Sunday, June 24, 2012

14,mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++



कर्म को कार्यान्वित करने के लिए और एक ख़ास बात पर जोर देते  हैं  वल्लुवर महाशय।
ज़रा भी देरी न करके अपने दुश्मन को भी मित्र बना लेना चाहिए।अर्थात ,दोस्त को  हित करने से ज्यादा  दुश्मन के दुश्मन को भला करके जल्दी ही उसे  मित्र  बना लेना।

kural: नट्टार्क्कुम नल्ल  सेयलिन  विरैन्तते    ओट्टारै  योत्टिक कोलल।

जो सच्चे और अच्छे मित्र हैं,वे हमें छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे।उनकी दोस्ती तो दीर्घ काल की हैं।उनकी भलाई करने में विलम्ब करना ठीक ही है।
 लेकिन दुश्मन  के  दुश्मन को तुरंत अपने साथ न मिला देंगे तो वे दुश्मन के वश में पड  सकते हैं।अतः फौरन उसे दोस्त बना लेने में ही भला है।हमसे जो असंबंधित हैं, उनसे सम्बन्ध बना लेने में होशियारी है।

नान-मणि कडिकै    नामक ग्रन्थ में  कहते हैं  कि  कोई  भी सम्बन्ध जिस के साथ नहीं हैं,उनसे सम्बन्ध बना लेना सुखप्रद है।वल्लुवर के विचार इनसे सम्बंधित है।

ONE SHOULD RATHER HASTEN TO SECURE THE ALLIANCE OF THE FOES (OF ONE"SFOES)THAN PERFORM GOOD OFFICES TO ONE'S FRIENDS.

कर्म के प्रकार में यह कितना ऊंचा विचार है।प्राचीन कहावत है"-"यथा राजा तथा प्रजा;"
"उसका  बदला  नया  कहावत है ---  " यथा मंत्री तथा प्रजा"'-
-सामी चिदम्बरानार  इसी को इस जमाने के अनुकूल मानते हैं।



जैसे भी सरकार बने ,उसमें ज़रूर मंत्री को स्थान होता है।
वे   ही  देश के भले-बुरे की  जिम्मेदारी है।
मंत्री बुद्धिहीनहो , मंत्री में तटस्थता न हो तो  देश आगे नहीं बढ़ सकता। 
प्रशासन ठीक तरह से चलेगा नहीं।






जिस मंत्री में क्षमता और योग्यता नहीं होती ,उसके कारण देश के विकास  और हक़ में रुकावटें होंगी।अतः योग्य मन्त्र को चुनना नागरिक का कर्तव्य  होता है।
जिम्मेदारी राजा और प्रजा दोनों  को  इस बात को समझ लेना चाहिए।
एक  राजा को तिरुक्कुरल के मंत्री-शास्त्र का अध्ययन करना, अन्य कुरलों  को   पढ़ना  आवश्यक है।

विशेष रूप से आज के  राजनैतिज्ञों  के लिए तो ज़रूरी है।मंत्री के पद की सभी अनिवार्य बातें तिरुक्कुरल में हैं।मंत्री -सम्बंधित  100 कुरालों को रटकर याद रखना भी चाहिये।. जो ऐसा करते हैं,वे कभी भूल नहीं करेंगे।वे जनता के आदर का पात्र बनेंगे।

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