Friday, October 2, 2020


यादें 

सुख दुख की बातें ।

यादों की बारात में।

नौकरी की तलाश में

हिंदी ने साथ दी; 

पर आय नहीं दी।

आत्मसंतोष।

हिंदी विरोध आंदोलन।

हिंदी का प्रचार शुरू।

रोज बिल्कुल मुफ्त में 

दस घंटे का हिंदी प्रचार।।

हिंदी कैसे आयी?

तमिलनाडु में कितने त्यागी प्रचारक।

गांधीजी के अनुययियों ने

घर घर हिंदी का प्रचार।।

मेरी मां  गोमती जी  

हिंदी के प्रचार में लगी

जब मैं उनके गर्भ में था।

अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसना मात्र सीख।

पर मैंने चक्रव्यूह हिंदी के प्रचार में

प्रवेश कर बाहर भी आना सीख लिया।

कभी कभी सोचता हूं,

प्रहलाद ने गर्भ में नारायण मंत्र का 

उच्चारण सीखा था।

मैं भी हिंदी सिखाओ का मंत्र सीख लिया।

घाट घाट का पानी पीना सुना,

मैं भी घाट  घाट का हिंदी स्नातक स्नातकोत्तर की शिक्षा ली

बी।ए। दिल्ली में एम ए तिरुपति में

बी. एड मदुरै में एम एड हिमाचल में ।

पर में अपने शहर पलनी में था।

स्नातकोत्तर तक बनने की बुनियाद शिक्षा महात्मा गांधीजी द्वारा स्थापित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेननै ।

स्वाध्याय, मेरी मां भी।।

सभा के संगठक श्री ई. तंगप्पन जिसे प्रेरणा मिली।उनके बाद संगठक श्री सुमतींद्र हिंदी कवि भी

उनके काले कलूटे पतली काया से

पहली नजर में उनका आदर तक नहीं दिया।पर उनकी हिंदी  बढ़िया थी,वे एम ए थे। उस जमाने में एम.ए  बडी उपाधि स्नातकोत्तर थी. उत्तीर्ण होना आजकल की तरह नहीं,टेढी खीर था। मन में यही ख्याल आया , ये सूमतींद्र

 एम ए मैं  क्यों न बन सकता।

वे दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से इस्टिफा करके मदुरै कालेज के प्राध्यापक बन गए।

तभी  हृदय राज नामक एक सरकारी अस्पताल के कर्मचारी हिंदी पढ़ने आए।

उनका रूप रंग भी सुमतींद्रजी के जैसे ही था। उनको उच्चारण की गड़बड़ था। मेरे पास हिंदी पढ़ने आए। यह ,वह को  यग वग ही कहते थे। एक दिन उन्होंने दिल्ली विश्विद्यालय के स्नातक प्रमाण पत्र लेकर आए कहा कि में पी. ए उत्तीर्ण हूं

।बी. ए  भी सही उच्चारण नहीं कर पाए तो मैक्यों ? मैंने उनसे पूछा दिल्ली जाना है क्या?

नहीं,तमिलनाडु के पलनी शहर से ही पढ़ सकते है,पर परीक्षा केंद्र चेन्नई है।  उनके मार्ग दर्शन में बी ए  दिल्ली विश्वविद्यालय का बी ए स्नातक बना। आर्थिक संकट के बीच।भूखे प्यासे के वे दिन।औसत बुद्धि वाले की प्रेरणा से बी ए,प्रतिभाशाली कवि श्री सुमतींद्रा से एम ए।

एम ए तिरुपति विश्व विद्यालय दस दिन परीक्षा के लिएं तिरुपति विश्वविद्यालय के फुटपाथ पर दस दस दिन।वे दुख के दिन ।पर बालाजी का पूरा अनुग्रह ।एम ए स्नातकोत्तर बनते ही सरकारी मान्यता प्राप्त विश्व विख्यात हिन्दू हायर सेकंडरी स्कूल में तीस साल की सेवा।हिंदी अध्यापक होकर प्रधान अध्यापक बनकर अवकाश।एम ए पढ़ने वेस्ली स्कूल के स्नातक अध्यापक ने मार्ग दिखाया वेंकटेश्वरा विश्वविद्यालय में केवल सौ रुपए में निजी रूप में एम ए पढ़ सकते है।

दो साल के लिए सौ रुपए।

मेरे प्रयत्न बालाजी श्री वेंकटेश्वर का अनुग्रह प्रत्यक्ष दर्शन ये यादें दिव्यात्मक ।।मेरे इन प्रेरकों को भूल नहीं सकता।

स्वरचित स्व चिन्तक 

तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक 

एस.अनंत कृष्णन (मतिनंत)






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