Saturday, June 9, 2012

dostiमित्रता -रिश्ता 13

हमको बढ़िया ग्रन्थ सुखप्रद और ज्ञानप्रद है।
संसार में अति प्रिय वही ग्रन्थ ;वैसे ही है मनपसंद विषय मित्रता।
वलूवर का ग्रन्थ एक जाति  या राष्ट्र के लिए नहीं,
वह सारे संसार के मार्ग दर्शक ग्रन्थ है।
यह बात रूस के डा0.,
अलेक्सान्दोर ने उल्लेख किया है।
THIRUKKURAL,IS AN INTEGRAL HOMOGENEOUS WORK OF ART,THE AUTHOR OF WHICH ADDRESSES NEITHER KING,SUBJECT NOR PRIEST BUT ME.AND HE DOES NOT ADDRESS MAN EITHER AS LAW GIVEN OR PROPHET BUT AS WELL-WISHER,TEACHER AND FRIEND.HE NEITHER PROPHESIED NOR SPOKE IN HINTS AND RIDDLES;HIS WORDS CONTAINED NO SHADE OF DOUBT ,HE HAD FULL CONVICTION OF THE TRUTH OF WHAT HE SAID,BOTH AS AN ARTIST AND THINKER.THE KURAL OF THIRUVALLUVAR
IS RIGHTLY CONSIDERED AS CHIEF DOEUVREOF INDIAN AND WORLD LITERATURE.THIS IS DUE NOT ONLY TO THE GREATARTISTIC MERIT OF THE WORK,BUT ALSO,AND THIS IS NOST IMPORTANT,TO THE LOFTY HUMAN IDEAS PERMEATING IT,WHICH ARE EQUALLY PRECIOUS TO THE PEOPLE ALL OVER THE WORLD,OF ALL PERIODS AND COUNTRIES.

तिरुवल्लुवर ने  अपने ग्रन्थ  राजा केलिए नहीं,
धार्मिक आचार्यों केलिए नहीं,भारतीयों केलिए नहीं लिखा है।

उनके  ग्रन्थ कानूनी नहीं है।उसमें लोकोक्ति नहीं है;टिपण्णी नहीं है।
बड़े विचारक और कलाकार बनकर उन्होंने कुरल लिखा है।
सभी काल और सभी देश के लिए सार्वजनिक ग्रन्थ के रूप में  तिरुक्कुरल लिखा है।
 दूसरे के प्रति जो मित्रता है,वह स्थायी और टिकाऊ है।
दोनों के मनों की मिश्रित भावना है दोस्ती।

मित्र को निकट संपर्क की ज़रुरत नहीं है।
मोह भावना ही मित्रता का लक्षण है।
 एक दुसरे से मिलने की  ज़रुरत नहीं है।
संघ  काल में प्सिरान्थैयार और कोप्पेरुन्चोलन की  मित्रता  ऐसी  है।
अंतिम घड़ी में अपने दोस्त को जिसको पहले देखा तक नहीं है,
उनकेलिए   अपने पास ही कब्रिस्थान आरक्षित किया था।

दोस्ती के तीन कारण है।
1.मिलना-जुलना,संपर्क में आना,एकता का भाव।
इनमें एक हीभाव होना प्रधान अंग है।

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