकृष्णन  ,चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

[11:04 am, 14/02/2023] sanantha.50@gmail.com: [14/02, 10:36 am] sanantha.50@gmail.com: [14/02, 10:18 am] sanantha.50@gmail.com: கலம் கார் கும்பத்திற்கு வணக்கம்.

[14/02, 10:19 am] sanantha.50@gmail.com: அடிக்கடி  நினைத்தேன்.

[14/02, 10:20 am] sanantha.50@gmail.com: அன்பு/காதல்/பாசம்/நேசம்.வையகம் இதற்கு பொம்மைகள். ஆண் பெண் காதலால் மட்டுமே உலகம் இயங்கவில்லை.நாட்டின் மேல் காதல் நாட்டிற்காக.உடல் மனம் பொருள் உறவினர் அனைத்தையும் துறந்து வாழும் வீரசிப்பாகிகள்.உலக அமைதிக்காக அனைத்தையும் துறந்து வாழும் சந்நியாசிகள்.ஆசாரியர்கள் குரு ஆன ஆன்மீகக் காதலர்கள் .நாட்டின் நலத்திற்காக அறிவியல் காதலர்கள் கண்டுபிடிப்பாளர்கயதாரத்தம் ஆதர்சம்,சத்தியம் அசத்தியம் தர்மம் அதர்மம் ஆகியவற்றை சித்தரித்து சமுதாயத்தை விழிப்படையச் செய்யும்  இலக்கியக் காதலர்கள்.இலக்கியவாதிகளின் படைப்புகளை பார் புகழவைக்கும் கலைக் காதலர்கள்.

[14/02, 10:52 am] sanantha.50@gmail.com: உலகத்தை சுவர்கமாக்குகிற கட்டிடக்கலைக் காதலர்கள்.சிற்பக் கலைஞர்கள்,பொறியாளர்கள்  ஒவ்வொருவருக்கும் தங்கள் தங்கள்  தொழிலில் காதலும் சிரத்தையும் இல்லை என்றால்

[14/02, 11:01 am] sanantha.50@gmail.com: உலகம்  என்ன ஆகும் யோசியுங்கள்.புரிந்து கொள்ளுங்கள்.காதல் என்பது உடல் மனம் என்பதல்ல காதல் சுயநலமற்றிருந்தால் இராமாயணம் மஹாபாரதம் குரான் பைபிள் இல்லை. எஸ் .அனந்தகிருஷ்ணன்  சென்னை

Friday, February 10, 2023

भारतियार् की कविताएं

 "भारतियार की कविताओं में  से चंद हीरे “


 छपने योग्य है तो अनुग्रह करें। 

 स्वरचित स्वचिंतक मौलिक  शैली   aatm ननरेेे ाातहमा ழ்



महाकवि भारतियार का असली नाम सुब्रह्मणियम है। वे युगावतार कवी थे,हैं, रहेंगे।  भारतीय कवियों में अधिकांश वर कवी हैं। अर्थात उनकी कविताएँ ईश्वर के अनुग्रह से प्रकट होती हैं। वाल्मीकि ,तुलसीदास ,कालिदास की पंक्ति में तमिळ  के विश्वविख्यात कवी महाकवी सुब्रह्मणीय भारती के नाम  भी स्वर्णाक्षरों में लिखने लायक है। वे सात साल की उम्र में ही प्रसिद्ध कवी बन गए।  एट्टायापुरम के राजा ने उनको "भारती " की उपाधि दी। अन्य भक्त कवियों से भारती भिन्न हैं। 

वे केवल ईश्वर भक्त ही नहीं ,देश भक्त हैं। ईश्वर भक्ति के सुधारवाती कवी थे। 

उन्होंने सभी हिन्दू देवताओं की प्रशंसा की है और ईसा ,अल्ला की भी। 

जाति -मजहब से बढ़कर मनुष्यता या इंसानियत को बड़ा माननेवाले थे। 

उनके वेदांत चिंतन और ईश्वर से उनकी मांँगे निराली हैं। उनकी भक्ति कविताओं में आत्मचिंतन ,एकाग्रता और समाज और देश के प्रति श्रद्धा भाव दीख पड़ते हैं। 

भगवान गणपति से प्रार्थना करते है --

मैं कुत्ते के सामान कई भूलें करके तेरे चरण में आया हूँ। तेरे चरणों में तमिल कविता का समर्पण  करुँगा।  जो पेशा करता हूँ ,तेरा ही पेशा है। सही ढंग से करने अनुग्रह करो। 

मुझे जो वर चाहिए , उन्हें माँगता  हूँ , मन निश्चल  हो,  बुद्धि में कभी तम न हो ,

जब सोचता हूँ  तब तेरी मौन दशा मिलें। तुममें सौ साल की उम्र दे सकने की क्षमता है |

मेरे कर्तव्य  अपने को काबू में रखना। परायों का दुःख दूर करना ,

परायों की भलाई करना। तेरे रूप और नाम में विविधता है सही ।गणपति देव ! विनायक !शूलधारी कार्तिक ! नारायण ,जटाधारी शिव  और विदेशी लोग अल्ला ,येहोवा  आदि नामों  से इबादत करके सुख का अनुभूति करते हैं। लोकरक्षक  की प्रशंसा करना ,

भूलोक के हर एक का कर्तव्य है।  प्रार्थना या इबादत के फल चार --

"धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष " क्रमशः  इनको नियंत्रण  में रखने का अधिकार मिलें तो सभी फल अपने आप मिलेगा ही | मणक्कुल विनायक! (पुदुच्चेरी का प्रसिद्ध मंदिर)

अचल मन, सभी जीवराशियों के सुख की चाह  इन के लिए  प्रार्थना। 

मिलें तो  गणपति देव, मैं जीऊँगा अति आनंद से इनमें वे सभी भगवान के नाम में और विदेशी भगवान की प्रशंसा करने को   कर्तव्य  मानते हैं। साथ ही इन नामों में गणेश को ही देखते हैं। अपने मन को समझाते हुए कहते हैं  कि गणपति के रहते शरण मिलेगा ही। अतः आतंक नहीं,दबना नहीं। कम्पन नहीं,संकोच नहीं, पाप नहीं ,छिपना नहीं, जो भी हो जरा भी भय न  खाएँगे।भूखंड छोटे हो जाएँ | समुद्र के उफ़ान भी  अति भयंकर हो, हम निष्कलंक रहेंगे, डरेंगी कभी नहीं। किसी से न डरेंगे, कहीं न डरेंगे ,

कभी न डरेंगे। आकाश है,वर्षा है ,सूर्य है , स्वच्छ हवा है ,शुद्ध पानी है | अग्नि हैं ,मिट्टी है ,चंद्र है ,नक्षत्र है, शरीर है ,जान है ,ज्ञान है खाने के पदार्थ है ,मिलकर रहने नारी है 

सुनने  गीत है ,देखने संसार है , खुशी से गाने  गणपति का नाम है। 


ऊबना कभीनहीं, ईमानदारी से जिओ । ठगने की चिंता को स्थान न देना।हे गरीब मन ! शरण देने भगवान गणेश हैं ! ईश्वर वंदना में मजहबी एकता, भिन्न नाम देव एक ,

 पंचतत्व संसार  भगवान के रहते भय भीत होने  की जरूरत नहीं। आगे कहते हैं --

 हमारा धंधा कविता लिखना, देश के लिए परिश्रम करना, पल भर भी सुस्त न रहना --

इन सब के लिए  गणनाथ अपने नागरिक को जीवित रखेगा !

हे मन !ये तीनों गुणों को अपनाओ। जिनमें भक्ति है ,कर्म करने विचलित न होंगे। 

सब्रता  से काम करेंगे जैसे बीज उगता है  धीरे धीरे | हे विद्या की देवता !गणनाथ !श्रेष्ठ सेवा में लगाना मुझे। ये गणपति वन्दना में कवी भारती अपने लिए  कुछ नहीं माँगते ,

भगवान गणपति जो भी शक्ति देंगे उनसे देश और मानव कल्याण के काम करेंगे। 

कवी का धंधा कविता रचना, उन कविताओं के द्वारा ईश्वर की प्रार्थना। 

प्रार्थना द्वारा देश का कल्याण कार्य करना , कराना ,करवाना। निस्वार्थ जीवन  जीने की माँग अद्भभूत है | 


 भारतीयार की कविता में भक्ति  की श्रेष्ठता  :- 

भक्ति से चित्त शुद्धि, जो भी काम करें उसमें पवित्रता।कलाओं के ज्ञान विकास।

अच्छे वीरों का नाता, मन में दार्शनिक भाव। जी की चंचलता मिटकर मानसिक दृढ़ता।

काम राक्षस का नाश। तामस का भूत जो बुरे विचारों का मूल।उसका वधकर, मिथ्या का समूल बर्बाद। सच्चे नाम जपने से भक्ति से होगा कल्याण। भक्ति से इच्छाओं को दफनाएँगे। बुरे प्रेम का इन्कार करेंगे। किसी प्रकार का दुख न होगा। सभी प्रकार के सुख प्राप्त करेंगे। आलसी दूर होगा,मिथ्या सुखों  को हटा देगा।  साँप के डसने पर भी बच जाएँगे।विविध संपत्तियाँ खुद आकर खुशियाँ देंगी। विद्या  की उन्नति होगी।

 कार्यों में कामयाबी हासिल होंगी। संताप -संकट दूर होंगे। वेद के कथन जैसे लाभप्रद शब्द मुँह से निकलेंगे। वास्तविक शक्ति मिलेंगी | दिव्य जीवन यहीं पाकर जी सकते हैं। भगवान कृष्ण से प्राकृतिक चमत्कार देखकर प्रश्न करते हैं | 

कच्चे फल खट्टे !

फल मीठे !

रोग में लेटना !

व्रत में बचना !

वायु में ठंडक!

आग में गर्मी !

कीचड में गंदा !

बहाव में  स्वच्छंदता ! 

तेरे यशोगान में आनंद !

दीनबंधु तो तू !

प्रशंसकों की रक्षा ! 

झूठों का वध !

 तेरे चमत्कार हैं ये सब !

 तेरे स्वर्ण चरण का प्रशंसक हूँ ।

महाकवियों की रचनाओं के सागर में एक बूँद का ही उल्लेख कर सका। देश भक्ति, आजादी की भविष्यवाणी, भारतीय आध्यात्मिक चिंतन , मानव प्रेम,निबंध और कई विषयों कीमर्म स्पर्शी रचनाएं हैं। उन्में केवल एक दो पद्यों की व्याख्या हैं। एक अति छोटे हीरे के टुकड़े की चमक ही आप के सामने रखा है।महाकवि सुब्रह्मण्य भारती का योगदान युग युगांतर तक भारत के युवकों को प्रेरणादायक रहेगा। कवी भारती आजादी प्राप्ति के पहले हीगा चुके हैं कि "गाएँगे, नाचेंगे कि आनंद स्वतंत्र पा चुके हैं।" उनका "पापा पाट्टु"अर्थात "शिशु गीत"अति  प्रसिद्ध और मार्ग दर्शक है।बच्चों को संबोधित करते हुए गाते हैं - बच्चों!खेलों, तू कभी न बैठो सुस्त ! सब से मिलकर खेलों। अन्य बच्चों को कभी गाली न देना। नन्हीं नन्हीं चिड़िया जैसे उड़ फिर घूमना।

रंग-बिरंगे पक्षी देख आनंद विभोर हो जाना। चुग -फिरकर  घूमनेवाली मुर्गी,

उनसे भी खेला करो। ठगकर छीनने वाले कौए, उनपर भी दया करो। गोमाता जो दूध देती है, वह अति अच्छी है।दुम हिलाने वाला कुत्ता, मनुष्य का साथी है। गाड़ी खींचनेवाले घोड़े, खेत जोतने वाले बैल, आश्रित रहनेवाली बकरी- इन सब की रक्षा करनी है | सुबह उठते ही पढ़ना, फिर सुखप्रद गाना गाना | शाम भर खूब खेलना।

इन सब का आदी हो जाना। कभी झूठ मत बोलना। चुगलखोर कभी न करना।

ईश्वर हमारा सहायक। हमें कोई हानी न होगी। द्रोहियों को ,पातकियों को

देखकर कभी न डरना। उनको लात मारकर  थूक देना। दुःख आने पर भी  तुम  हतोत्साहित न होना। प्यार भरा भगवान है, वे सब तरह के संताप मिटा देंगे।

 हिचक हिचक रोनेवाले बच्चे अपाहिज। तुमको दृढ़ होकर सामना करना चाहिए।

   उत्तर में हिमाचल, दक्षिण में कुमरी अंतरीप। पूर्व व पश्चिम में बडे सागर।

 वेदों का देश हमारा। बड़े बड़े वीरों का देश हमारा। अखंड भारत है यह , इसको ईश्वर मानो, स्तुति करो। जातियां नहीं है देश में, ऊंँच नीच कुल भेद कहना बहुत बड़ा पाप।

जिनमें न्याय,धर्म ,शिक्षा,प्यार भरा है, वे ही ऊँचे हैं बड़े हैं। बच्चों में  देश भक्ति,ईश्वर भक्ति, पशु पक्षी प्रेम, जाति भेद रहित समाज आदि शिक्षाप्रद यह गीत सदा के लिए अनुकरणीय हैं। भारतीयार की कविता में स्वतंत्रता का महत्व- जो वीर स्वतंत्रता की चाह करते हैं, और कुछ न चाहेंगे ।अमृत की चाह वाले  शराब पर ध्यान न देंगे।

स्वतंत्रता का प्रयास - कब यह स्वतंत्रता का प्यास बुझेगा?  दास्तां का मोह कब दूर होगा? कब गुलामी का जंजीर छूटेगा? कब यह संताप दूर होगा? भारती   की रचनाएँ  अति शिक्षाप्रद है। युग-युगों तक अमर रहेगी।


परिपाडल

 




  परिपाडल एक परिचय.

शोध सार —-
संघ काल का परिचय,परिपाडल का विवरण, विष्णुदेव का वर्णन, बलदेव का रूप,वराह कल्प का ज्ञान, नदी वैगै का वर्णन, बाढ के आते ही सबको नदी में नहाने जाना,जल-क्रीडाएँ,-प्राकृतिक वर्णन -


परिपाडल—--

    परिपाडल के कवि हैं तेरह.
परिपाडल कविताओं के संकलन कर्ता हैं
उ.वे.स्वामिनाथऐयर ।इसकी व्याख्या परिमेलअळकर ने किया है।
परिपाडल के कवि :-
१.कटुवन इल ऍयिननार,२.इलंपेरुवळुतयर कीरत्तैयार,३.नल्लंतुवनार ४. करुंपिल्ळ्ळै भूतनार ५मैयोडक्कोवार ६ कुरुंभूतनार ७.नलवलुतियार ८.नलवलुसियार९.कुन्ऱमभूतनार १०.नप्पण्णनर ११.नल्लच्चुदनार १२.केसवनार १३.नल्ललिसियार


  संघकाल :---   

तमिल़ साहित्य भारतीय भाषाओं के साहित्यों में अति प्राचीन और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भारतीय एकता का प्रतीक होते हैं। तमिल़ साहित्य  का संघ काल तमिल साहित्य का स्वर्ण  युग होता है। संघकाल के साहित्य पत्तुप्पाट्टु,एट्टुत्तोकै है । तोकै का मतलब है संकलन।
 
 
दस ग्रंथों का संकलन पत्तुप्पाट्टु,आठ ग्रंथों का संकलन एट्टुत्तोकै ।
एट्टुत्तोकै में परिपाडल को विशेष स्थान मिला है। उस के संबंध में एक गीत है ।

ग्रंथ की विशेषता :-
"नट्ऱिनै नल्ल कुरुंतिणै ऐंगुरु नूरु ,
ओॅत्त पतिट्रुप्पत्तु ओंगु परिपाडल ।"


ओंगु का मतलब है ऊँचा । इसमें इयल,इसै,नाटक अर्थात आम तौर पर व्यवहारिक भाषा,संगीत और नाटक की भाषा इन तीनों के रूप परिपाडल में मिलते हैं।

यह विष्णु भक्त ग्रंथ है। वैष्णव , शैव और विश्वधर्मों का समन्वयत्मक ग्रंथ है।प्रकृति के कार्यकलापों में ईश्वरीय शक्ति का आधार का महत्व मिलता है ।

        तमिळ छंदों में परिपाडल छंद केवल इस ग्रंथ  में है।तमिल के चार प्रसिद्ध छंद आसिरियप्पा,वेण्बा,कलिप्पा,वंचिप्पा आदि से छूट्कर उन चारों के आम छंद के रूप में परिपाडल है ।
परि का अर्थ होता है अश्व।कुछ शोध कर्ताओं का कहना है कि अश्व की चाल जैसे संगीत होने से यह परिपाडल है.(अश्वगीत)।
इस ग्रंथ की और एक विशेषता है कि धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष आदि चारों का वर्णन तुलना आदि ।
यह ग्रंथ ताडपत्र में था, माननीय विद्वान उ.वे.स्वामिनाथ अय्यर ने ताड पत्रों की खोज की और१९१९ में इस ग्रंथ का प्रकाशित किया ।
  परिपाडल कुल सत्तर होते हैं।

विष्णु भगवान का यशोगान में आठ, 

भगवान कार्तिकेय के यशोगान में  इकतीस,

कोट्रवै (काली) के लिए एक,

वैगै नदी पर छब्बीस,

मदुरै शहर पर चार । कुल सत्तर ।

ये सारे के सारे अब नहीं मिलते ।ये गीत गाने योग्य होते  हैं।

    अभी इन सत्तर गीतों में बाईस ही मिलते हैं।
  विष्णु के छे,

मुरुगन (कार्तिकेय) के आठ,

वैकै नदी के आठ।
गीत कारों के कारण गीतों  के शब्दों में तोडमरोड अधिक होते हैं ।इनमें संस्कृत की पौराणिक कथाएँ अधिक होने से ई.पू. के बीच के माननेवाले विद्वान भी होते हैं ।
परिपाडल ही तमिळ भाषा  का सर्वप्रथम  गीत ग्रंथ हैं.
परिपाडल की बडी विशेषता आंतरिक और बाह्य ,काम और भक्ति की विशेषताएँ मिलती हैं ।
प्रकृति में ईश्वरत्व का वर्णन इसकी विशिष्टता है।

विष्णुदेव का रूप वर्णन :---(बलदेव )
आयिरम् विरित्त अणंकुडै अरुंतलै
ती उमिळ तिरळोडु मुडिसै अणवर
मायुडै मलर मार्पिन मै इळ वाळ वळै मेनिच
चेय उयर पणै मिसै ऍळिल वेळम एंतिय
वाय वांगुम वळै नांचिल ओॅरु कुलै ओॅरु वनै ।

  हे विष्णु! 

सभी जीवों को भयभीत करानेवाले
आदी शेष नाग अपूर्व हजारों सरवाले ,
क्रोधागनि उगालते हुए तेेरे सिर पर छाया दे रहा है ।
श्री लक्ष्मी देवी ,तेरी चौडी छाती पर विराजमान है ।
बढिया बाँस के ऊँचे खंभ पर
बाँधे हाथी के झंडे जो "हल" जैसे है,
उसे उठाकर श्वेत रंग के तू,
एक कान में कर्णाभूषण पहनकर
बलदेव सम दीख पडता है।
आगे भगवान के कमल नयन को जलनेवाली लाल ज्वाला की तुलना करते हैं ।

परिपाडल के प्रार्थना गीत में कवि अगजग के हर कार्य में ईश्वर की देन का वर्णन करते हैं ।
  हे  विष्णु ,
ब्राह्मण द्वारा रक्षित धर्म तू है,
भक्तों का प्यार तू है।
अधर्मियों के रक्षक तू है ।
शिव तू है ,
ब्रह्मा तू है,
सृष्टियों के कर्ता तू है ।
बादल तू है,
आकाश तू है,
भूमि तू है,
हिमाचल तू है।


खगोल शास्त्र ज्ञान —-
  दो हजार वर्ष के इस पुराने ग्रंथ में,

  भूमि कैसे बनी का वर्णन है।
इससे तमिल कवियों के वैज्ञानिक ज्ञान विशिष्टता का पता चलता है।
  कवि कटुवन इल एयिननार ने   प्रकृति में   विष्णु के गुणों को देखते हैं।

निन वेम्मैयुम विलक्कमुम ञायिट्रिल उळ --तेरी गर्मी और उज्ज्वलता सौरमंडल में
निन तण्मैयुम सायलुम तिंगल उळ– –   तेरी करुणा और कोमलता चंद्रमंडल में
निन करत्तलुम वण्मैयुम मारि उलतेरी -    तेरा अनुग्रह और दानशीलता बादल में ।
निन पुरत्तलम नोन्मैयुम ञालत्तु उळ —   तेरी सहनशीलता और आश्रयशीलता भूमि में ।
निन नाट्ऱमुम ओॅण्मैयुम पूवै उळ – –     तेरा सुगंध और प्रकाश पुष्प में
निन तोट्रमुम अकलमुम नीरिन उळ—   -   तेरा रूप और बडप्पन सागर में

निन उरुवमुम ओलियुम आकायत्तु उळ   -   तेरा आकार और ध्वनियाँ आकाश में
निन वरुतलुम ओडुक्कमुममरुत्तिन उळ —---तेरा जन्म और मृत्यु वायु में
अतनाल इव्वुम उव्वुमिरउम एमम आर्त्त —-  इसलिए तू इत्र तत्र सर्वत्र और सभी में व्यापित
निऱ पिरिन्दुमेवल चान्रन एल्लाम —--------सब में विद्यमान  रहकर 

अपना काम करवाने के                                                          मूलाधार तू है।

अगजग की उत्पत्ति कैसे हुई? :---

      दो हजार वर्ष  के पहले ही परिपाडल में कवि कीरंदैयार ने जिक्र किया है ।
    तमिल मूल :-

   तोलमुऱै इयऱकैयिन मतियॊ

—-मरबिट्रु

विसुंबिल ऊऴि ऊऴ ऊऴ चेल्लक

करु वळर वानत्तु इसैयिन तोन्रि

उरु अऱिवारा ऒन्ऱन ऊऴियुम

चेंतीच चुडरिय ऊऴियुम पनियोडु

तण पेयजल तलैइय ऊऴियुम अवैयिट्रु 

उळ मुरै वेळ्ळम मूऴकि आर तरुपु।

 अर्थ :--

 कई युग बीत गये।

उसके बाद मूल प्रकृति से

 अपने गुण तेज ध्वनि के साथ
वायु जैसे भूत गणों के परिवर्तन  करनेवाले सूक्ष्म कण बढने का स्थान बना।
आकार हीन आकाश में पहला युग,
उस आकाश से वस्तुओं की गति देनेवाली

 हवा बही,
फिर हवा से दूसरे युग का भूतगण 

लाल अग्नि,

उस आग से तीसरे भूत गण जल ,बर्फ,

ठंडी वर्षा के साथ चौथे युग का भूत गण,
फिर चौथे भूत गणों के सूख जाने से 

भूमि भूत गण
पाँचवाँ भूत गण का उदय हुआ।
पेड़ पौधे कमल जैसे फूल,
सागर तट की भूमि,
फिर अंधकार मय भूमि में से
  तेरा वराहावतार ,
  श्वैत वराह कल्पम संस्कृत में उल्लिखित है।

 ऐसे महान शक्ति शाली विष्णु को प्रणाम।।

 आधुनिक वैज्ञानिक बातें दो हजार साल पहले ही वर्णित है तो तमिऴ भाषा के कवियों का ज्ञान वर्णनातीत है।

   वैगै नदी के प्रवाह वर्णन में पता चलता है कि 

   कवि ने कितने प्राकृतिक  दृश्यों का अध्ययन किया है।

  और नायक नायिका वेश्या के वर्णन में 
  भावनात्मक वर्णन में अति पटु होते हैं।

  परिपाडल में हर पद्य में अद्भुत भक्ति चमकती है।
  ईश्वरीय महक महकता है।
  यह अपने आप एहसास करने का ग्रंथ है।

  वेदों के महत्व में चतुर्वेद,
  श्रुति, मौखिक, आंतरिक,बाह्य आदि प्रशंसा का महत्व मिलते हैं।

  वेदों के आंतरिक अर्थ ही ईश्वरीय रूप होता है।

  परिपाडल में उपमेय -उपमा  : —

  वैगै नदी के वर्णन में ,
  नायक-नायिका के संयोग -वियोग रूठ में,
  नदी के बाढ़ में,
  नहाते समय की क्रीड़ा में
  हर बात में कई उपमाएंँ मिलती हैं।

 दो किनारों में टकराकर बहनेवाली नदी की आवाज  की तुलना
  मेघ गर्जन से की गती है। 

 "उरु इडि चेर्न्द मुऴक्कम पुरैयुम।

वैगै नदी का प्रवाह आकाश से निकलने वाली गंगा के समान है –

" मिन आरमपूत्त वियन गंगै नंदिय

वानम पेयर्न्त मरुंगु ओऑत्तल" (वै_१६,चरण ३६,३७)

समुद्र उमड़ने के जैसे बाढ़ की वैगै नदी लगती है –"

नळि कडल् मुन्नियतु पोलुम थीम नीर वळि वरल वैयै वरउ "।

  वैगै नदी के बाढ़ को बाढ़ देखने आते आम लोगों की इच्छाओं की तरह की उपमा देते हैं।

 "वैयै नीर, वैयैक्करैतर वंदन्रु,

काणपवर ईट्टम् निवंदतु,

नीत्तुम करै मेला नीत्तम कवर्न्तदुपोलुम काण्पवर कातल।(वै१२,चरण ३२-३५).

नायक नायिका की रूठ दूर करने अति वेग से जैसा आता है,
वैसा है की तुलना नायिका की रूठ जल्दी दूर करने के सहज प्रयत्न का उल्लेख है।

 

"उणर्त्त उतरा ॵळ इऴै मातरैप् पुणर्तिय इच्चत्तुप् पेरुक्कत्तिन तुनैन्तु"(.वै ७ चरण ३६-३७).

 मानव के मनोभावों की तुलना नदी के बाढ़ से करना अन्यत्र कहीं ‌नहीं मिलती।

नायक के मनोवेग के समान नदी के बाढ़ का वेग
कैसी मनोवैज्ञानिक कल्पना दुर्लभ है।

नहाने की क्रीड़ाएँ :--

 नदी में नये बाढ के आते ही लोग नहाने आते हैं। उनके हाथ में नाना प्रकार के जल क्रीड़ाओं के साधन होते हैं। पिचकारियाँ हाथ में एक दूसरे पर छिटकाने, रंगबिरंगे गोल गोल थालियाँ, आनंद से जल क्रीडाएँ, युवक युवतियों की अठखेलियाँ  और नदी के बहाव का दृश्य पांडव राजा के रणक्षेत्र के समान दिखाई देता है।

 नल्लऴिसियार के गीत सौंदर्य:--
    परिपाडल में विष्णु,कार्तिक,वैगै नदी के दिव्यात्मक वर्णन.
मदुरै को समृद्धियाँ देनेवाली वैगै,तिरुप्परंकुन्रम में असुरों को वध कर विजेता बने कार्तिकेय,
विष्णु पधारे अलकर कोयिल ,
तीनों  का मानवानुकरण,दिव्यानुकरण,प्रकृति का मानवीकरण आदि
परिपाडल ग्रंथ की विशेषताएँ होती हैं ।

कार्तिकेय —

  प्राकृतिक उपमेय उपमान के साथ अतिरोचक ढंग से किया गया है।
  मुरुगन, विष्णु,वैगै नदी  के  भक्ति रस पूर्ण परिपाडल में चेव्वेऴ के बारे में
नल्लऴिसियार ने एक दिलचस्प गीत गाया है।
  इसके संगीतकार है नल्लच्चुदनार।
तिरुप्परंकुन्रम के भगवान कातिकेय के दर्शन के लिए जब कवि  जा रहे थे,
तब उन्होंने इस कविता की रचना की है ।

तेंपडु मलर कुऴै पूंतुहिल वडि मणि

एंतु इवै सुमंतु चांतम विरै इस

विडै अरै असैत्त वेलन कटिमरम
पाविनर उरैययोडु पण्णिय इसैयिनर
विरिमलर मधुविन मरम ननै कुन्रत्तु (चेव्वेल -१- ५)
मशाला,वाद्य यंत्र ,चंदन जैसे सुगंधित वस्तुएँ तोरण झंडेेे आदिएक ओर ले आनेवाले  लोग,
शहद की बूंदें टपकनेवाली सुमन भरी शाखाएँ,
अति आनंदित प्राकृतिक सुंदरता भरी तिरुप्परंकुनरम दिव्य क्षेत्र है।

परिपाडल में ईश्वर की आराधना करने सपरिवर मंदिर जाने की बात कही गयी है।
            तैयलवरोडुम तंतावरोडुम

   कैम्मकवोडुम कातलवरोडुम

   तेय्वम  पेणिततिसै तोलुतिनर चेल्मिन ”

घर की महिलाएँ ,पत्नी,माता-पिता,बच्चों के साथ चलना।

तिरुप्परंकुन्रम का प्राकृतिक वर्णन –
ओरु तिरम कण आर कुळलिन करैपु य़ेळ
ओरु तिऱम पण आर तुंपि परंतु इसै ऊत
ओरु तिरम मण आर मुलविन इसै एल
ओरु तिरम अण्णल नेडु वरै अरुवि नीर ततुंब
ओरु तिरम पाडल नल विरलियर ओल्कुु नुडंग
ओरु तिऱम वाडै उलरवयिन पूंकोडि नुडंग ओरु तिरमपाडिनी मुरलुम पालै अम कुरलिन
नीडुकिलर किलमै निरै कुऱै  तोन्ऱ
ओरु तिरम आडु चीर मञ्ञै अरिक्कुरल तोन्ऱ
मारु मारु उट्रन पोल मारु एतिर कोडल।
भावार्थ –
शत्रु  असुरों की सफलता के बाद श्री मुरुगन का तिरुप्परंकुन्ऱम .
वहाँ एक ओर गायक की वीणा की मधुर ध्वनी,
एक ओर फूलों पर भ्रमरों की गुंजन ध्वनी ,
दूसरी ओर पति के बाँसुरी वादन,
और एक ओर ढोल का गर्जन,
अन्य दिशा में पहाड पर से गिरनवले जलप्रपात की जोर  की कल कल आवाज़,
दूसरी ओर नर्तकियों  का गाना,

पायल ध्वनी,
मयूर  का किलकारना,

इस प्रकार मदुरै में  

प्राकृतिक  संगीत

विभन्न वाद्य यंत्रों  की मधुर ध्वनियाँ बज रही हैं, बजा रहे हैं।नागरिक अति खुशी का अनुभव कर रहे हैं।

परिपाडल तमिल संघ काल के  अंतिम  समय में रचित ग्रंथ है । दो हजार साल के  पुराने ग्रंथों में  तमिलनाडु  केलोगोंकेरीति-रिवाज,खगोलीय ज्ञान,भौतिक ज्ञान,प्राकृतिक प्रेम,ईश्वरीय ज्ञान,भारत की आध्यात्मिक एकता,पौराणिक कथा,नायक-नायिकाओं की अठखेलियाँ,रूठ,वेश्यागमन,जल-क्रीडाएँ जल-क्रीडों के उपकरण आदि वर्णन आज भी ताजी लगते हैं।

संदर्भ ग्रंथ.---

1.परिपाडल --पुलियूर केसिकन,गौरा प्रकाशक,

2, परिपाडल  चेन्नै नूलकम

3.परिपाडल, निबंध.दिनममणी।

4.परिपाडल भाषण  यू ट्यूब

5. परिपाडल, आरुमुख नावलार