Thursday, June 28, 2012

2.साधुतामहान।साधु/ उत्कृष्ट आदमी।

तिरुक्कुरल  अमृत में अधिकांश  कुरल मनुष्य के बड़प्पन ,शिक्षा और महानता पर जोर देते हैं।

वल्लुवर का उद्देश्य हर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाना और उच्च स्तरीय व्यक्ति बनाना।

    धर्म, अर्थ,काम के  तीनों   भागों   में स्त्री और पुरुष में दूध में छिपी घी की तरह बड़प्पन के विचार हैं।

अर्थ अध्याय में  जैसे कुरल ज्यादा है,वैसे ही बड़प्पन के विचार भी अधिक हैं।
धर्म तो बड़प्पन की व्याख्या करता है।

काम अध्याय में नायक,नायिका के चिंतन,संभाषण व्यवहार में बड़प्पन की बातें हैं।

जो उस अध्याय का गहरा अध्याय करते हैं ,वे इस बात को विस्तार से समझ सकते हैं।

अर्थ  अध्याय में नागरिकता के सम्बन्ध में बतानेवाले तेरह अधिकारों में नागरिकता ,मान,बड़प्पन ,लोभ,

महानता,नम्रता,लज्जाशीलता,नागरिक के कार्य -के वर्गीकरण,कृषि,आदि बातों पर प्रकाश डाला गया  है।

.1. महान।साधु/ उत्कृष्ट आदमी।




 तिरुवल्लुवर
महान।साधु/ उत्कृष्ट  आदमी।

ज्ञान प्रभाकर  तिरुवल्लुवर ने कई शिक्षित महानों  की सृष्टि की है।

वल्लुवर को खूब अध्ययन करने के बाद उनके विचारों को सोचना और उनके मार्ग  का
अनुसरण करना,और उनके मार्ग पर चलने के लिए दूसरों से कहना आदि आनंदप्रद  कार्य  है।

चानरोन तमिल शब्द के अर्थ एक कोष के अनुसार  व्यापक है।
शिक्षित और उदार आदमी ,वीर,सूर्य, आदि अर्थ दिए गए हैं।
बुद्धिमान,शिक्षित  और आदरणीय आदमी को तमिल में सानरोन कहते हैं।
पुरानानूरू के अनुसार पिताजी को अपने पुत्र के प्रति   ऋण  हैं 
-"-अपने पुत्र को  शिक्षित और बड़ा आदमी बनाना।"
तिरिकदुकम नामक ग्रन्थ में 'बड़ों में बड़ा कहना ' कहा है।
सान्रान्मै नामक तमिल शब्द का अर्थ बड़प्पन भी है।खेत अच्छा है तो धान खूब बढेगा।
कुल भद्र हो तो महान बनेंगे।
खलिहान के धान को आग और हवा करेंगे नष्ट;--वैसे ही
बुरा संग महानों का भी ख़राब करेगा।---नालड़ीयार तमिल-ग्रन्थ।

तमिल

नील नलत्ताल  नन दिय  नेल्ले पोल   तततंग
कुल  नलात्तल   आकुवर  चान्रोर --कलनलत्तैत
 ती वलि  चेन्रु  चितैत  तान्गुच चान्रान्मै
तीयिनंच  चेरक्केदुम।  (नालाडियर)  

सान्रोन   शब्द  का और अर्थ  हैं---आत्म-न्यंत्रण  ;सहन -शीलता।

 सभी तमिल विद्वानों का मत एक-सा ही प्रकट  होता है।
मनककुड़वर  नामक कवि ने चानरोन (उत्कृष्ट  आदमी)  का मतलब यों बताया है---कई गुणों से युक्त बड़ा आदमी,
धर्म कर्मों में श्रेष्ठ आदमी महान है। 







Tuesday, June 26, 2012

18.mantriमंत्री+++++

एक कहावत है  === राजा की सजा तुरत ; देव की सज़ा  सोच-समझकर बाद में ज़रूर मिलेगी


सूखे  पत्ते में आग तुरंत लगकर उसे भस्म कर देगा;वैसे ही राजा के क्रोध के पात्र भी ;

पर  ईश्वर  की कृपा  या क्रोध, दूसरों की प्रशंसा  या निंदा पर ध्यान न देकर उचित अवसर पर सजा या पुरस्कार  देगी।-----जीवकचिंतामणी
आग तो छूनेवाले को मात्र जलाएगा;
 राजा  के क्रोधाग्नि के पात्र होनेवालों के साथ-साथ
 उनके रिश्तेदारों को भी जला देगा।---जीवकचिंतामणि

जीवक्चिंतामनि :  अरुलू  मेलारा साक्कुमन कायुमेल
वेरुलाच चुट्टीडूम  वेंदानुमा तेइवं
मरुवी मत्रवाई वाल्त्तिनुम वैयिनुम
अरुली याक्क ललित्त लंकपवो।

तींडिनार   तमैत  तीच्चुडुम    मन्नर   ती
इंदु तन किलैयोडू  मेरित्तिडुम
वेंडिलिन्न  मिर्तुं नन्जुमातलान।


कुरल:-----पोटरी  नारियवै   पोट्रल  कडुत्त  पिन   तेट्रु तल   यार्क्कुम अरितु।

राज कोप  का पात्र  बनना ठीक  नहीं है।
कोई गलती करके राजा के क्रोध का पात्र बन जायेंगे   या राजा के संदेह  के पात्र बन जायेंगे तो
उनके संदेह को दूर करना  दुर्लभ कार्य है।जितना भी होशियार हो ,फिर  भी
संदेह को  निपटारा करना असंभव है।

IT IS DIFFICULT TO REMOVE A SUPERIOR'S BAD IMPRESSION IF YOU --DO NOT DO THINGS THAT WILL NOT TOLERATED  BY THE SUPERIOR.

जो मंत्री पद पर बैठते हैं,उनकी बड़ी गलतियाँ  क्या-क्या हैं?
1. दुश्मनों  से मिलकर  अपने  राजा के पतन  का   कारण  बनना।

2. राजा  से सम्बंधित ,केवल राजा के हक़ की महिलाओं से मिलना-झुलना।

बिना  राजाज्ञ के उनके कमरे में घुसना ,राजा की चीज़ों को अपहरण करना आदि।

राजा के पतन  का साथ देने का मतलब है राजा के शत्रु से घूस लेकर शत्रु का साथी बनना।अतः  वल्लुवर 
मंत्री को इन अपराधों से बचने के लिए  सतर्क करते हैं।

मंत्री  के पद पर रह्कर  आम जनता के मामूली अपराधों  या गलतियों को भी खुद  करना अपराध है।

जब राजा पास रहते हैं,तब उनके सामने ही दूसरों के कान पर कुछ कहना या हँसना  बड़ा अपराध है।
कुरल: चेविच  चोल्लुम सेर्नत नकैयुम  अवित्तोलुकल   आरा पेरियारकत्तु.

इन साधारण गलतियों को देखकर राजा अति क्रोधित होंगे ;कारण  राजा के मन में यह  विचार  उठेगा  --
मंत्री ने  अपने बारे में ही कुछ कहा  या हँसा  होगा।


 वल्लुवर बड़ी श्रदधा  से इस  बात को समझाते हैं।
कुरल:इलैयरिन   मरैय  रेन्रिकलार  निंर  वोलियो डोलुकप्पदुम।

मंत्री को अपनी  लापरवाही आचरण से बचना चाहिए।
राजा  मंत्री  के  रिश्तेदार भले ही हो  फिर भी
इज्ज़त पर ध्यान देकर  राजा   के साथ  अनादर का बर्ताव नहीं करना चाहिए।
राजा में ईश्वरत्व है;उसे ध्यान में रखकर व्यवहार   करना चाहिए।
राजा  तुरंत  दंड देंगे।अतः राजा का अपमानित करने का मतलब है तुरंत मृत्यु को बुलाना।

जीवक चिंतामणि :
उरंगुमायिनुम मन्नावंरण ओळी
करंगु तेंडिरै   वैयंग  काक्कुमाल
इरंगु   कन्निमैयर  विलित्ते यिरुनत
तरंगल वौववदन  पुरंग  काक्कलार।

हम सोते है ;तब राजा हमारी रक्षा करता है;जब हम जागते रहते हैं,तब हमारी रक्षा न करेंगे।
जीवक चिन्तामनि  का गीत।
RESPECT THE AUTHORITY OF A SUPERIOR EVEN  IF HE IS NOT AS EXPERIENCED AS YOU ARE.

राजा अपना सहपाठी है;बचपन का सखा है;यों सोचकर अधिक अधिकार  लेंगे  तो परिणाम बुरा ही होगा।
DO NOT TAKE ADVANTAGE  OF A SUPERIOR'S FRIENDSHIP AND THUS DO WRONG.

MANTRI -SHASTRA SAMAAPTA.
मंत्री

Monday, June 25, 2012

17.mantiriमंत्री+++

 जो दूत  का काम  करते हैं ,उनको अपनी जान को भी खतरा हो सकता है।

तमिल कवयित्री अव्वैयार  अपनी   जान  के  बिना परवाह किये , तोंडैमान  के  दूत  बनकर  गयी।


उन्होंने कहा --भले ही मेरे प्राण का खतरा हो ,फिर भी मैं अपने मत प्रकट करूंगी ही।

अव्वैयर जैसे ही दूतों को अपने राजा के हित के लिए जान भी छोड़ने सन्नद्ध होना चाहिए।

पहले  नौ अधिकार में जो भाव वल्लुवर ने प्रकट किया है,वे सब नदियाँ बनकर दसवें अधिकार में मिल जाते हैं।
वह अधिकार  है मंत्री और राजा का सम्बन्ध.

राजा  से  मिलकर  रहने का मतलब  है --राजा  के  साथ काम करना।
सरकार माने क्या है?  सरकार  का आरम्भ कब हुआ?

सोवियत संघ  के भूत-पूर्व  नेता  लेनिन के अनुसार सरकार का उदय तब होता है,जब समाज में वर्गीकरण

   होता  है।शोषक और शोषितों  की  संख्या  बढती है; अत्याचार बढ़ता  है।

सामाज  वर्गों में  बाँटने  के पहले सरकार नहीं थी।  समाज में वर्ग की स्थापना जड़ पकड़ ली तो सरकार भी जड़ पकड़ने  लगी।
सरकार  ऐसा एक यन्त्र है,जो एक् वर्ग की सुरक्षा केलिए दूसरे   वर्ग को अपने नियंत्रण में रखता है।राज-तंत्र एक व्यक्तिगत  अधिकार है।प्रजातंत्र शासित दल के   अधिकार में है।
एक ही व्यक्ति के अधिकार में जो शासन चलता है ,वह राजतन्त्र  है।
इस   राजतन्त्र में राजा के सहायक का  पद प्रमुख है।  राजा के  बाद , बड़े अधिकारी    मंत्री  है।.मंत्री को   अपने राजा से कैसे व्यवहार  करना चाहिये?
महाकवि  वल्लुवर  इसका मार्ग दर्शन करते हैं।वल्लुवर  मंत्री को सावधान करते हैं।बलवान राजा के अधीन
काम  करनेवाले  मंत्री  को राजा के साथ निकट  सम्बन्ध  न   रखकर  दूर  रहना चाहिए  जैसे सर्दी से बचने
आग के  पास बैठकर  दूरी  का निर्वाह करते हैं।

कुरल: अकला  तनुकातु  तीक्काय्वार  पोल्क  इकल  वेंदर  सेर्न्तोलुकुवार।

.G.U.POPE ----MINISTER WHO SERVE UNDER FICKLE-MINDED MONARCHS SHOULD ,
LIKE THOSE WHO WARM THEMSELVES AT THE FIRE,BE NEITHER (TOO)FAR,NOT(T00)
NEAR.

16.mantri/मंत्री++++


कुरल:
अन्बरी वराय्न्त  सोल्वंमै  तूतू  उरैप्पार्क्कू  इन्रियमैयात  मूनरु।

दूत के गुण हैं --अपने राजा से प्यार,वाक्-पटुता जिससे श्रोता और वक्ता दोनों को सुख मिलें,अपने पेशे का पूर्ण ज्ञान।

कुरल : अरिवु,उरु,आराय्न्त  कलवी ,इम्मून्रण  सेरिवु  उडैयान  सेलक  विनैक्कू।

G.U.POPE---LOVE (TO HIS SOVERIGN),KNOWLEDGE(OF HIS AFFAIRS)AND A DISCRIMINATING POWER OF SPEECH,(BEFOORE THE SOVERIGN)ARE THE THREE SINE QA NON QUALIFICATIONS OF AN AMBASSADOR.
वल्लुवर के कुरल  का अनुवाद पोप ने खूब किया है।
दूत का लक्ष्य है   अपने राजा की भलाई में अपने प्राण  का   तजना।

विदेशी राजा से बोलते समय कई प्रकार के संदेश कहने होंगे।मूल-रूप,तुलनात्मक रूप,सक्षेप-रूप,आदि कहते समय, कठोर शब्दों को तजकर मधुर वचनों से श्रोता को आनंदित करके, अपने राजा के पक्ष में  सफलता दिलाना  योग्य दूत का काम है।


कुरल: तोकच  चोल्लीत   तूवात  नीक्की   नकच्चोल्ली   ननरी  पयाप्पतान  तूतू .


AN AMBAASADAR MUST BE TACTFUL WHEN COMMUNICATING DEDICATE ISSUES.
इन गुणों के अलावा  और कुछ गुणों की आवश्यकता पर भी वल्लुवर देव कहते हैं।

विदेशी राजा से बर्ताव करने का ढंग ,मिलने का समय और स्थान के अनुकूल बोलना भी दूत के लिए आवश्यक गुण है।

G.U.POPE ---AN AMBASSADAR MUST FOLLOW PROTOCOL TO COMMUNICATE THE RIGHT ISSUES EFFECTIVELY AT THE RIGHT TIME AND AT THE RIGHT PLACE.
दूत को अपने राजा के सन्देश देने में अपने प्राण को भी खतरा होसकते हैं।फिर भी निर्भयता से अपने राजा के संदेश सुनाकर अपने राजा के  कल्याण करने में दत्त-चित रहना दूत का फ़र्ज़ होता है।
G.U.POP--DEATH TO THE FAITHFUL ONE HIS EMBASSY BRING.TO ENVOY GAINS ASSURED ADVANTAGE FOR HIS KING.

Sunday, June 24, 2012

15.mantriमंत्री++++

वही मंत्री हैं,जो देश की प्रगति के कार्यों को खोजकर बताने में पटु  हो।
 फिर उन कर्यों में कामयाबी होने का मार्ग  निकालना,जो वास्तविक बातें देखते-समझते हैं उनको कहने  और अपनी रायें प्रकट करने का साहस    आदि   तीनों में जो सिद्धहस्त है,वही मंत्री हैं।

दूत  कौन है?--दूत  भी मंत्री  ही है।आजकल विदेशी  मंत्रालय है।जब दो देशों के बीच मतभेद होता है,तब उसके बारे में  दोनों देश मिलकर एक निर्णय पर पहुँचने राजदूत  होते हैं
।आजकल विदेश  मंत्रालय  और मंत्री के जैसे प्राचीन काल में हर देश में दूत होते थे,  जो विदेश  मंत्री का काम करते थे।
दूत के लक्षण  पर वल्लुवर कहते हैं----

                 सूक्ष्म  ज्ञान,आकर्षक रूप,उच्च शिक्षा  आदि दूत के लक्षण हैं।

विस्तार से दूत  के बारे में सोचें तो उनके काम है,  राजा को माफ करना, राजा  को अलग करना,राजा की प्रशंसा करके उत्थान करना आदि।  दूसरे  राजा से अपने राजा के बारे में कहना, मंत्री,दूत और कवि  का काम है।दूत  का काम मंत्री किया करते थे।
तमिल में कवयित्री अव्वैयार  तोंडै मान और अतियमान  राजाओ  के बीच दूत बनकर गयी थी;यह तो अपवाद मात्र है।

दूत  के रूप में दो तरह के लोग चलते थे।एक संदेश  को समझाकर कहने वाला  और दूसरा  राजा के सन्देश को ज्यों ही त्यों देनेवाला।
व्याख्याता दूत  विदेशी राजा के सारे प्रश्नों के उत्तर देने का अधिकार रखनेवाला दूत है।उनमें चतुराई और होशियारी होती हैं।
 संदेशवाहक   दूत   केवल सन्देश देता है।












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14,mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++



कर्म को कार्यान्वित करने के लिए और एक ख़ास बात पर जोर देते  हैं  वल्लुवर महाशय।
ज़रा भी देरी न करके अपने दुश्मन को भी मित्र बना लेना चाहिए।अर्थात ,दोस्त को  हित करने से ज्यादा  दुश्मन के दुश्मन को भला करके जल्दी ही उसे  मित्र  बना लेना।

kural: नट्टार्क्कुम नल्ल  सेयलिन  विरैन्तते    ओट्टारै  योत्टिक कोलल।

जो सच्चे और अच्छे मित्र हैं,वे हमें छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे।उनकी दोस्ती तो दीर्घ काल की हैं।उनकी भलाई करने में विलम्ब करना ठीक ही है।
 लेकिन दुश्मन  के  दुश्मन को तुरंत अपने साथ न मिला देंगे तो वे दुश्मन के वश में पड  सकते हैं।अतः फौरन उसे दोस्त बना लेने में ही भला है।हमसे जो असंबंधित हैं, उनसे सम्बन्ध बना लेने में होशियारी है।

नान-मणि कडिकै    नामक ग्रन्थ में  कहते हैं  कि  कोई  भी सम्बन्ध जिस के साथ नहीं हैं,उनसे सम्बन्ध बना लेना सुखप्रद है।वल्लुवर के विचार इनसे सम्बंधित है।

ONE SHOULD RATHER HASTEN TO SECURE THE ALLIANCE OF THE FOES (OF ONE"SFOES)THAN PERFORM GOOD OFFICES TO ONE'S FRIENDS.

कर्म के प्रकार में यह कितना ऊंचा विचार है।प्राचीन कहावत है"-"यथा राजा तथा प्रजा;"
"उसका  बदला  नया  कहावत है ---  " यथा मंत्री तथा प्रजा"'-
-सामी चिदम्बरानार  इसी को इस जमाने के अनुकूल मानते हैं।



जैसे भी सरकार बने ,उसमें ज़रूर मंत्री को स्थान होता है।
वे   ही  देश के भले-बुरे की  जिम्मेदारी है।
मंत्री बुद्धिहीनहो , मंत्री में तटस्थता न हो तो  देश आगे नहीं बढ़ सकता। 
प्रशासन ठीक तरह से चलेगा नहीं।






जिस मंत्री में क्षमता और योग्यता नहीं होती ,उसके कारण देश के विकास  और हक़ में रुकावटें होंगी।अतः योग्य मन्त्र को चुनना नागरिक का कर्तव्य  होता है।
जिम्मेदारी राजा और प्रजा दोनों  को  इस बात को समझ लेना चाहिए।
एक  राजा को तिरुक्कुरल के मंत्री-शास्त्र का अध्ययन करना, अन्य कुरलों  को   पढ़ना  आवश्यक है।

विशेष रूप से आज के  राजनैतिज्ञों  के लिए तो ज़रूरी है।मंत्री के पद की सभी अनिवार्य बातें तिरुक्कुरल में हैं।मंत्री -सम्बंधित  100 कुरालों को रटकर याद रखना भी चाहिये।. जो ऐसा करते हैं,वे कभी भूल नहीं करेंगे।वे जनता के आदर का पात्र बनेंगे।

Saturday, June 23, 2012

13.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++

मंत्री को राजा से प्रत्यक्ष बोलने का एक समय भी है;  युद्ध -भूमि जाने के पहले अर्थ,शस्त्र ,काल,कर्म,स्थान    शत्रु-बल,  आदि  अपने  राजा  के अनुकूल  न  हो  तो युद्ध करने की  सलाह न  देना  मंत्री का काम  होता  है।. राजा को   सलाह  देने का अधिकार   मंत्री  को  है।
 अर्थ का मतलब है-शत्रु के धन और अपना धन। उसमें  लाभ-नष्ट पर भी ध्यान रखना है।

शस्त्र --सेना =शत्रु  और अपनी सेना ,अस्त्र-शस्त्र  अपने और शत्रु के .

काल--अपने और शत्रु के अनुकूल और प्रतिकूल समय जानना।

क्रिया---अपने और शत्रु के युद्ध कौशल समझ लेना।

स्थान--अपने और शत्रु के जीतने और हारने का स्थान।

कुरल:  पोरुल ,करुवी,कालम ,विने यिड नोडैन्तुम   इरुटीर  एन्निच्चेयल।

ASSUME  THE RESPONSBILITY  FOR AN UNDERTAKING ONLY AFTER UNDERSTANDING CLEARLY THE COSTS INVOLVED THE PURPOSE OF THE UNDERTAKING ,THE DURATION AND THE PLACE OF ACTION.
वल्लुवर बड़ी बात को सक्षेप में कहने  में सिद्धहस्त थे।उनकी उपमा विचित्र होता है।

एक कर्म के बल पर दुसरे कर्म को कर लेना ऐसी बात है ,जैसे एक प्रशिक्षित हाथी  (कुमुकी) की सहायता से एक जंगली मदमस्त हाथी को पकड़ना।

पूँजी  एक भाग है तो लाभ दुगुना।

कुरल:  विनैयाल  विनैयाक्किक कोडन नैकवुल  यानैयाल  यानै यात्तटरु।

अंग्रेजी अनुवाद देखिये---ONCE A PROJECT IS SUCCESSFULLY COMPLETED ,USE IT TO WIN NEW CONTRACTS LIKE CAPTURING WILD ELEPHANTS BY USING A TRAINED ONE THAT IS ON HEAT.

12.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++

वल्लुवर   कर्म -दृढता  और विचार की दृढ़ता  दोनों को एक दूसरे  का  आश्रित मानते हैं।

कर्म की सफलता के लिए ,अपने मंजिल पर पहुँचने के लिए  अपने विचार पर दृढ़ता  की ज़रुरत है।
 मनुष्य जैसे   सपना  देखते  है, , वैसे ही  उसे   साकार  करने के  लिए,अपने     कर्म पर पूरे ध्यान  देने  की  ज़रुरत है।
 फल  प्राप्त करने केलिए अनिवार्य  कर्म करना और अपने लक्ष्य पर  दृढ़  रहना  आवश्यक  है। कार्य क्षमता  और  कौशल  जिसमें  होते हैं,वे अपने विचारों को कार्यान्वित करके सफलता प्राप्त करेंगे।

कुरल: एन्निय  वेंनियांग केय्तुब   वेन्नियार   तिन्नीय  राकप पेरिन।

ONE WILL REALIZE HIS ASPIRATIONS,IF HE HAS THE DETERMINATION TO PURSUE HIS PLANS.

मंत्री-शास्त्र के सभी कुरलों में मंत्री   के गुणों की व्याख्या करते हैं।

उसमे मंत्रित्व की विशेषता और मुख्यत्व बताना ही कवि  का  पूरा ध्यान रहा। एक  मंत्री में
कर्म  करने की दृढ़ता और कौशलता  न होने पर,  मंत्री पद के लिए नालायक ही है।

मन की दृढ़ता,बुध्दी की स्थिरता,बुद्धि-बल,शारीरिक बल,कर्म -बल आदि आतंरिक बल है।इनके जैसे ही शस्त्र -बल,काल-बल,सैनिक बल आदि;
 कर्म में दृढ़ता  और कामयाबी के लिए सच्चे प्रयत्न की ज़रुरत है।नहीं तो कोई प्रयोजन नहीं है।लोक उसे नहीं चाहेगा।

कुरल:   एनैततिट्प  मेय्तियक  कन्नुम  विनैत्तिटपं   वेंडारै  वेन्डातु    उलगु।


SEE G.U.POPE'S TRANSLATION---THE GREAT WILL NOT ESTEEM THOSE WHO ESTEEM
NOT IN FIRMNESS OF ACTION.WHATEVER OTHER ABILITIES THE LATTER MAY POSSESS.

मंत्री जो कर्म की पवित्रता,कर्म-करने की दृढ़ता को खूब जानता है,वे ही कर्म के प्रकारों को जान-समझ सकते  है।
पावन-कर्म  और कर्म करने की दृढ़ता दोनों  बड़े द्वार के दो दरवाजे के समान है।
दोनों दरवाजा के खुलने पर ही भीतर प्रवेश करके कर्म- फल प्राप्त कर सकते हैं।
 इसी  कारण से वल्वर ने पावन-कर्म,कर्म-बल,कर्म  करने के तरीके आदि  तीन  अध्याय में तीस कुरल लिखे  हैं।
मन क्कुडवर  ने कहा --कर्म-प्रकार का मतलब है  कर्म-करने केलिए कहना,और कर्म करने की दृढ़ता  और कर्म बल पर जोर देते है। दृढ़ इच्छा से कर्म करना।
जो काम धीरे करना है,उसे धीरे करना ;जो काम जल्दी करना है,उसे जल्दी करना चाहिए।
धीरे करना,तेज़ करना दोनों कर्म की अति आवश्यकता पर निर्भर है।
जो काम सोकर  करना हैउसे सोकर करो ;जो काम बिना सोकर करना है ,  तब मत सोओ.

कुरल: तून्गुह  तून्गीच  सेयर्पाल  तून्गरक   तून्गातु  सेय्युम  विनै .

g.U.POPE--GOOD DEEDS NEED TO BE EXECUTED IMMEDIATELY WHILE OTHER ACTIONS NEED CAREFUL EVALUATION.
जो भी काम हो उसे  पूरा  करके ही आराम लेना चाहिए,अधूरा छोड़ना ठीक नहीं है।यही -COURSE OF ACTION  है।
वल्लुवर कहते है--शोध  करने से प्रकट होता है---अधूरा काम और बिन मिटाए दुश्मनी दोनों  बिना बुझाकर छोड़े हुए  आग के सामान है;फिर बढ़कर  जो  अधूरा  छोड़कर गए है,  उनको सर्व-नाश कर देगा।

बड़े दुश्मन को दबाने के आत्म संतोष के कारण छोटे दुश्मन को छोड़ रखना दुश्मनी  शेष रखनी  है;
बाढ़ के बढ़ने पर उसे बांधकर रोकने के बाद ,     छोटे से छेद  छोड़ रखना बाढ़ रोकने का    अधूरा    काम    है।
बड़े रोग के इलाज में छोटे घाव या भाग को छोड़ना चिकित्सा में अधूरी  है।

कुरल:  विनै  पकै यिनरी रंदिनेच्च  निनैयुन्गार  रीएच्चम  पोलत  तेरुम।

ये कमियाँ ,हमें कुछ नहीं करेंगी ---यों सोचकर लापरवाही से रहना  खतरे को मोल लेना है।अतः जो भी काम हो , उसे पूरा करके ही दम लेना चाहिए।


दुसरे उदाहरण भी वल्लुवर देते हैं ,धान के पौधे  में उगे घास को पूरा नहीं निकालेंगे , तो घास  धान के पौधों को
नष्ट कर देगा।
g.u.pope--WHEN DULY CONSIDERED,THE  INCOMPLETE EXCUTION OF AN UNDERTAKING AND HOSTILITY WILL GROW AND DESTROY ONE LIKE THE (UNEXTINGUISHED)REMNANT OF A FIRE.


  

11 .mantriमंत्री=अमात्य=सामंत+++++


आजकल सरकार के प्रशासन में सभी कार्रवायियाँ  खुल्लमखुलला      होनी चाहिए।
लुका-छिपा करना मना है। प्रशासन  में  रहस्य  कुछ  विभागों में अत्यंत  जरूरत है।

    बड़ा  नारा लगाते हैं कि सामान्य जनता तक सरकारी कार्रवायियाँ मालूम होनी चाहिए।
कुछ बातों में गोपनीयता की अत्यंत ज़रूरत  है। सभी में छूट होती है।प्रशासन में अपवाद ज्यादा है।भेद  खुलने पर   परिणाम  अनर्थ और विपरीत  होगा।

अत्यंत आवश्यक कार्रवाई में गोपनीयता की आवश्यकता है।उचित काल तक उस गोपनीयता को छिपाकर रखना चाहिए।तब तक मानसिक दृढ़ता की ज़रुरत है।

वल्लुवर कहते हैं --गोपनीय कार्य में कार्य  समाप्त  होने तक गोपनीयता की रक्षा  ज़रुरत है।बीच में ही रहस्य खुल जाएँ तो   परिणाम दुखप्रद होगा।


कुरल:  कडैक  कोट्कच  सेय्तक्क  तान्मै  यिडैक  कोट्किन   यटरा  विलुमंतारुम।


g.u.pope---SO TO PERFORM AN ACT AS TO PUBLISH  IT  ONLY AT ITS TERMINATION ON IS TRUE  MANLINESS;FOR TO ANNOUNCE IT BEFOREHAND ,WILL CAUSE IRREMEDIABLE SORROW.

Friday, June 22, 2012

10mantriमंत्री=अमात्य=सामंत+++++

विलम्बिनागनार  नामक  कवि  ने कहा ---आँखों से बढ़िया अंग नहीं है।
पति के रिश्तों से  पवित्र  और  कोई नहीं;
धर्म  मार्ग  से बड़ी चीज़   कोई  नहीं है;
माँ के समान आदरणीय कोई  ईश्वर नहीं है।

tamil:

 कन्निर  सिरंत  उरुप्पिललै  कोंडानीन  तुन्नीय  केलिर  पिरारिल्लै  मक्कलिन
ओन्मैय  वाय्च चान्र  पोरुलिल्लाई  ईंरालोडू   येन्नक  कडवुलुम  इल्लै ..
  इस कवि से भी बड़ी बात  संत  वल्लुवर ने कहा है--
माँ की भूख मिटाने के लिए भी ऐसा कर्म मत करो  जिससे बड़े लोगों की निंदा का पात्र बने।

कुरल: ईन्राल  पसी  कानबा  नायिनुंच  सेय्यर्क  चान्रोर  पलिक्कुम  विनै .

DO NOT DO UNDIGNIFIED THINGS EVEN WHEN  DIRE  CIRCUMSTANCES.
कर्म की पवित्रता को ही वल्लुवर श्रेष्ठ  मानते हैं।
दूसरों को रुलाकर  जो चीज़ें अपनाते हैं ,वे   चीज़ें अपने को रुलाएगी।सद्कर्म  पहले हानि दिलाने पर  भी  बाद में लाभ ही लाभ दिलाएगा।

अलाक्कोंडवेल्ला  मलप्पो  मिलप्पिनुम   पिर  पयक्कुनर  पालवै .

G.U.POPE----ALL THAT HAS 4BEEN OBTAINED WITH TEARS ( TO THE VICTIM )WILL DEPART WITH TEARS(TO HIMSRLF);BUT WHAT HAS BEEN BY FAIR MEANS;THOUGH WITH LOSS AT FIRST,WILL AFTERWARDS YIELD FRUIT.
दो ही चरण में वल्लुवर ने इसकी व्याख्या  की है।
हमारे सब कर्म कर्म नहीं है;  वल्लुव   ने   कर्म शुद्धता ,कर्म-कौशल,कर्म-के किस्म  आदि तीन भागों में अध्याय लिखा है।जो भी कर्म करें ,उसे सुचारू  रूप से करना चाहिए।ऐसा काम करना नहीं चाहिए,जिसमे थोडा कमी हो।
पवित्र  काम करने के लिए कर्म में दृढ़ता  और साहस  की अत्यंत आवश्यकता है।मानसिक दृढ़ता के अभाव में
पवित्र काम नहीं कर सकते।
वल्लुवर ने कहा ----कर्म करने में पवित्रता करनेवाले की मानसिक  दृढ ता  निर्भर है।
THE DETERMINATION TO ACT IS A REFLECTION OF ONE'S,FRAME OF MIND.

Thursday, June 21, 2012

9.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++

एक व्यक्ति के बारे में कहते हैं --उनके कर्म और वचन दोनों एक ही होंगे।इसका मतलब है --जो कहते हैं ,वहीं करते हैं; इसका दूसरा अर्थ भी है--इनके वचन जितना सुन्दर और विशेष है ,वैसे ही उनका कार्य लाभप्रद  होंगे।
कार्य --शुद्धता  अध्याय में  वल्लुवर कहते हैं ----मत्री पद पर जो बैठते हैं,उनके कार्यों में कोई कमी  नहीं होनी चाहिए। वे जो कुछ करते है,वे फायदेमंद ही होना चाहिए।धर्म-ग्रन्थ  और राजनीति  दोनों की दृष्टी  में मंत्री का कार्य  बेकसूर होने पर ही मंत्री उत्तम होंगे।

एक को सहायक के द्वारा  धन मिलेगा।अपने कर्म के द्वारा केवल धन ही नहीं,जो चाहें वे सब कुछ मिलेंगे।
अपनी सारी मांगें पूरी होने उत्तम कर्म की आवश्यकता है।

कुरल:  तुनै  नालामाक्कंग  तरूवुम  विनै नलम  वेंडिय वेल्लान्तरुम..

THE EFFICACY OF SUPPORT WILL YIELD WEALTH;BUT THE EFFICACY OF ACTION WILL YIELD ALL THAT DESIRED.
ऐसा काम कभी करना नहीं चाहिए,जिससे पीछे पछताना पड़ें।भूल से गलत काम कर दिया  तो  फिर कभी
गलत काम करना  ठीक नहीं है।

कुरल :  एन्रेंरिरंगुव  सेय्यरक  सेय्वानेल  मट्रनन   सेय्यामै  नन्रु.

;
G.U.POPOE----DO NOT DO WRONG AGAINST YOUR CONSCIENCE,IF YOU HAVE DONE SO ONCE DONOT REPEAT IT.
वल्लुवर जो भी विचार प्रकट करें,उसे  सोपान पर सोपान रखकर  शिखर छूना  उनका सहज स्वभाव है।वे तो ज्ञान -पिता हैं। माता से बढ़कर कोई नहीं है।वे  माँ को केंद्र बनाकर अपने सिद्धांतको दृढ़ बनाते हैं।

माँ  भूखी है। गरीबी के कारण उनकी भूख मिटाने में असमर्थ हैं;फिर भी अपनी  माँ  की भूख मिटाने के लिए गलत काम करना नहीं चाहिए। निंदनीय  कार्य करना  नाम  को बदनाम  कर देगा।

8.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++

वल्लुवर  चेहरे को मन की बातें समझने का यन्त्र कहते हैं।
वल्लुवर  ने राजा से कहा---जिस  मंत्री में   राजा के चेहरे से उनकी योजनायें और विचारों को  जानने   की क्षमता है, उसे  हमेशा अपनी  सहायता  के लिए पास ही रखना है।सकुशल   मंत्री  की मांगें  पूरी  करनी चाहिए; अपने दस *अंगों में एक को  मांगने पर भी देकर उसे अपने पास ही रखने में ही  राजा को  और राज्य को भला है।


राजा के* दस अंग है--देश,शहर,नदी,पहाड़,हाथी,घोड़ा,रथ,माला,झंडा,ढोल आदि।*

कुरल: कुरिप्पिर  कुरिप्पुनर  वारै  युरुप्पिनुल  यातु  कोडुत्तुंग कोलल .

चेहरे की विशेषता  बताने के बाद आँखों की विशेषता भी बताते हैं।आँखों के बारे में संसार के करोड़ों से ज्यादा कवियों ने   अनेक भाषाओँ में  जिक्र किया है।लेकिन वल्ल्वर के कथन और उनके कथनों में ज़मीन -आसमान
का अंतर है।
वल्लुवर ने कहा --राजा की दृष्टी से ही पता चल जाएगा कि वह दूसरे      राजा से मित्रता रखते हैं  या दुश्मनी।

उन्हें समझने की क्षमता कुशल मंत्री में है।. राजा की लाल आँखों से दुश्मनी  मालूम होगी; आंखों में सुन्दरता और आनंद मित्रता  में  दिखाई पडेगा।सूक्ष्म ज्ञान  हम में  है या नहीं ,वह आँखों के अध्ययन से  ही पता  चल जाएगा।


कुरल:  पकै मै युंग  केन्मैयुंग  कन्नू रैक्कुंग  कन्निन   वकैमै  उनर्वार्प्पेरिन।

दृष्टिकोण ,आगमन,वचन,कर्म,सहकारिता,वस्तू,दूसरों का कथन आदि को मापने की शक्ति आँखों में है।

उनको  नज़रों के अंतर से ही जानने  की शक्ति रखनेवाले ही अंतर दृष्टी वाले हैं।

जैसे दर्पण दूसरे को दिखाता है,वैसे ही दूसरों  के मन को दिखाने वाली आँखें हैं।

Wednesday, June 20, 2012

7.ministerमंत्री=अमात्य=सामंत++++



एक मंत्री को " चेहरा संकेत अध्ययन ग्रन्थ" को भी पढ़ना आवश्यक है।(the Knowledge of indications0
राजा   जो सेवा करना चाहते है,उसे उनके चेहरे के संकेत अध्ययन द्वारा जाननेवाला मंत्री देश के आम लोगों के लिये बहु-मूल्य आभूषण के सामान होते हैं। इसे अंग्रेजी में  'understanding another's stat of mind ';the ability to understand another's state of mind will be a great asset'  कहते हैं।

kural:  कूरामै  नोक्किक कुरिपरिवा नेज्ञान्रुम  मारा  नीर वैयक कनी।


सजीव शरीर तो ऊंचे स्तर  पर है;निर्जीव शरीर का कोई महत्व नहीं है;शरीर के अंग अलग -अलग है तो वह जड़ ही है।लेकिन वल्लुवर  ने  चेहरे  को चेतन और सजीव माना।
एक  व्यक्ति का मनोभाव चेहरे से ही मालूम होता है;एक मनुष्य  का सुख-दुःख-हर्ष-उल्लास-शोक आदि चेहरे में से ही मालूम होता है;

कुरल: मुकत्तीं मुतुक्कुरैंत  तुन्ड़ो  वुवप्पिनुम   कायिनुम तान मुन्तुरुम।
is there anything so full of knowledge as the face?(no)it precedes the mind ,whether (the later)pleased or vexed.
मनोंमनियम ग्रन्थ में   प्रोफसर  मीनाक्षी सुन्दरम पिल्लई  अपने तमिल-मात्रु  वंदना गीत में भारत देश में
अतुलनीय सुन्दर  वदन   तमिल कहते हैं।
तमिल:  नीरारुंम  कड लुतुत्त  निलामडन तैक  केलिलोलुकुम   सीरारुम  वदनमेन तिकल भरतक
खंड  मतिल।

आकाश में पूर्ण चाँद देखा।वन में एक सुन्दर महिला देखा।आकाश के पूर्ण चन्द्र-- समान औरत का चेहरा देखा।

वदन तो चंद्रबिम्ब है; आदि पद्यों में मुख का वर्णन देखते है।मुख तो उपमा , रूपक,उत्प्रेक्षा आदि तीनों अलंकारों में वर्णित है;
वदनमे  चन्द्र बिम्बमो (तमिल)
वानिल मुलु मतिऐक  कंडेन
वनत्तिल  ओरु पेंनैक कंडें
वाना मुलु मतिऐप  पोले
मंगैयवल   वदनम  कंडेन



6.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत+++++



नीति नेरी विलककम ---शिक्षित  भरी सभा में बोलने डरता है  और उसका  शरीर कांपता है,तो  उसका शिक्षित होना बेकार है। अशिक्षित का निर्भय  भाषण बेकार है। धनी  जो दानी नहीं, तो धन उसका बेकार है।गरीबी में दुःख  ये सब  नालायक हैं।

हाथी अपने बच्चे को प्रशिक्षित करने,अपने भावी जीवन के कष्टों का सामना करने बार-बार  बच्चे को नीचे धकेलता है.इसका मतलब यह नहीं ,हाथी  को अपने बच्चे पर प्यार नहीं है।और धकेलना अपने बच्चे के कल्याण केलिए है।

उस माता हाथी के जैसे ही वल्लुवर हमें सुमार्ग पर चलने के लिए   कठोर शब्द का प्रयोग करते हैं।
जितना हम सीखते हैं,उतना लाभ  पाना  और उत्पादन बढना चाहिए।
शिक्षित होकर  सज्जनों के दरबार में  डरनेवाले अनपढ़ लोगों से तुच्छ है.

कुरल:  कल्लातवरीर  कडै  येनब  कटररिन्तु   नाल्लारवै   यंजुवार। 

A SCHOLAR WHO IS AFRAID TO    ADDRESS  AN ASSEMBLY OF LEARNED MEN IS INFERIOR TO AN UNEDUCATED MAN.

अधिकारी  अपने सहायक  या चपरासी को तभी चाहेगा,जब वह सहायक या चपरासी उसके संकेत मात्र से उसकी मांग या आदेश समझकर कार्य में लगता हो।

अतः एक राजा  भी अपने मंत्री को अति  अक्लमंद  देखना चाहता है।अपने संकेत मात्र से अपने मनोभाव के अनुसार कार्रवाई करने वाला मंत्री चाहता है। राजा  के  संकेत जानना-समझना एक मंत्री का अत्यावश्यक गुण
 है।

A Minister who is able to read the king's mind like a God will be of great worth o a king. Such thought reading ministers my be one in shape and form with others but differ in the caliber of their minds. Among the means of thought - reading the face and the eyes stand foremost. The face is an index of the mind and it is bright or gloomy in consonance with the joy or gloom of the mind. If a king has thought - readers by his side, he should simply stand looking at their face. The thought reading ministers can easily discover the lurking harted or love of foreign rulers.
















5.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++

नालडि यार  में कहा गया है ---जल में मोरे के पानी मिलने से पानी गन्दा  हो जाता है;दूध में अधिक  जल मिलाने  पर उसका स्वाद और शक्ति कम हो जाती है;वैसे  ही  नीच लोगों के सामने अच्छी बातें भी महत्वहीन हो जायेंगी।अतः नीचों के संघ में ऊंचे विचार प्रकट करना बेकार है।ऊंचे विचार कुल के अनुसार ही महत्वपूर्ण या महत्वहीन हो जाएगा।

नालडियार :-ऊरंगन  नीरुरवु  नीर  सेर्न्तक्काल   पेरुम    पिरिताकित  तीर्त्तामाम -ओरुम
                    कुलामाट्ची  यिल्लारुंग  कुन्रू   पोल निरपर   नालामात्ची नाल्लारैच  चार्न्तु।

वल्लुवर  कहते हैं ----भाषण-कर्ता  को पहले सभा को पहचानना है। उसके बाद अपने विचार प्रकट करने निर्भयता की जरूरत है।
कुरल:  कट्रारुट  कट्रा  रेनाप्पडुवर   कट्रार  मुन  कटर सेलच  चोल्लुवार।

एक कहावत है -- असावधानी  से  बोलना मृत्यु को बुलाना है।अर्थात बोलने में ज़रा असावधानी हो जाएँ तो  या गलत शब्द निकालें तो परिणाम जान का खतरा हो जाएगा।।इसे   कभी  भूलना नहीं चाहिए।
शिक्षित अपने भाषण द्वारा शिक्षित -समाज में नाम प्राप्त करना चाहिये।अर्थात शिक्षित उसको शिक्षित स्वीकार करना चाहिए।
THOSE  WHO CAN AGREEABLY SET FORTH THEIR ACQUIREMENTS BEFORE THE LEARNED WILL BE REGARDED AS THE MOST LEARNED AMONG THE LEARNED.

रणक्षेत्र  में अपने देश के लिए प्राण देनेवालों को वीर कहते हैं।ऐसे वीरों की संख्या अधिक होती हैं।लेकिन शिक्षितों की सभा में वीरता से अपने विचार प्रकट करने वाले बहुत कम ही होंगे।
वल्लुवर कहते हैं ---कायरों को तलवार से कोई सम्बन्ध नहीं हैं।सूक्ष्म-ज्ञानी जो भरी सभा में बोलने डरता हैं ,उनको ग्रंथों  के  ज्ञान  से कोई सम्बन्ध नहीं है।

कुरल:-पकै यकत्तुच  सावा रेलिय  ररिय  रवै  यकत तन्जातवर।


इसे रंग्मंच  की लड़ाई कहते  हैं।. -  A SWORD SERVES NO PURPOSE TO A COWARD JUST AS BOOKS TO A PERSON WHO IS UNABLE TO COMMUNICATE DUE TO STAGE.

वालोड़ें  वन कन्ना राल्लार्क्कू नूलोड़े  नुन्नवै   यंजू  पवर्क्कू।

Tuesday, June 19, 2012

4. मंत्री=अमात्य=सामंत

मंत्री के गुण चतुर   भाषण  में प्रकट होता है।
 वह जो कुछ कहना चाहता  है,ऐसा कहेगा,
जिसे  दूसरे ध्यान से सुने;सुनकर उसे पालन करें।
वह जितनी बातें जानता हैं,उन सब  की  याद रखेगा।
भरी सभा में बोलने के लिए डरेगा नहीं।
उसे  वाद-विवाद में  कोई भी  हरा नहीं सकता।
 सभा के अनुकूल बोलना और सद-व्यवहार करना सभी के लिए आवश्यक गुण है।
फिर भी एक देश के मंत्री केलिए अत्यंत  आवश्यक  है।

वल्लुवर  ने अपने कुरल में कहा है----सभा के अनुसार,सोच-समझकर  शोध करके बोलना चाहिए।
शब्द-ज्ञानी शब्द  -शक्ति और उनके प्रभाव जानकर ही बोलेंगे।

कुरल: "अवयारिंतु  आराय्न्तु  सोल्लुक  सोल्लिन  तोकै  यरिंत  तूय्मैयवर ".

शब्द  तो शुभ -शब्द ,व्याकरणिक शब्द ,सांकेतिक शब्द,संबद्धित शब्द  आदि किस्म के होते हैं।
उन शब्दों का श्रोताओं  पर सद-प्रभाव डालना चाहिए। 
 PEOPLE  WHO KNOW THE SUBJECT UNDERSTAND THE BACKROUND OF THE AUDIENCE CHOOSE THE MOST APPROPRIATE WORDS ARE GOOD SPEAKERS.

सज्जन  भरी सभा में सुवचन ही बोलेंगे।वे वचन दूसरों के मन पर सद -प्रभाव डालेंगे।शत्रु अच्छे विषयों को बोलने नहीं देंगे।बुरे विषय बोलने के लिए जोर डालेंगे।

कुरल:  पुल्लावैयुट  पोच्चान्तुम  सोल्लर्क   नल्लवैयुल    ननगु  सेलच  सोल्लुवार।

यदि भाषण -कर्ता  का भाषण सभा में विद्वत-पूर्ण हो,
सभा के अनुकूल हो, तो शिक्षित प्रोत्साहित होंगे।
यदि वक्ता बुरे विषय  सभा के प्रतिकूल बोलेगा,तो कोई नहीं  सुनेंगे।
कहावत है सांप  पहचानता है साँप  का पैर।
लोगों को मालूम है ,भाषण का प्रतिकूल।

तमिल  पलमोली :

"पुल मिक्कवरैप  पुलमै  तेरितल   पुलमिक्कवर्क्के   पुल्नाम--नलमिक्क"

पूम्पुनलूर  पोतुमक्कट  काकाते  पाम्बरियुम  पाम्बिं काल।

भाषण  सभा की परिस्थित के अनुकूल न हो तो उनका भाषण ऐसा है,
जैसे दूध को मोरे में उंडेलना।अर्थात उनका भाषण  बेकार हो जाएगा।

कुरल:-  अनगनत्तुलुक्क  वमिल   तट्रार  रंगनत्तार   अल्लार  मुरकोट्टी   कोलल .

ADDRESSING AN ASSEMBLY WHO IS NOT ON THE SAME WAVELENGTH IS ,LIKE THROWING GOOD FOOD ON DIRT AND THUS WASTING IT.

Monday, June 18, 2012

3.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत

जिस  मंत्री में  सहज ज्ञान है  और कई ग्रन्थ के अध्ययन से प्राप्त ज्ञान है,
उस मंत्री के मन में सुक्ष्म चिन्तन  और  ज्ञान होता है।
यह मंत्री का सुलक्षण है।
वल्लुवर कहते हैं ---ज्ञानवर्द्धक ग्रंथों  के ज्ञाता मंत्री को  कार्य  जो भी हो,
 करना आसान है।उनसे कोई काम दुश्वार नहीं है,जिसे वे नहीं कर सकता हो।

कुरल:-मति  नुट्प  नूलोड़ू  दैयार्क्कती  नुट पम   यावुल  मुन्निर्पवै .

सेयार्क्कै  अरिनतक कडैत्तु   मुलकत  तियरकै   यरिन्तु  सेयल.


मंत्री की कार्य क्षमता  केवल क़ानून के अनुसार चलने में  नहीं है,
लोक व्यवहार के अनुसार .चालू व्यवहार के अनुसार क़ानून को बदलने में समर्थ होने में है।
 वर्त्तमान पारिस्थियों  को ध्यान में रखकर आगे बढना ,
परिवर्तन की आवश्यकता समझना और समझाना मंत्री का कर्तव्य है।

कुरल:  उलकत्तोडु  ओट्ट  ओलुकल  पलकटरूम  कल्लार।

पाठशाला की शिक्षा काम की नहीं है।
कई प्रकार की शिक्षा ज्ञान और लोक व्यवहार में बड़ा अंतर है।
लोक व्यवहार  के अनुसार न चलनेवाला शिक्षित होने पर भी अशिक्षित है।
जो भी पद हो वाक् पटुता न हो तो वह अयोग्य ही माना जाएगा।
अतः  वाक् कौशल की भी अति आवश्यक है।
वाक् -शक्ति एक पदाधिकारी के लिए  संपत्ति है।
वाक् शक्ति सब से महत्त्वपूर्ण शक्ति है।

कुरल: "ना नल  मेन्नुम  नालनु ड मै   यन्नलम   या नलत्तुल्लतु  मनरू"।

ONE'S ABILITY TO COMMUNICATE EFFECTIVELY IS THE GREATEST OF AAL SKILLS.

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में सुननेवालों पर भी प्रभाव डालने की शक्ति शब्द में है।

थोड़े में कहकर अधिक समझाना शब्द शक्ति है।

वक्ता और श्रोता दोनों को सुख देने की शक्ति शब्द में है।

ध्वनि सौन्दर्यता ,अर्थ गम्भीरता ,सिलसिलेवार ढंग का प्रयोग  विशेष फलदायक है।

यह शब्द शक्ति सामाजिक क्रान्ति उत्पन्न करने में समर्थ कारण हो जाता है।

सामाजिक  परिवर्तन लाने में भाषण  प्रभावदायक    है।

कुरल:- " केट्रटार  पिनिक्कुम  तकैयवाय्क  केलारुम   वेटप  मोलित्वताज चोल।"

वल्लुवर के कुरल का अनुवाद---THE  WORLD WILL LISTEN TO ONE WHO HAS THE ABILITY TO ORGANIZE HIS THOUGHTS AND SPEAK EFFECTIVELY. 

2.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत

मंत्री के लक्षण ;- मनोबल,प्रजा की रक्षा,धार्मिक ग्रंथों  का ज्ञान,राजनैतिक शाश्त्रों का ज्ञान,आदी। मंत्री  के लिए
अत्यावश्यक  ज्ञान  है। ग्रंथों में जिन बातों को अपनाना है,उनको अपनाकर ,जिनको तजना है, उनको तजकर सुशासन चलाना  मंत्री का कर्त्व्य  है।मंत्री का अपना व्यक्तित्व होता है।

kural:  वन  कण  कुडिकात्तल  कटररितलाल  विनैयो  दैन्तुडन  मानडतू    अमैच्चु .

g.u.pope----THE MINISTER IS ONE WHO IN ADDITION TO THE AFORESAID FIVE THINGS EXCELS IN THE POSITION  OF FIRMNESS ,PROTECTION OF SUBJECTS,CLEARNESS BY LEARNING AND PERSEVERANCE.
अव्वैयार का  मुक्तक पद कहता है --- तुला  में ज़रा सा कांटे के हिलने से वजन में गिरावट होगा।युद्ध में राजा पीठ दिखाता   तो    पराजय  ज़रूर  हो जाता ।यदि मंत्री बुद्धिमान हो तो शासन में ऐसी परेशानियाँ  नहीं होंगी।
चतुर  मंत्री  ही राजा का बल है।वही राजा के पथप्रदर्शक और सहायक है।

तमिल:अव्वैयार :- नूलेनिलो  कोल्सायुम नुन्तमरेल  वेंचमरम
कोलेनिलो वांगे   कुडिसायुम  --नालावान
मंत्रियुमावान  वल्क्कुत तुनैयावान
अन्त्वरावे यरसू .


वललुवर के कुरल जग-परिवर्तक है।वे कार्लमार्क्स- सा तत्व -ज्ञानी  हैं। मार्क्स ने कहा---दार्शानिक  संसार को विविध रूप से व्याख्या कर रहे हैं। लेकिन उनका उद्देश्य संसार को बदलना   होता    है।

एक  मंत्री को राजा का विश्वसनीय पात्र बनना है;रहना है।मंत्री का विश्वासघात होना राज्य और राजा के पतन का मार्ग है।अतः अविश्वसनीय मंत्री को तुरंत निकाल देना चाहिए। वल्लुवर राजा को मंत्री के विषय पर सावधान करते हैं। द्रोही मंत्री  को निष्कासन करने से करोड़ों लाभ मिलेगा।
एक अविश्वसनीय मंत्री  सत्तर  करोड़ दुश्मन के बराबर  है।सत्तर करोड़ का मतलब है--बुराई की चरम  सीमा।

कुरल: पलु तेन्नु  मंत्रियिर  पक्कात्तुत टेववो   रेलुपतु  कोड़ी  युरुम।

राजा को होशियारी से दूत के द्वारा मंत्री का चालचलन जानकर   शक का मंत्री हो तो तुरंत निकालने का सन्देश है।

the hypocrisy of a minister is more dangerous to the ruler than the combined hospitality of many enemies from outside. 


Saturday, June 16, 2012

1.मंत्री=अमात्य=सामंत

मंत्री=अमात्य=सामंत

प्रजातंत्र शासन में एक मंत्री का मुख्य भाग है।
उनकी सेवा सर्वोपरी  है।
राजतंत्र में भी मंत्री पद अत्यंत आवश्यक ही रहा।
 तिरुवल्लुवर ने मंत्री के लक्षण और विशेषताओं पर कुरल लिखे हैं।
आजकल की  परिस्थिति में उनको समझाना अत्यंत जरूरी है।
मंत्री शब्द के अर्थ कोष में यों दिए गए हैं:-
मिनिस्टर,councellor,one who fortells events,jupiter,the planet mercuri,commander-in-chief
मंत्री,सलाहकार,दूरदर्शी,शुक्र,बृहस्पति,कुबेर,बुध,सेनापति आदि।
तिरुवल्लुवर  अपने कुरल में मंत्री के कर्त्तव्य समझाने निम्न नाम के शीर्षक पर   लिखे  है:
मंत्री, वाक्-पटुता ,सभा का पहचान,दरबार में निर्भयत्व,कार्य-कुशलता,कार्य-कौशल,दूत ,राजा का संघ जानना।

उनके कुरळ  को पढ़ते समय ऐसा ही लगता है वे खुद उस पद पर सुशोभित रहे होंगे।

अर्द्धांगिनी---- 15

पति-पत्नी दोनों एक दूसरे पर निर्भर है।
बिना  एक के एक अकेले कुछ नहीं कर सकते।
नाम पा नहीं सकते।
वैसे ही एक नाम पाने पर भी उसमे दूसरे  का हाथ जरूर रहेगा।

वह यश उनके जीवन का शेष रूप ही होगा।

एक पत्नी बिना बताये ही पति के चेहरे के भाव समझकर आये हुए
अतिथि का आदर सत्कार करेगी।
अपने धन-दौलत के हिफाजत पर पत्नी साथ देगी।

ऐसी पत्नी प्राप्त करने पर पति अति भाग्यवान होगा।

ऐसी पत्नी की प्रशंसा करना कुरल का काम है।
नालाडि यार ग्रन्थ में भी  पत्नी  की प्रशंसा   हुई  है।

वल्लुवर    ने जीवन के हित में, पत्नी को जीवन की सहायिका बताई है।

पति-पत्नी दोनों का जीवन दोस्त-सा होना चाहिए।

एक पुरुष के शिष्ट जीवन के लिए,अच्छी चाल-चलन के लिए पत्नी का योगदान
आवश्यक है।दोनों आपस में न भिड़कर पत्नी के कहे-किये का पालन करके
 आगे बढ़ने में बुद्धिमानी है।

तिरुवल्लुवर के तिरुक्कुरल के दामपत्य जीवन के मार्ग
दर्शक दोहों को एक संगीत स्वर बनाने में तन्जै  रामैया ने बड़ी क्रान्ति की है।
यह नया प्रयत्न 1960 में हुआ।


कोयम्बत्तूर के संगीत विद्वान् सु।को।कृष्णामूर्ति  ने तिरुक्कुरल अमृत का संगीत बद्ध किया।इस ग्रन्थ को बनाकर रामैयादास को बड़ा आत्म-संतोष हुआ।इस काम में डाक्टर म.वरदाराजनार,संगीतज्ञ म.म.दंडपानी देसीकर ने उनको प्रोत्साहित किया।श्री रामदास हराहराप्रिया राग में आदिताल में तिरुक्कुरल को संगीत का रूप दिया।
प्यार  औरधर्म   होने पर गृहस्थ जीवन  गुणी -और फायदेमंद रहेगा --इस कुरल को पल्लवी बनाया।
अनुपल्लवी  के रूप में सुख में  भीगकर   दो शरीर एक जान में जुड़कर बढ़ा  ,दाम्पत्य जीवन

शारीरिक  सुन्दर तो अस्थायी है  ,दिल के सद्विचार ही है स्थायी '
कर्तव्य मार्ग ,निष्कपट दिल,एकसाथ मिला जीवन,प्यार और धर्म भरा जीवन .

संगीत द्वारा   तिरुक्कुरल  अमृत को सुन ने  में आनंदानुभूति होगी।यह  गृहस्थ जीवन को समझकर आगे बढ़ने में  साथ देता है।
pallavi :
अंबूम अरनुम उडैत्तायिन  इल्वाल्क्कई पणबुम पयनुम अतु।

अनुपल्लावी 

इन्बत्तिले सिरन्तु   इरंडरवे   कलंत   ईरुदलुम ओरुयिराय्क  इनैन्ततिनाल    वलरन्त   (अंबूम)

चरणं:
उडल  मिकू  अलाकेल्लाम उतिरियंरो
कदमैयिन   वाल्क्कैयैक  कनिप्पतंरो
मुदुकू:

कल्लामिनरी उल्लं ऑनरी  उदाविदक  कनिन्तुलकिल   निरैंत  पुकल निलाविदा।





Friday, June 15, 2012

अर्द्धांगिनी 14



परोपकार करने का   विचार   मन में  होना चाहिए।
वह विचार पवित्र होना चाहिए।
वल्लुवर का यह विचार क्रन्तिपूर्ण विचार है।
मनुष्य का विचार ही कर्म करने के लिए स्त्रोत होता है।
वल्लुवर का कहना है --परोपकार  से हानि होगी तो उसे सहर्ष अपनाना चाहिए।
अपने को बेचकर भी परोपकार करके कष्ट और नष्ट उठाना श्रेष्ठ गुण है।


कुरल:-

ओप्पुराविनाल  वरुम केडु  इनिं ओरूवन वित्रुक्कोटक्क  तुडैततु .


पुलवर कुलन्दै  कहते है --
परोपकार का चिंतन  कार्य -रूप में बदल जाए तो अमीर-गरीब का भेद -भाव न होगा।

पुरनानूरू में पति-पत्नी के दान और परोपकार की हांनि  पर  एक कविता है।

दोनों परोपकार में लगकर गरीब हो गए।
उनको भूखा रहना पड़ा।
झोम्पडी  में रहना पडा।
उस दानी का नाम आय्वल्लाल था।
दान देते-देते उनको आर्थिक हानि हुई ।
पर पति-पत्नी दोनों  ने अपनी गरीबी के दुःख की परवाह न की।

दान देने के गुण,दान,स्वर्ण दान,जो कुछ मांगे ,उसे देनेवाला कल्पवृक्ष  होते हैं।


दान देने के कर्म को पति -पत्नी दोनों अलग अलग कर सकते हैं।
दान का मतलब है धनी   निर्धनी को देना।
माँगनेवाले को देना।
दान देने में  अपने आप देना,
जिसको नहीं है,
उसको देना,
माँगनेवाले को देना आदि
तीन प्रकार के दान होते है।

वल्लुवर ने  कहा है--
दान का मतलब है गरीबों को देना;
उनको देना  जो वापस देने में असमर्थ हो।
लेन -देन  की बात अलग है।
नमक देकर चावल लेना ;यह तो परिवर्तन है।

तिरुवल्लुवर ने कहा--भूख के कारण ही मनुष्य मान-अपमान सहता है।
अतः भूखे  की  भूख  मिटाना और दूसरों को खिलाकर भूख  सहना
 परोपकारी का महत्व है।
भूख मिटाने के लिए जो दान देते है,वही उत्तमोत्तम दान है।


कुरल: आट रुवाराट्रल   पसियाट रल  अप्पसियई   माट्रुवाराट रलिन  पिन।


चोल राजा कुलमुट रत्तू  तुन्जिय किल्लिवलवन  ने
दूसरे अन्न-दानी राजा की प्रशंसा में कहा है--

उस राजा का गृह  भूख रोग का दवाखाना है.

दानी को कहाँ से पैसे आयेंगे?
वह अपने रुपयों को कहाँ जमाकर रखा है?
राष्ट्रीय बैंक में या सहकारी बैंक में .या सुविस बैंक में।
 आदर्श दानी का बैंक दान देना ही है।
वही गुण सुरक्षित जमा स्थान है।
दान देते-देते वह गरीब नहीं होगा।व उच्च गुण उसको बड़ा बनाएगा।


वल्लुवर ने कहा --दान देने के लिए जान भी देना चाहिए।

मनुष्य प्राण रक्षा के लिए जीता है।
दानी के सुयश के लिए प्राण तजना उचित कहकर
वल्लुवर ने दान के गुण को ऊंचा स्थान दिया है।

कुरल:- अटरार   अली  पसी   तीर्त्तल  अह्तोरुवन  पत्रान पारुल वैप्पुली।(दान बैंक)

कुरल: सातालिन इन्नात तिल्ले  इनित्तूउम   इतल इमैयाक्कडै .

कवयित्री अव्वैयार ने कहा -
-गरीबी अति कष्ट दायक है।
जवानी में दरिद्रता अति भयंकर कष्टप्रद है।
गरीबी हटाने जान देना उचित है।
nothing is more unpleasant than death; yet even that is pleasant were charity cannot be exceed.
















Thursday, June 14, 2012

अर्द्धांगिनी-- 13



तिरुवल्लुवर  अतिथि सेवा में मुस्कराहट को प्रधान माना हैं।

हम किसी को निमन्त्रण  देते हैं।
निमंत्रित अतिथि के आते ही उनका भव्य स्वागत करना चाहिए।
यदि हमारे अतिथि-सत्कार में ज़रा-सी उदासी दीख पड़ें तो मेहमान दुखी होंगे।

उदाहरण के लिए वे अनिच्छि नामक फूल को बताते हैं।
वह फूल सूंघते ही सूख जाएगा.
 वैसे ही हम ज़रा अपने व्यवहार में कटुता दिखाएँगे तो
 वे सूखकर  तुरंत घर से निकल जायेंगे।
हामारे व्यवहार  और बात में 
केवल मधुरिमा ही होनी चाहिए।

कुरल:मोप्पक्कुलैयुम अनिच्चम  मुकंतिरिन्तु  नोक्कक  कुलैयुम  विरुन्तु।



IT IS AN EXCELLENT HABIT TO RECEIVE GUESTS WITH A WELCOMING SMILE!
पति से बढ़कर पत्नी के चेहरे पर अति मिठास और मुस्कराहट की ज़रुरत है।
पति-पति दोनों के व्यवाहर में कोई कमी अतिथि के मन को दुखी बनाएगा।
अतः अतिथि-सत्कार में पति-पत्नी दोनों की जिम्मेदारी सामान है।

g.u.pope---THE KNOWLEDGE OF WHAT IS BEFITTING A MAN'S POSITION.
इसे एक ही शब्द में  GENEROSITY अर्थात उदारता कहकर समझा सकते हैं।

आत्तिच्चूडी  में अव्वैयार ने लोकोपकार पर जोर दिया है।

एकता,समाधान,भी कहते हैं।


लोकोपकार :ओरुयिर्क्के  उडम्बलित्ताल  ओप्पुरवु इन्गेन्नावाकुम।(पेरुन्तोकई).


अंग्रेजी में --RECONCILIATION,UNIVERSAL BEHAVIOUR,TRADITIONAL CUSTOM,
PHILANTHROPHY,AGREEMENT EVENNESS कहते हैं।


सांसारिक व्यवहार,परम्परागत प्रणाली,उपकार,एकता,समान भाव आदि
अतिथि सत्कार के अंतर्गत आते है।

प्रत्युपकार पर वल्लुवर बार-बार बल देते हैं।
वे लोगों से  धार्मिक जीवन की प्रतीक्षा करते हैं।

उनका कहना है ---बादल  संसार की भलाई के लिए पानी बरसाता है;
बादल का प्रत्युपकार हम नहीं कर सकते।

वैसे ही बड़े  दानियों को प्रत्युपकार कर नहीं सकते।


कुरल: कैमारु वेंडाक  कडप्पाडू   मारीमाट्टू   एन्नात्रुंग  कोल्लो  उलकू।

G.U.POPE---BENEVOLENCE SEEKS NOT A RETURN. WHAT DOES THE WORLD GIVE BACK TO THE CLOUDS.

कपिलर ने कहा---पारी एक दानी  राजा है;वर्षा के सामान उपकार संसार में और क्या हो सकता है।
संसार में जो मदद नहीं करता वह शव ही है।जीनेवाला मददगार है;जो मदद नहीं करता वह चलता-फिरता लाश ही है।

वल्लुवर ने कहा--मदद करनेवाला ही  जीता  है;दूसरों की गिनती  मरे हुए लोगों में ही की जायेगी।
वल्लुवर की भाषा साहित्यिक  नहीं ,जीवन से सम्बंधित है।

कुरल:-  ओत्तारिवान  उयिर्वाल्वान  मटरै यान  सेत्तारुल  वैक्कप्पडुम।


वल्लुवर ने कहा  ---धन तो दयालू और उदार के हाथ में लगना चाहिए।
वह धन औषध पेड़ के समान दूसरों के लिए  काम आएगा।
औषधि पेड़ का हर हिस्सा फूल,पत्ते,छिलका,जड़ उपयोगी है।
वैसे ही दानी का धन काम आयेगा।

कुरल :- मरुन्दाकी तप्पा   मरत्तात्रार सेलवम   पेरुनतकै   यान कट  पडिन .








Wednesday, June 13, 2012

अर्द्धांगिनी------12



अतिथि  का मतलब है  निमंत्रित आदमी जो घर आया है।
अतिथि सत्कार .न्यू  comer ,guest,feast ,banquet.

प्रेमी अपने स्वप्न में आने पर  कैसे  दावत दूँ ?

कुरल:-   कातलर  तूतोडु  वन्त  कनवनुक्कू    यातु सेयवेन   कोल्विरुन्तु।


  तिरुक्कुरल  में पति-पत्नी दोनों  होड़  लगाकर मेहमान का सत्कार करते हैं।

दावत  का भाव वाचक गुण उदार दिल का परिचय देता है।
गृहस्थ -जीवन बिताने वाले पति-पत्नी दोनों अपने घर आये हुए बड़े लोग,
जितने दिन रहते हैं ,उतने दिन आवास-भोजन आदि की व्यवस्था अपने घर में करना  अतिथि-सत्कार है।

वल्लुवर  ने कहा है ---गृहस्थ का महत्व  अतिथि सत्कार करने में ही है।


इरुन्तोम्बियल  वाल्वतेल्लाम   विरुन्तोम्बी   वेलान  सेय्तर  पोरुट्टू .(कुरल)



स्वर्ग  की  चिंता या स्वर्ग पर विश्वास रखनेवालों को दान देना ही उत्तम -गुण है।
जो अतिथि सेवा में लगे रहते हैं,वे कभी गरीबी के चक्र में नहीं पड़ते।


कुरल:-वरुविरून्तु वैकलुम ओम्बुवान  वाल्क्कै  परुवन्तु  पाल्पदुतालिंरू।


money  spent  on hospitality will not  ruin one's  home .


चिरुपंच्मूलम  कारियासन रचित ग्रन्थ है।
इसमें पत्नी के फ़र्ज़ पर कहा गया है--पति की आमदनी को जानना,

नाते-रिश्तों की सेवा करना,
अतिथि सेवा करना,ईश्वर  की प्रार्थना करना आदि
.

तमिल सिरुपंचामूलम:-

वरुवाय्क्कू  तक्क वलक्करिन्तु सुटरम
वेरुवामै वील्न्तु विरुन्तोम्बित -तिरुवाक्कुंच
तेय्वात्तई  एग्ग्यांरुम  तेतर वलिपाडु
सेयवते   पेंडिर  चिरप्पू।

 वल्लुवर कहते हैं  कि  मेहमानों को पहले खिला-पिलाकर
बची खाना खाने वाले पति-पत्नी के खेत में बीज बोने की भी आवश्यकता है क्या?
नहीं।अतिथि सेवा का फल अति अपूर्व है।

कुरल :

वित्तुमिडल  वेंडूम  कोल्लो  विरुन्तोम्बी   मिच्चिल  मिसैवान  पुलं।

When a hospitable person lives a good life by sharing his harvest generously with others he has no problems safe guarding his crops the community will come forward to help.




अर्द्धांगिनी--11



तिरुक्कुरल में संतान-भाग्य के नव कुरलों में
 माता-पिता के कर्तव्य पर जोर देते हैं।
माता -पिता दोनों को   शिक्षित होना ज़रूरी है।

उनका ज्ञान ,उनका व्यवहार अच्छे और आदर्श हो तो
 बच्चे भी उनका अनुसरण करेंगे|

ऐसे होने पर वे बुरे गुणों से और बद-चलन से दूर रहेंगे।

बुराइयाँ,नीच संगती,अनपढ़,जुआ,नशीली चीजों को छोड़ना,आदि  गुण
 उत्कृष्ट  माता-पिता ही अपने  बच्चों को   सिखा   सकते  हैं ।

गुरु की बात मानकर उनके पथ पर चलने  का उपदेश

 शिक्षित  माता-पिता  के द्वारा आसान होजायेगा;

वे ही अपने गुरु का महत्त्व जानेंगे।।

अतः माता-पिता का कर्त्तव्य है,
 अपने संतानों को सुमार्ग दिखाना।
इस पर वल्लुवर ने अपना अलग विशेष ध्यान दिया है।


पिता  ने   अपने अध्यवसाय से पुत्र को चतुर ,शिक्षित और आदर्श बनाया है तो
 पुत्र का व्यावहार ऐसा होना चाहिए कि  उसके व्यवहार से दुसरे लोग यह कहें ,
पिता ने कठोर तपस्या करके इस पुत्र रत्न को जन्म  दिया है।यह पुत्र का कर्तव्य  है।

कुरल: "मकन तन्तैक्कू  आटरूम  उदवी इवन  तनतै  एन्नोटरान कोल एनुम सोल।"

  रत्नकुमार:  children"s duty is to bring pride and glory to their parents.
पुत्र भाग्य में पुत्री शब्द भी छिपी है;
 लेकिन परिमेलालाकर केवल पुत्र अर्थ माना है।
यह तो गलत व्याख्या है।

नक्कीरन आपने इरैयानार अकप्पोरुल मालै  ग्रन्थ की आलोचना में
नायक-और नायिका दोनों को समान
शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया है।

यह धारणा गलत है -पुत्र ही चतुर और होशियार है।पुत्री नहीं।



शिवप्रकाशर  नामक मुनि ने अपने देवी पार्वती  की स्तुति में कहा है --

सब लोग शादी के दिन नव-दम्पति को

यही आशीर्वाद देते हैं ---पुत्र रत्न का जन्म हो!
पर राजा मलयरसन  ने पेरियानायाकी अर्थात बृहद नायकी  को जनम लेकर
 यह आशीर्वाद करनेवालों को लज्जित कर दिया है।
अतः संतान भाग्य में पुत्र-पुत्री दोनों का महत्त्व है।
पुत्र को  जन्म लेने में  ही  श्रेष्ठता मानना  उचित  नहीं है।

अतिथि सत्कार करने के लिए अर्द्धांगिनी ही प्रधान है।
पति-पत्नी दोनों में एक के भाव में अतिथि सत्कार करना मुश्किल है।
अतः शिलाप्पतिकारम की नायिका दुखी होती है  कि
 पति के न होने से अतिथि -सत्कार कर न सकी ।

दावत  का   मतलब है सत्कार करना।

जो नया आया है ,उसको स्वागत करके खिलाना-पिलाना।

मेहमान कौन है/?

Tuesday, June 12, 2012

अर्द्धांगिनी----10

नल वेण्बा  के कवि  पुकलेंदी  ने निःसंतान की गति पर

अपनी कविता में लिखा है---

स्वर्ण ,यश,और  कई प्रकार की संपत्ति होने पर भी
  पुत्र भाग्य न मिलने पर
असंतोष ही रहेंगे।

तमिल:-
          पोंनुदैयारेनुम  प्कलुदैयारेनुम  मत्रेंनुदैयारेनुम  उडैयरो  -इन्नाडि सिल
          पुक्कालैयुन्त  तामरैक  कैप  पूनारुंच  सेय्वाय
          मक्कालैयिंग  किल्लातवर।

संतान भाग्य होने के बाद पिताजी का फ़र्ज़ बढ़ जाता है।
 पिताजी का कर्त्तव्य अपने पुत्र को दरबार में मुखिया बनाना।
 अपने पुत्र को ऊंची शिक्षा देना भी पिताजी का कर्त्तव्य हैं।
अपने पुत्र को शिक्षितों की सभा में आगे जाने की शिक्षा देना।
 अपने पुत्र को वीर बनाना ;अपने पुत्र को धनी बनाना ;

आदि पिताजी के लालन -पालन पर अवलंबित है।

 कवि   पोंनमुडी  भी  पिताजी का फ़र्ज़ अपने पुत्र को
शिक्षित महान आदमी बनाना कहते हैं।.


वल्लुवर  ने  कहा है---अपने पुत्र को शिक्षा-दीक्षा में अपने से बड़ा बनाकर
 देखने  में    वास्तविक आनंद है; सुख है।

माता अपने पुत्र को अपने पति देव से ऊंचा देखना चाहती है।
वह अपने पुत्र को अजय और विजय देखना चाहती है।
अपने पुत्र पर दुःख की छाया न मिलें ,यही माँ की कामना है।

फिर अपने पुत्र के कल्याण की बात सोचती रहती है।
इस मां का विचार पक्का होने पर विचार साकार बनता है।
अपने पेट में पले पुत्र सारे संसार को सुख प्रदान करें।

कुरल:
1.तनतै  मकर्क   काटरूम  नन्री  अवैयत्तु   मुन्तियिरुप्प  सेयल .
2.तम्मिन  तम  मक्कल  अरिवुडमै   मानिलत्तु   मन्नुयिर्क्कू  एल्लाम इनितु।
3.एन्नीय  एन्नियांगु एय्तुब. एन्नियर  तिन्नियाराकप्पेरिन।

 THAT THEIR CHILDREN SHOULD POSSES KNOWLEDGE IN MORE PLEASING TO ALL MEN OF THIS EARTH  THAN TO THEMSELVES.

अर्द्धांगिनी-- 9

पांडियन अरिउडै  नम्बी  संतान संपत्ति  के बारे में लिखा है-------

बड़े-बड़े अमीर भी ,जो अनेकों को खिला पिलाकर,
कईयों के साथ खाते हैं;
पर   उनको  भी  अपने छोटे शिशु के रौंदे -खाए .
बचे खाना स्वदिष्ट  लगेगा|
।अपने जीवन में पुत्र-रत्न पाने से

और बड़ी संपत्ति नहीं हैं।

मोह्नेवाले बच्चे के रहने पर और कोई कमी नहीं है जीवन में।

तमिळ :--
पडैप्पू      पल  पडैत्तु  पलरोडुन्नुम 

उडै   पेरुम सेल्वारायिनुम  इडैपडक
 कुरु कुरु  नडन्तु    सिरुकै  नीट्टी

यिट्टू  तोटटूंग   कव्वियुम तुलन्तुम

नेय्युडै  यडिसिल  मेय्पड  वितिर्तु
मयक्कुरु मक्कलै  यिल्लोर्क्कू
बयक्कुरै  यिल्लाई  ताम  वालूम  नाले।


इस लम्बी कविता को वल्लुवर ने डेढ़ ही वाक्य  में लिखा है।





अर्द्धांगिनी --8

 "  सीखने  की  चाह  रखनेवाले    बच्चे  को जन्म  ही   लेना असंभव है।
माता-पिता   की   ही  देखरेख  से और सही मार्ग के  दर्शन से
 बच्चा सीखने लगता है।
शिशु अपने छोटे हाथ से भात को  रौंदता है
माता-पिता उस क्रिया से अत्यंत  खुश होते  हैं।
 वे  उसे अमृत समझते हैं।
g.u.pope---THE RICE IN WHICH THE LITTLE HAND OF THEIR CHILDREN HAS DABBLED
WILL BE FAR SWEETER THAN AMBROSIA.
RATNAKUMAR----NOTHING TASTES MORE DELICIOUS TO PARENTS THAN THE UNFINISHED BOWL OF PORRIDGE LEFT BEHIND BY THEIR CHILDREN.

कुरल:     अमिलतिनितु   एन माट्टार ,  तम मक्कल  सिरुकई  अलाविय  कूळ .





अर्द्धांगिनी--7

गृहस्थ  जीवन  की विशेषता  का दूसरा प्रमुख स्थान  संतान-भाग्य है।

संतान-भाग्य  सुपत्नी पर ही मिलता है।

यां अतुलनीय अपूर्व काम है।

 वल्लुवर गुहस्थ-शास्त्र में इसे ऊंचा शिखर मानते हैं।

डाक्टर मीनाक्षी सुन्दरानार

दोस्त और पत्नी दोनों को सर्वोच्च स्थान मानते हैं।

वल्लुवर ने संतान-भाग्य शीर्षक ही दिया है।
लेकिन परिमेलालाकर,मानक कुड़वार ,जी।यू .पोप  ने संकुचित

 अर्थ में पुत्र जन्म देना बताया है।
यह तो मूल-अर्थ को बदलने का काम है।

और इसमें पुत्र  को जन्म देना  बताया है।
।तब पुत्री को जन्म देना अलग है क्या/?
यह तो चिंताजनक बात और व्याख्या है।

 संतान-भाग्य पुत्र -पुत्री का आम शब्द है.
संतान भाग्य मनुष्य का मूल्य बढाता है।
मनुष्य जन्म के  सोलह भाग्य बताते हैं।

यश, शिक्षा,   बल,  विजय,   सुसंतान ,   स्वर्ण,  ज्ञान,   सुन्दर,   श्रेष्ठ ,  जवानी, साहस,
दीर्घ-आयु,    सौभाग्य,   नीरोग,  भोग आदि।


इसमें संतान शब्द  में " सु  " उपसर्ग जोड़ा है।
वल्लुवर भी सन्तान भाग्य ही बताया है।

वल्लुवर ने अपने कुरल में  कहा--
-हमें प्राप्त करने के लिए संतान से अपूर्व और दुर्लभ चीज कुछ नहीं है।

पेरुमवटरुल  यामारिवतिल्ले  अरिवरिन्त  मक्कट   पेरल्ल  पिर .(कुरल)


हम  क्यों पुत्र चाहते है?
कुल-वृद्धि के लिए,
संसार की रीत चलने के लिए,
प्राकृतिक सहज व्यवस्था के  लिए,

अपने खानदानी धंधा बढ़ने के लिए,
सहायता के लिए,
बुढापे में हमारी सहायता और सेवा के लिए,

हमारे  देहांत के बाद अपने नाम से धर्म -कार्य चलाने के लिए

 संतान -भाग्य की जरूरत है।

g.u.popoe---AMONG ALL THE BENEFITS THAT MAY BE REQUIRED ,WE KNOW GREATER
BENEFIT THAN THE ACQUISTION OF INTELLIGENT CHILDREN.

THERE IS NO GREATER REWARD THAN HAVING CHILDREN WHO ARE EAGER TO LEARN.

अर्द्धांगिनी--6

शिलाप्पतिकारम  तमिल का महा काव्य है।
उसका एक पात्र है कौन्दियडिकल.

 उन्होंने  नायिका कन्नकी के बारे में कहा है कि पतिव्रता देवी
 कणणकि  आग में तपी  स्वर्ण - सा निखरती  
 है।
ऐसी पतिव्रता देवी को मैं ने कहीं नहीं देखा है।
 वह   पतिव्रता से सज्जित  सुन्दर नारी देवी है।


वह पात्र    आदर्श पतिव्रता   का प्रतिबिम्ब है।
अतः  वह इतिहास में अमर पात्र है;
उसकी शिला प्रतिष्ठित है।

कोप्पेरुन्देवी और माधवी दोनों का जन्म वेश्य-कुल में हुआ है।
फिर भी दोनों पतिव्रता नारियाँ  हैं।
कवि  इलंगो  ने उन तीनों पात्रों को आदर्श पतिव्रता पात्र कहकर उल्लेख किया है।

कवि  ने कण णकी  को वशिष्ट  मुनि की पत्नी अरुन्ददी से तुलना की है।


 सप्त-ऋषी   मंडल में अरुन्दति  नक्षत्र है।
वह अपने पतिव्रत-धर्म के बल पर तारा बन गयी।

मनिमेखलै   भी शीतलै  चात्तानर  नामक कवि  का काव्य है।


उस काव्य के नायक साधुवन की पत्नी आदिरै भी
 पतिव्रता की सूची में स्थान पाती है।


पति व्रत नारी के कारण उसके पति को भी यश मिलता है।
जीवन में लाभ मिलता है।

पत्नी पतिव्रता होने पर  ही एक गृह को यश मिलता है।
उसके पति का बड़प्पन पत्नी की पतिव्रत धर्म में है।


पति को दुश्मन के सामने धीर-वीर-गंभीर होकर खड़े रहने का बल,
 पत्नी के पतिव्रतता  के    कारण  मिलता   है।
पतिव्रत  पत्नी के कारण ही वह सिंह बनता है।जिनको पतिव्रत पत्नी नहीं मिलती ,उसके जीवन में बदनाम और दुःख ही बचेगा।

कुरल:-पुकल  पुरिन्तिल्लिलोर्क्किल्ले   यिकलवार  मुन्नेरू  पोर  पेडू  नडै  .

THE MAN WHOSE WIFE SEEKS NOT THE PRAISE (OF CHASTITY)CANNOT WALK WITH LION-LIKE STATELY  STEP ,BEFORE THESE WHO REVILE THEM.

नारी  के  पतिव्रत  धर्म  के कारण  ही कई पति प्रसिद्ध हैं --
तमिल संघ -साहित्य में।
पुरानानूरू ग्रन्थ में
पतिव्रत-धर्म के बारे में कई उल्लेखनीय बातें मिलती हैं।

वलैयापती  तमिल महाकाव्य में  इसके विपरीत विचार भी मिलते हैं।


मछली  पुराने पानी में जीती है;
फिर भी  नए  बाढ़ के आते ही उसकी ख़ुशी एकदम बढ़ जाती है।
वैसे ही  कुछ   महिलायें नए पुरुषों के मिलने पर चाहक  बनते  है।
 हर बात में अपवाद होती है।

पल्ल   मुतुनीर्प  पलकिनुम , मीनिनम     वेल्लम   पुतियतु   कानिन   विरुम्बू रूवुम

कल्ल  विल  कोतैयर    कामानोडु   आयिनुम    उल्लं  पिरिताय  उरुकलुम  कोल  नी।









Monday, June 11, 2012

अर्द्धांगिनी -- 5

अर्द्धांगिनी
परिमेल अलकर और पावानर दोनों ने
 "पतिव्रता"धर्म का अर्थ निष्कलंकित दशा माना है|


मनक्कुडवर तो दृढ बल माना है।पुलवर कुलनदै मन की दृढ़ता माना है|
 तमिल  बृहद  कोष  का दूसरा ग्रन्थ
"पतिव्रता"के अर्थ को विस्तार से व्याख्या करता है।
व्याकरण और साहित्य की सहायता से यह अर्थ  दिया गया है।
  CONJUGAL FIDELITY CHASTITY  .
LIFE OF A HOUSE HOLDER AFTER HIS UNION
WITH A BRIDE OF HIS CHOICE HAD BEEN RATIFIED
BY MARRIAGE CEREMONIES.

पतिव्रता धर्म एक नायक एक नायिका से नियमानुसार
शादी करने के बाद
 गृहस्थ जीवन की शिष्टता  कहा गयाहै।
ऐसी व्याख्या नम्बी अकप्पोरुल मालै  में मिलती है।

MALABAAR JASMINE,AN EMBLEM OF FEMALE CHASTITY,LEARNING,STUDY,KNOWLEDGE-MEDITATION.

सांसारिक श्रेष्ठ गुण
 पतित्रुप्पत्तु  में कहा गया है;
पतिव्रता को कारीगरी
WORKMANSHIP कहा गयाहै।

दुखी-दीन  लोगों में   पतिव्रत  है क्या?
 कम्बरामायण   में यम के फ़र्ज़ को रोकने की शक्ति
 पतिव्रत  कहा गया है।

संकल्प  के अर्थ में --VOW,DECISION,DETERMINATION  कहा गया है।..
पति  के कल्याण में ध्यान लगानेवाली --
पुरत्तुरै नामक ग्रन्थ बताता है।
पति से अलग होने के बाद भी अपने काम-सुख को नियंत्रित  करके
 दृढ़ चित्त से उस के ही ध्यान में रहनेवाली  स्त्री  पतिव्रता है।


सभी व्याख्या का सारांश है ----"मानसिक दृढ़ता।"
भारती दासन  नामक कवि  ने पतिव्रता धर्म को
 स्त्री -पुरुष दोनों के लिए आवश्यक धर्म कहा है।


और कोशों में भी यही अर्थ मिलता है।
तिरुवल्लुवर के बाद के कवियों के अर्थ की जानकारी
 अभी मिलती है।
लेकिन वल्लुवर ने 
पहले ही इसकी व्याख्या की है।
 पतिव्रता नारी से श्रेष्ठ कोई नहीं है।

G.U.POP--WHAT IS MORE EXCELLENT THAN A WIFE,
IF SHE POSSES THE STABILITY OR CHASTITY?
+++++

Sunday, June 10, 2012

अर्द्धांगिनी --4

अर्द्धांगिनी

तिरुक्कुरल एक मौलिक ग्रन्थ है।
अतः उसकी शैली अपनी है।
उनको  अपने कुरल में  अन्य ग्रंथों को तुलना करने   की  जरूरत नहीं पड़ी।
वे खुद रचयिता और बोधक थे।

 स्त्री और पुरुष  दोनों के दिल में उठनेवाला एक विषय है पतिव्रता।
हर एक अपने अनुभव और चिंतन के अनुसार इसकी व्याख्या  करते हैं।
वल्लुवर  ने भी इस  विषय   पर अपना विचार   प्रकट किया  है।
पतिव्रता  धर्म से बढ़कर  एक  नारी  के लिए
और कुछ बड़ी  संपत्ति  संसार में नहीं है।


कुरल:--


पेंनिर्कू  पेरून तक्क  याउल  कर्पेंनुं  तिनमै  पेरिन।

एक नारी के   लिए    पतिव्रता  धर्म एक काफी है,
संसार में और प्राप्त करने कुछ नहीं है।
पावानर   'पतिव्रता 'का अर्थ निष्कलंक कहते हैं।


++++

arddhaanginiअर्द्धांगिनी---3

तिरुवल्लुवर अपने कुरल में अपने 41,42,47,50 के कुरलों  में
पुरुषों को ही उल्लेख किया है।उनमें क्रमशः यों ही



उल्लेख किया गया है----गृहस्थ वही,मर चुके लोगों को भी गृहस्थ,

स्वभाव से गृहस्थ ,जग में नाम से जीनेवाला.

.  इनमें   स्त्री शब्द का स्थान नहीं है।

43.50 के कुरल  में भी गृह शब्द का उल्लेख नहीं है।


गृहस्थ जीवन में पत्नी शब्द का प्रयोग नहीं है,
लेकिन उस अध्याय भर में पत्नी की ही प्रधानता है।
पत्नी नहीं है तो पुरुष के लिए सुख का जीवन नहीं है;

कुरल में कम शब्दों में तीन भाग में
युग-युगांतर  के जीवन का मार्ग है।
अतः एक कवि  ने उस तिरुक्कुरल को  हाथ बराबर  का
आकाश दीप  बताया  है।
यह  आकाश दीप पत्नी की विशेषता पर रोशनी फैला रहा है।


जीवन -कल्याण अध्याय सीधे पति के सर का मुकुट है। gee.yu.pop---"the goodness of help to domestic life"
कहकर  अनुवाद किया है। चंद  शब्दों में सागर की व्याख्या  कुरल में है।
पहले कुरल में ही पत्नी की विशेषता और श्रेष्ठता का जिक्र किया है।

पत्नी एक गृह के विकास में साथ देनेवाली है।
जीवन सहायिका है।गृह -कल्याण की साथिनी  है।
गृहस्थाश्रम  के गुण पत्नी  में  है।
आय के अनुसार परिवार निर्वाह करनेवाली है पत्नी।
गृहस्थ-रथ सही ढंग  से चलाना  अर्द्धांगिनी पर निर्भर है।
आय के अनुकूल परिवार न चलने की बीबी से उलटा -प्रभाव पडेगा।

नरक तुल्य जीवन अधिक खर्च के कारण होता है।
THE WIFE WHO LIVES A GOOD LIFE AND WORKS WITH HER HUSBAND FOR THE COMMON GOOD IS RELIABLE SUPPORT

.लोगों को जितने ही प्रकार  के  बल मिलें,
 फिर भी बिना पत्नी के पुरुष निर्बल ही है।
सच्चा बल अर्द्धांगिनी से मिलता है।

पुरुष के अधिकार सुचाल और गुणवती पत्नी के बल पर ही निखर उठता है।
यही एक गृह की महत्ता है।यह महत्ता अप्राप्त जीवन महत्वहीन हो जाएगा।इसे" HOUSEHOLD EXCELLENCE"  के  शब्दों  में  पोप  ने  अनुवाद  किया है।

आर्थिक सम्पन्नता सैक्कडों   साल  साथ देगा।
 लेकिन वह स्वर्ण और सामग्रियां  गुणवती कुटुंब संचालिका

पत्नी के सामने तुच्छ ही है।

G.U.POPE----IF HOUSEHOLD EXCELLENCE BE WANTING IN THE LIFE HOWEVER WITH SPLENDOUR LIVED ALL WORTHLESS IN THE LIFE.
जो बनता है,वह स्त्री के कारण।
जो बिगड़ता है स्त्री के कारण।
स्त्री नरक तुल्य है;स्त्री स्वर्ग तुलया है।


एक के जीवन में कपड़ा नहीं है;
खाना नहीं है :
सोने के लिए घर नहीं है;
ये तो बड़ी कमी नहीं है।
ये सब न होने पर भी योग्य
गुणवती पत्नी के होने पर अति आनंद मिलेगा।
एक मनुष्य के अधिकार में राज्य है;
तीर-कमान है;सेना है;पर्वत बराबर की संपत्ति है;
लेकिन पत्नी  डाइन  है तो उसका जीवन नरक-तुल्य हो जाएगा।
WHILE THERE IS NOTHING GREATER THAN LIVING WITH THE WIFE WHO IS A HOSPITABLE PERSON THERE IS NOTHING WORSE THAN LIVING WITH THE ONE WHO IS NOT.

एक पत्नी को स्वार्थ -बंदर-सा,पिशाच -सा रहना या होना नहीं चाहिए।

गुणहीन होने पर जीवन में एक अंगुल भी आगे न बढ़ सकते है।

एक पत्नी के गुणवती होने का अर्थ है ,
वह मायके और ससुराल के नाते -रिश्तों को
 बराबर समझनेवाली हो।
उसका मन सुविस्तार होना चाहिए।
जैसे अभ्यस्त सेनापति कामयाब ही कामयाब प्राप्त करता है,
वैसे ही गुणवती स्त्री सफलता प्राप्त करती है।

जैसे सुशासन करनेवाला राजा
,देश को आगे बढाता है,
वैसे ही साद-साध्वी पत्नी परिवार को सफल बनाती है।
नाते-रिश्तो की संख्या बढाती है।----नालाडियार।

वल्लुवर इसे अर्द्धन्गुनी के गुण-महत्ता कहते हैं।
कबिलर नामक कवि  अपने दुःख -चालीसा में कहते हैं---
साथ न देनेवाली  पत्नी से दुःख ही बचेगा।.
पूथान्चेन्द्रनार नामक कवि  सुख -चालीसा में  कहते है   कि
 पति-पत्नी के दिल में एकता होने पर  और ,
दिल मिलने पर ही गृहस्थ-जीवन सुख से संपूर्ण होगा।.






Saturday, June 9, 2012

patni.अर्द्धांगिनी---2

कमल फूल  पत्नी,
सुख की दवा स्त्री,
जीवन-संगिनी,
अर्धांगिनी,
गृह-स्त्री आदि
 भी पत्नी के  पर्यायवाची शब्द है


इस्लाम धर्म पत्नी के बारे में कहां  है----
पत्नी तुममें से तुम्हारी शांति के लिए उत्पन्न   महिला है।

 वह तुम्हारी कमियों को छिपानेवाली कुरता है।
तेरे लिए वह कुरता है तो  तुम को  भी उसके लिए कुर्ता  बनना    है।

काम भाग में वल्लुवर खुद काम पात्र बन जाते है।
चरित्र या पात्र गुण का मतलब है---सद्गुणी,गुणी ,सदाचारी ,शिष्टाचारी आदि।
अतः तिरुक्कुरल को चरित्र प्रधान साहित्य कहते है।
चरित्र या पात्र का  अभिनेता  अर्थ भी है।
शेक्सपियर जो वल्लुवर के पीछे जन्मा है,कहते है --सारा संसार रंगमंच है ;
हम-सब इसके पात्र है।पात्र का मतलब है,जैसा होना है,वैसा बन ना  ।
कुरल के रचयिता वल्लुवर एक निर्देशक है और सफल पात्र भी है।
इलान्कुमारानार  वल्लुवर को अच्छी  पत्नी कहते हैं।

गृहशास्त्र के संपूर्ण अधिकारी  पत्नी है।

wife-patni.अर्द्धांगिनी--1



तिरुक्कुरल में मध्य भाग में शास्त्र को स्थान दिया गयाहै।
कुरल में सात शास्त्र है।
लेकिन देवानेयाप्पावानर आठ शास्त्र  का उल्लेख कियाहै।
वे हैं---भूमिका,
गृह -शास्त्र,
संन्यास ,
भाग्य या विधि शास्त्र,
राजनीती शास्त्र,
अंग -शास्त्र,
क्षेत्र ,पतिव्रत -शास्त्र।


गृह -शास्त्र के बीस अधिकारों में पत्नी  के गुण-लक्षण बताते हैं।
काम भाग के सात अधिकारों में और पतिव्रत -शास्त्र के अठारह अधिकारों में
 भावी --पत्नी के लक्षण  और पत्नी के लक्षण  बताये गए हैं।

गृहस्थ -जीवन,जीवन-साथी के लक्षण,संतान-भाग्य,अथिति-सत्कार,एकता-नीति,दान आदि अधिकारों में वल्लुवर  पत्नी के रूप में ही दर्शन करते है।
वे खुद पत्नी बनकर गृहस्थ  -जीवन को सुमार्ग दिखा रहे हैं।

गृहस्थ  जीवन को विशेष बनाने के सुविचार हम कुरल में देखते है।
जब हमारे मन में अच्छे जीवन को जानने  की इच्छा होती है,
तब कुरल पढने लग जातेहै।

पत्नी का अर्थ है गृह-स्त्री
.खेती की नायिका,
घर की मालकिन,आदि अर्थ।(wife,woman heroine,of pastoral or       agriculture tract,female owner of a house,heroine)

mitrata.मित्रता -रिश्ता--14

बिन देखे,बिन बोले  मित्रता निभाना,
 एक दुसरे केलिए जान देना ,
संसार के इतिहास में अपूर्व है; दुर्लभ भी है।

तिरुक्कुरल  मित्रता का लक्षण ग्रन्थ है तो पुरानानूरू साहित्यिक  है।

दूसरों के सुख से सुख होनेवाले संसार में तीन ही लोग है---1.माता।2.पिता।3 दोस्त।
माता अपने पुत्र को स्वादिष्ट भोज के खाते देख अति प्रसन्न होगी।
पिता पुत्र के पद,बहुमूल्य पोशाक-आभूषण ,देखकर प्रसन्न होंगे।
दोस्त मित्रता की प्रसिद्धि,पदोन्नति देखकर खुश होंगे।
 इन तीनी में माता-पिता के रिश्ते खून का  है।
 उनके बाद मित्र है।दोस्त लाभ के लिए नहीं,काम के लिए होते हैं।
मेरे मित्र ऊंचे पद पर हैं।उसको बाह्य और आतंरिक सुख मिलना है।
उनसे मैं  ईर्ष्या नहीं करूंगा।ऐसे संकल्प लेनेवाला आदर्श मित्र है।
THE IMMEDIATE RESPONSE TO SHARE THE BURDENS OF A FRIEND IN EVERY POSSIBLE WAY IS THE ULTIMATE FRIENDSHIP.
एक आदर्श मित्र सभी प्रकार की मदद यथाशक्ति करेगा।
उसके मन में कभी कोई भेद-भाव नहीं होगा।
मित्रता निभाने में भेद भाव्  होने से बचना बहुत कठिन है।
वल्लुवर ने समृद्ध सम्पन्न जीवन जीने के लिए मित्रता के बारे में लिखा है।

वस्त्र के गिरने पर हाथ फौरन  वस्त्र पकड़कर मान रक्षा करता है;
वैसा ही मित्र कष्ट के समय साथ देगा।
मित्रता एक संपत्ति है।वह प्रयत्न से बढेगी।
 बिना प्रयत्न के मनुष्य गरीबी के गड्ढे  में गिरेगा।
वैसे ही मित्रता है।

dostiमित्रता -रिश्ता 13

हमको बढ़िया ग्रन्थ सुखप्रद और ज्ञानप्रद है।
संसार में अति प्रिय वही ग्रन्थ ;वैसे ही है मनपसंद विषय मित्रता।
वलूवर का ग्रन्थ एक जाति  या राष्ट्र के लिए नहीं,
वह सारे संसार के मार्ग दर्शक ग्रन्थ है।
यह बात रूस के डा0.,
अलेक्सान्दोर ने उल्लेख किया है।
THIRUKKURAL,IS AN INTEGRAL HOMOGENEOUS WORK OF ART,THE AUTHOR OF WHICH ADDRESSES NEITHER KING,SUBJECT NOR PRIEST BUT ME.AND HE DOES NOT ADDRESS MAN EITHER AS LAW GIVEN OR PROPHET BUT AS WELL-WISHER,TEACHER AND FRIEND.HE NEITHER PROPHESIED NOR SPOKE IN HINTS AND RIDDLES;HIS WORDS CONTAINED NO SHADE OF DOUBT ,HE HAD FULL CONVICTION OF THE TRUTH OF WHAT HE SAID,BOTH AS AN ARTIST AND THINKER.THE KURAL OF THIRUVALLUVAR
IS RIGHTLY CONSIDERED AS CHIEF DOEUVREOF INDIAN AND WORLD LITERATURE.THIS IS DUE NOT ONLY TO THE GREATARTISTIC MERIT OF THE WORK,BUT ALSO,AND THIS IS NOST IMPORTANT,TO THE LOFTY HUMAN IDEAS PERMEATING IT,WHICH ARE EQUALLY PRECIOUS TO THE PEOPLE ALL OVER THE WORLD,OF ALL PERIODS AND COUNTRIES.

तिरुवल्लुवर ने  अपने ग्रन्थ  राजा केलिए नहीं,
धार्मिक आचार्यों केलिए नहीं,भारतीयों केलिए नहीं लिखा है।

उनके  ग्रन्थ कानूनी नहीं है।उसमें लोकोक्ति नहीं है;टिपण्णी नहीं है।
बड़े विचारक और कलाकार बनकर उन्होंने कुरल लिखा है।
सभी काल और सभी देश के लिए सार्वजनिक ग्रन्थ के रूप में  तिरुक्कुरल लिखा है।
 दूसरे के प्रति जो मित्रता है,वह स्थायी और टिकाऊ है।
दोनों के मनों की मिश्रित भावना है दोस्ती।

मित्र को निकट संपर्क की ज़रुरत नहीं है।
मोह भावना ही मित्रता का लक्षण है।
 एक दुसरे से मिलने की  ज़रुरत नहीं है।
संघ  काल में प्सिरान्थैयार और कोप्पेरुन्चोलन की  मित्रता  ऐसी  है।
अंतिम घड़ी में अपने दोस्त को जिसको पहले देखा तक नहीं है,
उनकेलिए   अपने पास ही कब्रिस्थान आरक्षित किया था।

दोस्ती के तीन कारण है।
1.मिलना-जुलना,संपर्क में आना,एकता का भाव।
इनमें एक हीभाव होना प्रधान अंग है।

Friday, June 8, 2012

मित्रता -रिश्ता--12

अब तक मित्रता की व्याख्या में बुरी मित्रता,अछूत मित्रता,
असंग मित्रता,मित्रता छूट,प्राचीनतम मित्रता आदि
पर के वल्लुवर के कुरल की विशिष्ठ   गंभीर भाव विचार धारा 
और विशेष बातों  पर ध्यान दिया गया है।

सतर्कता पर विचार-विश्लेषण के बाद सच्ची मित्रता को जानने  की स्थिति पर आये हैं।
वल्लुवर ने  मित्रता पर के  अपने विचारों से तिल को पहाड़ बना दिया है।

एक किसान खेत में तुरंत बीज नहीं बो सकता।पहले खेत को  जोतना पडेगा।
पानी सींचकर छोटे पौधे  बोना पड़ेगा।
फिर पानी सींचना पडेगा।अन्य पौध उगे तो उन्हें  निकालना  पडेगा।
खाद देना पडेगा।धान के दाना पकने पर फहरा देना पड़ेगा।
धान काटने के  दिन तक खेत  में ही परिश्रम करना पडेगा।
तभी भात बनाने  योग्य चावल मिलेगा।
वैसे ही अच्छी  सच्ची योग्य गुणी  मित्र की प्राप्ति के लिए
मेहनत करना पडेगा।

मित्रता के गोपुर कलश है उनका पहला कुरल।

मित्रता जैसे अपूर्व रिश्ता क्या है संसार में?
हमारे कर्म करने में शत्रु से  होनेवाली हानियों और  बाधाओं  से बचाने वाले
 हमारे  सच्चे मित्र ही है।
वही पहरेदार है।

एक मनुष्य का जीवन नाते-रिश्तों के घेरे से बना है।
रिश्ता प्राकृतिक और कृत्रम दो तरह से होता है।
प्राकृतिक रिश्ता खून से सम्बंधित है।
शादी का रिश्ता अप्राकृतिक है।मदद पाने से होनेवाला रिश्ता,
संपर्क का रिश्ता,पेशे का रिश्ता,आवागमन का रिश्ता आदि
अप्राकृतिक रिश्ता है।इनमें मित्रता का रिश्ता निराला होता है।
पुष्ट होता है।सच्चे मित्र कष्ट काल में जान देकर  बचायेंगे।

there is a proverb ---A father is a treasure,a brother a comfort,but friend is both.
अव्वैयार  ने कहा है --मनुष्य जन्म दुर्लभ है;उस  बात को आगे करें तो
 योग्य मित्र पाना उससे भी  दुर्लभ है।

FORGETTING FRIENDSHIP WITH PERSONS OF GOOD QUALITIES IS BENIFICIAL LIKE READING GOOD BOOKS.

mitrata kee khojhमित्रता -रिश्ता--11

मित्र  की खोज की असावधानी    मृत्यु के समय  में  भी जलन का कार्य करेगा ।
मित्र    हीनावस्था में मदद नहीं  करें  तो  उसकी चिंता आजीवन  रहेगी।

किसी एक के गुण -दोष का अनुसंधान-विश्लेषण  गहराई छानबीन करके न करें तो
अंत में वह मृत्यु  का कारण बन जाएगा।
खोज,खोज ,खोज पुनः खोज ;यों ही वल्लुवर मित्रता के चुनाव की सावधानी पर सतर्क किया है।

THINK  CAREFULLY BEFORE YOU MAKE FRIENDS FOR FRIENDSHIP WITH SOME ONE WHO IS INCOMPATIBLE WILL CAUSE SARROW.
मनुष्य गुण में विविधता हैं।समाज में मनुष्य  स्वाभाविक व्यवहार  अलग-अलग हैं।
मित्र के चुनाव में असावधानी दुःख की अतल-पाताल में छोड़ देगा।
दुःख से बचना है तो मित्र को छान -बीन करके योग्य गुणी  को मित्र चुनना है।

वल्लुवर ने बड़ी सूक्ष्मता से मनुष्य कुल की शान्ति केलिए मित्र की खोज पर अपना सन्देश दिया है।
उनका सन्देश दिल में चुभता है।दिमाग में छप जाता है।

DOSTIमित्रता -रिश्ता--10

नालडियार  में वल्लुवर के समर्थन- सा एक पद है===

घृणा का कार्य ,बुरा कार्य ,खून  आदि मित्र करने पर भी
उसकी रक्षा करेंगे और चाहेंगे ;
जितना भी वे घृणा करें,सहकर भी साथ रहेंगे;

यारी नहीं छोड़ेंगे;
साथ न छोड़ेंगे;

यही मित्रता का पुरातन लक्षण है।
मित्रता की प्राचीनता को वल्लुवर ने ऊंचा उठाकर  कहा है---
मित्र को अपने मित्र की जान लेने का अधिकार भी है।
जान लेने के कार्य में मित्र लगने पर भी मित्रता न छोड़ेंगे।

हमारे हाथ हमारी  आँखों को चुभता है तो दुःख होगा ही।
उस हाथ को हम काटते नहीं;वैसे ही दोस्त बुरा करने पर भी
उसे  घृणा न करके गले  लगाना मित्रता है।

सच्ची मित्रता उनमें नहीं है,
जो नाच-गान,खाना,पंचेद्रियों  के सुख के लिए
 अपराध करने में  साथ देता है।
नीच कार्य में साथ देने को हम मित्रता समझ  लेते है।
 यह तो गलत धारणा है।
समाज को बिगाड  देने वाली दोस्ती में
आदर्श फ़र्ज़  और बढ़िया कला भी नष्ट हो जाएगा।
वह संकुचित मित्रता नफरत के योग्य है।

बराई में साथ देने को मित्रता समझना
 मित्रता का लक्षण नहीं है।
 वललूवर ने कहा है ---बाह्य-हंसी  की मित्रता मित्रता नहीं है;

 आतंरिक हंसी की मित्रता ही मित्रता है।

वल्लुवर  कहते हैं कि  गुण -दोष ,खानदान,नाता-रिश्ता  आदि
पहचानकर ही एक व्यक्ति को मित्र बनाना
सर्वोत्तम  है।
वलूवर का कुरल ----गुण  खोजो;दोष खोजो; उनमें ज्यादा जो है,
उसे खोजो;फिर उसे अपनाओ.
यह कुरल अच्छी मित्रता के लिए मात्र नहीं ,
योग्य वर-वधु की तलाश केलिए भी मार्ग दिखाता है।

मित्र अन्याय या कुकर्म करें तो उसको कठोरता दिखाकर
सुधारना  या ठीक मार्ग पर लाना मित्र -धर्म है।
एक  कहावत है -अपने प्रिय जन रुलायेंगे;अन्य हंसाएंगे;

ये ही अपने या पराये का अंतर है।

dostiमित्रता -रिश्ता-9

दोस्ती  का अर्थ  प्रेमी भी है।

दीर्घ काल के संपर्क स्त्री होने पर प्रेम होता है

पुरुष हो तो मित्रता ;

वह भी एक प्रकार का प्यार ही है।
जैसे प्रेमिका को भूल  नहीं सकते;

वैसे ही मित्र की याद हमेशा बनी रहती है।
वल्लुवर ने कहा है-----दोस्ती में विद्वत्ता उसी में है ,
जो दोस्त की मांग या चाह  को जान-पहचानकर
हक़ लेकर   उसकी चाह की पूरी करना।

उस चाह में रूचि बढ़ने का अधिकार लेना।
मित्रता का अंग है अधिकार लेना।

बड़े लोग उस अधिकार के लिए मधुर बनते हैं।

नमक खारा है;उस खारेपन में भी मिठास लाना मित्रता है।

THE SECRET TO A LONG-LASTING FRIENDSHIP IS HONOURING THE UNWRITTEN RIGHTS AND OBLIGATIONS ESTAABLISHED LONG AGO;NOBLE PEOPLE PRACTICE IT.

मित्रता  अति पुरातन है;इसी में विशेषता है।

दोस्ती  का आदर्श उदाहरण  महाभारत में मिलता है।

मित्रता में ज़रा भी शक को स्थान देना मित्रता को भंग करती है;

 कर्ण  दुर्योधन की पत्नी के साथ जुआ खेल रहा  था;
 तब वहां अचानक दुर्योधन आया;
उसकी सेवा करने उसकी पत्नी भानुमती उठी तो कर्ण ने समझा --
 वह हार के भय से उठती है;
तुरन्त  उसने उसका वस्त्र पकड़कर खींचा तो
उसकी साडी में जड़े मोती गिर पड़े।

तब दुर्योधन दौड़कर आया;मोती चुगने लगा और बिना शक किये पूछा ---

मैं इन मोतियों को जमा करूं  या जोडू .

यह पुरातन दोस्ती है;पूराण की यारी है।

दुर्योधन  को  कर्ण के साथ अपनी पत्नी का  जुआ खेलना  गलत नहीं   लगा।
उसके मन में  सम्मान ही रहा  मित्रता का।
गलत विचार न उठा।
मित्र का कार्य घृणाप्रद हो तो यों ही समझना उचित है ---

वह उसकी अज्ञानता है  या अधिकार है।

हमें  सह लेना है;उसके प्यार पर संदेह का भाव ठीक नहीं है।

कुरल है-----मित्र का दुःख और घृणाप्रद कर्म अति हक़ के कारण ही; या अबोध के कारण है।
इस बात को पूर्ण लिंगम पिल्लई  वल्लुवर के व्यक्तित्व की तारीफ में कहते हैं---

THE LANGUAGE  OF THE POEM IS PURE TAMIL,AND  ITS CAPACITY TO EXPRESS ANY THOUGHT  ,WITTY,HUMOROUS AND SUBTLE,IS EVIDENCED IN EACH COUPLET.

Thursday, June 7, 2012

mitrataमित्रता -रिश्ता--8

वल्लुवर में विशेष  कौशल  है।
धोखे में दुश्मन दोस्त बन जाए तो उनसे बचने का एक छूट देते हैं ---
शत्रु मित्र बन गया तो तुम भी उसके समान मित्र का अभिनय करो।
हँस -मुख रहो।बाहर  दोस्ती-सा व्यवहार
.जरूरत न हो तो मित्रता तजो।
बुरी संगती से असंगति बड़ा खतरनाक होता है।
बुरी  दोस्ती प्रकट होने की संभावना है। कुसंगति में पड़ने पर वह

केंसर रोग के सामान है।दर्द   नहीं; रोग अति बढ़ने पर ही मालूम  होगा;,
अचानक मृत -अवस्था में डाल  देगा।।
कुसंग -रोग का निदान अंतिम समय में होगा।
निदान  के बाद दिन गिनना ही शेष रहेगा।बचना कठिन है।
वहीं हालत है असंगति का।

मित्रता  की स्थिरता  का अध्याय है पुरातन.
दीर्घकाल निकटता .अंग्रेजी में  antiquity,longstandig intimacy कहते हैं।

वल्लुवर ने जो पुरातनता  को  मित्रता केलिए प्रयोग किया है,
उसे  'familirity',long-lasting friendship
कहकर भी अनवाद कर चुके हैं।
प्राचीनता  -दीर्घ काल की मित्रता का मतलब है,
मित्र के कर्म या बात को बिन सोचे -विचारे अपनाना।
हकदार बन जाना।
हक़दार का मतलब है हानी -लाभ को एक सामान मानना या सहना।
यही मित्रता की  परिपक्वता है।
जग में कोई भी निर्दोष या निष्कलंक नहीं है।
अतः  दीर्घकालीन मित्र के दोषों को सह लेना ही मित्रता का पहचान है।
मित्र के अपराधों को सहर्ष सह लेना मित्र का कर्त्तव्य हो जाता है।
यह वल्लुवर के  प्रेम की आज्ञा    है।
वल्लुवर एक सर्वश्रेष्ठ मित्र है।वे तो मित्र-स्वरुप है।
मित्र का मतलब है सखा। COMPANION/ASSOCIATE 

sakhaaमित्रता -रिश्ता--7

बुरे मित्रों को वल्लुवर ने कटु  आलोचना की है।

खोना-लेना ,वेश्या और चोर ,कर्म एक  और कथन एक का संपर्क,

छोडना   न   छोड़ना , आदि शब्द प्रयोग में वल्लुवर ने शब्दार्थ अलंकार का विशेष प्रयोग करके

 धोखा खानेवाले और धोखा करनेवाले दोनों  से  जागृत रहने की  प्रेरणा दी है।

लासरस  नामक  अँगरेज़  ने कहा है कि  वल्लुवर ने ध्वनि,शब्द ,का  उचित प्रयोग करके
संसार को भाषा प्रयोग  की सूझ दी है।


परिमल अलकर असंगति  के बारे में वल्लुवर के विचार को तीन भागों में
  बांटने के बजाय तीन अध्याय में तीन शीर्षकों में प्रकट किया है।

मित्र  की खोज,बुरा मित्र,असंगत-दुर्संगत  आदि तिरुवल्लुवर का संकेत हैं।

बुरा मित्र यह सिखा देता है --दूसरों से मित्रता बनाना या नहीं।

बुरे मित्र को अंकुर में ही पहचानना चाहिए।

उनके सन्देश की रीति ऐसी है  जैसे एक पिता  ने पुत्र को समझाया है।

जो शत्रु है वह बाहरी दृष्टि  से  मित्र का व्यवहार करेगा।

मन से वह छल करेगा।
यह वल्लुवर के विचार का परिमेललकर की व्याख्या है।

देवनेयप्पावानर   की व्याख्या है-----सचमुच  वे दुश्मन है।
वे अनुकूल अवसर तक मित्रता का मिथ्या -अभिनय करते हैं।
बाह्य-अभिनय  मित्रता  दिखाना है,
अहम से असंगति करते हैं।यह  बुरे मित्रों का एक वर्ग है.

दिल से मित्रता न करने का मतलब है ,
वे अवसर पाकर हमारा नाश कर देंगे।

वे गर्म किये हुए लोहे को पीटकर तेज़ करने तैयार कर रहे हैं।

वे मित्रता के अभिनय से हमें गर्म लोहा पीटने के पत्थर के सामान हमारा उपयोग करेंगे।

वल्लुवर के शब्द धनुष से निकलनेवाले तीर के सामान निकलते हैं।

वे कहते है---धनुष  पहले झुकता है,फिर उससे तेज़ बाण निकलता है।

वैसे ही दुश्मन का मिथ्या विनम्र व्यवहार पहले  अति विनम्र रहेगा।

अवसर पाकर ऐसे तीर के समान निकालेंगे ,

उससे हमारा बचना दुश्वार हो जाएगा।

बुरे संग से एक भले आदमी को बचाने वल्लुवर का उपमान है  धनुष-तीर।

बुरे लोग हाथ जोड़कर नमस्कार  करेंगे;

पर जोड़े हुए हाथ में तलवार हत्या करने छिपी रहेगी।

वे हथियार को अपने विनम्र बातों और आंसू से छिपा रखेंगे।

यह वल्लुवर का कथन पुराना है,
जिसे नाथूराम ने महात्मा गाँधी की ह्त्या के लिए प्रयोग किया था।

जान मर्डाक  नामक एक अँगरेज़  ने वल्लुवर के बारे में  कहा है----
तमिल्देश के निवासियों को धर्म-पथ  के 
उपदेशक कवियों में वल्लुवर का स्थान सर्वोपरी है।

भारतीय भाषाओं में और कोई वल्लुवर के स्थान को भर नहीं सकते।
तिरुक्कुरल  कविता नहीं है,पद्य नहीं है,  शोध ग्रन्थ है  वह धर्म-मार्ग का।

thiruvalluvar ,the AUTHOR OF KURAL,OCCUPIES THE FIRST PLACE AS A MORALIST
AMONG THE TAMILS.INDEED ,IT IS GENERALLY ACKNOWLEDGED THAT THERE IS NO TREATISE EQUAL TO THE KURAL IN ANY INDIAN LANGUAGE.