साहित्य उत्थान हो या पतन।।
पता नहीं,पर युगांतर में
विचारों की क्रांति,
नये सत्य पर चलता है,
एक राजा की सुंदरी के लिए
हजारों वीरों की पत्नियां,
विधवा होना,बच्चे अनाथ होना
प्रशंसा अब निंदनीय कर्म।
एक पत्नी के रहते तीन रानियां,
भगवान की द्वि पत्नियां
आज खिल्ली उड़ाने की बात।।
गर्भपात महा पाप,आज कानूनी स्वीकृति।।
मन पवित्र तन अपवित्र तो
आज स्वीकार्य बात।।
सुमंगली का कुंगुम,
विधवा को मना आज
विधवा का अपशकुन
विचार बदल गये।।
विधवा विवाह सम्माननीय।।
पति नपुंसक नालायक है तो
तलाक मामूली,तलाक शबरी ही भारतीय भाषाओं में नहीं।
साहित्य उत्थान और विचारों के
तत्काल साहित्य निर्मला,गबन अति प्रसिद्ध।
तुलसी रामायण की भाषा आजकल जटिल।
मैथिली का साकेत प्रसिद्ध।
स्थाई अमर साहित्य हमेशा उल्लेखनीय और अनुकरणीय।
स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै
No comments:
Post a Comment