ज.यू. पोप ने विद्वत्ता और शिष्ठाता को PERFECTNESS
कहकर 19वीं सदी में व्याख्या की है।
तिरुक्कुरल की व्याख्या महाविद्वान सा.दंडपाणी देशीकर
ने परीति ,परिप्पोरुल,कालीनगर,परिमेल अलकर ,
कविराजर आदि पांच आलोचकों की बातों को
संकलन करके लिखा है।
भूताप्पानडीयन ने शपथ किया कि
न लड़कर, अपने दुश्मन का सामना बिना किये
यम के भय से पीठ दिखाकर भागनेवाले
आँखों के तारे के तारे होने पर भी उनको छोड़ दूंगा।
तमिल:-
अदान्गात्ताने वेंदारुडनगियैत
तेंनोडु पोरुतु मेंबवरै
आलमरत थाक्कित तेरोडू
अवर पुरंग कानेनायिर सिरंनद
पेरमरुन्कनी वलिनुम पिरिक.
राजा की रानी भी कायर ,
युद्ध क्षेत्र से भागनेवाले को नहीं चाहती।
वीर पति बनकर रण -क्षेत्र में
वीरगति प्राप्त करना ही रानी के लिए गौरव की बात है।
नागरिक के सर्व श्रेष्ठ गुण ,बड़प्पन के योग्य गुण
सहज रूप में जो प्राप्त करता है
वह अपूर्व कार्य करके दिखाता है।
वह जो भी करता है,
न्याय और रीति से करता है।
ये बड़े लोग प्रशंसनीय बनते हैं।
ये नागरिक हैं।
छोटे गुणवाले अहंकार ,अज्ञानता,स्वार्थ आदि
निम्न विचार के होते हैं।
अतः वे निंदा के पात्र बनते हैं।
इन गुणों से दूर रहें तो आदर्श नागरिक बनजाते हैं।
निम्न गुणवाले अपूर्व काम करने पर भी
अहंकार के कारण बड़े नहीं होते।
सद्गुण और नागरिकता के गुण जिसमें नहीं है,
उसको अधिक संपत्ति मिल जाए तो उसका काम बन्दर के हाथ में
मिले मशाले की तरह हो जाएगा।
वह सर्वनाश कर देगा।
बड़े लोग विनम्र रहेंगे।
छोटे लोग आत्म प्रशंसा में लगे रहेंगे।
बड़े लोगों को दुसरे लोग बड़ा बनायेंगे।
छोटे लोगों को खुद बड़े
बनने के प्रयास में और भी छोटा होना पडेगा।
भवनंदी नामक कवि ने आत्मा -प्रशंसा के लायक
चार स्थानों का जिक्र किया है।
राज-सभा,
अपनी शक्ति और कौशल न जाननेवाले,
स्थायी नाम देने की सभा,अपनी बात के विरुद्ध बोलनेवाले
आदि के सामने आत्मा प्रशंसा करना ही उचित गुण है।
वल्लुवर ने कहा कि बड़े अपने मुख से अपने को बड़ा नहीं कहेंगे।
वे दूसरों के दोषों को छिपा देंगे।
आम सभा में दोषारोपण करना बड़ों का काम नहीं है।
कुरल :-पेरुमैयुडैया वराट्रू वार आटरिन
अरुमै उडै य सेयल .
छोटे लोग दूसरों के दोष अल्प होने पर भी उसे बड़ा दोष बनाकर
दूसरों को अपमानित करेंगे।
बड़ों का गुण दूसरों के दोषों को भूलना और माफ करना।छोटों का गुण दूसरों के दोषों को नहीं भूलना और माफ
न करना।
सिरियार उनर्च्चियुल इल्लै पेरियारैप पेनिक कोल्वे मेंनुम नोक्कु।
बड़े लोग जानते हैं कि भूल करना मनुष्य का सहज गुण है।
भूले भड़के लोगों की भूलों को सुधारना बड़ों का काम है।
अतः वे मनुष्य की भूलों को भरी सभा में प्रकट नहीं करेंगे।
उत्कृष्टता के सम्बन्ध में निम्न विद्वानों के कथन देखिये:--
मनक्कडवर ===बड़प्पन धर्म और करुण की चाल , सहानुभूति दिखाना,दया आदि उत्कृष्टता है।
परीती =====महानता परम्परागत अनुशासन पर दृढ़ रहने में है।
परिप्पेरुमाल==महानता का मतलब है सभी सद्गुणों से भरा संस्कार।
धर्म और करुण कर्म पर निर्भर है।
परिमेलअलकर===सद्गुणों से भरा व्यवहार।बडाई के गुण का संग्रह
.
कवि अरसर ==सभी सद्गुणों से भरा व्यक्तित्व
।
सद्गुणों से भरे नागरिक की योग्यता नाकाबयाबी की हालत में भी काबयाबी की प्राप्ति की दशा में रहना.
अच्छे लोगों का लक्षण है जो अपने बराबर के नहीं हैं,उनसे भी विनम्र और सद्भाव से व्यवहार करना।
अपनों से बड़ों से जैसे हार मानते हैं ,वैसे ही अपने से छोटों से भी हार मानना।
अपनों से बलवानों से जैसे हार मानते हैं,वैसे ही अपनों से दुर्बलों से भी हार मानना।
अपने से छोटों से भी हार मानने की मानसिक परिपकवता।
कुरल:-
साल्बिर्कू कत्तालाई यातेनिन तोल्वी तुलैयल्लार कन्नुम कोलाल।
अंग्रेजी में कहते है--WHAT IS PERFECTION'S TEST? THE EQUAL MIND.TO BEAR REPULSE FROM EVEN MEANER MEN RESIGNED.
THE TOUCH -STONE OF PERFECTION IS TO RECEIVE A DEFEAT EVEN AT THE HANDS OF ONE'SINFERIORS.
A PERSON'S NOBILITY IS JUDGED FROM THE WAY HE BEHAVES WHEN DEFEATED BY A WEAKER OPPONONT.
एक सुनागरिक होने के लिए सज्जनता और अच्छी चाल-चलन मात्र काफी है।
स्वर्ण कमल में सुगंध के सामान है गुण।
पेरुमाल नामक विद्वान ने कहा है----गुणी का मतलब है--सब से प्यार से भरा बर्ताव।दूसरों के दुःख देख अफसोस प्रकट करना,बदनाम होने पर लज्जित होना,.
गुण का मतलब है अपनी सीख का पालन करना।
गुणवान का अर्थ है सब से मिलनसार होना।
कुलँदै नामक कवि ने लिखा है--गुणवानों के कारण ही संसार जीवित है;
नहीं तो मिट्टी में मिल जाएगा।
वल्लुवर ने कहा है-पहले गुणवानों का जन्म हुआ ;
बाद ही कई प्रकार के जीव रासियों का जन्म हुआ।
इसीलिये संसार चक्र स्थिरता से
घूम रहा है।
एक परिवार में माता-पिता,पुत्र,पुत्री आदि होने पर भी
धन कमानेवाले परिवार के मुखिया अर्थात पिता न होने पर वह परिवार नहीं है।
उसी प्रकार इस विशाल संसार में करोड़ों की संख्या में लोग होने पर भी गुणी थोड़े ही है।
गुणवान,विद्वान,महान संसार में जन्म न होने पर सभी जनता और जीव नष्ट हो जायेंगे।
एक बेजोड़ नागरिक बनने या बनाने के श्रेष्ठ गुण शिष्टता है।
दूसरा अपने कठोर मेहनत के धन को कृतज्ञता केलिए खर्च करना।
G.U.POPE ---WEALTH WITHOUT BENEFACTION.
HOARDED WEALTH
ऐसे लोग भी संसार में है,,जो अपने बचत संपत्ति का खर्च करने का मन नहीं रखते।कृतज्ञता के बिना दौलत का मतलब ही नहीं है;
वे खुद भी नहीं खाते
और दूसरों को भी नहीं खिलाते।
कवियरसर ने कहा --अगुणी अपनी संपत्ति को जोड़कर खुद न भोगता और
दूसरों को भी नहीं खिलाता। वह संपत्ति किसीका नहीं हो जाता।
यह भी एक अपराध है।
कृतज्ञता ज्ञानियों का गुण है।
वल्लुवर ने कहा --प्रसिद्ध व्यक्तियों की संपत्ति देते देते बढ़ेगी ही ;
घटेंगी नहीं।देते-देते दरिद्रता आने पर भी
जल्दी मिट जायेगी।
संसार की सम्पन्नता वर्षा पर निर्भर है।
पानी न बरसा तो भूमि सूख जायेगी।
फिर अति वर्षा होगी;समृद्धि बढ़ जायेगी।
नामी व्यक्ति की संपत्ति भी वर्षा के समान है।
चंद दिन कम होंगी ;फिर धन की अति वर्षा होगी।
कुरल:-
सीरुदैच चेल्वर सिरुतुनी मारी वरंग कूर्न्तनैया तुडैततु .
G.U.POPE ===TIS AS WHEN RAIN CLOUD IN THE HEAVEN GROWS DAY ,WHEN GENEROUS WEALTHY MAN ENDURES BRIEF POVERTY.
THE SHORT LIVED POVERTY OF THOSE WHO ARE NOBLE AND RICH IS LIKE THE CLOUDS BECOMING POOR(FOR A WHILE)
ISEE KO S.RATNAKUMAAR -----'A TEMPORARY SET BACK' कहते हैं।
गुणी धनी की दरिद्रता थोड़े दिनों के लिए है।दरिद्रता के दूर होते ही वे पहले से ज्यादा दीन -दुखियों की
मदद करेंगे।
यह काम ऐसा ही होगा जैसे धनुष में तीर डोरी पर
पीछे जाकर एक दम आगे चलता है।
यह एक महावीर के सामान है।
सुनागरिक के और एक गुण है
धर्म ,अर्थ,काम में दूसरों की निंदा का पात्र न बनना
अच्छे गुणवाले बुरे काम करने संकोच करेंगे।
यह लज्जा भी सुनागरिक का श्रेष्ठ गुण है।
एक नागरिक का बुरा गुण है--दुर्जनता।
मनोंमनीयम के लेखक पे.सुन्दरम्पिल्लाई
अपने नाटक के खलनायक
पात्र कुटिलन को अति घृणित रूप में वर्णन किया है।
वह पात्र जोंक के सामान रक्त चूसनेवाला पात्र है।
वल्लुवर ने महिलाओं के दुर्व्यवहारों को बताकर सतर्क रहने का सन्देश दिया हैं।केवल दुर्गुण का मात्र वल्लुवर इस में चित्रित करते हैं।
दुर्व्यवहार सभी नीच लोगों में है|
।
संसार की भलाई के विचार से दुर्व्यवहार और दुर्जनों की निंदा करते है।
वल्लुवर के शब्दों में दुर्जनों के प्रति उनका पूरा क्रोध प्रकट होता है।
दुर्जन या खलनायक भी समाज का एक अंग है।
उनको सुधारना पहला कर्त्तव्य है।
नहीं तो पूरा समाज बिगड़ जाएगा।
यही वल्लुवर के क्रोध का मूल है।
उनको तो दुर्जनों के प्रति क्रोध नहीं है।
एक खलनायक अपने से छोटे खलनायक को देखकर
अपने को बड़ा मानता है।
कुरल: अकप्पट्टी आवारैक कानिन अवरिन मिकप्पट्टू सेम्माक्कू कील।
अहंकार के कारण और अधिक अत्याचार करने लगता है।
ऐसे दुर्जनों को सुमार्ग पर लाना संत कवि वल्लुवर का ध्येय हो जाना सहज बात है।
दुर्जनों को सुधारना आसान नहीं है।
उसके लिए युद्ध करना पडेगा।
उनको ईख के सामान पीसकर रस निकालना चाहिए।ईर्ष्यालु को सुधारना अत्यंत कठिन है।अपने छोटी -सी बात केलिए अपने को ही बेचनेवाली होती है।
यह दुर्जनता नागरिकता का दुश्मन है।
इनके मन में सद्भावना लायेंगे तो संसार सर्वनाश हो जाएगा।
इन खल नायिकाओं को सुनागरिक बनाने के लिए वल्लुवर के दिखाए मार्ग पर जाना चाहिए।