Saturday, November 23, 2019

साहित्य

वणक्कम। प्रणाम।
  समाज  में  साहित्य
   संयम सिखाता नहीं,
जितेन्द्र  बनाता नहीं।
प्रेम एक लडके के प्रति।
प्रेम  एक लडकी के प्रति
इश्क के  लिए  कविता।
इश्क  न तो कविता  नहीं।
 नख सिक्ख वर्णन कविता।
तब तो नीति के दोहे
रचना , रटना  मुश्किल।
वही लड़का सिनेमा गीत
बगैर एक शब्द  राग ताल के दोष के
गाता और तालियाँ  पाता।
वही एक दोहे न रट सका
गाली और मार खाता।
भला से बुरा आसानी  से।
मच्छर  अधिक, मेंढक अधिक।
पर एक कोयल की आवाज़ सुन
मनुष्य  अपने सुध बुध खो जाता।
हानियाँ  संक्रामक  रोग।
हित तो स्थाई चंद  लोगों  का साधन।
 साहित्य  समाज  कल्याण  के लिए ।
कबीर  के दोहे  सुनिए।तो
उसका सही उपयोग  उसका पालन
हर कोई  करेगा तो समाज  कल्याण।
 जाति न पूछो साधु  की, पूछ लीजिए  ज्ञान।
सोचने पर जातिवाद  का समूल नष्ट।
बुरा जो देख न मैं  गया,तोबुरा न मिलिया कोय।
  तुम खुद  अपने कोपहचान लो।
ऐसा हर कोई  सोचकर अपने को सुधार लेगा तो
विश्व में  न रहेगा  कोई  बुरा।
साहित्य  संसार  की भलाई।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन। (मतिनंत)

No comments:

Post a Comment