Wednesday, June 6, 2012

dostiमित्रता -रिश्ता 6

मणक़कुडवर  जैनाचार्य  थे।

परिमेललकर  अपने तिरुक्कुरळ  विवेचन में
जिसे अंतिम कुरल में लिखा ,
उसे मणककुडवर  ने   पहले कुरल में रखा है।


चतुर सब कुछ प्राप्त भाग्यवान है तो
मूर्ख  अपने पास सब कुछ होने पर  भी
 नहीं  के बराबर के हैं।

इस  तिरुक्कुरल को मणककुडवर  ने पहले स्थान दिया है;
लेकिन परिमेलअलकर  ने अंतिम स्थान दिया है।
परिमेलअलकर ने वल्लुवर के मूल कुरल के शब्दों को बदला भी है।
यह तो कवि  के प्रति अन्याय भी है।

जिसने  कभी किसी की मदद नहीं की,
उसने हमारी मदद की है तो उस मदद की  तुलना
 जग और आसमान  की बराबरी का नहीं होगी।वह तो  अपूर्व है।

हमने जिसकी मदद नहीं की,उसने हमारी मदद की है तो
वह अपूर्व है।
संसार और आसमान से भी उसकी तुलना नहीं की जा सकती.

मूल कुरल को विच्छेद करना अक्षम गलती है।

डाक्टर पोप ने अपने तिरुक्कुरल के अंग्रेजी अनुवाद में
 अंग-शास्त्र  के नाम से  74 अध्याय से 95 अध्याय तकदिये हैं।
इनमें दोस्ती के पांच भाग भी सम्मिलित हैं।
मनककुडवर,जिन्होंने तिरुक्कुरल का पहला विवेचनात्मक  ग्रन्थ लिखा है,

इस संपूर्ण भाग को मित्र शास्त्र का नाम ही दिया है।

बुरे मित्र की चाल पर वल्लुवर का क्रोध एकदम बढ़ जाता है।

बुरे मित्र अपने कार्य की सफलता तक साथ रहते हैं,
अपने कार्य साध करके मित्रता से हाथ धो देते हैं।
ऐसे मित्र की मित्र छोड़ देने में ही भलाई है।
इसमें बुरे मित्र को अतुलनीय कहा है।
इसका मतलब है स्वार्थता में उनके समान  वे ही है।

बुरे मित्र जो स्वार्थ सिद्ध करने में सफल है,

वे रंडी और डाकू के बराबर है।

ये बुरे मित्र मित्रता की गहराई नहीं जानते।

वे लेने में समर्थ हैं।
वे जितना अधिक लेते हैं ,उतना ही मित्रता निभाते हैं।
the motive of opportunists who want your friendship is the same as that of call girls and thieves .
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जिसके कर्म और कथन में फरक हैं ,

उनकी मित्रता जाग्रत  और स्वस्थ दोनों अवस्था  में दुखप्रद है।
मनककुडवर ने भी वल्लुवर के समर्थन में कहा है--

जिसके करम  एक और कथन एक होताहै ,
उनसे मित्र रखना स्वप्न में भी दुखदायक  होता है।
doctor j.lasaras-----
IT IS A STANDING REBUKE TO THE MODERN TAMIL.THIRUVALLUVAR HAS CLEARLY PROVED THE RICHENSS MELODY AND POWER OF HIS MOTHER TONGUE.THE KURAL
CANNOT BE IMPROVED NOR ITS PLANMODE MORE PERFECT.IT IS A PERFECT MOSAIC IN ITSELF.

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