पति-पत्नी दोनों एक दूसरे पर निर्भर है।
बिना एक के एक अकेले कुछ नहीं कर सकते।
नाम पा नहीं सकते।
वैसे ही एक नाम पाने पर भी उसमे दूसरे का हाथ जरूर रहेगा।
वह यश उनके जीवन का शेष रूप ही होगा।
एक पत्नी बिना बताये ही पति के चेहरे के भाव समझकर आये हुए
अतिथि का आदर सत्कार करेगी।
अपने धन-दौलत के हिफाजत पर पत्नी साथ देगी।
ऐसी पत्नी प्राप्त करने पर पति अति भाग्यवान होगा।
ऐसी पत्नी की प्रशंसा करना कुरल का काम है।
नालाडि यार ग्रन्थ में भी पत्नी की प्रशंसा हुई है।
वल्लुवर ने जीवन के हित में, पत्नी को जीवन की सहायिका बताई है।
पति-पत्नी दोनों का जीवन दोस्त-सा होना चाहिए।
एक पुरुष के शिष्ट जीवन के लिए,अच्छी चाल-चलन के लिए पत्नी का योगदान
आवश्यक है।दोनों आपस में न भिड़कर पत्नी के कहे-किये का पालन करके
आगे बढ़ने में बुद्धिमानी है।
तिरुवल्लुवर के तिरुक्कुरल के दामपत्य जीवन के मार्ग
दर्शक दोहों को एक संगीत स्वर बनाने में तन्जै रामैया ने बड़ी क्रान्ति की है।
यह नया प्रयत्न 1960 में हुआ।
कोयम्बत्तूर के संगीत विद्वान् सु।को।कृष्णामूर्ति ने तिरुक्कुरल अमृत का संगीत बद्ध किया।इस ग्रन्थ को बनाकर रामैयादास को बड़ा आत्म-संतोष हुआ।इस काम में डाक्टर म.वरदाराजनार,संगीतज्ञ म.म.दंडपानी देसीकर ने उनको प्रोत्साहित किया।श्री रामदास हराहराप्रिया राग में आदिताल में तिरुक्कुरल को संगीत का रूप दिया।
प्यार औरधर्म होने पर गृहस्थ जीवन गुणी -और फायदेमंद रहेगा --इस कुरल को पल्लवी बनाया।
अनुपल्लवी के रूप में सुख में भीगकर दो शरीर एक जान में जुड़कर बढ़ा ,दाम्पत्य जीवन
शारीरिक सुन्दर तो अस्थायी है ,दिल के सद्विचार ही है स्थायी '
कर्तव्य मार्ग ,निष्कपट दिल,एकसाथ मिला जीवन,प्यार और धर्म भरा जीवन .
संगीत द्वारा तिरुक्कुरल अमृत को सुन ने में आनंदानुभूति होगी।यह गृहस्थ जीवन को समझकर आगे बढ़ने में साथ देता है।
pallavi :
अंबूम अरनुम उडैत्तायिन इल्वाल्क्कई पणबुम पयनुम अतु।
अनुपल्लावी
इन्बत्तिले सिरन्तु इरंडरवे कलंत ईरुदलुम ओरुयिराय्क इनैन्ततिनाल वलरन्त (अंबूम)
चरणं:
उडल मिकू अलाकेल्लाम उतिरियंरो
कदमैयिन वाल्क्कैयैक कनिप्पतंरो
मुदुकू:
कल्लामिनरी उल्लं ऑनरी उदाविदक कनिन्तुलकिल निरैंत पुकल निलाविदा।
बिना एक के एक अकेले कुछ नहीं कर सकते।
नाम पा नहीं सकते।
वैसे ही एक नाम पाने पर भी उसमे दूसरे का हाथ जरूर रहेगा।
वह यश उनके जीवन का शेष रूप ही होगा।
एक पत्नी बिना बताये ही पति के चेहरे के भाव समझकर आये हुए
अतिथि का आदर सत्कार करेगी।
अपने धन-दौलत के हिफाजत पर पत्नी साथ देगी।
ऐसी पत्नी प्राप्त करने पर पति अति भाग्यवान होगा।
ऐसी पत्नी की प्रशंसा करना कुरल का काम है।
नालाडि यार ग्रन्थ में भी पत्नी की प्रशंसा हुई है।
वल्लुवर ने जीवन के हित में, पत्नी को जीवन की सहायिका बताई है।
पति-पत्नी दोनों का जीवन दोस्त-सा होना चाहिए।
एक पुरुष के शिष्ट जीवन के लिए,अच्छी चाल-चलन के लिए पत्नी का योगदान
आवश्यक है।दोनों आपस में न भिड़कर पत्नी के कहे-किये का पालन करके
आगे बढ़ने में बुद्धिमानी है।
तिरुवल्लुवर के तिरुक्कुरल के दामपत्य जीवन के मार्ग
दर्शक दोहों को एक संगीत स्वर बनाने में तन्जै रामैया ने बड़ी क्रान्ति की है।
यह नया प्रयत्न 1960 में हुआ।
कोयम्बत्तूर के संगीत विद्वान् सु।को।कृष्णामूर्ति ने तिरुक्कुरल अमृत का संगीत बद्ध किया।इस ग्रन्थ को बनाकर रामैयादास को बड़ा आत्म-संतोष हुआ।इस काम में डाक्टर म.वरदाराजनार,संगीतज्ञ म.म.दंडपानी देसीकर ने उनको प्रोत्साहित किया।श्री रामदास हराहराप्रिया राग में आदिताल में तिरुक्कुरल को संगीत का रूप दिया।
प्यार औरधर्म होने पर गृहस्थ जीवन गुणी -और फायदेमंद रहेगा --इस कुरल को पल्लवी बनाया।
अनुपल्लवी के रूप में सुख में भीगकर दो शरीर एक जान में जुड़कर बढ़ा ,दाम्पत्य जीवन
शारीरिक सुन्दर तो अस्थायी है ,दिल के सद्विचार ही है स्थायी '
कर्तव्य मार्ग ,निष्कपट दिल,एकसाथ मिला जीवन,प्यार और धर्म भरा जीवन .
संगीत द्वारा तिरुक्कुरल अमृत को सुन ने में आनंदानुभूति होगी।यह गृहस्थ जीवन को समझकर आगे बढ़ने में साथ देता है।
pallavi :
अंबूम अरनुम उडैत्तायिन इल्वाल्क्कई पणबुम पयनुम अतु।
अनुपल्लावी
इन्बत्तिले सिरन्तु इरंडरवे कलंत ईरुदलुम ओरुयिराय्क इनैन्ततिनाल वलरन्त (अंबूम)
चरणं:
उडल मिकू अलाकेल्लाम उतिरियंरो
कदमैयिन वाल्क्कैयैक कनिप्पतंरो
मुदुकू:
कल्लामिनरी उल्लं ऑनरी उदाविदक कनिन्तुलकिल निरैंत पुकल निलाविदा।
No comments:
Post a Comment