Sunday, October 18, 2020

हवामहल

 

मानव जीवन में,

हवामहल न बनवाने पर,

काल्पनिक घोड़ा न दौडाने पर 

मानसिक संतोष कहां?

सब सपना कहां?

मनमाना जी चाहे गगन में उड़ता रहूं।

जहां रवि नहीं पहुंच सकता,

वहां कवि पहुंच सकता।

कुछ लिखने, शब्दों की तलाश में

सोच विचार करने 

जी चाहे गगन में उड़ता रहूंगा।

प्रेम की तलाश में,

भ्रष्टाचारी की तलाश में,

साधु संत सिद्धों की तलाश में

जी चाहे गगन में उड़ता रहा हूं।

स्वरचित सर्व चिंतक अनंतकृष्णन,चेन्नै।

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