Sunday, May 27, 2012

dosth --rishtaaमित्रता -रिश्ता++++1

सांसारिक  जीवन की स्थिरता केलिए  दृढ़ लक्ष्य के महानों का गुण सावश्यक है।

वैसे ही पारिवारिक जीवन-रिश्ता स्थिर  रहने केलिए
सच्ची दोस्ती  का रिश्ता  सुरक्षित खड़ी  है।

गुण के बाद दूसरा स्थान मित्रता के लिए है।

 मित्रता सांसारिक गुण है

शारीरिक अंग नशों से बंधे  हुए हैं। 

वैसे ही दिलों को बांधनेवाले नशें  हैं   मित्रता;

आँखों को न दिखाई पड़नेवाली मित्रता है।

वल्लुवर की बोली में और दृष्टी में व्यापक  दृष्टिकोण है
देश का मतलब , संसार से सम्बंधित है।
उनके दोहों का केंद्रीय भाव जग के लिए है;
जग का उद्धार  करना  उनका लक्ष्य  है।


वल्लुवर को सखा माननेवाले हैं--मदुरै इलंगकुमारणार .

सो .श्रुन्गारावेलन  ने" वल्लुवर मेरा सखा" नामक ग्रन्थ लिखा है।
कोष में दोस्त का मतलब स्नेह ,मित्र,रिश्ता ,प्यार  कहा गया है।

naagarikनागरिक++++उक

एक नागरिक का बुरा गुण है--दुर्जनता।
मनोंमनीयम  के लेखक पे.सुन्दरम्पिल्लाई
 अपने नाटक के खलनायक

पात्र कुटिलन  को अति घृणित रूप में वर्णन किया है।
वह पात्र जोंक के सामान रक्त चूसनेवाला पात्र है।
वल्लुवर ने महिलाओं के दुर्व्यवहारों को बताकर सतर्क रहने का सन्देश दिया  हैं।केवल  दुर्गुण का मात्र वल्लुवर इस में  चित्रित करते हैं।

दुर्व्यवहार  सभी नीच लोगों में है|
संसार की भलाई के विचार से दुर्व्यवहार और दुर्जनों की  निंदा करते है।

 वल्लुवर के शब्दों में दुर्जनों के प्रति उनका पूरा क्रोध प्रकट होता है।

दुर्जन या खलनायक भी समाज  का एक अंग है।
उनको सुधारना पहला कर्त्तव्य है। 
नहीं तो पूरा समाज बिगड़ जाएगा।
यही वल्लुवर के क्रोध का मूल है।
उनको तो दुर्जनों के प्रति क्रोध नहीं है।

एक खलनायक अपने से छोटे खलनायक को देखकर
अपने को बड़ा मानता है।
कुरल:  अकप्पट्टी   आवारैक  कानिन   अवरिन  मिकप्पट्टू  सेम्माक्कू  कील।


अहंकार के कारण और अधिक अत्याचार करने लगता है।

ऐसे दुर्जनों को सुमार्ग पर लाना संत कवि  वल्लुवर का ध्येय हो जाना सहज बात है।
दुर्जनों को सुधारना आसान नहीं है।
उसके लिए युद्ध करना पडेगा।
उनको  ईख के सामान पीसकर रस निकालना चाहिए।ईर्ष्यालु को सुधारना अत्यंत कठिन है।अपने छोटी -सी बात केलिए  अपने को ही बेचनेवाली होती है।

यह दुर्जनता नागरिकता का दुश्मन है।
इनके मन में सद्भावना लायेंगे तो संसार सर्वनाश हो जाएगा।
इन खल नायिकाओं को सुनागरिक बनाने  के  लिए  वल्लुवर के दिखाए मार्ग पर जाना चाहिए।






naagarikनागरिक++++ली

 स्त्रियों की लज्जा और पुरुषों की लज्जा में बड़ा फरक होता है।
महिलाएं अपनी शारीरिक बनावट और सुन्दरता के कारण लज्जित होती है तो 
पुरुष  अपने नीच कर्म के कारण।
अपने अयोग्य नालायक क्रिया से पुरुषों को समाज में बदनाम होता है।पुरुष को शर्मिन्दा होना पड़ता है।
फिर वह हमेशा के लिए  कलंकित होता है।मनुष्य अपने कर्मों से जीता है;उम्र से नहीं।
कुरल:

कर्मत्ताल नानुतल नानुत  तिरुनुतल   नल्लवर    नानुप्पिर.




G.U.POPE----TRUE MODESTY IS THE FEAR OF EVIL DEEDS,ALL OTHER MODESTY IS
SIMPLY THE LASHFULNESS OF VIRTUNOUS MAIDS.

IT IS CONSCIENCE ,AND NOT TIMIDITY THAT DETERS ONE FROM COMMITTING WRONG;TIMIDITY IS AN INNATE QUALITY WHILE CONSCIENCE   HAS TO BE DEVELOPED.

पुरुष जो आदर्श नागरिक है,वह बुराई करने से कांपता है;डरता है;भय-भीत होता है।

पुरुष  के लिए बड़ी मानसिक असहनीय पीड़ा है दरिद्रता।
कवयित्री अव्वैयार ने कहा है---दरिद्र से बड़ा दुःख और कोई नहीं है। गरीबी  एक क्रूर   है;अति  क्रूर 
जवानी की गरीबी  है;   असहनीय  पीडादायक है।

खेत और बल  जब है,तब खेती करनी है;नहीं तो गरीबी के  गड्ढे   में गिरना पडेगा।---संत वल्लुवर।


Saturday, May 26, 2012

naagarikनागरिक++++ok

एक बेजोड़ नागरिक बनने  या बनाने के  श्रेष्ठ गुण शिष्टता है।
दूसरा अपने कठोर मेहनत के धन को कृतज्ञता केलिए खर्च करना।

G.U.POPE ---WEALTH WITHOUT BENEFACTION.
HOARDED WEALTH
ऐसे  लोग  भी  संसार में है,,जो अपने बचत संपत्ति  का खर्च करने का मन नहीं रखते।कृतज्ञता के बिना दौलत का मतलब  ही नहीं है; 
वे  खुद भी नहीं खाते 
और दूसरों को भी नहीं खिलाते।
कवियरसर  ने कहा --अगुणी अपनी संपत्ति को जोड़कर खुद  न भोगता और
 दूसरों को भी नहीं खिलाता। वह संपत्ति किसीका नहीं हो जाता।
यह भी एक अपराध है।
कृतज्ञता  ज्ञानियों  का गुण है।

वल्लुवर ने कहा --प्रसिद्ध व्यक्तियों की संपत्ति देते देते बढ़ेगी ही ;
घटेंगी नहीं।देते-देते दरिद्रता आने पर भी 
जल्दी मिट जायेगी।
संसार की सम्पन्नता वर्षा पर निर्भर है।
पानी न बरसा तो भूमि सूख जायेगी।
फिर अति वर्षा होगी;समृद्धि  बढ़ जायेगी।
नामी व्यक्ति की संपत्ति भी वर्षा के समान है।
चंद  दिन कम होंगी ;फिर धन की अति वर्षा होगी।

कुरल:-

सीरुदैच  चेल्वर सिरुतुनी  मारी   वरंग कूर्न्तनैया  तुडैततु .


G.U.POPE ===TIS AS WHEN RAIN CLOUD IN THE HEAVEN GROWS DAY ,WHEN GENEROUS WEALTHY MAN ENDURES BRIEF POVERTY.
THE SHORT LIVED POVERTY OF THOSE WHO ARE NOBLE AND RICH IS LIKE THE CLOUDS BECOMING POOR(FOR A WHILE)
ISEE KO S.RATNAKUMAAR -----'A TEMPORARY SET BACK'  कहते हैं।

गुणी  धनी की दरिद्रता थोड़े दिनों के लिए है।दरिद्रता के दूर होते ही वे पहले से ज्यादा दीन -दुखियों की 
मदद करेंगे।
यह काम ऐसा ही होगा जैसे धनुष में  तीर डोरी  पर
 पीछे जाकर एक दम आगे चलता   है।
यह एक महावीर के सामान है।
सुनागरिक के और एक गुण है 
धर्म ,अर्थ,काम में दूसरों की निंदा  का पात्र न   बनना
अच्छे गुणवाले बुरे काम करने संकोच करेंगे।
यह लज्जा भी सुनागरिक  का श्रेष्ठ गुण है।

naagarikनागरिक++++pa

उत्कृष्टता  के सम्बन्ध  में निम्न विद्वानों के कथन देखिये:--

मनक्कडवर    ===बड़प्पन धर्म  और करुण की चाल , सहानुभूति  दिखाना,दया आदि  उत्कृष्टता  है।

परीती =====महानता परम्परागत अनुशासन पर दृढ़ रहने  में  है।

परिप्पेरुमाल==महानता का मतलब है सभी सद्गुणों से भरा संस्कार।
 धर्म और करुण  कर्म पर निर्भर है।

परिमेलअलकर===सद्गुणों से भरा व्यवहार।बडाई के गुण का संग्रह
.
कवि अरसर  ==सभी सद्गुणों से भरा व्यक्तित्व

सद्गुणों से भरे नागरिक   की योग्यता नाकाबयाबी की हालत में भी काबयाबी की प्राप्ति की दशा में रहना.

अच्छे  लोगों का लक्षण है  जो  अपने बराबर के  नहीं हैं,उनसे भी विनम्र और सद्भाव से व्यवहार करना।
अपनों से बड़ों से जैसे हार मानते हैं ,वैसे ही अपने से छोटों से भी हार मानना।

अपनों से बलवानों से जैसे हार मानते हैं,वैसे ही अपनों से दुर्बलों से भी हार मानना।
अपने से छोटों से भी हार मानने की मानसिक परिपकवता।
कुरल:-

साल्बिर्कू  कत्तालाई यातेनिन  तोल्वी  तुलैयल्लार  कन्नुम कोलाल।


अंग्रेजी में कहते है--WHAT IS PERFECTION'S TEST? THE EQUAL MIND.TO BEAR REPULSE FROM EVEN MEANER MEN RESIGNED.
THE TOUCH -STONE OF PERFECTION IS TO RECEIVE A DEFEAT EVEN AT THE HANDS OF ONE'SINFERIORS.
A PERSON'S NOBILITY  IS JUDGED FROM THE WAY HE BEHAVES WHEN DEFEATED BY A WEAKER OPPONONT.
एक  सुनागरिक होने  के लिए सज्जनता और अच्छी चाल-चलन मात्र काफी है।
स्वर्ण कमल में सुगंध के सामान है गुण।
  पेरुमाल  नामक विद्वान ने कहा है----गुणी  का मतलब है--सब  से प्यार से भरा बर्ताव।दूसरों के दुःख देख अफसोस प्रकट करना,बदनाम होने पर लज्जित होना,.
गुण का मतलब है अपनी सीख का पालन करना।
गुणवान  का अर्थ है सब से मिलनसार होना।
कुलँदै  नामक कवि  ने लिखा है--गुणवानों के कारण ही संसार जीवित है;
नहीं तो मिट्टी  में मिल जाएगा।
वल्लुवर ने कहा है-पहले गुणवानों का जन्म हुआ ;
बाद ही कई प्रकार के जीव रासियों का जन्म हुआ।
इसीलिये संसार चक्र स्थिरता से 
घूम रहा है।
एक परिवार में माता-पिता,पुत्र,पुत्री आदि होने पर भी
 धन कमानेवाले परिवार के मुखिया अर्थात पिता  न होने पर वह परिवार नहीं है।
उसी प्रकार इस विशाल संसार में करोड़ों की संख्या में लोग होने पर भी गुणी थोड़े ही है।
गुणवान,विद्वान,महान संसार में जन्म न होने पर सभी जनता और जीव नष्ट हो जायेंगे।




                                                                                       

Friday, May 25, 2012

naagarikनागरिक++++kl

बड़ा आदमी  का मतलब है,
धन के कारण,कर्म के कारण ,यश के कारण,गंभीरता के कारण,
श्रेष्ठता के कारण
जो  बड़ा दूसरों से कहलाता है,वही  बड़ा  है।
सुनागरिक  का पहचान चिन्ह  उच्च ज्ञान ,उपाधि नहीं।
अच्छी चाल -चलन, अनुशासन।
वल्लुवर ने सुनागरिक के लक्षण यही  कहे  है।

बड़े  लोग अन्यों  की गलतियों  को छिपाकर  बोलेंगे;
छोटे  लोग अन्यों के दोष ही बोलते रहेंगे।

बड़ों के गुण  भूल जायेंगे;माफ करेंगे।
छोटों के गुण नहीं  भूलेंगे; नहीं  माफ करेंगे।

कुरल :

अट्रम   मरैक्कुम  पेरुमै  सिरुमैतान  कुटरमे  कूरिविडुम।

पेरुमै पेरुमित  मिन्मै  सिरुमै  पेरुमित  मूर्न्तु विडल।


बीसवीं  शताब्दी में "NOTHING IS PERFECT"अंग्रेजी   

 बातों की व्याख्या की गयी हैं, उन्हें वल्लुवर ने दूसरी शताब्दी में ही बतायी है।
बात जो भी हो,जैसा भी हो,वह बढ़िया भी हो सकती है।
ऊंचा भी हो सकती है।
ज.यू. पोप  ने विद्वत्ता और शिष्ठाता को PERFECTNESS
 कहकर 19वीं सदी में व्याख्या की है।

तिरुक्कुरल की व्याख्या महाविद्वान सा.दंडपाणी  देशीकर
ने परीति ,परिप्पोरुल,कालीनगर,परिमेल अलकर  ,कविराजर आदि पांच आलोचकों की बातों को
संकलन करके   लिखा है।

naagarikनागरिक++++ज

भूताप्पानडीयन  ने  शपथ  किया कि 
  न लड़कर, अपने दुश्मन का सामना बिना किये
 यम के भय से पीठ दिखाकर भागनेवाले
 आँखों के तारे  के तारे होने  पर भी उनको  छोड़ दूंगा।

तमिल:-

अदान्गात्ताने  वेंदारुडनगियैत
  तेंनोडु   पोरुतु  मेंबवरै
   आलमरत  थाक्कित तेरोडू
 अवर  पुरंग कानेनायिर सिरंनद
 पेरमरुन्कनी  वलिनुम  पिरिक.



राजा की रानी भी कायर ,
युद्ध क्षेत्र से भागनेवाले को नहीं चाहती।
वीर पति बनकर  रण -क्षेत्र में
 वीरगति प्राप्त करना ही रानी के लिए गौरव की बात है।


नागरिक के सर्व श्रेष्ठ गुण ,बड़प्पन के योग्य गुण
 सहज रूप  में जो प्राप्त करता है
 वह अपूर्व कार्य करके दिखाता है।

वह जो भी करता  है,
न्याय और रीति से करता है।
ये बड़े लोग प्रशंसनीय बनते हैं।
ये नागरिक हैं।
छोटे गुणवाले  अहंकार ,अज्ञानता,स्वार्थ आदि
 निम्न विचार के होते हैं।
अतः वे निंदा के पात्र बनते हैं।

इन गुणों से दूर रहें  तो आदर्श नागरिक बनजाते हैं।

निम्न गुणवाले अपूर्व काम करने पर भी
अहंकार के कारण बड़े नहीं होते।
सद्गुण और  नागरिकता के गुण जिसमें नहीं है,
उसको अधिक संपत्ति मिल जाए तो उसका काम बन्दर के हाथ में

मिले मशाले की तरह हो जाएगा।
वह सर्वनाश कर देगा।

बड़े लोग विनम्र रहेंगे।
छोटे लोग आत्म प्रशंसा में लगे  रहेंगे।

बड़े लोगों को दुसरे लोग बड़ा बनायेंगे।
छोटे लोगों को खुद बड़े
बनने  के प्रयास में और भी छोटा होना  पडेगा।

भवनंदी नामक कवि  ने आत्मा -प्रशंसा के लायक
 चार स्थानों का  जिक्र किया  है।
राज-सभा,
अपनी शक्ति और कौशल न जाननेवाले,
स्थायी नाम देने की सभा,अपनी  बात के विरुद्ध बोलनेवाले
आदि के सामने आत्मा प्रशंसा करना ही उचित गुण है।

वल्लुवर ने कहा कि बड़े अपने मुख से अपने को बड़ा नहीं कहेंगे।

वे दूसरों के दोषों को छिपा देंगे।

आम सभा में दोषारोपण करना बड़ों का काम नहीं है।


कुरल :-पेरुमैयुडैया वराट्रू  वार  आटरिन  
 अरुमै  उडै य   सेयल .



छोटे लोग दूसरों के दोष  अल्प होने पर भी उसे बड़ा दोष बनाकर
 दूसरों को अपमानित करेंगे।

बड़ों का गुण दूसरों के दोषों को भूलना और माफ करना।छोटों का गुण दूसरों के दोषों को नहीं भूलना और माफ
न करना।

सिरियार  उनर्च्चियुल  इल्लै  पेरियारैप  पेनिक कोल्वे  मेंनुम नोक्कु।



बड़े लोग जानते हैं कि भूल   करना मनुष्य का सहज गुण है।

भूले भड़के लोगों की भूलों को सुधारना बड़ों का काम है।

अतः वे मनुष्य   की भूलों को भरी सभा में प्रकट नहीं करेंगे।



   

naagarikनागरिक ++++का

नालाडियार  में  भी  वल्लुवर   की विचार धारा की झलक मिलती है। 
बिना खाए,  यशोत्पन्न काम बिना किये,
  दुश्मनों से दुःख दूर न करनेवाला 
निष्फल धन दान न देनेवाला ,
अर्थ छिपाकर रखनेवाला 
संसार में सबकुछ खोयेगा  ही।।.


तमिल नालादियार :-

उन्नन ओली निरान  ओंगु  पुकल  सेयान
तुन्नरुंग केलीर  तुयर्कलैयान  -कोन्ने
वलन्गान  पोरुल  कात्तिरुप्पानेल  अ ,आ 
इलन्तान  एन्रेंनप्पड़ुम। 

दुसरे तिरुक्कुरल में वल्लुवर ने कहा है ---
  
जन्म से कोई बड़ा नहीं होगा।
 जन्म के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई अंतर नहीं।
अपने महत्वपूर्ण कर्म से ही मनुष्य बड़ा बनेगा।

kural:
"पिरप्पोक्कुम    एल्ला  उयिर्क्कुम   सिराप्पोव्वा   सेय  तोलिल वेट्रु मियान ."


people are born alike but their self esteem
varous because of the jobs they do for a living.

अपराध के पेशा करके जीनेवालों से
अच्छे धंधा करके जीनेवाला ही श्रेष्ठ है।
जन्म से सब बराबर ही है।
काम के अनुसार ही बड़े छोटे का भेद
मनुष्यों में हो जाता है।
तिरुवल्लुवर ने अपने कुरल में कहा है,
बड़े लोग कठिनतम असंभव काम  करेंगे;
छोटे लोग काम कर नहीं पाते।

छोटे   लोग  बड़ों  के संघ में रहकर भी छोटे ही रहेंगे ;
बड़े लोग छोटों के संग  में  रहकर भी  बड़े  ही रहेंगे।
कुरल:

सेयर्करिय  सेय्वर  पेरियर  ;
 सिरियर  सेयर्करिय सेय्कलातार।

  मेलिरुन्तुम मेलल्लार  मेलल्लर
  कीलिरुन्तुंग   कीलललार  कीलल्ल्रर.

स्त्री अपनी इच्छाओं को दबा लेती है।
अपने  दुर्वासनाओं को दबाकर अपने को बचा लेती है।
वैसे ही चाल पुरुष 
करेगा तो बड़ा आदमी हो जाएगा।

वल्लुवर ने वेश्याओं को दो मनवाली कहा है।
भ द्र कुल की  महिलाओं को एक दिलवाली बतायी है।
एक स्त्री को मन और शरीर को अपने काबू में रखना चाहिए।
पतिव्रता के समान पत्नी व्रत  पुरुषों का भी जरूरत है।
 सांसारिक ग्रन्थ और धार्मिक ग्रन्थ लिखनेवालों में 
यही फरक है।


naagarik++++

दूसरों से जो काम असंभव है,
जो करने में कठिन है,
उसे करने में मनुष्य को गौरव है।
उसमें उसकी बडाई है।
बडाई है तो वहां छोटापन भी होगा ही।
असंभव को संभव करके दिखाना
 एक सुनागरिक का कर्त्तव्य है।
मनुष्य का जीवन उज्ज्वल होना चाहिए।
यश भरा जीवन जीने में आत्मा को  संतोष होगा ही।
संपत्ति जोड़ने में जो आनंद है ,
वह अल्प काल केलिए ही।
संपत्ति का सुख स्थायी नहीं है।
कर्म फल और उससे मिलनेवाला यश स्थायी है।

naagarikनागरिक++++

तिरुवल्लुवर  मान मर्यादा को इतना महत्व देते हैं कि मान  ही जान से श्रेष्ठ है। कवरी मान एक तरह का हिरन है।
वह अपने बाल के गिर जाने पर प्राण छोड़ देगा।
वैसे ही मर्यादा की रक्षा के लिए
लोग प्राण देंगे।
अज्ञान लोगों को समझाने के लिए
 वल्लुवर ने बाल शब्द का प्रयोग किया है।
वल्लुवर ने एक नागरिक के लिए मान को ही सर्वश्रेष्ठ माना है।
जन्म से कोई  ऊँच -नीच नहीं हो सकता।
  मनुष्य अपने कर्म से ही बड़ा बनता है।
हर नागरिक केलिए बड़प्पन की अत्यावश्यक है।

नागरिक++++

प्यार,इश्क, लज्जा  ,प्राण  आदि शब्दों  के ढाई अक्षर हैं। किसी भी हालत में अपनी राय से निम्न दशा  पर  जाना उचित नहीं है।
अपनी दशा नीच होने पर मरना श्रेष्ठ है .
ऐसे ही सभी ग्रंथकार बताते हैं।
मान शब्द केलिए कई प्रकार की व्याख्या दे सकते हैं|
संक्षेप में कहें तो मान भावना के सामने प्राण तुच्छ है।
अपनी ही गलती पर खुद पछताना ही मान या मर्यादा है।
और शोध करें तो मान -मर्यादा।
 अपने परिवार और अपने देश से सम्बंधित है।
स्वार्थ वश अपना अपयश,,अपनी संपत्ति 
अपना दुःख आदि के अर्थ  मान से  परे  बदनाम है।

अपने से अपना देश बड़ा है।अपने देश से जग बड़ा है।
अपने देशवासी बड़े हैं।
उनसे बड़ा है सांसारिक एकता।
बड़े से बड़ा ही मान है।
महाकवि भारती  ने बड़े से बड़ा सुना  कहते हैं।
वह यही है।कुछ लोग अपने ही दायरे को सोचते हैं।
दुसरे  लोग  अपने ऊंचे लक्ष्य पर पहुं चने केलिये  संघर्ष करते हैं।
अपने भोजन के लिए वे संघर्ष नहीं करते।

अपने ऊंचे  लक्ष्य केलिए प्राण देने के लिए प्रस्तुत रहेंगे।
प्राण देना उन केलिए आनंद की बात है।
इस भाव को ही मान -मर्यादा कहते हैं।
वल्लुवर इस मान को ही प्रधानता देते हैं।
उच्च कुल्वाले बदनाम प्राप्त करेंगे या नीच हो जायेंगे तो
 उनकी दशा सर से गिरे बाल के समान  है।
बहुत अपमानित होंगे।
एक घड़े भर के दूध के लिए एक बूँद विष काफी है।
एक घर जलाने एक चिंगारी काफी है।
बड़े उच्च कुल्वाले तिनके बराबर की गलती करने पर  भी
  बड़ा बदनाम ही प्राप्त करेंगे।
उनके बड़े काम लोग भूल जायेंगे।

kural:

 "पुकलिनराल  पुततेल  नाटटू  उय्याताल   एन्मर  रिकल्वर  पिन सेनरु  नीलै ."

A PERSON WHO SUBMITS TO OPPRESSORS TO GAIN PERSONAL GLORY IS UNDIGNIFIED;HE WILL NEITHER BE HONORED WHEN HE IS ALIVE NOR BE REMEMBERED WHEN HE IS DEAD.

अपने मान मर्यादा छोड़
 नाम केलिए अपने अपमान करनेवालों के पीछे जाने पर
अपयश ही होगा।
दुश्मनों का साथी बनकर जीने से
गरीबी की हालत में ही मर जाना बेहतर है।

naagarikनागरिक+++



वल्लुवर  ने नागरिकता की विशेषता को यों बताया  है----
आप भला चाहते हैं तो    आपको  बुरे काम  करने  में  संकोच चाहिए।
  आप के कुल श्रेष्ठ  होने  के   लिए विनम्रता  की  आवश्यकता  है।

"नलम  वेंडिंन   नानुडमै   वेंडुम   कुलं  वेंडिन  वेंडुक  यार्क्कुम  पनिवु।" (तमिल)

  बड़प्पन  हमेशा विनम्रता  में  है।
  जिसमें  विनम्रता  के  गुण  नहीं  है ,
  वे बड़े  होने  पर भी  छोटे  ही  है।

 "पनियुमाम  एन्रुम पेरुमै  सिरुमै   ,अनियुमाम  तन्नै  वियंदु ".(तमिल)

  जिसमें  नम्रता  है ,   उनका  मन  ही  धनियों  में बड़ा  धनी  है।।

 हरी मिटटी  को  बर्तन बनाकर ,आग में तपाकर  घड़ा  बनाने  पर
  वह सुन्दर  बाजा  बनता  है।    वैसे  ही

सामान्य व्यक्ति कई प्रकार की  अग्नि  परीक्षा के बाद   ही  नागरिक   बनता  है।  
 नागरक बनने   के लिए   सम्मान  को  ही प्राथमिकता  देना  आवश्यक  है।(honour/dignity)

                                                                                                                                                                         

Thursday, May 24, 2012

naagarikनागरिक++++

मनुष्य मन में परम्परा और परिस्थिति के कारण
 सद्भाव एक कोने में जमा रहता है।
वह परम्परागत संस्कार ही
 फिर बरगद के पेड़ के  समान  विकसित  होता है।
वही नागरिकता  का  बीज है।
तोल्काप्पियर ने कहा है--  
 "नाडुम  ऊरुम  इयलुम  इयल्बुम   कुडियुम  पिरप्पुम  सिरप्प  नोक्की"।  
देश- शहर  का  स्वभाव नागरिक   के   गुण - विशेषता  के  कारण  बढ़ता है।
एक अच्छे नागरिक के तीन गुण हैं-----वे अनुशासन,सच्चाई ,लज्जाशीलता।
 ( बुराई  करने से होनेवाला संकोच).
 इन्हींको  मन,भाषा और शारीरिक -व्यवस्था  आदि का  परिणाम  कहते हैं।

इन तीनों को कोई जान लेगा तो वही नागरिक है।
जो नागरिक बन रहा हैं उनके गुण हैं-----
दूसरों का अपमानित न करना।
एक नागरिक बन गया है का मतलब है 
वह पद,धन-दौलत प्राप्त करने पर भी
 अपने  सदव्यवहारों   से हटा नहीं।

ऐसे नागरिक अपने माता-पिता या अपने खानदान से
प्राप्त दानशीलता से  न पीछे मुड़ने का गुणवाला  होता  है।

पुरप्पोरुल वेंबा मालै   ग्रन्थ में  कहा  गया है---
प्राचीन नागरिकता का मतलब है---
पाषाण  या रेत  के उत्पन्न होने के पहले ही
तलवार सहित जन्मे प्रथम नागरिक तमिल नागरिक   है।

शिलप्पधिकारम महाकाव्य में पुकार -खंड में
-पुकार शहर रंक रहित प्रसिद्ध नागरिक वाला  शहर  है; ऊँचे कुल के  हैं।

"आट्रुप  पेरुक्कट्रू   अडि  सुडुम  अन्नालुम  ऊत्रुप्पेरुक्काल  उलकूट्रुम   -एट्र तोरू

नल्ल   कुडिप्पिरंथार  आनालुम ,इल्लै  येन  माटटार  इसैन्तु।"
(  नाल्वली  ग्रन्थ  का तमिल  पद्य)

उस  शहर  के  नागरिक बड़े
कार्य ही करते रहेंगे।
नदी में पानी  सूख  जानें पर भी,
रेत   को जलाने की दशा होने पर भी
नदी के खोदने पर स्रोत का पानी मिलेगा ही।
वैसे ही अच्छे उच्च कुल्वाला गरीब होने पर भी ,
अपनी दानशीलता नहीं खोएगा।
 सुनागरिक अपने संस्कार से जरा फिसलने पर भी,
 अपने और सार्वजनिक जीवन में  निंदा का पात्र  बन  जाएगा।
उसकी सफलता  भी  उसके पैर  फिसलने  पर
 हार में बदल जायेंगी।
तिरुवल्लुवर  ने आगे नागरिकों को सतर्कता से रहने का सन्देश देते हैं---
अयोग्य या दुःख भरे शब्दों को बोलकर
दूसरों की दृष्टी से गिरो मत।
बोली  तो खतरनाक है--- तमिल की एक लोकोक्ति है --बोलने जा रहे हो या मरने।
बोलने की  ध्वनी  या शब्द सुननेवाले पर  तीखा  बाण चलाएगा तो 
 जान  का ख़तरा होना सुनिश्चित है।
खेत के गुण को बढनेवाला  पौधा बता देगा मिट्टी;
 वैसे ही एक व्यक्ति के मुख  से  निकलनेवाले शब्द
 मनुष्य स्वभाव का परिचय  करा देगा।
कवयित्री अव्वैयार ने कहा है क़ि---कुल के अनुसार ही गुण होंगे
।होनहार बिरवान के  होत  चीकने पात।
"a person's mannerisms will effect the enviorenment that nutured him like the quality of the crops which refkect the characteristic of the soil".

naagariktaनागरिक+++

पाश्चात्य विदवान जी.यू.पोप ने 
सज्जनता को  ही
नागरिकता मानते है।
रत्नकुमार नामक  सज्जन ने अपने ग्रन्थ 
, " qualities of human race" में  नागरिकता  की व्याख्या की है।
 उच्च कुल में न जन्म लेने पर एक व्यक्ति दूसरों के साथ 
  सज्जनता का व्यवहार करने  में  असमर्थ  हो जाता  है।
 only  human beings  have the potential  to  develop  a sense  of justice  and guilt."
"नागरिकता का  गुण एक व्यक्ति को
माँ की गर्भावस्था में ही उत्पन्न होना है
तभी उस गुण को और भी उन्नत कर सकता है।
यह वल्लुवर का राय  है।
यह गुण ऐसे ही लोक के  व्यवहार में पाया जाता है।
प्राचीन काल में संसार एक परिवार-सा जीवन नहीं बिताया।
छोटे छोटे ग्रामों में छोटे-छोटे परिवार ही एक दूसरे से रिश्ता रख सका।

अतः एक व्यक्ति का गुण उसके माता-पिता  के गुणानुकूल होता है ।

पैतृक पौरुष ,बल,सहन शीलता,
दुश्मनी आदि गुण जन्मजात मिला।

आज संसार ही एक परिवार में सिमट गया।
आज एक परिवार में जन्म  लेकर दुसरे परिवार  में पलना,नयी परिस्थिति में शिक्षा,
खाना,खेलना  सहज  बात हो गई.
ग्राम्य जीवन शहरी बन गया।
पैतृक गुण में परिवर्तन आ  गया।
नयी सभ्यता और संस्कृति का संपर्क
पुरानी बातों  के विरुद्ध
 विचार उत्पन्न करने लगा।

 समाचार -पत्र,आकाशवाणी,दूरदर्शन आदि
जन-सम्पर्क के साधनों के बीच
 पुराने विचार दिल के  कोने में ही स्थान पाते हैं
या छिप जाते हैं।

नागरिक ++++

    एक  देश  के  नागरिकों को ही अपने देश  के  नागरिकों को
    सभी तरह से ऊंचा उठाने   की  जिम्मेदारी  है।
  लज्जाशीलता के बाद  सुनागरिक   बनाना
  प्रमुख  कर्तव्य  हो  जाता है।
  एक गुरु ही मिट्टी जैसे एक छात्र को
   अपने जैसे दूसरा गुरु   बनाने  में समर्थ  होता  है।
 इसी सेवा को वल्लुवर भी अपने कुशल सीख के द्वारा 
सुनागरिक बना रहे हैं।
 एक नागरिक बनने   -बनाने अपनी नागारिकता का ज्ञान जरूरी हैं।
तिरुवल्लुवर ज्ञान के सभी   विषयों  के ज्ञाता होने से नागरिकता के आवश्यक तत्व्  भी जानते हैं।

    एक  देश  के  नागरिकों को ही अपने देश  के  नागरिकों को
    सभी तरह से ऊंचा उठाने   की  जिम्मेदारी  है।
  लज्जाशीलता के बाद  सुनागरिक   बनाना
  प्रमुख  कर्तव्य  हो  जाता है।
  एक गुरु ही मिट्टी जैसे एक छात्र को
   अपने जैसे दूसरा गुरु   बनाने  में समर्थ  होता  है।
 इसी सेवा को वल्लुवर भी अपने कुशल सीख के द्वारा
सुनागरिक बना रहे हैं।
 एक नागरिक बनने   -बनाने अपनी नागारिकता का ज्ञान जरूरी हैं।

तिरुवल्लुवर ज्ञान के सभी  विषयों  के ज्ञाता होने से नागरिकता के आवश्यक तत्व्  भी जानते हैं।



naagarikनागरिक ++++

नागरिकता ही नागरिक-शास्त्र में प्रधानता  होने  से ,
उसको प्राथमिकता दी जाती  है।
मान  केलिए दूसरा स्थान है।
मान-मर्यादा मनुष्यता को   बड़ा बनाता है।
वही स्थायी रूप देता है।
विद्वत्ता और शिष्ठता मान के बाद का स्थान प्राप्त करता है।
कई अच्छे गुण के  होने पर भी,
 दूसरों  के  स्वभाव  को जान--समझकर 
 व्यवहार करना जरूरी है।
अतः विद्वत्ता के बाद चाल-चलन और संस्कृती  को 
 वरिष्ठता   दी जाती है ।

Wednesday, May 23, 2012

नागरिक ++++

 राजनीति, प्रशासन, सुरक्षा, सैनिक, कर्तव्य, मित्रता और नागारिकता
 अर्थ भाग के   सात  सर्ग    हैं।  इन   सात सर्गों   में नागरिकता  सर्ग ही
 अच्छे नागरिक बनाने में   साथ  देता  हैं। 


  नागरिकता  के अधिकारं में नागरिक बनवाने के  छे अधिकारम  होते  हैं।
 उनमें समाझाये गए हैं कि नागरिकता, विद्वत्ता,नम्रता, आदि  श्रेष्ठ गुण होने पर ही
एक आदर्श नागरिक को  बना  सकते हैं.
 इन गुणों  के अभाव  में,क्या  कोई 
 सुनागरिक  बन सकता है? 

नागरिक- page-1 ++++

नागरिक

नागरिक  के दो   अर्थ हैं - 

  1. भद्र कुल में जन्म
  2. एक देश की प्रजा

नागरिक जीवन का मतलब है कि  शिष्ट व्यवस्थित जीवन।
  
सुनागरिक उचित वातावरण में खुद बनता है या बनाया जाता है।
 
सुनागरिक बनने  केलिए केवल माता -पिता जिम्मेदारी नहीं होते।  दूसरे  लोग भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कारक बनते है।
  
विशेष रूप में तिरुवल्लुवर इसके मूल कार्य करता हैं
 एक नागरिक ही दूसरे  नागरिक  को   सुनागरिक
 बनाने में समर्थ हो सकता  है।  
उस दृष्टिकोण में तिरुवल्लुवर एक बढ़िया नागरिक हैं।
 
एक दीपक ही  दूसरे  दीपक को प्रज्वलित कर सकता है।
  
अन्धकार प्रकाश नहीं दे सकता।
 राजनीति, प्रशासन, सुरक्षा, सैनिक, कर्तव्य, मित्रता और नागारिकता
 अर्थ भाग के   सात  सर्ग    हैं।  इन   सात सर्गों   में नागरिकता  सर्ग ही
 अच्छे नागरिक बनाने में   साथ  देता  हैं। 



  नागरिकता  के अधिकारं में नागरिक बनवाने के  छे अधिकारम  होते  हैं।
 उनमें समाझाये गए हैं कि नागरिकता, विद्वत्ता,नम्रता, आदि  श्रेष्ठ गुण होने पर ही
एक आदर्श नागरिक को  बना  सकते हैं.
 इन गुणों  के अभाव  में,क्या  कोई 
 सुनागरिक  बन सकता है?
नागरिकता ही नागरिक-शास्त्र में प्रधानता  होने  से ,
उसको प्राथमिकता दी जाती  है।
मान  केलिए दूसरा स्थान है।
मान-मर्यादा मनुष्यता को   बड़ा बनाता है।
वही स्थायी रूप देता है।
विद्वत्ता और शिष्ठता मान के बाद का स्थान प्राप्त करता है।

कई अच्छे गुण के  होने पर भी,
 दूसरों  के  स्वभाव  को जान--समझकर
 व्यवहार करना जरूरी है।
अतः विद्वत्ता के बाद चाल-चलन और संस्कृती  को
 वरिष्ठता   दी जाती है ।
पाश्चात्य विदवान जी.यू.पोप ने
सज्जनता को  ही
नागरिकता मानते है।
रत्नकुमार नामक  सज्जन ने अपने ग्रन्थ 
, " qualities of human race" में  नागरिकता  की व्याख्या की है।
 उच्च कुल में न जन्म लेने पर एक व्यक्ति दूसरों के साथ 
  सज्जनता का व्यवहार करने  में  असमर्थ  हो जाता  है।
 only  human beings  have the potential  to  develop  a sense  of justice  and guilt."
"नागरिकता का  गुण एक व्यक्ति को
माँ की गर्भावस्था में ही उत्पन्न होना है
तभी उस गुण को और भी उन्नत कर सकता है।
यह वल्लुवर का राय  है।
यह गुण ऐसे ही लोक के  व्यवहार में पाया जाता है।
प्राचीन काल में संसार एक परिवार-सा जीवन नहीं बिताया।
छोटे छोटे ग्रामों में छोटे-छोटे परिवार ही एक दूसरे से रिश्ता रख सका।

अतः एक व्यक्ति का गुण उसके माता-पिता  के गुणानुकूल होता है ।

पैतृक पौरुष ,बल,सहन शीलता,
दुश्मनी आदि गुण जन्मजात मिला।

आज संसार ही एक परिवार में सिमट गया।
आज एक परिवार में जन्म  लेकर दुसरे परिवार  में पलना,नयी परिस्थिति में शिक्षा,
खाना,खेलना  सहज  बात हो गई.
ग्राम्य जीवन शहरी बन गया।
पैतृक गुण में परिवर्तन आ  गया।
नयी सभ्यता और संस्कृति का संपर्क
पुरानी बातों  के विरुद्ध
 विचार उत्पन्न करने लगा।

 समाचार -पत्र,आकाशवाणी,दूरदर्शन आदि
जन-सम्पर्क के साधनों के बीच
 पुराने विचार दिल के  कोने में ही स्थान पाते हैं
या छिप जाते हैं।
मनुष्य मन में परम्परा और परिस्थिति के कारण
 सद्भाव एक कोने में जमा रहता है।
वह परम्परागत संस्कार ही
 फिर बरगद के पेड़ के  समान  विकसित  होता है।
वही नागरिकता  का  बीज है।
तोल्काप्पियर ने कहा है--
 "नाडुम  ऊरुम  इयलुम  इयल्बुम   कुडियुम  पिरप्पुम  सिरप्प  नोक्की"।  
देश- शहर  का  स्वभाव नागरिक   के   गुण - विशेषता  के  कारण  बढ़ता है।
एक अच्छे नागरिक के तीन गुण हैं-----वे अनुशासन,सच्चाई ,लज्जाशीलता।
 ( बुराई  करने से होनेवाला संकोच).
 इन्हींको  मन,भाषा और शारीरिक -व्यवस्था  आदि का  परिणाम  कहते हैं।

इन तीनों को कोई जान लेगा तो वही नागरिक है।
जो नागरिक बन रहा हैं उनके गुण हैं-----
दूसरों का अपमानित न करना।
एक नागरिक बन गया है का मतलब है 
वह पद,धन-दौलत प्राप्त करने पर भी
 अपने  सदव्यवहारों   से हटा नहीं।

ऐसे नागरिक अपने माता-पिता या अपने खानदान से
प्राप्त दानशीलता से  न पीछे मुड़ने का गुणवाला  होता  है।

पुरप्पोरुल वेंबा मालै   ग्रन्थ में  कहा  गया है---
प्राचीन नागरिकता का मतलब है---
पाषाण  या रेत  के उत्पन्न होने के पहले ही
तलवार सहित जन्मे प्रथम नागरिक तमिल नागरिक   है।

शिलप्पधिकारम महाकाव्य में पुकार -खंड में
-पुकार शहर रंक रहित प्रसिद्ध नागरिक वाला  शहर  है; ऊँचे कुल के  हैं।

"आट्रुप  पेरुक्कट्रू   अडि  सुडुम  अन्नालुम  ऊत्रुप्पेरुक्काल  उलकूट्रुम   -एट्र तोरू

नल्ल   कुडिप्पिरंथार  आनालुम ,इल्लै  येन  माटटार  इसैन्तु।"
(  नाल्वली  ग्रन्थ  का तमिल  पद्य)

उस  शहर  के  नागरिक बड़े
कार्य ही करते रहेंगे।
नदी में पानी  सूख  जानें पर भी,
रेत   को जलाने की दशा होने पर भी
नदी के खोदने पर स्रोत का पानी मिलेगा ही।
वैसे ही अच्छे उच्च कुल्वाला गरीब होने पर भी ,
अपनी दानशीलता नहीं खोएगा।
 सुनागरिक अपने संस्कार से जरा फिसलने पर भी,
 अपने और सार्वजनिक जीवन में  निंदा का पात्र  बन  जाएगा।
उसकी सफलता  भी  उसके पैर  फिसलने  पर
 हार में बदल जायेंगी।
तिरुवल्लुवर  ने आगे नागरिकों को सतर्कता से रहने का सन्देश देते हैं---
अयोग्य या दुःख भरे शब्दों को बोलकर
दूसरों की दृष्टी से गिरो मत।
बोली  तो खतरनाक है--- तमिल की एक लोकोक्ति है --बोलने जा रहे हो या मरने।
बोलने की  ध्वनी  या शब्द सुननेवाले पर  तीखा  बाण चलाएगा तो
 जान  का ख़तरा होना सुनिश्चित है।
खेत के गुण को बढनेवाला  पौधा बता देगा मिट्टी;
 वैसे ही एक व्यक्ति के मुख  से  निकलनेवाले शब्द
 मनुष्य स्वभाव का परिचय  करा देगा।
कवयित्री अव्वैयार ने कहा है क़ि---कुल के अनुसार ही गुण होंगे
।होनहार बिरवान के  होत  चीकने पात।
"a person's mannerisms will effect the enviorenment that nutured him
 like the quality of the crops which refkect the characteristic of the soil".



वल्लुवर  ने नागरिकता की विशेषता को यों बताया  है----
आप भला चाहते हैं तो    आपको  बुरे काम  करने  में  संकोच चाहिए।
  आप के कुल श्रेष्ठ  होने  के   लिए विनम्रता  की  आवश्यकता  है।

"नलम  वेंडिंन   नानुडमै   वेंडुम   कुलं  वेंडिन  वेंडुक  यार्क्कुम  पनिवु।" (तमिल)

  बड़प्पन  हमेशा विनम्रता  में  है।
  जिसमें  विनम्रता  के  गुण  नहीं  है ,
  वे बड़े  होने  पर भी  छोटे  ही  है।

 "पनियुमाम  एन्रुम पेरुमै  सिरुमै   ,अनियुमाम  तन्नै  वियंदु ".(तमिल)

  जिसमें  नम्रता  है ,   उनका  मन  ही  धनियों  में बड़ा  धनी  है।।

 हरी मिटटी  को  बर्तन बनाकर ,आग में तपाकर  घड़ा  बनाने  पर
  वह सुन्दर  बाजा  बनता  है।    वैसे  ही

सामान्य व्यक्ति कई प्रकार की  अग्नि  परीक्षा के बाद   ही  नागरिक   बनता  है।
 नागरक बनने   के लिए   सम्मान  को  ही प्राथमिकता  देना  आवश्यक  है।(honour/dignity)
प्यार,इश्क, लज्जा  ,प्राण  आदि शब्दों  के ढाई अक्षर हैं। किसी भी हालत में अपनी राय से निम्न दशा  पर  जाना उचित नहीं है।
अपनी दशा नीच होने पर मरना श्रेष्ठ है .
ऐसे ही सभी ग्रंथकार बताते हैं।
मान शब्द केलिए कई प्रकार की व्याख्या दे सकते हैं|
संक्षेप में कहें तो मान भावना के सामने प्राण तुच्छ है।
अपनी ही गलती पर खुद पछताना ही मान या मर्यादा है।
और शोध करें तो मान -मर्यादा।
 अपने परिवार और अपने देश से सम्बंधित है।
स्वार्थ वश अपना अपयश,,अपनी संपत्ति 
अपना दुःख आदि के अर्थ  मान से  परे  बदनाम है।

अपने से अपना देश बड़ा है।अपने देश से जग बड़ा है।
अपने देशवासी बड़े हैं।
उनसे बड़ा है सांसारिक एकता।
बड़े से बड़ा ही मान है।
महाकवि भारती  ने बड़े से बड़ा सुना  कहते हैं।
वह यही है।कुछ लोग अपने ही दायरे को सोचते हैं।
दुसरे  लोग  अपने ऊंचे लक्ष्य पर पहुं चने केलिये  संघर्ष करते हैं।
अपने भोजन के लिए वे संघर्ष नहीं करते।

अपने ऊंचे  लक्ष्य केलिए प्राण देने के लिए प्रस्तुत रहेंगे।
प्राण देना उन केलिए आनंद की बात है।
इस भाव को ही मान -मर्यादा कहते हैं।
वल्लुवर इस मान को ही प्रधानता देते हैं।
उच्च कुल्वाले बदनाम प्राप्त करेंगे या नीच हो जायेंगे तो
 उनकी दशा सर से गिरे बाल के समान  है।
बहुत अपमानित होंगे।
एक घड़े भर के दूध के लिए एक बूँद विष काफी है।
एक घर जलाने एक चिंगारी काफी है।
बड़े उच्च कुल्वाले तिनके बराबर की गलती करने पर  भी
  बड़ा बदनाम ही प्राप्त करेंगे।
उनके बड़े काम लोग भूल जायेंगे।

kural:

 "पुकलिनराल  पुततेल  नाटटू  उय्याताल   एन्मर  रिकल्वर  पिन सेनरु  नीलै ."

A PERSON WHO SUBMITS TO OPPRESSORS TO GAIN PERSONAL GLORY IS UNDIGNIFIED;HE WILL NEITHER BE HONORED WHEN HE IS ALIVE NOR BE REMEMBERED WHEN HE IS DEAD.

अपने मान मर्यादा छोड़
 नाम केलिए अपने अपमान करनेवालों के पीछे जाने पर
अपयश ही होगा।
दुश्मनों का साथी बनकर जीने से
गरीबी की हालत में ही मर जाना बेहतर है।

नालाडियार  में  भी  वल्लुवर   की विचार धारा की झलक मिलती है। 
बिना खाए,  यशोत्पन्न काम बिना किये,
  दुश्मनों से दुःख दूर न करनेवाला 
निष्फल धन दान न देनेवाला ,
अर्थ छिपाकर रखनेवाला 
संसार में सबकुछ खोयेगा  ही।।.


तमिल नालादियार :-

उन्नन ओली निरान  ओंगु  पुकल  सेयान
तुन्नरुंग केलीर  तुयर्कलैयान  -कोन्ने
वलन्गान  पोरुल  कात्तिरुप्पानेल  अ ,आ 
इलन्तान  एन्रेंनप्पड़ुम। 

दुसरे तिरुक्कुरल में वल्लुवर ने कहा है ---
  
जन्म से कोई बड़ा नहीं होगा।
 जन्म के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई अंतर नहीं।
अपने महत्वपूर्ण कर्म से ही मनुष्य बड़ा बनेगा।

kural:
"पिरप्पोक्कुम    एल्ला  उयिर्क्कुम   सिराप्पोव्वा   सेय  तोलिल वेट्रु मियान ."


people are born alike but their self esteem
varous because of the jobs they do for a living.

अपराध के पेशा करके जीनेवालों से
अच्छे धंधा करके जीनेवाला ही श्रेष्ठ है।
जन्म से सब बराबर ही है।
काम के अनुसार ही बड़े छोटे का भेद
मनुष्यों में हो जाता है।
तिरुवल्लुवर ने अपने कुरल में कहा है,
बड़े लोग कठिनतम असंभव काम  करेंगे;
छोटे लोग काम कर नहीं पाते।

छोटे   लोग  बड़ों  के संघ में रहकर भी छोटे ही रहेंगे ;
बड़े लोग छोटों के संग  में  रहकर भी  बड़े  ही रहेंगे।
कुरल:

सेयर्करिय  सेय्वर  पेरियर  ;
 सिरियर  सेयर्करिय सेय्कलातार।

  मेलिरुन्तुम मेलल्लार  मेलल्लर
  कीलिरुन्तुंग   कीलललार  कीलल्ल्रर.

स्त्री अपनी इच्छाओं को दबा लेती है।
अपने  दुर्वासनाओं को दबाकर अपने को बचा लेती है।
वैसे ही चाल पुरुष 
करेगा तो बड़ा आदमी हो जाएगा।

वल्लुवर ने वेश्याओं को दो मनवाली कहा है।
भ द्र कुल की  महिलाओं को एक दिलवाली बतायी है।
एक स्त्री को मन और शरीर को अपने काबू में रखना चाहिए।
पतिव्रता के समान पत्नी व्रत  पुरुषों का भी जरूरत है।
 सांसारिक ग्रन्थ और धार्मिक ग्रन्थ लिखनेवालों में 
यही फरक है।

बड़ा आदमी  का मतलब है,
धन के कारण,कर्म के कारण ,यश के कारण,गंभीरता के कारण,
श्रेष्ठता के कारण
जो  बड़ा दूसरों से कहलाता है,वही  बड़ा  है।
सुनागरिक  का पहचान चिन्ह  उच्च ज्ञान ,उपाधि नहीं।
अच्छी चाल -चलन, अनुशासन।
वल्लुवर ने सुनागरिक के लक्षण यही  कहे  है।

बड़े  लोग अन्यों  की गलतियों  को छिपाकर  बोलेंगे;
छोटे  लोग अन्यों के दोष ही बोलते रहेंगे।

बड़ों के गुण  भूल जायेंगे;माफ करेंगे।
छोटों के गुण नहीं  भूलेंगे; नहीं  माफ करेंगे।

कुरल :

अट्रम   मरैक्कुम  पेरुमै  सिरुमैतान  कुटरमे  कूरिविडुम।

पेरुमै पेरुमित  मिन्मै  सिरुमै  पेरुमित  मूर्न्तु विडल।


बीसवीं  शताब्दी में "NOTHING IS PERFECT"अंग्रेजी 

 बातों की व्याख्या की गयी हैं, उन्हें वल्लुवर ने दूसरी शताब्दी में ही बतायी है।
बात जो भी हो,जैसा भी हो,वह बढ़िया भी हो सकती है।
ऊंचा भी हो सकती है।
ज.यू. पोप  ने विद्वत्ता और शिष्ठाता को PERFECTNESS
 कहकर 19वीं सदी में व्याख्या की है।

तिरुक्कुरल की व्याख्या महाविद्वान सा.दंडपाणी  देशीकर
ने परीति ,परिप्पोरुल,कालीनगर,परिमेल अलकर  ,
कविराजर आदि पांच आलोचकों की बातों को
संकलन करके   लिखा है।

भूताप्पानडीयन  ने  शपथ  किया कि
  न लड़कर, अपने दुश्मन का सामना बिना किये
 यम के भय से पीठ दिखाकर भागनेवाले
 आँखों के तारे  के तारे होने  पर भी उनको  छोड़ दूंगा।

तमिल:-

अदान्गात्ताने  वेंदारुडनगियैत
  तेंनोडु   पोरुतु  मेंबवरै
   आलमरत  थाक्कित तेरोडू
 अवर  पुरंग कानेनायिर सिरंनद
 पेरमरुन्कनी  वलिनुम  पिरिक.



राजा की रानी भी कायर ,
युद्ध क्षेत्र से भागनेवाले को नहीं चाहती।
वीर पति बनकर  रण -क्षेत्र में
 वीरगति प्राप्त करना ही रानी के लिए गौरव की बात है।


नागरिक के सर्व श्रेष्ठ गुण ,बड़प्पन के योग्य गुण
 सहज रूप  में जो प्राप्त करता है
 वह अपूर्व कार्य करके दिखाता है।

वह जो भी करता  है,
न्याय और रीति से करता है।
ये बड़े लोग प्रशंसनीय बनते हैं।
ये नागरिक हैं।
छोटे गुणवाले  अहंकार ,अज्ञानता,स्वार्थ आदि
 निम्न विचार के होते हैं।
अतः वे निंदा के पात्र बनते हैं।

इन गुणों से दूर रहें  तो आदर्श नागरिक बनजाते हैं।

निम्न गुणवाले अपूर्व काम करने पर भी
अहंकार के कारण बड़े नहीं होते।
सद्गुण और  नागरिकता के गुण जिसमें नहीं है,
उसको अधिक संपत्ति मिल जाए तो उसका काम बन्दर के हाथ में

मिले मशाले की तरह हो जाएगा।
वह सर्वनाश कर देगा।

बड़े लोग विनम्र रहेंगे।
छोटे लोग आत्म प्रशंसा में लगे  रहेंगे।

बड़े लोगों को दुसरे लोग बड़ा बनायेंगे।
छोटे लोगों को खुद बड़े
बनने  के प्रयास में और भी छोटा होना  पडेगा।

भवनंदी नामक कवि  ने आत्मा -प्रशंसा के लायक
 चार स्थानों का  जिक्र किया  है।
राज-सभा,
अपनी शक्ति और कौशल न जाननेवाले,
स्थायी नाम देने की सभा,अपनी  बात के विरुद्ध बोलनेवाले
आदि के सामने आत्मा प्रशंसा करना ही उचित गुण है।

वल्लुवर ने कहा कि बड़े अपने मुख से अपने को बड़ा नहीं कहेंगे।

वे दूसरों के दोषों को छिपा देंगे।

आम सभा में दोषारोपण करना बड़ों का काम नहीं है।


कुरल :-पेरुमैयुडैया वराट्रू  वार  आटरिन
 अरुमै  उडै य   सेयल .



छोटे लोग दूसरों के दोष  अल्प होने पर भी उसे बड़ा दोष बनाकर
 दूसरों को अपमानित करेंगे।

बड़ों का गुण दूसरों के दोषों को भूलना और माफ करना।छोटों का गुण दूसरों के दोषों को नहीं भूलना और माफ
न करना।

सिरियार  उनर्च्चियुल  इल्लै  पेरियारैप  पेनिक कोल्वे  मेंनुम नोक्कु।



बड़े लोग जानते हैं कि भूल   करना मनुष्य का सहज गुण है।

भूले भड़के लोगों की भूलों को सुधारना बड़ों का काम है।

अतः वे मनुष्य   की भूलों को भरी सभा में प्रकट नहीं करेंगे।

उत्कृष्टता  के सम्बन्ध  में निम्न विद्वानों के कथन देखिये:--

मनक्कडवर    ===बड़प्पन धर्म  और करुण की चाल , सहानुभूति  दिखाना,दया आदि  उत्कृष्टता  है।

परीती =====महानता परम्परागत अनुशासन पर दृढ़ रहने  में  है।

परिप्पेरुमाल==महानता का मतलब है सभी सद्गुणों से भरा संस्कार।
 धर्म और करुण  कर्म पर निर्भर है।

परिमेलअलकर===सद्गुणों से भरा व्यवहार।बडाई के गुण का संग्रह
.
कवि अरसर  ==सभी सद्गुणों से भरा व्यक्तित्व

सद्गुणों से भरे नागरिक   की योग्यता नाकाबयाबी की हालत में भी काबयाबी की प्राप्ति की दशा में रहना.

अच्छे  लोगों का लक्षण है  जो  अपने बराबर के  नहीं हैं,उनसे भी विनम्र और सद्भाव से व्यवहार करना।
अपनों से बड़ों से जैसे हार मानते हैं ,वैसे ही अपने से छोटों से भी हार मानना।

अपनों से बलवानों से जैसे हार मानते हैं,वैसे ही अपनों से दुर्बलों से भी हार मानना।
अपने से छोटों से भी हार मानने की मानसिक परिपकवता।
कुरल:-

साल्बिर्कू  कत्तालाई यातेनिन  तोल्वी  तुलैयल्लार  कन्नुम कोलाल।


अंग्रेजी में कहते है--WHAT IS PERFECTION'S TEST? THE EQUAL MIND.TO BEAR REPULSE FROM EVEN MEANER MEN RESIGNED.
THE TOUCH -STONE OF PERFECTION IS TO RECEIVE A DEFEAT EVEN AT THE HANDS OF ONE'SINFERIORS.
A PERSON'S NOBILITY  IS JUDGED FROM THE WAY HE BEHAVES WHEN DEFEATED BY A WEAKER OPPONONT.
एक  सुनागरिक होने  के लिए सज्जनता और अच्छी चाल-चलन मात्र काफी है।
स्वर्ण कमल में सुगंध के सामान है गुण।
  पेरुमाल  नामक विद्वान ने कहा है----गुणी  का मतलब है--सब  से प्यार से भरा बर्ताव।दूसरों के दुःख देख अफसोस प्रकट करना,बदनाम होने पर लज्जित होना,.
गुण का मतलब है अपनी सीख का पालन करना।
गुणवान  का अर्थ है सब से मिलनसार होना।
कुलँदै  नामक कवि  ने लिखा है--गुणवानों के कारण ही संसार जीवित है;
नहीं तो मिट्टी  में मिल जाएगा।
वल्लुवर ने कहा है-पहले गुणवानों का जन्म हुआ ;
बाद ही कई प्रकार के जीव रासियों का जन्म हुआ।
इसीलिये संसार चक्र स्थिरता से 
घूम रहा है।
एक परिवार में माता-पिता,पुत्र,पुत्री आदि होने पर भी
 धन कमानेवाले परिवार के मुखिया अर्थात पिता  न होने पर वह परिवार नहीं है।
उसी प्रकार इस विशाल संसार में करोड़ों की संख्या में लोग होने पर भी गुणी थोड़े ही है।
गुणवान,विद्वान,महान संसार में जन्म न होने पर सभी जनता और जीव नष्ट हो जायेंगे।

एक बेजोड़ नागरिक बनने  या बनाने के  श्रेष्ठ गुण शिष्टता है।
दूसरा अपने कठोर मेहनत के धन को कृतज्ञता केलिए खर्च करना।

G.U.POPE ---WEALTH WITHOUT BENEFACTION.
HOARDED WEALTH
ऐसे  लोग  भी  संसार में है,,जो अपने बचत संपत्ति  का खर्च करने का मन नहीं रखते।कृतज्ञता के बिना दौलत का मतलब  ही नहीं है;
वे  खुद भी नहीं खाते 
और दूसरों को भी नहीं खिलाते।
कवियरसर  ने कहा --अगुणी अपनी संपत्ति को जोड़कर खुद  न भोगता और
 दूसरों को भी नहीं खिलाता। वह संपत्ति किसीका नहीं हो जाता।
यह भी एक अपराध है।
कृतज्ञता  ज्ञानियों  का गुण है।

वल्लुवर ने कहा --प्रसिद्ध व्यक्तियों की संपत्ति देते देते बढ़ेगी ही ;
घटेंगी नहीं।देते-देते दरिद्रता आने पर भी 
जल्दी मिट जायेगी।
संसार की सम्पन्नता वर्षा पर निर्भर है।
पानी न बरसा तो भूमि सूख जायेगी।
फिर अति वर्षा होगी;समृद्धि  बढ़ जायेगी।
नामी व्यक्ति की संपत्ति भी वर्षा के समान है।
चंद  दिन कम होंगी ;फिर धन की अति वर्षा होगी।

कुरल:-

सीरुदैच  चेल्वर सिरुतुनी  मारी   वरंग कूर्न्तनैया  तुडैततु .


G.U.POPE ===TIS AS WHEN RAIN CLOUD IN THE HEAVEN GROWS DAY ,WHEN GENEROUS WEALTHY MAN ENDURES BRIEF POVERTY.
THE SHORT LIVED POVERTY OF THOSE WHO ARE NOBLE AND RICH IS LIKE THE CLOUDS BECOMING POOR(FOR A WHILE)
ISEE KO S.RATNAKUMAAR -----'A TEMPORARY SET BACK'  कहते हैं।

गुणी  धनी की दरिद्रता थोड़े दिनों के लिए है।दरिद्रता के दूर होते ही वे पहले से ज्यादा दीन -दुखियों की 
मदद करेंगे।
यह काम ऐसा ही होगा जैसे धनुष में  तीर डोरी  पर
 पीछे जाकर एक दम आगे चलता   है।
यह एक महावीर के सामान है।
सुनागरिक के और एक गुण है
धर्म ,अर्थ,काम में दूसरों की निंदा  का पात्र न   बनना
अच्छे गुणवाले बुरे काम करने संकोच करेंगे।
यह लज्जा भी सुनागरिक  का श्रेष्ठ गुण है।

एक नागरिक का बुरा गुण है--दुर्जनता।
मनोंमनीयम  के लेखक पे.सुन्दरम्पिल्लाई
 अपने नाटक के खलनायक

पात्र कुटिलन  को अति घृणित रूप में वर्णन किया है।
वह पात्र जोंक के सामान रक्त चूसनेवाला पात्र है।
वल्लुवर ने महिलाओं के दुर्व्यवहारों को बताकर सतर्क रहने का सन्देश दिया  हैं।केवल  दुर्गुण का मात्र वल्लुवर इस में  चित्रित करते हैं।

दुर्व्यवहार  सभी नीच लोगों में है|
संसार की भलाई के विचार से दुर्व्यवहार और दुर्जनों की  निंदा करते है।

 वल्लुवर के शब्दों में दुर्जनों के प्रति उनका पूरा क्रोध प्रकट होता है।

दुर्जन या खलनायक भी समाज  का एक अंग है।
उनको सुधारना पहला कर्त्तव्य है। 
नहीं तो पूरा समाज बिगड़ जाएगा।
यही वल्लुवर के क्रोध का मूल है।
उनको तो दुर्जनों के प्रति क्रोध नहीं है।

एक खलनायक अपने से छोटे खलनायक को देखकर
अपने को बड़ा मानता है।
कुरल:  अकप्पट्टी   आवारैक  कानिन   अवरिन  मिकप्पट्टू  सेम्माक्कू  कील।


अहंकार के कारण और अधिक अत्याचार करने लगता है।

ऐसे दुर्जनों को सुमार्ग पर लाना संत कवि  वल्लुवर का ध्येय हो जाना सहज बात है।
दुर्जनों को सुधारना आसान नहीं है।
उसके लिए युद्ध करना पडेगा।
उनको  ईख के सामान पीसकर रस निकालना चाहिए।ईर्ष्यालु को सुधारना अत्यंत कठिन है।अपने छोटी -सी बात केलिए  अपने को ही बेचनेवाली होती है।

यह दुर्जनता नागरिकता का दुश्मन है।
इनके मन में सद्भावना लायेंगे तो संसार सर्वनाश हो जाएगा।
इन खल नायिकाओं को सुनागरिक बनाने  के  लिए  वल्लुवर के दिखाए मार्ग पर जाना चाहिए।