Sunday, February 25, 2024

लेइए कैसे लीजिए

 नमस्ते।

अनश्वर दुनिया।
नश्वर चिंतन लहरें।
नित्य परिवर्तित खोजें
परिवर्तित सरकारें।
कल का साथी आज नहीं।
तब की बातें अब नहीं।
फिर भी अहंकार हटता नहीं मिटता नहीं।
आत्मज्ञान नहीं, आत्मबोध नहीं।
लौकिक बातें संताप भरी।
फिर भी मन हठ करता है।
अनश्वर का विचार करता है।
किया या करा यह व्याकरण की दुविधा।
देइए या दीजिए,यह भी सरलतम। नहीं।
जाया या गया यह कैसे आया ? लेइए कैसे लीजिए पता नहीं।

Wednesday, February 7, 2024

खुशी पाने का तरीका धन नहीं।

 शीर्षक ---खुशी पाने का  तरीका धन नहीं।

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

++++++++++++++++

धन शैशव रोक नहीं सकता।

धन बचपन वापस दिला नहीं सकता।

धन बुढ़ापे को जवानी में 

परिवर्तन नहीं कर सकता।

धन अपनी वाँछित ज्ञान

 चित्रकला, संगीत कला,

वास्तुकला,

तकनीकी ज्ञान

 दे नहीं सकता।

 धन अल्पायु दीर्घ आयु

नहीं दे सकता।

श्वेत बाल को काले बाल में

बदल नहीं सकता।

 नपुंसक में पौरुष ला नहीं सकता।

धन पद के हिरण्यकश्यप से

अपने बेटे प्रहलाद को

अपने काबू में ला नहीं सका।

केवल आत्मज्ञान  ही

आत्मा ही

अचंचल मन ही,

परमात्मा के प्रति भक्ति ही

ध्यान ही,योग ही प्राणायाम ही

वास्तविक आनंद ब्रह्मानन्द

परमानंद दिला सकता है।

 धन सत्यवादी को दंड दिला सकता है।

 धन अपराधी को सांसद विधायक

बना सकता है।

 भ्रष्टाचारियों को दंड से बचा सकता है।

धन कम अंकवाले को उच्च शिक्षा में

 भर्ती करा सकता है।

 पर ईश्वरीय दंड 

मृत्यु से बचा नहीं सकता।

ईश्वरीय प्रेम, भक्ति ही 

 धन से बढ़कर आराम,सुख और चैन

 दे सकता है।

धन से ईश्वरीय सुख ही श्रेष्ठ है।

ईश्वरीय शक्ति ही

 मनुष्य को बुद्धिमान , बेवकूफ, बलवान

बना सकता है।

 यह राष्ट्र का उत्थान और पतन

धन अधिकार होशियारी से नहीं

ईश्वरीय  अनुग्रह से ही संभव है,

 धन से असंभव।

 धन,पद, लौकिक सुख भोग 

त्याग कर सिद्धार्थ चला।

बुद्ध बनकर  एशिया के ज्योती बना।

अर्द्ध नग्न फकीर बन

मोहनदास करमचंद गांधी महात्मा बना।

स्वामी विवेकानंद ने धन को महत्व नहीं दिया।

विश्ववंद्य मार्गदर्शक बना।

एस.अनंतकृष्णन, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

द्वारा स्वरचित कविता भावाभिव्यक्ति।

Sunday, February 4, 2024

कविताएँ

 



नमस्ते वणक्कम साहित्य बोध मंच को। शीर्षक ---नाश नाश की जड़ है। नाश नाश की जड़ हैं, नशा नाश हानिकारक छपा है सही। नाश गरीब परिवारों का। पर सरकार की आमदनी की जड। जंगलों का नाश , नगरों का विकास। जंगली जानवरों का नाश , ग्रामीण जनता की सुरक्षा। समुद्र की लहरों का आहार बड़ी बड़ी इमारतें,सुंदर मंदिर।। पर लाभ खोज अनुसंधान करनेवालों को। ताज़ी खबरें छापने वाले को। तमिलनाडु में आत्महत्या, अपराध बढ़ाने राजनैतिक दलों के प्रोत्साहित रकम आत्महत्या के विरुद्ध न बोलता जनता,कानून, सरकार। हजारों झीलों का नाश, कितने कालेज, स्कूल,कारखाने, गगन चुंबी इमारतें नाश में लाभ ठेकेदारों को।। नाश नाश की जड़, एक का पतन, दूसरों का उत्थान। एक व्यापारी का घाटा , दूसरे व्यापार का लाभ। घोडागाडियों का धंधा नाश। आटो, कार,टैक्सी धंधा का जोश।। नाश में उत्थान, खड़ी बोली का उत्थान हिंदी के र…
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7:05 pm
23/09/2023
नमस्ते.वणक्कम् सुनहरा भविष्य। मौलिक विधा मौलिक रचना 23-9-2021 भविष्य किसका है सुनहरा? जो भविष्य की चिंता न करके, वर्तमान में कर्तव्य निभाते हैं, उनका भविष्य सुनहरा। भूत के संतापों को भूलकर वर्तमान में खुशी रहता है उसका है भविष्य सुनहरा।। भगवान जो पद देता है, बगैर भ्रष्टाचार व रिश्वत न लेकर फ़र्ज़ निभाते हैं,उनका भविष्य सुनहरा। भगवान की प्रार्थना, निस्वार्थ दान धर्म करता हे, उसका भविष्य है सुनहरा। जो लोभ लालच में अहंकार और काम में न पडते , उनका भविष्य है सुनहरा। स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
6:34 pm

7:48 am
27/09/2023

Edited12:27 am
नमस्ते वणक्कम,एस.अनंतकृष्णन का।। स्वच्छता आसपास की स्वच्छता पंचतत्वों की स्वच्छता थूक बगैर सड़कें, धुएं-धूल रहित वातावरण, अति अनिवार्य है सही।। मानव के तन, मन,धन अति स्वच्छ हो, आँखों द्वारा जो देखते हैं, उनके प्रति चाहिए स्वच्छता। बुरी नजरों से देखना भी मानव के लिए अति कलंग। जलन भरी दृष्टि,चाह भरी दृष्टि, घृणा भरी दृष्टि, भेद भरी दृष्टि, लोभ भरी दृष्टि ,लालच भरी स्वच्छता नहीं जान। बोली में न हो ईर्ष्या, बोली में न हो कठोरता। बोली में प्रकट न हो दर्द भरा शब्द, ईर्ष्या भरा शब्द। प्रेम भरे मधुर शब्द प्रकट हो।। न करें मन को प्रदूषित शब्द।। वातावरण की शुद्धता से सोच विचार की शुद्धता, कर्तव्य की स्वच्छता, रिश्वत भ्रष्टाचार रहित आमदनी, चाहिए मानव को, वही स्वच्छता भरा जीवन स्वस्थ मन,स्वस्थ तन,स्वस्थ धन स्वच्छ जीवन , चिंता रहित जीवन में चिंता तक।। कबीर का कहना ह…
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2:33 pm
7:40 am
30/09/2023
साहित्य बोध महाराष्ट्र इकाई को मेरा अर्थात ऍस.अनंतकृष्णन का सादर प्रणाम।। विषय --धोखे से बड़ा कोई दुर्भाव नहीं। विधा --अपनी हिंदी अपनी भाषा अपनी शैली अपने विचार अपनी भावाभिव्यक्ति। ता.30-9-2023. ++++++++ धोखा देना , धोखा खाना, दोनों दुखी। देनेवाले अपने आनंद बाह्य जगत में मना नहीं सकता।। जिसने धोखा खाया, जब पता चलता, ठगा गया है, वह दुखी है, और अधिक दुखी हैं, जब पता चलता कि विश्वस्त ने धोखा दिया है, बखाने धोखा दिया है, प्रेमी या प्रेमिका ने ठगा है, तब दुख और बढ़ जाता है।। जिसने धोखा दिया, धोखे के लाभ, पदोन्नति,तब सबको पता चला जाएगा, छल से पद पाया है, तब अपमान का पात्र बन जाता।। धन से धोखा, तन से धोखा, मन से धोखा, वचन से धोखा, कर्म से धोखा, षड्यंत्र से धोखा। वह प्राप्त करता , अधूरा आनंद।। सब को पता चलेगा तो सर्वाधिक मान को बैठता।। लडकियाँ धोखा द…
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4:16 am
02/10/2023
Forwarded
kabir-parmeshwar.pdf
368 pagesPDF3 MB
4:56 am
04/10/2023

2:04 pm
7:53 pm
7:53 pm
30:01
7:53 pm
+8
8:28 pm
नमस्ते वणक्कम। साहित्य में सत्यता चाहिए। चित्रपट साहित्य चित्त को प्रदूषित कर देता है। पुलिस कठपुतली ऐएएस अधिकारी भयभीत। ऐसे कथानक कर देता है विचार प्रदूषण। आलिंगन चुंबन हमारे पूर्वज छिपकर करते। आजकल सार्वजानिक जगहों में आलिंगन चुंबन पशु-पक्षी सा मानव जीवन। सब है स्नातक स्नातकोत्तर। अदालत में तलाक मुकद्दमा दिन दिन बढ़ता जा रहा है। सोचना भारतीय सनातन धर्म। न उसमें जाति-संप्रदाय की मजहबी लड़ाई। त्यागमय जीवन। इच्छा रहित जीवन। ईर्ष्या रहित जीवन। ब्रह्मचर्य जीवन। संयम पंचेंद्रिय नियंत्रण।। चैन भरा जीवन जीने सब सत्य त्यागमय नेक जीवन अपनाओ। अहिंसा का पालन करो। यही है सनातन धर्म। बिताओगे संतोष भरा जीवन। आनंदमय जीवन। ईश्वरानुग्रह। प्रदूषित वातावरण। प्रदूषित शिक्षा। हर बात में प्रदूषित।। साहित्यकार का कर्तव्य सद्विचार मानव मन में लाना। स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन। तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
11:24 pm
08/10/2023
आशा का दीप जलाना है, आधुनिक शिक्षा धन प्रधान। धन लाखों खर्च करना है, तभी वाँछित विषय का स्नातकोत्तर बनना, न नैतिक शिक्षा,न मानवता विकसित शिक्षा।। अंक प्रधान उच्च शिक्षा नहीं जातियाँ प्रधान। अंक में कम ,उम्र अधिक आशा दीप जलाना। पच्हत्तर साल की आज़ादी पर न मानव में नहीं समानताएँ। असमानाताएँ बढ़ती जा रही है। पीड़ित युवकों में आशा का दीप जलाना है। नर हो न निराश करो मन को। न ध्यान दो‌ धन का, न ध्यान देना जाति धर्म का अपना कौशल क्षमता जान लो। बड़े बड़े वैज्ञानिक की जीवनियाँ पढ़ोगे तो पता चलेगा, अपने मंजिल पर अंडे रहे। न कालेज की शिक्षा , न मार्गदर्शक कर चुके नये नये आविष्कार। मानव में मानवता है तो आशा का दीप जलेगा अपने आप। आशा का दीप जलाने कालिदास, तुलसीदास, सूरदास कर्ण , कबीर, विदुर की जीवनियाँ पढ़ लो। मन चंगा तो कठौती में गंगा।। आशा के साथ आगे बढ़ना, अपना…
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Edited2:15 pm
10/10/2023

6:42 pm
13/10/2023
ॐ हरिनारायण हरिनारायण ॐ आज मेरे मन में उठे विचार। ******* स्वचिंतक - स्वरचयिता --यस। अनंतकृष्णन ++++++++++++++++++++++++++ जग देखा ,कोई जागता नहीं ; जग देखा ,कोई जगाता नहीं। जगाने के प्रयत्न में लगे लोग , जग की दृष्टि में हैं पागल। राम राज्य की स्थापना , राग अलापते लोग। राम राज्य में थे राक्षस। राम राज्य में थे स्त्री मोही ; राम राज्य में थे कामांधकारिणी। राम राज्य में थे ऐसे धोबी , सीता का हँसी उड़ाया; राम के गुण पर कलंक लगाया। अग्निप्रवेश सीता पर आरोप। जग को आदर्श दिखाने भेज दिया वन वास ; अश्वमेध यज्ञ अपने अधिकार जमाने अड़ोस -पड़ोस के राजाओं को डराने -धमकाने। अपने ही पुत्रों के साथ लड़ाई। _--------------- राम राज्य में भी गुह ,शबरी जैसे निम्न जाति के लोग; उनको गले लगाने , जूठा खाने में दिखाई अपनी महानता। नतीजा रामायण काल के मनुष्य -म…
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10:00 pm
15/10/2023
Forwarded
10:11 am
11:26 am
एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार । समानुभूति में सहानुभूति प्रधान । सर्वेश्वर की सृष्टियों में सम अनुभूति नहीं के बराबर। जहाँ आदमखोर बाघ,वहाँ साधू हिरन उसका खाना । जहाँ कोमल फूल,वहाँ चुभता काँटा। मानव सृष्टि में ही सहानुभूति है , मनुष्यता नहीं है तो मानव अति भयंकर । मानव सर्वभभक्षी,न एक खास गुण । सम अनुभूति कैसे,इन्सानियत न होने पर। सभी मानव तो लिखित संविधान में बराबर । व्यवहार में कितने भेद । सब में नहीं नायकत्व गुण । सबमें नहीं बुद्धि लब्धि बराबर। सबके सब न त्यागी,न भोगी। सब निस्वार्थी नहीं सब स्वार्थी भी नहीं। सबके सब पुण्यात्मा नहीं,पापात्मा भी नहीं। सम अनुभूति नहीं, मानवता है तो सहानुभूति। स्वरचित भावाभिव्यक्ति एस. अनंतकृष्ण का।
12:31 pm
एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार। सम +अनुभूति सम अनुभूति का मानव मिलना, संभव हो या असंभव, पता नहीं । तमिल साहित्य में एक सिद्ध पुरुष रामलिंग अडिकळार । जिन्होंने समरस सन्मार्ग की स्थापना की। उन्होंने सूखे पौधे को देखकर समानुभूति प्रकट की, जब नीर बिन, सूखा पौधा देखता हूँ, तब मेरा मन भी सूख जाता है। पौधे दुख को अपना दुख सम एहसास करना समानुभूति है। पारी नामक एक राजा था, वह बड़ा दानी था, एक दिन वह अपने रथ पर जा रहा था तो देखा, एक मोगरे की लता, फैलने के लिए सहारा नहीं, तब समानुभूति वश अपने रथ को ही लता मंडप बनाकर पैदल चला। यह तो समानुभूति, वनस्पति जगत के प्रति।। नाते रिश्ते भाई बहन दोस्त के दुख को अपना दुख मानकर पीड़ित होना समानुभूति है।। अब इसरऐल के युद्ध में जिन बच्चों को घायल देख संताप का महसूस करना सहानुभूति न समानुभूति।। समानुभूति में दूसरों के …
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12:32 pm
17/10/2023
बढ़िया अनुवाद है।के. रामनाथन जी।आपकी मन:प्रेरणा से निम्न पंक्तियांँ। ++++++±++++++++++ मैं हूँ शरणार्थी माँ अभिरामी! तेरा ही सृजन हूँ मैं। तू तो सर्वज्ञ हैं, जो कुछ भी आए, भला -बुरा का प्रभाव। तेरे ही के कारण। मैं तो भोलाभाला नादान।। मैं तेरा शरणार्थी।। तू शरणार्थी रक्षिका। भक्तवत्सला। जैसा चाहो , वैसा नचाओ। मेरी उद्धारिका, तेरे चरण वंदन।। अनंत सुख, तेरी देन। अनंत दुख तेरा खेल। न किसी की परवाह, मैं तेरा शरणार्थी! जैसा भी नचाओ, मैं तेरे चरण कमल का दास! तेरा ही सृजन मेरा। यश अपयश की जिम्मेदारिनी। मैं हूँ तेरा शरणार्थी। नाम है अनंत कृष्णन।
7:28 am
என்னைப் பற்றி. मेरा विवरण नाम :-एस., अनंतकृष्णन சே.அனந்தகிருஷ்ணன். पिता का नाम –पि.वि.सेतुरामन भाषा –तमिल भाषी தமிழ் கல்வித் தகுதி --M.A.,M.Ed., Dip. In Journalism. பிறந்த தேதி जन्म की तारीख -8-7-1950 शैक्षणिक योग्यता –स्नातकोत्तर हिंदी और शिक्षा। राष्ट्रभाषा प्रवीण प्रचारक। பணி மற்ற சேவை 1967 முதல் 1977 வரை ஹிந்தி எதிர்ப்பு காலத்தில் ஹிந்தி பரப்புனர்.பழனி. १९६८ से १९७७ तक मुफ्त हिंदी प्रचार, पलनी केंद्र दिंडुक्कल। 1977-81. வெஸ்லி உயர்நிலைப் பள்ளியில் பட்டதாரி ஹிந்தி ஆசிரியர். 1981 முதல் 2006 வரை முதுகலைப் பட்டதாரி ஹிந்தி ஆசிரியர். 2006 முதல்2008 வரை தலைமை ஆசிரியர் ஹிந்து மேல் நிலைப்பள்ளி திருவல்லிக்கேணி.சென்னை १९७७ से २००८ तक स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक, प्रधान अध्यापक। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई के बी.एड., विद्यालय के प्राध्यापक தக்ஷிணை பா…
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1:12 pm
18/10/2023

2:53 pm
pm
19/10/2023
नमस्ते। माता बरसा दो अपनी कृपा। जानता हूँ, भाग्य रेखा, सिरो रेखा लिखकर ही धरती पर मेरा जन्म दिया है। कर्मफल, पूजा फल, पूर्वजों के पुण्य पाप बल भोगना ही सर्वेश्वर के कानून नियम। इसमें से कोई भी छूटता माँ। ये पाप हमने जान -बूझकर या अनजान में या विवशता के कारण, नाते रिश्तों के कारण, मित्र , लंगोटी यारों के कारण, शासकों के कारण, ऊपर अधिकारियों के कारण, लोभ वश या ईर्ष्या वश या गलतफहमी से या अहंकार से, पूर्व जन्म के असर के जो भी हो माफ़ करना, माता का गुण। पाप या पुण्य विधि की विडंबना तेरे ही के कारण। तूने माया मोह की सृष्टियाँ की है। मानव को ज्ञान दिया है, बुद्धि दी है पर माता यह माया महा ठगनी, तेरी सूक्ष्म लीला, मानव को संताप देना। अमीर के यहाँ , असाध्य रोगी संतान। दीर्घ रोगी,लंबी आयु।। अति चतुर अति बुद्धिमान अल्पायु में स्वर्ग सिधारना, अड़चनें भर…
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6:39 pm

1:35 pm

1:36 pm
21/10/2023
माता दुर्गाजी शक्ति देना। लक्ष्मी माताजी धन देना। सरस्वती जी विद्या देना। अष्टलक्ष्मी जी अष्ट ऐश्वर्य देना।। नव निधियाँ देना। नव ज्ञान, नव अनुभूति, नव शक्ति देना।। नव रात्रि पर्व में त्रिदेवियों के चरण कमलों पर सादर प्रणाम।। शरणार्थी मैं, शरणागत वत्सलाए आप।। स्वस्थ तन मन धन देना।।
Edited1:40 pm
22/10/2023