Tuesday, June 12, 2012

अर्द्धांगिनी--7

गृहस्थ  जीवन  की विशेषता  का दूसरा प्रमुख स्थान  संतान-भाग्य है।

संतान-भाग्य  सुपत्नी पर ही मिलता है।

यां अतुलनीय अपूर्व काम है।

 वल्लुवर गुहस्थ-शास्त्र में इसे ऊंचा शिखर मानते हैं।

डाक्टर मीनाक्षी सुन्दरानार

दोस्त और पत्नी दोनों को सर्वोच्च स्थान मानते हैं।

वल्लुवर ने संतान-भाग्य शीर्षक ही दिया है।
लेकिन परिमेलालाकर,मानक कुड़वार ,जी।यू .पोप  ने संकुचित

 अर्थ में पुत्र जन्म देना बताया है।
यह तो मूल-अर्थ को बदलने का काम है।

और इसमें पुत्र  को जन्म देना  बताया है।
।तब पुत्री को जन्म देना अलग है क्या/?
यह तो चिंताजनक बात और व्याख्या है।

 संतान-भाग्य पुत्र -पुत्री का आम शब्द है.
संतान भाग्य मनुष्य का मूल्य बढाता है।
मनुष्य जन्म के  सोलह भाग्य बताते हैं।

यश, शिक्षा,   बल,  विजय,   सुसंतान ,   स्वर्ण,  ज्ञान,   सुन्दर,   श्रेष्ठ ,  जवानी, साहस,
दीर्घ-आयु,    सौभाग्य,   नीरोग,  भोग आदि।


इसमें संतान शब्द  में " सु  " उपसर्ग जोड़ा है।
वल्लुवर भी सन्तान भाग्य ही बताया है।

वल्लुवर ने अपने कुरल में  कहा--
-हमें प्राप्त करने के लिए संतान से अपूर्व और दुर्लभ चीज कुछ नहीं है।

पेरुमवटरुल  यामारिवतिल्ले  अरिवरिन्त  मक्कट   पेरल्ल  पिर .(कुरल)


हम  क्यों पुत्र चाहते है?
कुल-वृद्धि के लिए,
संसार की रीत चलने के लिए,
प्राकृतिक सहज व्यवस्था के  लिए,

अपने खानदानी धंधा बढ़ने के लिए,
सहायता के लिए,
बुढापे में हमारी सहायता और सेवा के लिए,

हमारे  देहांत के बाद अपने नाम से धर्म -कार्य चलाने के लिए

 संतान -भाग्य की जरूरत है।

g.u.popoe---AMONG ALL THE BENEFITS THAT MAY BE REQUIRED ,WE KNOW GREATER
BENEFIT THAN THE ACQUISTION OF INTELLIGENT CHILDREN.

THERE IS NO GREATER REWARD THAN HAVING CHILDREN WHO ARE EAGER TO LEARN.

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