Sunday, October 11, 2020

नारी

 Anandakrishnan Sethuraman

नमस्ते। वणक्कम।
शीर्षक --नारी।
नर से नारी या नारी से नर।
अंडे से मुर्गी या मुर्गी से अंडे।
आदी काल से आज तक
नारी अबला या सबला ,
भारत में तो त्रि देवियाँ
शिक्षा ,धन और बल की।
इसी देश में अनमेल विवाह ,
सती प्रथा ,जवाहर व्रत।
महा काव्यों में सीता का अपमान ,
द्रोपदी का अपमान।
आज तो रोज बलात्कार।
नारी नर की कठपुतली का युग बदल गया.
नाम मात्र के लिए।
ईश्वर की सृष्टियों में नारी
कोमल ,कठोर ,दयामयी निर्दयी
ममता मयी। कबीर की दृष्टी में
माया महा ठगनी।
रहीम की दृष्टी से चंचला।
पंत की दृष्टी से स्वर्ग ,नरक।
स्वर्ग है तो नारी के उर के भीतर।
नरक है तो नारी के उर के भीतर।
उनमें भी अति निर्दयी कुंती और
कबीर की माँ।
नारी क्या है शिव की शक्ति।
आधुनिक चित्रपट कितने कपडे कम ,
उतने अधिक रकम ,कामान्धता बढ़ाने वाली।
अधखुला अंक प्रसाद ने कामायनी में
नील परिधान के बीच चमकाया।
तपस्या भंग करने इन्द्र नारी को भेजा।
कामांध इंद्र अहल्या को ही पत्थर बनाया।
गौतम ने इंद्रा को शाप न दिया।
नारी के मोह में दुर्बलता ,
नारी की चाह में सबलता।
हर विजय पुरुष के पीछे नारी।
खान वंश अपवाद।
गॉंधी जोड़ खान छोड़
वंश भी बदल दिया।
नारी न तो घर अन्धेरा।
अभी स्नातक स्नातकोत्तर करते महसूस।
सावित्री ने सत्यवान को बचाया।
झांसी की वीरता
जो भी हो गाँधीजी आजकल के नहीं
मोहनदास करमचंद गांधीजी का सपना
आधी रात में अकेली सुंदरी निर्भय
सडकों पर चल सकें।
पर आज भी दिन में सड़क पर चलना खतरनाक।
नारी की दशा यही। व्यर्थ का यशोगान क्यों ?
नंगे चलने पर भी नर को देवी रूप ही लगना।
संयम व् जितेन्द्रियता नहीं।
ऋष्यश्रृंग नहीं ,
एक कुतिया के पीछे कई कुत्ते।
वैसे ही अनुशासन।
डाक्टर ,अध्यापक भी विश्वसनीय नहीं।
आत्मबल चाहिए नारी को,
हमेशा काली रूप ही सुरक्षा।
अनंतकृष्णन ,चेन्नई द्वारा स्वरचित ,स्वचिंतन

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