Saturday, November 30, 2019

इतनी शक्ति हमें देना

ईश्वर  वंदना,
इतनी शक्ति  हमें  देना।
ईश्वरीय  स्मरण में
मन लग जाएँ।
हर कार्य  में
ईमानदारी  चमक जाएँ।
सत्य के फूल  खिल जाएँ।
धर्म  की महक मोहित  करें।
जितेन्द्र बन जीत सके संसार।
माया महा ठगनी से बच सकें।
संसार  में सुखी जीवन जीने
सब को सुबुद्धि मिलें।
पापियों  को भय दिखाना।
धर्म  के पक्ष के लोगों  को
खुश रखना,
असुरों  को वर देकर
 अवतार  न लेना।
खुद  कष्ट  न उठाना।
सीता का अग्निप्रवेश
सीता का त्याग
संतानों  से लड़ना
ईश्वरत्व करुणा  की शोभा नहीं।
भ्रष्टाचारियों को दंड  से बचाना।
अत्याचार की चरम सीमा  पर
अवतार लेना, भक्तों   को सताने
तेरे भक्तवत्सलता पर काला धब्बा।
क्षमा करना,  तेरी लीला सूक्ष्म  न जान
तेरी दी हुई  बुद्धि  से कर  रहा हूँ
विनम्र  प्रार्थना, उद्धार करना।
भक्तवत्सल  हो, दीनबंधु  हो।
अनाथ रक्षक हो, आश्रदाता।
मेरी सृष्टि  करता हो।
मैं  क्या माँगूँ।
जानता हूँ  सबहिं  नचावत  राम गोसाई।
हर हर शंकर , जय जय शंकर हर हर शंकर ।




Friday, November 29, 2019

परिवार

प्रणाम।  वणक्कम।
अनंतकृष्णन का।
शीर्षक : परिवार।
परमानंद
रिश्ते  के साथ
वास।
रक्षक
एक दूसरे का।
सहायक एक दूसरे का।
सुख दुख के सम भागी।
खून का रिश्ता।
सह उदर का रिश्ता।
रामायण में  भिन्न उदर।
पर भाइयों का प्रेम अभिन्न।
महाभारत पांडव के
भिन्न  पिता , पर प्रेम की कमी नहीं।
कौरव सौ,एक अंधे पिता।
पर
स्वभाव अच्छे  नहीं।
परिवार  में  प्रेम  ।
ईश्वर की देन।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

बंधन

प्रणाम। वणक्कम।
शीर्षक:  बंधन।
बंधन युक्त जग।
बंधन मुक्त जग कहाँ?
साधु-संत ईश्वर के बंधन  में।
भक्तों  के बंधन में ईश्वर।
 पदों  के बंधन  में  स्तुति।
मुख-स्तुति  के बंधन में  जनता।
जनता के बंधन में शासक।
घुटबंधन में  चुनाव जीत।
पैसे के बंधन  में  जग व्यवहार।
पाप के दंड भय से पुणय।
सुवर्ण  के बंधन  में शब्द।
स्वर्ण के बंधन में  नारी।
नारी के बंधन  में नर।
नर के बंधन  में  नारी।
प्रेम बंधन  में प्रेयसी।
शरीर के बंधन में तुलसीदास।
शरीर सुख का बंधन  छोडा तो
राम नाम का बंधन।
शरीर का बंधन
प्राण छोडा तो
राम  भी लाश का नाम।
बंधन  रहित  मानव का अंतिम रूप।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

करुण रस

प्रणाम। नमस्कार। वणक्कम।
 करुण  रस।
 ईश्वर  को कहते हैं
करुणा मूर्ति। करुणा सागर।
करुण भाव न तो
मानव जीवन पशु तुल्य।
ईश्वर  की करुणा  से
ईश्वरेत्तर  मनुष्य  जीवन।
दयालु और करुणामूर्ति में
मनुष्यता और ईश्वरत्व का अंतर।
किसी तत्काल प्रभाव से दया।
करुणा  मनोभाव।
एक उत्पन्न  एक सहज।
अनजान के दुख
देख,
दया।
ऐसा होगा सोचना  तो
 सहज करुण।
दया बाहरी।
करुणा  अंतःस्थापित।
दया मनुष्यत्व।
करुणा ईश्वरत्व।
 घायल शत्रु  देख
दया नहीं।
 घायल मित्र देख दया।
अतः मनुष्यत्व।
बगैर भेद  के करुणा।
महावीर,बुद्ध,महादेव करुणामूर्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

Thursday, November 28, 2019

मुक्ति

वणक्कम। प्रणाम।
 मुक्ति   शीर्षक।
प्रेरक है कुछ लिखने  का।
कुछ प्रशंसा पाने का।
कुछ नये आकर्षक
नये विषय प्रस्तुत  करने का
कैसे सांसारिक  बंधन से मुक्ति।
न प्यास से मुक्ति,न भूख से मुक्ति।
न रक्त संचार  से मुक्ति।
मुक्ति  के लिए करते हैं  प्रार्थना।
समाज  की भलाई  के लिए  सोचते हैं।
राष्ट्र  के भ्रष्टाचार  के बारे में,
शिक्षा की महँगा पर,प्याज के दाम पर।
कितना सोचते हैं?
मुक्ति  कहाँ?
मन की ज्वार भाटा।
मन का पंख फैलाकर आकाश तक
उड़ना,आकाश  पाताल तक
जानने का जिज्ञासा।
वेंटिलेटर में  डाक्टर  भेजने के बाद भी
एक महीने  तक तड़पनेवाला बूढ़ा  बूढी।
कैसी मुक्ति?
जब तक आशतब तक साँस।
हम न विवेकानंद हम न आदी शंकर।
न गणितज्ञ  रामानुजम।
ईश्वर के हिसाब  की जिंदगी।
पाँच  मिनट मन निश्चल  तो
तभी मुक्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन। (मतिनंत  )
29-11-19।
मुक्ति शब्द  पारिवारिक दल तो
चाहें बढती हैं, कैसे  मुक्ति।

Wednesday, November 27, 2019

घर परिवार

प्रणाम। वणक्कम।
 सब परिवार को नहीं जानते।
सम्मिलित परिवार  नहीं जानते।
परिवार  की सहनशीलता नहीं समझते।
बात बात  पर झगडा।
तलाक।
माता पिता के रहते
कितने ही बच्चे अनाथ।
घर हीन फुटपाथ के परिवार  अच्छे।
 खुली हँसी ,
 मीठी नींद।
पर  बडे घर,
निस्संतान दंपति।
तलाक  की बातें।
एक दुखी खामोशी।
संतानों  की शिक्षा की परेशानी।
तीन साल का बच्चा।
यल।के।जी दो  लाख।
घर एक करोड़,
 पर न जमीन
उनके अपनी ।
 न दीवार
 अपना।
त्रिशंकु  घर।
कमाते  अधिक।
पर  खर्च  कर्जा चुकाने काफ़ी नहीं।
घर का मैनटनन्स चार्ज
 स्कोयर फुट दस रुपये ।
 जिम स्विमिंग पुल,
विभिन्न मैदानी
 खेल के मैदान।
पर न समय
वहाँ  जाने का।
घर परिवार
 मिलकर खाना।
मिलकर जाना।
एकसाथ मंदिर  जाने,
परिवार  एक नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Tuesday, November 26, 2019

बदनाम

प्रणाम।
न जाने दोस्तों।
आज लिख रहा हूँ
कई दिनों  के बाद
लिख रहा हूँ।
हम हुए  बदनाम
 आखिर किसलिए?
सच बोले।
ईमानदार  से रहे।
कमाते किसी को
धोखा नहीं  किया।
फिर भी बदनाम।
किसलिए?
भ्रष्टाचारियों  के
मुखौटे  खोले।
दोस्त  न देखा,
रिश्ते  न देखा।
तटस्थ  रहा।
हमारे नेता  कामराज हार गए।
उनके बाद के नेता ,
लाखों  करोड़ों  के अधिपति।
हर वोट दो हज़ार।
 करोड़  पति जिताने
मतदाता तैयार।
सांसद बन
दल बदलने तैयार।
वोट के लिए  पैसा देना।
रीटैल व्यापार।
साँसद  बनकर ,
करोडों   के लिए
दल बदलना,
थोक व्यापार।
हम बदनाम  हुए।
आखिर  किसलिए?
राजनीति लिखना मना।
लोगों  को जगाना मना।
लिखो  तो प्रेम  पत्र लिखो।
नीलपरिधान बीच,
अधखुला अंग।
विरह वेदना,
प्रेम  मिलन
चुंबन  लिखना।
धड़कन तडप लिखना
कविता।
 गरीबों  की दशा।
भिखारी  की हालत
लिखना कविता।
हम हुए  बदनाम ।
आखिर  किसलिए?
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

प्रणाम।
न जाने दोस्तों।
आज लिख रहा हूँ
कई दिनों  के बाद
लिख रहा हूँ।
हम हुए  बदनाम
 आखिर किसलिए?
सच बोले।
ईमानदार  से रहे।
कमाते किसी को
धोखा नहीं  किया।
फिर भी बदनाम।
किसलिए?
भ्रष्टाचारियों  के
मुखौटे  खोले।
दोस्त  न देखा,
रिश्ते  न देखा।
तटस्थ  रहा।
हमारे नेता  कामराज हार गए।
उनके बाद के नेता ,
लाखों  करोड़ों  के अधिपति।
हर वोट दो हज़ार।
 करोड़  पति जिताने
मतदाता तैयार।
सांसद बन
दल बदलने तैयार।
वोट के लिए  पैसा देना।
रीटैल व्यापार।
साँसद  बनकर ,
करोडों   के लिए
दल बदलना,
थोक व्यापार।
हम बदनाम  हुए।
आखिर  किसलिए?
राजनीति लिखना मना।
लोगों  को जगाना मना।
लिखो  तो प्रेम  पत्र लिखो।
नीलपरिधान बीच,
अधखुला अंग।
विरह वेदना,
प्रेम  मिलन
चुंबन  लिखना।
धड़कन तडप लिखना
कविता।
 गरीबों  की दशा।
भिखारी  की हालत
लिखना कविता।
हम हुए  बदनाम ।
आखिर  किसलिए?
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।


मन

वणक्कम।
एल्लोरुक्कुम्।
प्रणाम।
सबको।
 शीर्षक  =मन।
मन चंचला।
रहीम ने कहा-
बूढे के पति लक्ष्मी
चंचला।
मन तो लक्ष्मी के विपरीत
जवानी में  अधिक  च॔चला।
दादी  माँ  ने कहा ,
दुर्गा  शक्ति शालिनी।
तब मामा ने कहा ---
हनुमान  महान बलवान।
नाना ने कहा - शिव।
गली में  गया तो
ईसा मसीह
आप के पाप मिटाने
रक्त बहाते हैं।
पापियों  आइए।
भक्ति  क्षेत्र में   मन डाँवाडोल।
पाठशाला  समाप्त
पिता  ने उच्च  शिक्षा  के लिए
एक विषय कहा तो
अध्यापक  ने दूसरा विषय।
दोस्तों  ने एक विषय।
विषय ज्ञान
 रहित नानी ने कहा
पडोसी को तुरंत
 नौकरी मिली
वही पढना।

भक्ति  में  चंचल।
पढाई  में चंचल।
पढने के माध्यम  में धंचल।
 जवान को लडकियों को
 देखकर चंचल।
जवान युवतियों  को
दूसरों  की साड़ियां।
आभूषण  देखकर चंचल।

 मन में  विचारों  की लहरें।
ज्वार  भाटा।
काबू में लाने
 योगा वर्ग गया तो
पतंजलि योग,
दत्त क्रिया योग।
और अनेक  योगा।
मन  सलाहें
  सुन सुन चंचल।
इतने बुढापा।
मन चंचल
 तन में  न शक्ति।
मन में  राम नाम।
मन शांत।
 तन शांत।
 सीता  ले जाकर
रावण चंचल।
सीता खोकर
पाकर राम चंचल।
 तब  मामूली मनुष्य
मन की चंचलता का
कैसे कर सकते बखान।

  स्वरचित स्वचिंतक
 यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

Sunday, November 24, 2019

सुख किसमें

प्रणाम।  वणक्कम।
परम सुख परमानंद ब्रह्मानंद
त्याग  में  या भोग में।
माया तजनेवाले ज्ञानी
परम सुख परमानंद ब्रह्मानंद की खोज में
आध्यात्मिक मार्ग अपनाता है।
शैतान के चंगुल  में
अस्थायी  आनंद  में  लौकिक भोगी।
आरंभ  से अंत तक ब्रह्मानंद  प्राप्त ज्ञानी
जीत लेता मन की चंचलता।
मन निश्चल  निश्छल तो
परमानंद।
अलौकिक  काया,
अति स्वस्थ
तन ,मन से ।
धन की तो उन्हें चिंता नहीं।
न शारीरिक भूख,
न  लौकिक  चाह।
न लोभ, न काम।
 माया / शैतान उन से अति दूर।
 नाम जपना  पर्याप्त।
 तुलसी , वाल्मीकि, भर्तृहरि
लौकिक  काम , क्रोध, लोभ तज
आज ईश्वर तुल्य  आराधनीय।
बार- बार याद  दिलाते हैं।
आगे अनुसरण आप पर निर्भर।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन।

Saturday, November 23, 2019

साहित्य

वणक्कम। प्रणाम।
  समाज  में  साहित्य
   संयम सिखाता नहीं,
जितेन्द्र  बनाता नहीं।
प्रेम एक लडके के प्रति।
प्रेम  एक लडकी के प्रति
इश्क के  लिए  कविता।
इश्क  न तो कविता  नहीं।
 नख सिक्ख वर्णन कविता।
तब तो नीति के दोहे
रचना , रटना  मुश्किल।
वही लड़का सिनेमा गीत
बगैर एक शब्द  राग ताल के दोष के
गाता और तालियाँ  पाता।
वही एक दोहे न रट सका
गाली और मार खाता।
भला से बुरा आसानी  से।
मच्छर  अधिक, मेंढक अधिक।
पर एक कोयल की आवाज़ सुन
मनुष्य  अपने सुध बुध खो जाता।
हानियाँ  संक्रामक  रोग।
हित तो स्थाई चंद  लोगों  का साधन।
 साहित्य  समाज  कल्याण  के लिए ।
कबीर  के दोहे  सुनिए।तो
उसका सही उपयोग  उसका पालन
हर कोई  करेगा तो समाज  कल्याण।
 जाति न पूछो साधु  की, पूछ लीजिए  ज्ञान।
सोचने पर जातिवाद  का समूल नष्ट।
बुरा जो देख न मैं  गया,तोबुरा न मिलिया कोय।
  तुम खुद  अपने कोपहचान लो।
ऐसा हर कोई  सोचकर अपने को सुधार लेगा तो
विश्व में  न रहेगा  कोई  बुरा।
साहित्य  संसार  की भलाई।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन। (मतिनंत)

यादें पुरानी

यादें  पुरानी।
नमस्ते।प्रणाम।
पुरानी यादें।
दो बातें  सिखाती :-
1ऐसा न करना है।
2.ऐसा ही करना है।
दो भाव मन में
1.हर्ष 2.दुख
 दो कर्म करने,
1. प्रोत्साहित 2।हतोत्साहित।
यादें  मीठी कड़वी।
चैन देनेवाली बेचैन करनेवाली।
मिलने में  मिलाने में
सुख प्रद दुख प्रद।
संतोषप्रद असंतोषप्रद।
मानवीय अमानुष।
मानव जीवन यादों  की बारात  में
डाँवा डोल।
अपनी प्रेमिका
दूसरे की पत्नी बन।
कमर में एक हाथ में  एक
पेट में  एक सामने निकलती तो
पुरानी  यादें दोनों  को
कितना कष्ट प्रद? वर्णनातीत।
स्वरचित स्वचिंतक
यस। अनंतकृष्णन। (मतिनंत)

परिवर्तन

प्रणाम।
परिवर्तन भगवान का
स्थाई नियम है।
अस्थायी   जगत में
मौसमी परिवर्तन।
पाषाण युग  से आज तक
कितने परिवर्तन।
सभ्यता  के विकास  में
गुण परिवर्तन।
विचार  परिवर्तन।
चिकित्सा  में  परिवर्तन।
जडी-बेटियों  की दवा।
कडुवी दवा।
अब मीठी गोलियाँ।
खेती  में  परिवर्तन।
पाली ,अपभ्रंश, संस्कृत,खडीबोली,
हिंदी।  अंग्रेज़ी मिश्रित  हिंदी।
मंदिरों  में  बिजली की घंटी।
 मज़हब  में  शाखाएँ-उपशाखाएँ।
  शुद्ध सोना एक
  आभूषण मिलावट अनेक।
 सफेद रूई, रंग बिरंगे कपडे।
विभिन्न  आकार-प्रकार के वस्त्र  रूप।
टंकण  का स्थान  संगणक ने लिया।
कैमरा,रेडियो, हाथ की घड़ी, कैलकुलेटर ,संगणक
सब एक ही मोबयिल  में।
श्मशान में   जलन पाँच  मिनट।
गड्ढा  खोदने  यंत्र।
पेड़  को जड से उखाड़कर
पेड़  लगाने का यंत्र।
सब में क्रांतिकारी परिवर्तन।
साहित्य  की भाषा शैली
पद्य से गद्य , छंद बद्ध से मुक्त
नव कविता, हैकू।
अपरिवर्तनशील  साहित्य  की गूँज।
  स्वरचित। स्वचिंतक
यस। अनंतकृष्णन। (मतिनंत)

Wednesday, November 20, 2019

स्वतंत्रता की सीमा

नमस्ते। नमस्कार। प्रणाम।
  स्वतंत्र  लेखन।
 स्वतंत्र  भाषण।
मूल अधिकार।
स्वतंत्रता देश में
भ्रष्टाचार की खबरें।
पंद्रह  मिनट  में
सारे हिंदुओं  को
 कत्ल करने का भाषण।
राष्ट्र गीत व राष्ट्र झंडे को
अनादर अपमानित  खबरे।
 अल्पसंख्यक  अधिकार में
हिंदु धर्म प्रार्थना मना।
पर अल्प मज़हब पाठशाला  में
मजहबी प्रार्थना  मना नहीं।
नब्बे  प्रतिशत अंक  सही उम्र
पर उच्च शिक्षा  में 
उच्च जाति के छात्र  को
प्रवेश मना है पर
सूचित जाति कम अंक,
अधिक  उम्र 
प्रवेश में
प्राथमिकता।
माया भरी शासन में
सिर काट दूँगा,
पैर तोड दूँगा।
प्रांत के अंदर  आने न दूँगा।
हत्या  करने मजदूरी सेना।
परीक्षा  में  नकल,
परीक्षार्थी नकल।
पैसे हो तो बारह वर्ष तक
मुकद्दमा, गवाही नदारद।
अपराधी  मुक्त।
स्वतंत्रता  का दुरुपयोग।
स्वतंत्र  लेखन  भाषण।
तमिलनाडु  में
न चाहिए  हिंदु मज़हब के ओट।
ब्राह्मण को जीने न देंगे।
चुनाव  चिन्ह  का नाम  संस्कृत
"उदयसूर्य" पर संस्कृत का विरोध।
अंग्रेज़ी  स्कूल :शुल्क  लूट समर्थन।
मातृभाषा  माध्यम  स्कूल बंद
स्वतंत्रता भारतीयता मिटाने
युवकों! सोचिये,
भावी भारत आपके हाथ।
 राष्ट्रीयता  विरोध , मजहबी परिवर्तन प्रचार  स्वतंत्रता
 देश  की एकता में   बाधा।
जागना जगाना
भारत की एकता बनाये रखने
अति आवश्यक  काम।
 स्वतंत्रता की भी एक सीमा।
मूल अधिकारों  की भी सीमा
कर्तव्य  हमारा, जिम्मेदारियाँ हमारी
भारत की एकता का प्रचार।
 स्वचिंतक  स्वरचित
यस,अनंतकृष्णन (मतिनंत)

Tuesday, November 19, 2019

जान पहचान

नमस्ते। प्रणाम। वणक्कम।
  जान-पहचान।
  मनुष्य  जीवन में,
जान -पहचान के बिना जीना,
 जानवर-तुल्य  जीवन
कहना गलत है या सही,
पता नहीं ,पर पशु वर्ग भी
अपने वर्ग  को जान पहचानकर
साथ चलता है, अपने झुंड  से
अलग होकर दुखी होता है।
मनुष्यों  में  पशु की तुलना में,
शक्ति  अधिक नहीं,
पर बुद्धि बल अधिक।
जान पहचान भी पहले सीमित।
ज्ञान  विज्ञान  के बढते बढते,
 जान पहचान के बढते बढते
मनुष्य  का विकास  होता है।
अकेलेपन  में  स्वार्थ।
मिलकर रहने में आनंद।
इसमें  ईश्वर  की तमाशा देखिए,
जान पहचान  नाते रिश्ते
बनाए रखने  में बाधाएँ अनेक।
प्रधान होते हैं भाव या मनोविकार।
प्रेम,नफरत,ईर्ष्या, क्रोध,करुणा,शोक।
 संकुचित  विकसित  स्वार्थ-परार्थ।
जान पहचान में  दरार।
बचपन का जान पहचान अलग।
जवानी में  अलग।
पेशे के कारण।
वैवाहिक  रिश्तों  के कारण।
बुढापे में  जान पहचान
एक एक करके एकांत अनुभव।
सर्वेश्वर  की याद  तभी।
बचपन से ही जान पहचान
ईश्वर  से हो जाए तो उत्तम जीवन।
 वाणी के डिक्टेटर 
कबीर  के अनुसार,
सुख में भी ईश्वर का पहचान
सदा शांति-संतोष  का पहचान।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन

साहित्य वसुधा

वणक्कम-प्रणाम।
वसुधा  साहित्य  का
अति चमत्कार।
रवि जहाँ  पहुँच  नहीं  सकता,
वहाँ  कवि पहुँचता हैं।
साहित्य  वसुधा
सात लोकों  का ज्ञान देती हैं।
नयी कल्पनाएँ,
मानसिक  परिवर्तन,
संस्कृति  सभ्यता  का विकास।
रूढ़ि वादी सिद्धांतों  में  परिवर्तन।
  संकुचित  विचारों  में,
 विस्तृत जानकारी।
निर्दयी का दयालु बनना।
दयालु को कंजूस बनाना।
मिट्टी  को स्वर्ण,
स्वर्ण  को मिट्टी  बनाना,
कामुक को भक्त:
भक्त  को कामुक
अली-कली-फूल का वर्णन।
ये सब साहित्य  पर निर्भर।
ये सब साहित्य वसुधा पर निर्भर।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन।

Monday, November 18, 2019

भाग्य

जन्म  और मृत्यु।
अमीर घर में  जन्म। वह बच्चा पागल।
फुटपाथ  का बच्चा   स्वस्थ।
प्रयत्न तो सब करते हैं
अपने सफेद  बाल गूंजे सिर
बुढापा  कोई  बचा  नहीं  पाता।
लौह महिला  जय ललिता  और इंदिरा मृत्यु  जान। 
सांप का विष प्राकृतिक।
मेंढक का टर टर स्वाभाविक।
साँप का आहार  ईश्वरीय  सृष्टि।
संगीताचार्य  के पास रोज भागीरथ  प्रयत्न।
फुटपाथ  की भिखारिन
मधुर स्वर। आज विश्वविख्यात।
 भाग्योदय की देरी।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
  हिंदी  सीखी न नौकरी की संभावना।
पर मिली नौकरी।
हिंदी  अध्यापक  तमिलनाडु  में
दो ही बने प्रधान अध्यापक।
दो में  एक मैं।
अब आराम  से जिंदगी।

सबहिं  नचावत  राम गोसाई।
 आपकी प्रेरणा  से ।
अपनी विचारधारा।
किसी प्रमाणित भी किया,
मैं  श्रेष्ठ  रचनाकार।
घर से न निकला  पर ईश्वर ने बुद्धि  दी।
मेरी रचनाएँ  लाखों  तक पहुँचती।
न मेरी मातृभाषा  हिंदी।
सबहिं नचावत राम गोसाई।

इंदिरागांधी

प्रणाम।
 एक नेता  राम सा हो तो
 पत्नी को आदर्श  के लिए
जंगल  में  भेज  देता।
एक नेत्री लौह महिला,
 गाँधी  का अर्थ  बनिया
पर अपने खान वंश को
गाँधी  (बनिया) वंश में  बदल दिया।
व्यक्तिगत जीवन का प्रभाव
समाज पर पडता है।
ब्राह्मण भी गाँधी बन गये।
परिणाम  सांसद  बनने
बनने के बाद  दल बदलने
घुड़दौड़ व्यापार।
  इंदिरागांधी  विश्व विख्यात,
पर देश की एकता
अखंडता की
दूरदर्शिता  नहीं।
प्रांतीय दलों को
गठबंधन  के नाम
बढावा दिया।
परिणाम  तमिलनाडु  में
राष्ट्रीयता कम हो गई।
बावन साल के बाद भी
राष्ट्रीय  दल के योग्य नेता बन सके।
भाजपा में  नेता  नियुक्त  करने में  देरी।
 जो भी हो वीर महिला
उत्तम प्रशासक  उनको सलाम।

नारी की तरक्की  हुई  हैं
पर प्रौढ़ पुरुषों  की संख्या
वैवाहिक  पुरुष
ब्रह्मचारियों की संख्या
बढ गई।

स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन

भलें

प्रणाम। वणक्कम।
 भूलें  होंगी  जरूर।
मनुष्य  जीवन में।
भूलारोपित मनुष्य  ही
 सब के सब।
ऐसा कहना सत्य।
क्यों?
दस महीने अंधेरे  में।
सूक्ष्म  बिंदुओं  के मेल से
शिशुरूप।
जुड़ने के पहले न रूप-  रंग ।
अब कहिए
 बगैर भूलों  के
मनुष्य  जीवन है नहीं।
रामावतार में  भूल।
कृष्णाअवतार में
धर्म के नाम भूल।
वामन अवतार में
भूल ही भूल।
ज़रा  सोचिए-
अर्धरात्रि पत्नी और शिशु को
छोड कर जाना बडी भूल।
करतल भिक्षा तरुवर वासा
सीख भी भूल।
भूलों  से सुधारना ही मनुष्य  जीवन।
मनुष्य  को परिश्रमी  बननी है।
अपने पैरों  पर खडा होना हैं।
स्वाभिमानी  से जीना है।
बेकार मन शैतान  का कारखाना।
कर्तव्य  करना ही भक्ति  है।
कर्तव्य  भूल तब राम नाप
जपना भक्ति  नहीं ।
हमारे पूर्वजों  की भूल।
आज साफ मंदिर  की दीवारों  पर
परीक्षाअर्थी अपनी पंजीकृत नंबर लिख
गंदी करना भक्ति  मान रहा है।
यह तो बडी भूल।
सुधरना
सुधारना
हमारा काम।
आजादी  के सत्तर 
साल के बाद
स्वच्छ भारत की गूँज।
अपनी गली में
सुदूर  शहर -गाँव  की
गलियों  में  कूडे के ढेर 
देख आज कहता है
मोदी ने साफ नहीं  किया।
ऐसी गैर जिम्मेदारियों को
उनकी भूलें  समझानी हैं।
 स्वचिंतक स्वरचित
यस-अनंतकृष्णन।

Saturday, November 16, 2019

फ़र्ज

मेरे प्रेरक हिंदी  प्रेमियों  को
नमस्कार।
प्रणाम।
 कलम की यात्रा के संचालकों को
जो मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं,
उन सब को प्रणाम।

    कर्तव्य  /फ़र्ज
 गीताकार श्री कृष्ण  की कृपा मिलें।
  कर्तव्य  करो,
फल की प्रतीक्षा  न करो।
 भगवान का उपदेश।
मनुष्य  तो सद्य:फल चाहक.
मन तो संचल।
मन चंगा तो कटौती में गंगा  मान
मन नियंत्रित नहीं  करता।
आजकल  के शासक,प्रशासक,
अधिकारी, कर्मचारी , भक्त
फल मिलने पर ही
कर्तव्य निभाते हैं।
मेवा पहले,सेवा बाद में।
तत्काल लाभ धर्म बदल जाते।
मातृभूमि तजना,
प्रवासी नागरिक बनना,
मज़हब बदलना,
कर्तव्य  बाद  में।
सरकारी  संस्थाओं  के कर्मचारी
निजी संस्थाओं  के कर्मचारी
पहले के चेहरे  में  उतना तेज नहीं।
दूसरे के चेहरे  में  तेज अधिक।
वजह?
पहले को कर्तव्य  करें  या न करें
मेवा मिलता जरूर।
दूसरे  को कर्तव्य  न करें  तो
मेवा न मिलता कभी।
सरकारी  अध्यापक /निजी अध्यापक
कर्तव्य  करने में  फरक।
नतीजा  सरकारी स्कूल  बंद।
निजी  स्कूल की संख्या  अधिक।
गरीबों  की  शिक्षा अपमानित।
अमीरों  की शिक्षा  सम्मानित।
कर्तव्य  चूकना अतःपतन का मूल।
स्वचिंतक स्वरचित
यस।अनंतकृष्णन।

दिल धड़कन

तुम मेरा दिल
मैं तेरा धड़कन।
  परिवार दल के संगठक व  संयोजक, सदस्य-मित्र
सब को नमस्कार।
  दिल अलग धड़कन अलग तो
जीना दुर्लभ।
दिल धडकता है मेरा तो
तेरे ही कारण।
न तो धड़कन बन्द ।
मेरे दिल का धड़कन
 तुम पर निर्भर।
साँस चलता है तो
हवा तेरी,
 बाहर से आती।
प्यास बुझना है तो
तेरे प्रेम का पानी ।
अवाज निकलती है तो
तेरी करुण  ध्वनी।
हे ईश्वर! तेरा अनुग्रह न तो
धड़कन बन्द।
साँस बन्द!
प्यासा ही सब अन्त।
  स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंत कृष्णन

Thursday, November 14, 2019

प्रेम और तपस्या

नमस्ते।वणक्कम।
प्रेम स्थाई या अस्थाई
पर व्यस्त ,
तपस्या का उददेश्य
प्रेम  लक्ष्य।
तपस्या करने
गुरु चाहिए।
प्रेम स्वत:सिद्ध।
राम नाम उपदेश तपस्या।
बगैर उपदेश प्रेम।
क्षणिक प्रेम।
स्थाई प्रेम
तन प्रेम।
धन प्रेम
मन प्रेम।
देश प्रेम।
स्वार्थ प्रेम
निस्वार्थ प्रेम।
लेन देन प्रेम।
एक पक्ष प्रेम।
द्वि पक्ष प्रेम।
त्याग्मय प्रेम भोगमय प्रेम ।
तपस्या कहीं अन्धेरे में।
ईश्वर साक्षात्कार के लिए।
प्रेम की कथा प्रचलित।
तपस्वियों की कथा अप्रचलित।
प्रेम संकीर्ण फिर भी मोहक।
तपस्या जग कल्याण
  पर मोहता सोहता नहीं।
लाली मेरे लाल की
जित देखो तित लाल।
पर तपस्या आँखें  मूंद।
प्रेम क्रिया प्रधान।
तपस्या  में
अकेलापन /एकान्त।
प्रेम संकीर्ण।
ऋषी गण पर प्रेमगण  नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन

बाल दिवस

प्रणाम।
बाल दिवस।
आज के बालक
भविष्य के शासक,
प्रशासक,
अभियंता,
चिकित्सक,
देश के रक्षक
देश के निर्माता
अत:चाचा नेहरू ,
अब्दुल कलाम
कर्मवीर काला गाँधी कामराज
आदि दूरदर्शी नेताओं का ध्यान
बच्चों की प्रगति केंद्रित।
आजकल चित्रपट प्रधान
अश्लील नाच
उत्तर भारत कैसा है
स्कूल के वार्षिकोत्सव पता नहीं
तमिलनाडू में चित्रपट गीत  नाच।
स्कूल-कालेज के कार्यक्रमों में
चित्रपट के संवाद।
मूल उद्देश्य भूल
अनुशासन हीन  शिक्षा।
बाल दिवस बालों की उन्नति  के लिए
चरित्र अनुशासन की प्राथमिकता।
पैसे को ही शिक्षा
पैसे दिखाओ  शिक्षक दास।
नकली छात्र परीक्षा देने
खेद के समाचार।
शिक्षक को मारना,
शिक्षक का अपमान।
शिक्षकों का बद व्यवहार।
आज के बाल दिवस ऐसा
मनाना जिससे बालकों की
चाल चलन सुधर जाएं ।
अनुशासन हीन समचार न प्रकाशित हो
बालकों को सुभाशीष।

Monday, November 11, 2019

बचपन

प्रणाम।वणक्कम

पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।

Friday, November 8, 2019

अभिमान की बात

चार आदमी
आज चार चक्र
 एक आदमी।
शव उठाने काल परिवर्तन ।
 कन्धा देने
कन्धा बदलने की
जरूरत नहीं।
सम्मिलत परिवार नहीं,
सोचते हैं पर वानप्रस्थ,
सन्यासी जीवन हैं  हमारा।
 ऐसी परम्परागत विचार में,
वृद्धाश्रम तो बढिया।
वह सन्तान
 बहु, बेटी, प्रशंसा के पात्र हैं ,

जो अपने वृद्ध माता -पिता को
वृद्धाश्रम में  छोडकर
 मासिक शुल्क अदा करके
कभी कभी मिलने आते हैं।
घर में रखकर सताने से
यह तो वृद्धों के लिए
अभिमान की बात ।

अभिमान

प्रणाम।
भगवान से प्रार्थना।
भवसागर  पार करने
भगवान का अनुग्रह चाहिए।
जन्म,जीवन,मरण ।
अभिमान क्या है?
स्वाभिमान !⁹
मनुष्य का सक्रिय जीवन
साठ  साल तक।
सब में  अपवाद हैं।
हज़ोरों में दस-बीस अपने बुढापे भी
सक्रिय रह्ते हैं।
जीवन में बीस साल
ज्ञानार्जन में बीत जाता हैं।
इस काल में
आत्म संयम,आत्मानुशासन ,
जितेंद्रियता अत्यंत आवश्यक हैं।

  आधुनिक वैज्ञानिक मनोरंजन के साधन
भलाई बुराई मिश्रित चित्रण में,
बुराई ज्यादा,भलाई कम ।

तब मनुष्य स्वभाव
बुराई को आसान से
पकड लेता है।
तब चरित्र निर्माण में बाधाएं होती हैं।
25 साल में ही युवा युवती अपनी
शक्ति खो बैठते हैं।
तीस साल की शादी में
अतृप्त गृहस्थ जीवन
गैर कानूनी  सम्बंध रखने में विवश।
तलाक के मुकद्दमे बढते जाते हैं।
हत्या,आत्महत्या,तेजाब फेंकना आदि
खबरें निकलती रह्ती हैं।
  शासक,आश्रमके आचार्य,शिक्षक,शिक्षार्थी
सब में आत्म संयम की कमी के
समाचार निकलते रहते हैं।
ये सब त्रेतयग,
द्वापर युग,
कलियुग तीनों में
पाते हैं।
पर कलियुग में संख्या ज्यादा हो रही हैं ।
रावण सीता को ले जाना - रामायण।
शिव,विष्णु,कार्तिक का प्रेम विवाह पुराण,
भीष्म का तीन राज्कुमारियो को
 जबर्दस्त उठालाना महाभारत।
आधुनिक काल में
ऐसी बातें रोज समाचार पत्र में।
  अस्थिर जीवन,नश्वर दुनिया, मरण निश्चित जीवन।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
अपना अपना भाग्य
यही मानव जीवन।
 आज सुबह मन में उठे विचार।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंत कृष्णन।

Thursday, November 7, 2019

फुल और काँटा

प्रणाम।
फूल और काँटा।
पुष्पलता अतिसुंदर।
पुष्प काँटा अति दर्द।
यही है जीवन का सुख -दुख।
ईस्वरीय सृष्टियों में
कोमल एक है तो कठोर अधिक।
छिपकली एक कीडे अनेक।
 एक बूंद शहद एक चम्मच कडुवीदवा।
सुख दुख में  सुख एक फूल।
दुख असंख्य है मानव जीवन में।
सहना सामना करना
सावधानी से तोड़ना,जोडना
तभी आनन्द असीम।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन

Wednesday, November 6, 2019

भारतीयता अपनाना

प्रणाम ।
प्रात:काल की प्रार्थना।
शुभ-कामना।
विदेशी तोडे मन्दिर।
अद्भूत शिल्पकला
निर्दयी तोडे हजारों मन्दिर।
अलग देश माँगकर ही छोडा।
आजादी के बाद के भारतीय शासक
भारतीयता छिपाने,
भारतीय भाषाओं को मिटाने,
विदेशी मजहब की  जनसंख्या बढाने
कितने अन्याय किये?
सत्तर साल में भारतियों के दिल में
यह भाव जम गया,
बगैर अंग्रेजी के
 तरक्की नहीं
 अपनी
और देश की।
भूल गये इतिहास।
अद्भूत किले,
चमत्कार मन्दिर
अजंता,एल्लोरा,
मदुरै,चिदंबरम,तिरनेलवेली,श्रीरंगमन्दिर।
कर्नाटक के मन्दिर,
कश्मीर की हस्तकलाएँ ,
बनरशी रेशम साड़ियाँ।
काली मिर्च,इलायची,लवन्ग और जडी बूटियाँ।
पकवान के कितने प्रकार।
कल्कत्ता रस्गुल्ला,तिरुप्पती लड्डू,
पलनी पंचामृत,विष्णु मन्दिर के स्वादिष्ट इमली भात।
कच्चे मांस खाए पश्चिमी परदेशी के शàन में
हम भी कच्चे-अधपकके हो गये।
आहार में भी  आ गये परिवर्तन।
भारतीय महत्व के प्रचार में न लगे शासक।
वैज्ञानिक साधन की तरक्की,विदेशी दिमाग,
भारत को बना दिया,
चेन नगर के चार बेकार।
मेहनती,सच्चे,ईमानदारी भूखों मरते हैं,
आलसी  भ्रष्टाचारी  सुखी मालामाल।
सोचिये भारत्वादीयों!जागिये।
अपने निजित्व का शान मानिये।
भारत भारतीयता अपनाकर आगे बढें ।
विदेशी पूंजी,विदेशी मालिक,विदेशों को लाभ।
भारतीय केवल नौकर यह रीति नीति बदल जायें।
करोडों की सम्पत्ति हमारे युवक -युवतियाँ।
 स्वचिंतक स्वरचित
यस।अनंतकृष्णन।वणक्कम

देशोन्नति

संगम के साथियों को ,
सबेरे एक बजे का वणक्कम।
प्रणाम।
प्रात:काल की प्रार्थना।
भारत देश की रक्षा
भारत की प्रगति,
देश -भक्त और देशद्रोहियों के साथ,
तब तो  भारतोन्नति तो भगवद शक्ति से।
क्या इस में कोई शक?
आध्यात्मिकदेश,
आदी भगवान
शिव का देश।
त्रि शक्तियों का देश।

शोधार्ती विश्व के मानते हैं,
रूस के नास्तिक मानते हैं
यज्ञ -हवन धुएँ  का महत्व।
तमिलनाडू  से उत्तरकाण्ड तक के
 सीधी रेखा केशिव मन्दिर का महत्व।
तमिलनाडू के चिदंबरम मन्दिर,
भूमि का केंद्र बिन्दु।
तिरु नल्लारु शिव मन्दिर का महत्व।
हर मन्दिर की कलात्मक्ता में वैज्ञानिक्ता।
चेन्गिस्खां से अंग्रेजों तक
कितने आक्रमण,
कितने देश द्रोही।
हिमाचल से कुमारी अंतरिप तक
कितनी प्राकृतिक भिन्नताएँ ?
कितनी भाषाएँ ?
गोरे -काले लोग ,
प्रान्तीय- क्षेत्रीय जोश।
एकता तो गणेश -कार्तिक
 शिव-विष्णु,के कारण।
रामायण,महाभारत के कारण।
माया,शैतान,माया की शक्ति
लौकिक मानव में न हो तो
धनलक्ष्मी का मोह न हो तो
सदय:फल की ओर
विदेशी धारा में न  बहें तो
स्वार्थ राजनीति न हो तो
स्वर्ग तुल्य भारत।
 स्वरचित स्वचिंतक
यस-अनंतकृष्णन।

पचपन/बचपन

प्रणाम।वणक्कम
बचपन
शिशु को किसीने कहा ,
नन्हा मेहमान।
पत्नी का सारा  प्यार,
चुंबन आलिंगन शिशु की ओर।
शिशु बच्चा,तब बचपन।
पाठशाला गमन,
खेलकूद,गिल्ली ठंडा,
गोली खेलना,कबडी
न चित्रपट,न दूरदर्शन न मोबाइल।
न ट्युसन,न क्रीकट कोच,
न की बोर्ड,न कराते।
खल खेल में पढाई।
आज दो साल में प्रि के जी,
किस के लिए?
मातृभाषा भूलने के लिए।
तब से टियुसण।
हमारा बचपन पैदल चल,
पेड  की  छाया में,
दौड धूप में आँख मिचौनी में बीता।
आज के जल्दी जल्दी
 किताबों की बोझ पीठ में ढोते,
 स्कूल बस के आते ही दौडना,
ज़रा भी आजाद नहीं,
वैसे ही बचपन गुलाम सा,
बेगार सा,न माँ  का प्यार,
न दादा दादी की आशीषें,
न हँसी,न खेल कूद,
बीत  जाता  बचपन।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन
पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।