नालडियार में वल्लुवर के समर्थन- सा एक पद है===
घृणा का कार्य ,बुरा कार्य ,खून आदि मित्र करने पर भी
उसकी रक्षा करेंगे और चाहेंगे ;
जितना भी वे घृणा करें,सहकर भी साथ रहेंगे;
यारी नहीं छोड़ेंगे;
साथ न छोड़ेंगे;
यही मित्रता का पुरातन लक्षण है।
मित्रता की प्राचीनता को वल्लुवर ने ऊंचा उठाकर कहा है---
मित्र को अपने मित्र की जान लेने का अधिकार भी है।
जान लेने के कार्य में मित्र लगने पर भी मित्रता न छोड़ेंगे।
हमारे हाथ हमारी आँखों को चुभता है तो दुःख होगा ही।
उस हाथ को हम काटते नहीं;वैसे ही दोस्त बुरा करने पर भी
उसे घृणा न करके गले लगाना मित्रता है।
सच्ची मित्रता उनमें नहीं है,
जो नाच-गान,खाना,पंचेद्रियों के सुख के लिए
अपराध करने में साथ देता है।
नीच कार्य में साथ देने को हम मित्रता समझ लेते है।
यह तो गलत धारणा है।
समाज को बिगाड देने वाली दोस्ती में
आदर्श फ़र्ज़ और बढ़िया कला भी नष्ट हो जाएगा।
वह संकुचित मित्रता नफरत के योग्य है।
बराई में साथ देने को मित्रता समझना
मित्रता का लक्षण नहीं है।
वललूवर ने कहा है ---बाह्य-हंसी की मित्रता मित्रता नहीं है;
आतंरिक हंसी की मित्रता ही मित्रता है।
वल्लुवर कहते हैं कि गुण -दोष ,खानदान,नाता-रिश्ता आदि
पहचानकर ही एक व्यक्ति को मित्र बनाना
सर्वोत्तम है।
वलूवर का कुरल ----गुण खोजो;दोष खोजो; उनमें ज्यादा जो है,
उसे खोजो;फिर उसे अपनाओ.
यह कुरल अच्छी मित्रता के लिए मात्र नहीं ,
योग्य वर-वधु की तलाश केलिए भी मार्ग दिखाता है।
मित्र अन्याय या कुकर्म करें तो उसको कठोरता दिखाकर
सुधारना या ठीक मार्ग पर लाना मित्र -धर्म है।
एक कहावत है -अपने प्रिय जन रुलायेंगे;अन्य हंसाएंगे;
ये ही अपने या पराये का अंतर है।
घृणा का कार्य ,बुरा कार्य ,खून आदि मित्र करने पर भी
उसकी रक्षा करेंगे और चाहेंगे ;
जितना भी वे घृणा करें,सहकर भी साथ रहेंगे;
यारी नहीं छोड़ेंगे;
साथ न छोड़ेंगे;
यही मित्रता का पुरातन लक्षण है।
मित्रता की प्राचीनता को वल्लुवर ने ऊंचा उठाकर कहा है---
मित्र को अपने मित्र की जान लेने का अधिकार भी है।
जान लेने के कार्य में मित्र लगने पर भी मित्रता न छोड़ेंगे।
हमारे हाथ हमारी आँखों को चुभता है तो दुःख होगा ही।
उस हाथ को हम काटते नहीं;वैसे ही दोस्त बुरा करने पर भी
उसे घृणा न करके गले लगाना मित्रता है।
सच्ची मित्रता उनमें नहीं है,
जो नाच-गान,खाना,पंचेद्रियों के सुख के लिए
अपराध करने में साथ देता है।
नीच कार्य में साथ देने को हम मित्रता समझ लेते है।
यह तो गलत धारणा है।
समाज को बिगाड देने वाली दोस्ती में
आदर्श फ़र्ज़ और बढ़िया कला भी नष्ट हो जाएगा।
वह संकुचित मित्रता नफरत के योग्य है।
बराई में साथ देने को मित्रता समझना
मित्रता का लक्षण नहीं है।
वललूवर ने कहा है ---बाह्य-हंसी की मित्रता मित्रता नहीं है;
आतंरिक हंसी की मित्रता ही मित्रता है।
वल्लुवर कहते हैं कि गुण -दोष ,खानदान,नाता-रिश्ता आदि
पहचानकर ही एक व्यक्ति को मित्र बनाना
सर्वोत्तम है।
वलूवर का कुरल ----गुण खोजो;दोष खोजो; उनमें ज्यादा जो है,
उसे खोजो;फिर उसे अपनाओ.
यह कुरल अच्छी मित्रता के लिए मात्र नहीं ,
योग्य वर-वधु की तलाश केलिए भी मार्ग दिखाता है।
मित्र अन्याय या कुकर्म करें तो उसको कठोरता दिखाकर
सुधारना या ठीक मार्ग पर लाना मित्र -धर्म है।
एक कहावत है -अपने प्रिय जन रुलायेंगे;अन्य हंसाएंगे;
ये ही अपने या पराये का अंतर है।
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