चार आदमी
आज चार चक्र
एक आदमी।
शव उठाने काल परिवर्तन ।
कन्धा देने
कन्धा बदलने की
जरूरत नहीं।
सम्मिलत परिवार नहीं,
सोचते हैं पर वानप्रस्थ,
सन्यासी जीवन हैं हमारा।
ऐसी परम्परागत विचार में,
वृद्धाश्रम तो बढिया।
वह सन्तान
बहु, बेटी, प्रशंसा के पात्र हैं ,
जो अपने वृद्ध माता -पिता को
वृद्धाश्रम में छोडकर
मासिक शुल्क अदा करके
कभी कभी मिलने आते हैं।
घर में रखकर सताने से
यह तो वृद्धों के लिए
अभिमान की बात ।
आज चार चक्र
एक आदमी।
शव उठाने काल परिवर्तन ।
कन्धा देने
कन्धा बदलने की
जरूरत नहीं।
सम्मिलत परिवार नहीं,
सोचते हैं पर वानप्रस्थ,
सन्यासी जीवन हैं हमारा।
ऐसी परम्परागत विचार में,
वृद्धाश्रम तो बढिया।
वह सन्तान
बहु, बेटी, प्रशंसा के पात्र हैं ,
जो अपने वृद्ध माता -पिता को
वृद्धाश्रम में छोडकर
मासिक शुल्क अदा करके
कभी कभी मिलने आते हैं।
घर में रखकर सताने से
यह तो वृद्धों के लिए
अभिमान की बात ।
No comments:
Post a Comment