विलम्बिनागनार नामक कवि ने कहा ---आँखों से बढ़िया अंग नहीं है।
पति के रिश्तों से पवित्र और कोई नहीं;
धर्म मार्ग से बड़ी चीज़ कोई नहीं है;
माँ के समान आदरणीय कोई ईश्वर नहीं है।
tamil:
कन्निर सिरंत उरुप्पिललै कोंडानीन तुन्नीय केलिर पिरारिल्लै मक्कलिन
ओन्मैय वाय्च चान्र पोरुलिल्लाई ईंरालोडू येन्नक कडवुलुम इल्लै ..
इस कवि से भी बड़ी बात संत वल्लुवर ने कहा है--
माँ की भूख मिटाने के लिए भी ऐसा कर्म मत करो जिससे बड़े लोगों की निंदा का पात्र बने।
कुरल: ईन्राल पसी कानबा नायिनुंच सेय्यर्क चान्रोर पलिक्कुम विनै .
DO NOT DO UNDIGNIFIED THINGS EVEN WHEN DIRE CIRCUMSTANCES.
कर्म की पवित्रता को ही वल्लुवर श्रेष्ठ मानते हैं।
दूसरों को रुलाकर जो चीज़ें अपनाते हैं ,वे चीज़ें अपने को रुलाएगी।सद्कर्म पहले हानि दिलाने पर भी बाद में लाभ ही लाभ दिलाएगा।
अलाक्कोंडवेल्ला मलप्पो मिलप्पिनुम पिर पयक्कुनर पालवै .
G.U.POPE----ALL THAT HAS 4BEEN OBTAINED WITH TEARS ( TO THE VICTIM )WILL DEPART WITH TEARS(TO HIMSRLF);BUT WHAT HAS BEEN BY FAIR MEANS;THOUGH WITH LOSS AT FIRST,WILL AFTERWARDS YIELD FRUIT.
दो ही चरण में वल्लुवर ने इसकी व्याख्या की है।
हमारे सब कर्म कर्म नहीं है; वल्लुव ने कर्म शुद्धता ,कर्म-कौशल,कर्म-के किस्म आदि तीन भागों में अध्याय लिखा है।जो भी कर्म करें ,उसे सुचारू रूप से करना चाहिए।ऐसा काम करना नहीं चाहिए,जिसमे थोडा कमी हो।
पवित्र काम करने के लिए कर्म में दृढ़ता और साहस की अत्यंत आवश्यकता है।मानसिक दृढ़ता के अभाव में
पवित्र काम नहीं कर सकते।
वल्लुवर ने कहा ----कर्म करने में पवित्रता करनेवाले की मानसिक दृढ ता निर्भर है।
THE DETERMINATION TO ACT IS A REFLECTION OF ONE'S,FRAME OF MIND.
पति के रिश्तों से पवित्र और कोई नहीं;
धर्म मार्ग से बड़ी चीज़ कोई नहीं है;
माँ के समान आदरणीय कोई ईश्वर नहीं है।
tamil:
कन्निर सिरंत उरुप्पिललै कोंडानीन तुन्नीय केलिर पिरारिल्लै मक्कलिन
ओन्मैय वाय्च चान्र पोरुलिल्लाई ईंरालोडू येन्नक कडवुलुम इल्लै ..
इस कवि से भी बड़ी बात संत वल्लुवर ने कहा है--
माँ की भूख मिटाने के लिए भी ऐसा कर्म मत करो जिससे बड़े लोगों की निंदा का पात्र बने।
कुरल: ईन्राल पसी कानबा नायिनुंच सेय्यर्क चान्रोर पलिक्कुम विनै .
DO NOT DO UNDIGNIFIED THINGS EVEN WHEN DIRE CIRCUMSTANCES.
कर्म की पवित्रता को ही वल्लुवर श्रेष्ठ मानते हैं।
दूसरों को रुलाकर जो चीज़ें अपनाते हैं ,वे चीज़ें अपने को रुलाएगी।सद्कर्म पहले हानि दिलाने पर भी बाद में लाभ ही लाभ दिलाएगा।
अलाक्कोंडवेल्ला मलप्पो मिलप्पिनुम पिर पयक्कुनर पालवै .
G.U.POPE----ALL THAT HAS 4BEEN OBTAINED WITH TEARS ( TO THE VICTIM )WILL DEPART WITH TEARS(TO HIMSRLF);BUT WHAT HAS BEEN BY FAIR MEANS;THOUGH WITH LOSS AT FIRST,WILL AFTERWARDS YIELD FRUIT.
दो ही चरण में वल्लुवर ने इसकी व्याख्या की है।
हमारे सब कर्म कर्म नहीं है; वल्लुव ने कर्म शुद्धता ,कर्म-कौशल,कर्म-के किस्म आदि तीन भागों में अध्याय लिखा है।जो भी कर्म करें ,उसे सुचारू रूप से करना चाहिए।ऐसा काम करना नहीं चाहिए,जिसमे थोडा कमी हो।
पवित्र काम करने के लिए कर्म में दृढ़ता और साहस की अत्यंत आवश्यकता है।मानसिक दृढ़ता के अभाव में
पवित्र काम नहीं कर सकते।
वल्लुवर ने कहा ----कर्म करने में पवित्रता करनेवाले की मानसिक दृढ ता निर्भर है।
THE DETERMINATION TO ACT IS A REFLECTION OF ONE'S,FRAME OF MIND.
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