वणक्कम। प्रणाम।
मुक्ति शीर्षक।
प्रेरक है कुछ लिखने का।
कुछ प्रशंसा पाने का।
कुछ नये आकर्षक
नये विषय प्रस्तुत करने का
कैसे सांसारिक बंधन से मुक्ति।
न प्यास से मुक्ति,न भूख से मुक्ति।
न रक्त संचार से मुक्ति।
मुक्ति के लिए करते हैं प्रार्थना।
समाज की भलाई के लिए सोचते हैं।
राष्ट्र के भ्रष्टाचार के बारे में,
शिक्षा की महँगा पर,प्याज के दाम पर।
कितना सोचते हैं?
मुक्ति कहाँ?
मन की ज्वार भाटा।
मन का पंख फैलाकर आकाश तक
उड़ना,आकाश पाताल तक
जानने का जिज्ञासा।
वेंटिलेटर में डाक्टर भेजने के बाद भी
एक महीने तक तड़पनेवाला बूढ़ा बूढी।
कैसी मुक्ति?
जब तक आशतब तक साँस।
हम न विवेकानंद हम न आदी शंकर।
न गणितज्ञ रामानुजम।
ईश्वर के हिसाब की जिंदगी।
पाँच मिनट मन निश्चल तो
तभी मुक्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन। (मतिनंत )
29-11-19।
मुक्ति शब्द पारिवारिक दल तो
चाहें बढती हैं, कैसे मुक्ति।
मुक्ति शीर्षक।
प्रेरक है कुछ लिखने का।
कुछ प्रशंसा पाने का।
कुछ नये आकर्षक
नये विषय प्रस्तुत करने का
कैसे सांसारिक बंधन से मुक्ति।
न प्यास से मुक्ति,न भूख से मुक्ति।
न रक्त संचार से मुक्ति।
मुक्ति के लिए करते हैं प्रार्थना।
समाज की भलाई के लिए सोचते हैं।
राष्ट्र के भ्रष्टाचार के बारे में,
शिक्षा की महँगा पर,प्याज के दाम पर।
कितना सोचते हैं?
मुक्ति कहाँ?
मन की ज्वार भाटा।
मन का पंख फैलाकर आकाश तक
उड़ना,आकाश पाताल तक
जानने का जिज्ञासा।
वेंटिलेटर में डाक्टर भेजने के बाद भी
एक महीने तक तड़पनेवाला बूढ़ा बूढी।
कैसी मुक्ति?
जब तक आशतब तक साँस।
हम न विवेकानंद हम न आदी शंकर।
न गणितज्ञ रामानुजम।
ईश्वर के हिसाब की जिंदगी।
पाँच मिनट मन निश्चल तो
तभी मुक्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन। (मतिनंत )
29-11-19।
मुक्ति शब्द पारिवारिक दल तो
चाहें बढती हैं, कैसे मुक्ति।
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