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मनपसंद --शीर्षक ११-१०-२०२०
पसंद की बात अनेक।
मनपसंद की बात एक।
मनुष्य तो तितली नहीं ,
फूल फूल पर मंडराना पसंद की बात।
मन की चंचलता मन पसंद से ऊपर उड़ती।
कर देती बेइज्जती ,
आत्मनियत्रण की शिक्षा की कमी।
पैसे प्रधान चित्रपट मन को बना देता तितली।
एक अश्लीलता सुन भूलता नहीं मनुष्य।
तुलसी का पद ,कबीर का पद रटना याद रखना मुश्किल।
चोली के पीछे क्या है ,
पाँच साल की लड़की जाती अभिनय सहित।
चंचलता दूर करने पर ही
मनपसंद के मंजिल पसंद की कामयाबी।
षड्रिपु समर जीता जिसने वही मनपसंद प्राप्त कर सकता।
रावण के काम ,दुर्योधन का अहंकार ,दुर्वास का क्रोध ,
विश्वामित्र का स्वार्थ उनके लक्ष्य तक पहुँचने में रहे बाधक।
साधक को मन पसंद में मनकी चंचलता बाधक।
स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन ,चेन्नै। तमिलनाडु