विचार तरंगें।
१०१०२०२०
जीवन जीने के लिए,
ईश्वर की सृष्टि हमारी।।
जिंदगी में कई अवसर
मनुष्य अवसर खोकर रोता है।।
दोस्त कितनों को अच्छे मिलते हैं?
कितने कृष्ण सुदामा बनते हैं?
कितने दुर्योधन कर्ण बनते हैं?
जन्म से करोड़पति,
जन्म से दरिद्र ,
अपनी कला से करोड़पति।।
अभिनेता अभिनेत्री अंत तक अमीरी ,
अंत तक पारिवारिक जीवन में सुखी,
कोई नहीं जान।।
कलाकार होते अनेक।
एकाध इतिहास में अमर।
राजा होते प्रजा वत्सल।
कितने चिर स्मरणीय।।
कितने अनुकरणीय।
कितने आध्यात्मिक आचार्य।
कितने धर्म पुरुष?
कितने नये नये पंथ।।
एकता क्यों हमेशा स्थाई नहीं।।
एक दल के नेता के निधन होते ही,
एक धर्म प्रवर्तक के निधन होते ही
उन सब की अनेक शाखाएं।
शाखाओं की उप शाखाएं।।
ईश्वर सब का एक है,
फिर भी अनेक।
निर्गुण -सगुण,ज्ञान -प्रेम।
शिव,रामकृष्ण,अल्ला,ईसा।
शाखाएं कितनी, एकता क्यों नहीं।
बुढ़ापे में ही सोचते हैं अनेक।।
ईश्वरीय सूक्ष्मता जानना कितना मुश्किल।।
ईश्वर के नाम लेकर लड़ाई।
भाषा के नाम से लड़ाई।
मनुष्य के ज्ञान भेद से ऊंच-नीच।।
बल भेद से ऊंच-नीच ।
रंग भेद से ऊं ऊं नीच।।
देश की प्राकृतिक भेद,
भाषा भेद, अभिवादन प्रणाली में भेद।।
सूर्य एक, चंद्र एक।।
तारे अनेक।
भूमि एक,मिट्टी के भेद अनेक।।
पानी है,स्वेद अनेक।।
पड़ोसी के कुएं में पानी भरा है,
हमारे घर में कुएं तो खोदते हैं,
पर पानी नहीं के बराबर।।
धनी हैं पर दुखी हैं।
ग़रीबी है,पर सुखी है।
यों सोचते सोचते,
विचार अभिव्यक्ति करते करते
जीवन की लीला अंत।
नश्वर जगत,अनश्वर ईश्वर।
अपना अपना भाग्य।
विधि की विडंबना।
जन्म कुंडली के गुण दोष।
राजा बनकर रंक,रंक से राजा।
सबहिं नचावत राम गोसाईं।।
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