काव्य मराथन में आज दूसरा दिन। चेन्नई के सुप्रसिद्ध कवि श्री ईश्वर करुण जी ने मुझे नामित किया और इसी कड़ी में मैं आज कविताएं लिख रहा हूँ।
काव्य मराथान के चौथे दिन। श्रीईश्वर करुण , हिंदी के प्रसिद्ध कवि, गायक और मुरली वादक की प्रेरणा से कविता लिख रहा हूं। प्रेरक के प्रति आभारी हूं। पाँचवाँ दिन
कविता ४. दिनांक -९-१०-२०२९ कविता प्रेमी संगीत प्रेमी, कांचन प्रेमी,भाषा प्रेमी, देश प्रेमी,ईश्वर प्रेमी। दान धर्म प्रेमी , आसक्त अनासक्त लोग ईश्वर की सृष्टि अनेक । कवि ही चिर स्मरणीय। अनुकरणीय ,काव्य ही अमर।। नमस्ते। वणक्कम। चूड़ियां भारतीय संस्कृति का प्रतीक।। नाम -अनंतकृष्णन। विधा --अपनी शैली,अपना राग। विषय: चूड़ियां। चूड़ियां आध्यात्मिक प्रतीक।। उनकी ध्वनी तरंगें स्वास्थ्य रक्षक।। दिव्य शक्ति प्रदान करनेवाली। कांच की चूड़ियां अति उत्तम। प्लास्टिक चूड़ियां सही नहीं।। पाश्चात्य सभ्यता अंग्रेजी स्नातक माथे के तिलक ,हाथ की चूड़ियां पहनाने को कम कर रहा है।। चांदी, सोने व तांबे की चूड़ियां।। सुमंगल के लक्षण चूड़ियां।। लक्ष्मी के अनुग्रह के लिए मानसिक शांति के लिए चूड़ियां। मंदिरों में देवियों को चूड़ियों का मेला भी।। मेलों में चूड़ियों की दूकाने । पीले रंग आनंद प्रद। हरा रंग शांति प्रद ।। नीला रंग ऊर्जाप्रद।। लाल रंग समस्या ओं को सामने करने की शक्तिदायक।। नारंगी रंग विजय प्रद। काला रंग धैर्य प्रद । लाल और हरा शुभ मुहूर्त में उत्साह प्रद । वैज्ञानिक आधार नकरात्मक विचार भगाकर सकारात्मक विचार देने वाले हैं।। बुरी शक्तियों को भगाने वाली। नेत्र दोष से बचाने वाली हैं चूड़ियां।। आधुनिक फेशन ,भले ही चूड़ियां पहनने की प्रथा दूर रखें इसका महत्त्व समझाने ऐसे शीर्षक भी ईश्वरीय देन।। स्व स्वर चित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै। तीसरा दिन काव्य मराथन में आज तीसरा दिन। चेन्नई के सुप्रसिद्ध कवि श्री ईश्वर करुण जी ने मुझे नामित किया और इसी कड़ी में मैं आज कविताएं लिख रहा हूँ। कविता -3 आसमान -आकाश धरती -वसुंधरा आसमान धरती से देखते हैं , सूर्य की गर्मी ,चन्द्रमा का शीतल तारों का टिम टिमाना धरती को निकट से छूकर देखते हैं। जलप्रपात से गिरते नीर में नहाकर देखते हैं बहती नदी में डुबकियाँ लगाकर देखते हैं कुएँ में कूदकर तैरते हैं , मिट्टी के खिलौने बनाकर , पेड़ पौधे लगाकर , प्रिय पालतू जानवर को गाढ़कर अंतिम संस्कार कर देखते हैं , यहीं स्वर्ग -नरक का अनुभव करते हैं पर यहीं कहते हैं स्वर्ग है आसमान पर। जिसे किसीने न देखा है. बचपन का दुलार ,लड़कपन के दुलार जवानी का दुलार ,बुढ़ापा का दुःख दौड़ना -भागना जवानी ,बुढ़ापा सोच सोचकर आँसू नरक तुल्य कोई कोइ खोया जवानी। आसमान के स्वर्ग -नरक की चिंता में जवानी का स्वर्ग -बुढ़ापे का नरक भूल मानव तन समाजाता मिट्टी में। आसमान धरा की चिंता कहीं नहीं यहीं भोग प्राण पखेरू उड़जाते। कहते हैं धरा नरक आसमान स्वर्ग। एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै। य
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