Thursday, June 7, 2012

sakhaaमित्रता -रिश्ता--7

बुरे मित्रों को वल्लुवर ने कटु  आलोचना की है।

खोना-लेना ,वेश्या और चोर ,कर्म एक  और कथन एक का संपर्क,

छोडना   न   छोड़ना , आदि शब्द प्रयोग में वल्लुवर ने शब्दार्थ अलंकार का विशेष प्रयोग करके

 धोखा खानेवाले और धोखा करनेवाले दोनों  से  जागृत रहने की  प्रेरणा दी है।

लासरस  नामक  अँगरेज़  ने कहा है कि  वल्लुवर ने ध्वनि,शब्द ,का  उचित प्रयोग करके
संसार को भाषा प्रयोग  की सूझ दी है।


परिमल अलकर असंगति  के बारे में वल्लुवर के विचार को तीन भागों में
  बांटने के बजाय तीन अध्याय में तीन शीर्षकों में प्रकट किया है।

मित्र  की खोज,बुरा मित्र,असंगत-दुर्संगत  आदि तिरुवल्लुवर का संकेत हैं।

बुरा मित्र यह सिखा देता है --दूसरों से मित्रता बनाना या नहीं।

बुरे मित्र को अंकुर में ही पहचानना चाहिए।

उनके सन्देश की रीति ऐसी है  जैसे एक पिता  ने पुत्र को समझाया है।

जो शत्रु है वह बाहरी दृष्टि  से  मित्र का व्यवहार करेगा।

मन से वह छल करेगा।
यह वल्लुवर के विचार का परिमेललकर की व्याख्या है।

देवनेयप्पावानर   की व्याख्या है-----सचमुच  वे दुश्मन है।
वे अनुकूल अवसर तक मित्रता का मिथ्या -अभिनय करते हैं।
बाह्य-अभिनय  मित्रता  दिखाना है,
अहम से असंगति करते हैं।यह  बुरे मित्रों का एक वर्ग है.

दिल से मित्रता न करने का मतलब है ,
वे अवसर पाकर हमारा नाश कर देंगे।

वे गर्म किये हुए लोहे को पीटकर तेज़ करने तैयार कर रहे हैं।

वे मित्रता के अभिनय से हमें गर्म लोहा पीटने के पत्थर के सामान हमारा उपयोग करेंगे।

वल्लुवर के शब्द धनुष से निकलनेवाले तीर के सामान निकलते हैं।

वे कहते है---धनुष  पहले झुकता है,फिर उससे तेज़ बाण निकलता है।

वैसे ही दुश्मन का मिथ्या विनम्र व्यवहार पहले  अति विनम्र रहेगा।

अवसर पाकर ऐसे तीर के समान निकालेंगे ,

उससे हमारा बचना दुश्वार हो जाएगा।

बुरे संग से एक भले आदमी को बचाने वल्लुवर का उपमान है  धनुष-तीर।

बुरे लोग हाथ जोड़कर नमस्कार  करेंगे;

पर जोड़े हुए हाथ में तलवार हत्या करने छिपी रहेगी।

वे हथियार को अपने विनम्र बातों और आंसू से छिपा रखेंगे।

यह वल्लुवर का कथन पुराना है,
जिसे नाथूराम ने महात्मा गाँधी की ह्त्या के लिए प्रयोग किया था।

जान मर्डाक  नामक एक अँगरेज़  ने वल्लुवर के बारे में  कहा है----
तमिल्देश के निवासियों को धर्म-पथ  के 
उपदेशक कवियों में वल्लुवर का स्थान सर्वोपरी है।

भारतीय भाषाओं में और कोई वल्लुवर के स्थान को भर नहीं सकते।
तिरुक्कुरल  कविता नहीं है,पद्य नहीं है,  शोध ग्रन्थ है  वह धर्म-मार्ग का।

thiruvalluvar ,the AUTHOR OF KURAL,OCCUPIES THE FIRST PLACE AS A MORALIST
AMONG THE TAMILS.INDEED ,IT IS GENERALLY ACKNOWLEDGED THAT THERE IS NO TREATISE EQUAL TO THE KURAL IN ANY INDIAN LANGUAGE.





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