Sunday, March 27, 2016

आलसी --सुस्ती ---अर्थ -भाग --तिरुक्कुरल --६०१ से ६१०

आलसी  --सुस्ती ---अर्थ -भाग  --तिरुक्कुरल  --६०१  से ६१० 

१.  कुल  की श्रेष्ठता  और  विशेषता  
 आलसी के  कारण बरबाद  हो  जायेगी . 

२.कुल श्रेष्ठ  होना  है  तो आलसी छोड़कर 
 अति प्रयत्नशील  और परिश्रमशील  बनना  है.
३. जिसके मन  में आलसी का वास है ,
उसका कुल उसके पहले ही नाश  हो जाएगा.
४. आलसी  के  जीवन  में अपराध  बढ़ जायेंगे ; 
उसके पारिवारिक जीवन  नाश  हो  जाएगा. 
५.  देरी ,   भूल ,आलसी    और  अति निद्रा आदि
 चारों गुण  डूबनेवाली नाव    के समान  है.
६.राजा की दोस्ती और उनकी संपत्ति मिलने पर  भी 
आलासियों  को  कोई  लाभ नहीं  होगा.
७.बगैर  प्रयत्न  के आलसी अपमान  का पात्र बनेगा.
८.श्रेष्ठ  कुल में जन्मे  लोग  आलसी  बनेंगे 
,तो  जल्दी ही दुश्मनों  के गुलाम  हो  जाएगा.
९.आलसी अपना आलस  छोड़  देगा  तो
 उसके खोये गौरव  और पौरुष अपने आप वापस  आ  जाएगा .
१०.  जो  राजा आलसी रहित  है,उसके  अधीन सारी धरती आ  जायेगी .



Friday, March 25, 2016

साहसी /बल ---अर्थ भाग -५९१ से ६०० तिरुक्कुरल

साहसी ---अर्थ भाग -५९१ से ६०० तिरुक्कुरल 

१. जिसमें बल  और साहस है, वही सर्व सम्प्पन्न व्यक्ति है ; साहस नहीं हैं तो एनी संपत्ति हिने पर भी वह सम्पत्तिहीन ही माना जाएगा .

२. साहस  ही स्थायी  संपत्ति है ; बाकी संपत्ति अस्थायी ही है. 

३. साहसी और पुरुषार्थ लोग संपत्ति के खोने पर भी दृढ़ रहेंगे .वे साहस खोकर दुखी नहीं  होंगे .

४. पदोन्नती और प्रगति साहसी लोगों की खोज में आयेगी.

५.कमल के नाल की लम्बाई पानी की गहराई   तक ही होगी ; 

वैसे ही एक मनुष्य में जितना साहस और पुरुषार्थ है ,उतनी तरक्की  जीवन  पर होगी .

६. जो  कुछ सोचते हैं ,ऊँचा सोचना चाहिए. उसमें असफल होने पर भी साहसी सोचना न छोड़ेगा.
७. हाथी अपने शारीर भर बाण घुसने पर भी दृढ़ रहेगा. वैसे  ही साहसी दुखों के घेरे में भी साहस  न छोड़ेंगे.
८. जिसमें साहस नहीं हैं ,वे दूसरों को दान देकर दानी नाम पाने में असमर्थ ही रहेंगे.

९, हाथी का शरीर मोटा  ताज़ा  है; फिर भी उससे बलवान  बाघ को देखकर भयभीत हो  जाएगा.

१०.  एक  मनुष्य का  बल साहस  ही है;  जिसमें साहस  नहीं है ,
वे आकार से मनुष्य है पर चलते -फिरते पेड़ के समान  है.

Wednesday, March 23, 2016

मगर मचछ आँसू

मित्रता मान ली। धन्यवाद।

भारत अखंड।
भारत  खंडीत।
जुुडा भारत आध्यात्मिकता से।
दिल तोडा भारत आध्यातमिक्ता से।
राम के काल में ,कृष्ण के काल में
भक्ति की एकता बनी बिगडी।
कबीर नै तो समझाया।
पर उनके जन्म और पालन भिन्न।
कहा वेद पढते हैं कुरान पढते हैं पर
न पहचाना  खुदा कहाँ है ?
अलौकिक प्रेम का ग्रंथ ।
लौकिकता का मोह
धार्मिक  भैद।मनुष्य मनुष्य में भेद।
तपस्या का सत्य कहाँ।
चुनाव आया तो न किसी का ध्यान
मनुष्य एकता का।
  स्वार्थ कुर्सी के मोह| में 
हिंदु मत पर न ध्यान ।
आरक्षण  नीति।
आजाद  के सत्तर साल
धरम निरपेक्ष ता  की बात।
हिन्दु  बहुसंख्यक  पर
गाँधी बने खान अ्ति चतुर ।
सूचित अनुसूचित जातियों क़ो
सहूलियत सुविधाएँ।
साल पर साल  पिछडे दलित
वर्गो  की सूची बढाते ।
अब जाट ,राजपूत  बिना सोचे विचारै
बेशरम  सूचित जातियों में नाम जोडने
सत्तर साल की तरक्की जाति के नाम लडाइयाँ।
खून खौलता  है।पर अधिकार  हिन्दु के खाल पहने
खान  दिलियों के हाथ।
खेद आजादी के सत्तर साल के बाद
कौशल के आधार पर नहीं।
जाति के आधार पर  पदोननति।
पिछडे वर्ग आदि वासी वरग अपमानित
सरकारी सुविधा के  नाम से कलंकित
फिर भी छंद सुविधा के कारण
न उच्च कहते निम्न कहने कहलाने लडतै।
सर ऊँचा उठने में स्वार्थ राजनीति
उन्हें सोचने न दिया।
सत्तर साल ,पर माँगे
पिछडे वर्ग की सूची में जुडने की।
सोचिए आजादी के सत्तर साल
कैसे छल राजनैतिक दलों की चाल।
कह दिया जागें तो जागना।
आरक्षण तो भक्षण ।
हिन्दु एकता तोडने का
मगर मच्छ आँसू।

Tuesday, March 22, 2016

जासूसी /चर --अर्थ भाग -तिरिक्कुरल --५७१ से ५८०

जासूसी  --अर्थ भाग  -तिरिक्कुरल --५७१  से  ५८०

१, एक शासक  की दो  आँखें हैं   १, ईमानदारी और चतुर - चर /जासूस २.नैतिक  धर्म -ग्रन्थ।


२,एक शासक को जासूसी /चरों  के  द्वारा  जान लेना  चाहिए  कि   दोस्त  कौन  हैं ?

दुश्मन  कौन है और तटस्थ

 कौन है ? उन तीनों  के दैनिक कार्यों  को  भी जान  लेना  चाहिए.


३.चरों के द्वारा देश-विदेश की   घटनाओं  को जन-समझकर  परिणामों पर  भी ध्यान रखना चाहिए.

ऐसा  न  करें  तो वह स्थायी  शासन  नहीं  कर  सकता.

४. ईमानदार चर वे  हैं  जो तटस्थ रहता हैं और भेद नहीं करता

कि  वह दोस्त है / दुश्मन  है /रिश्तेदार  है /अपना है या पराया है.

५. वही चर  का काम  कर  सकता हैं  जो देखने पर संदिग्ध नहीं दीखता  और पता लगने  पर  भी रहस्यों  को

प्रकट नहीं  करता  ; जो भी हो  रहस्यों  का भंडा  नहीं  फोड़ता.

६. साधू -संत के  वेश  में  जाकर भेदों  को  जानने में क्षमता रखनेवाला ही सफल  जासूस  है /चर  है;

सभी प्रकार  के  कष्टों  को  सहकर  भी दृढ़ रहनेवाला  ही निपुण चर  है.

७. चर   वही  है जोगोपनीय बातों को जानने  में कुशल  हो और जिसने रहस्य्मयी कार्य किया  है ,उसके  मुख से

ही जानने की क्षमता रखता हो और जो  कुछ  जनता  हैं ,उसमे जरा भी सक  न  हो.

८।   एक चर  जो कुछ जानकर   आया   है ,उसी बात को दुसरे चर  द्वारा  पता लगाकर  तुलना  करना  चाहिए।
तुलना  करके  सही हो  तो तभी निर्णय पर  आना चाहिए.

९. चरों   को भेजते समय चरों को अपरिचित रखना चाहिए. तीन  चर  एक  ही रहस्य  का  पता लगाकर  आने के बाद  भी सच्चाई  पर शोध करना  चाहिए.

१०. एक   चर की  प्रशंसा खुले  स्थान पर  करना उचित नहीं  है; उसको  पुरस्कार  भी गोपनीय रखना चाहिए, ऐसा  चर का   कार्य खुल जाएँ  तो सही नहीं है. रहस्य भी प्रकट होगा; चर   का परिचय भी हो जायेगा. 

अनुग्रह/ दया अर्थ भाग --तिरुक्कुरल --५७१ से ५८०

अनुग्रह/दया --अर्थ भाग --तिरुक्कुरल --५७१  से ५८० 
  १. संसार   की  श्रेष्ठता  प्यार ,दया आदि 
अनुग्रह  करनेवाले दयालु लोगों पर  निर्भर  है.

२. जो प्यार ,दया ,अनुग्रह आदि सद्गुणों  को अपनाते  हैं ,वे ही संसार के हैं; जिनमें  ये  गुण  नहीं  हैं ,वे संसार के भार रूप हैं.
३.  गीत राग और संगीत के अनुसार न हो तो ठीक  नहीं  होगा. 
वैसे  ही दया दृष्टी के बगैर  आँखें बेकार  है. 
४. प्यार  और दयाहीन दृष्टी न  होने पर
 चेहरे की आँखों  से कोई लाभ नहीं  है। 
५. दया और प्रेम पूर्ण दृष्टी के  नेत्र  ही नेत्र हैं; दया  और प्रेम हीन आँखें आँखें  नहीं ,चेहरे के दो  घाव  हैं। 
६. दया दृष्टी के होते ,दया   और प्रेम न दिखानेवाले  पेड़  के  समान  है.
७. दयालुओं  की  आँखें ही आँखें हैं ; निर्दयी आँखें होकर  भी अंधे  हैं. 
८. जो अपने कर्तव्य ठीक  तरह  से  निभाते  हैं ,दया रखते हैं ,
उनकी प्रशंसा संसार करेगी। वे  संसार के अधिकारी होंगे. 
९. अपने को दुःख पहुँचानेवाले  पर  भी दया दृष्टी डालना  श्रेष्ठ गुण  है.
१०. दयालु और सुसंस्कृत  लोग अपने प्रिय जन विष पिलाने  पर भी पी लेंगे। 

Sunday, March 20, 2016

अर्थ भाग --आतंकित न करना. .--५६१ से ५७० . तिरुक्कुरल

अर्थ भाग --आतंकित  न  करना.  .--५६१  से ५७० .  तिरुक्कुरल 

१. राजा का  कर्तव्य  है   कि  अपराध  के  अनुसार
 कठोर दंड देकर ,वैसे अपराध फिर  होने  से  रोकना .

२. अपराधियों को ऐसा दंड  देना कि  अपराधी  को आरम्भ  में  इतना भयभीत करना कि वह  बिल्कुल  डर  जाए पर दंड  तो   कोमल हो जाएँ .
ऐसे दंडनायक को ही अमर कीर्ति मिलेगी.
वे ही लम्बे समय तक शासक बन सकते  हैं. 
३.
नागरिकों को  आतंकित  करनेवाले  
 अत्याचारी शासक   का  पतन जल्दी  ही होगा. 
४. नागरिकों  के द्वारा कठोर  निंदा के पात्र   बने 
अत्याचार शासक  जल्दी मिट  जाएगा.

५. निर्दयी  और कठोर  डरावना के चेहरे  
के  शासक  की  बड़ी संपत्ति
 जल्दी ही मिट जायेगी. 

६. कठोर शब्द  और निर्दयी दिलवालों  की संपत्ति 
जल्दी ही बरबाद हो जायेगी.

७. कठोर  शब्द  और अनियमित दंड देनेवाले 
शासक   जल्दी ही दुर्बल हो जाएगा. 

८. एक  राजा को  अपने दरबारियों से  
सलाह  मशवीरा लेकर  ही कार्य  करना  चाहिए 
,ऐसा  न करके गुस्सैल  राजा  अपने मार्ग पर  चलेगा
  तो दिन- दिन  उसकी संपत्ति कम होती जायेगी
.
९.  जो  राजा अपने सैनिक बल को पूर्व व्यवस्थित नहीं  रखता 
,वह युद्ध के आते ही जल्दी हार  जाएगा.



१०.अत्याचारी शासन  मूर्खों को अपने साथ रख लेगा; 
वैसे शासक केवल भार रूप  बनेगा; उससे कोई लाभ नहीं होगा. 




 . 

Saturday, March 19, 2016

अर्थ भाग-अत्याचारी शासन ५५१ से ५६० तक तिरुक्कुरळ

तिरुक्कुरळ  ५५१. से ५६० 

अत्याचारी शासन 

१.  अत्याचार करके  लोगों  को  सताना हत्या के पेशे से अति क्रूर है!    

                २.     शासन      दंड       हाथ में  लेकर  अपने अधिकार से लोगों   को    सताकर उनकी चीजों  को  छीनना  भाले के बल लूटने वा ले   लुटेरों  से  बुरा  है.
३.दिन -दिन शासन के भले -बुरे परिणाम को  विचार करके उसके  अनुसार शासक कार्रवाई न लेंगे तो देश नष्ट -भ्रष्ट हो जाएगा.

४. अत्याचारी  शासक  को अपनी  संपत्ती और  नागरिक दोनों को एक साथ खो देना पडेगा .

५.नागरिक को शासकों  के अत्याचार. से आँसू बहाना  पडें तो वही शासन को नाश करने  का हथियार बन जाएगा.
६.     सत्याचार. और तटस्थ शासक. को ही नाम  मिलेगा; आचरण असत्य और पक्षपात होने पर अपयश ही  मिलेगा. 

.  अत्याचार करके  लोगों  को  सताना हत्या के पेशे से अति क्रूर है!    

                २.     शासन      दंड       हाथ में  लेकर  अपने अधिकार से लोगों   को    सताकर उनकी चीजों  को  छीनना  भाले के बल लूटने वा ले   लुटेरों  से  बुरा  है.
३.दिन -दिन शासन के भले -बुरे परिणाम को  विचार करके उसके  अनुसार शासक कार्रवाई न लेंगे तो देश नष्ट -भ्रष्ट हो जाएगा.

४. अत्याचारी  शासक  को अपनी  संपत्ती और  नागरिक दोनों को एक साथ खो देना पडेगा .

५.नागरिक को शासकों  के अत्याचार. से आँसू बहाना  पडें तो वही शासन को नाश करने  का हथियार बन जाएगा.
६.     सत्याचार. और तटस्थ शासक. को ही नाम  मिलेगा; आचरण असत्य और पक्षपात होने पर अपयश ही  मिलेगा. 
७. बिन वर्षा  के  जैसे लोग कष्ट भोगेंगे वैसे ही बेईमान अत्याचारी के शासन  में  लोग दुख उठाएँगे!
८. गलत शासकों  के शासन  में गरीबों के जीवन से अमीरों का  जीवन कष्टमय रहेगा.
९ . कुशासन में  पानी का स्रोत उजड जाएँगे , तब वर्षा  का  पानी बचाना मुश्किल हो  जाएगा 
      अतः समृद्धी न. होगी.
१०. एक कुशासक के कारण देश में गाय का दूध  कम हो जाएगा. ब्राह्मण भी वेद मंत्र भूल जाएँगे.


Friday, March 18, 2016

तटस्थता --तिरुक्कुरल-- अर्थ भाग ५४१ से५५०

तटस्थता  ५४१ से ५५०

१.न्याय वही है जिसमें  तटस्थता  न हो!

अपराध क्या  है ?
 अपराध  की छानबीन  करके सच्चाई  जानकर
 तटस्थता से फैसला सुनाना ही  न्याय है!

२. सांसारिक जीव राशियों और वनसपति  जगत के लिए
 जैसे वर्षा प्रधान है ,
वैसे ही नागरिकों के सुखी  जीवन के लिए 
सुशासन प्रधान है!

३ . ब्राह्मणों  से सराहित वेदों और धर्म के आधार पर
जग की सुरक्षा में  सुशासन करना  ही 
राजा की तटस्थता  है.
  ४. सांसारिक शाश्वस्तता  के लिए
 ईमानदारी से पूर्ण तटस्थ शासकों की जरूरत है.
वैसे शासकों को नागरिक बहुत चाहेंगे .
५. तटस्थ न्यायी  के शासन में  मौसम पर वर्षा  होगी.
देश समृद्ध रहेगा.

६. एक सुशासन  की सफलता  अस्त्र-शस्त्रों   में नहीं है,
नागरिकों के प्रति तटस्थ  न्याय पूर्ण शासन. ही  है.

७. तटस्थ न्याय पूर्ण शासन करने पर 

उस देश के राजा और  प्रजा  को न्याय देवता  खुद रक्षा करेगी.

८.जिस देश  का शासक  न्याय की माँग की
 तटस्थता से नहीं करता,
बाह्याडंबर को प्रधानता देता है,
वह खुद पतन के गड्ढे में गिरेगा और अपयश 
प्राप्त  करेगा .

९.  एक सुशासन  का कर्तव्य   है'नागरिकों की रक्षा करना है!
तटस्थता  से   दंड देना, और  अपयश से बचना.
१०. हत्या जैसे कठोर अपराधियों  को दंड. देना,
फसल की रक्षा के लिए अनावश्यक पौधों  को उखाड फेंकने  के समान. है.





Thursday, March 17, 2016

तिरुक्कुरळ अर्थ भाग भूल --५३१ -५४०

भूल--तिरुक्कुरळ  ५३० --५४०

१.अति आनंद  से होने वाली भूल असीमित क्रोध से बढकर हानीप्रद  होगा!

२.दरिद्रता  से बुद्धि भ्रष्ट  होगा! वैसे ही भूल के  कारण अपयश होगा!

३. विद्वानों  का मतलब. है कि भुलक्कडों का यश स्थाई. नहीं  है! 

४. डरपोकों  को सुरक्षित दुर्ग  भी  सुरक्षित नहीं  है; 
वैसे  ही भुलक्कडों  को अति उच्च पद. से भी फायदा नहीं है!

५. बिना सोचे -विचारे  बाधाओं  को भूलकर  काम करनेवालों को अपने भूल के  कारण पछताना पडेगा !

६. 
 बिना  विस्मरण  के धयान और मन  लगाकर. काम. करें तो कोई भी  काम दुर्लभ नहीं है!

७.  बडों  से  प्रशंसनीय कामों को चाव. से करना चाहिए!  वैसा  न. करके  भूल. जाएँगे  तो सातों  जन्म में भला न होगा!

८.  यश प्रद कर्तव्यों  को मन लगाकर करना  चाहिए!  न करनेवाले  जिंदगी  में आगे न बढ. सकते!

९  अहंकार  से खुश  होकर अपने  कर्तव्य करने  में चूकनेवालों का पतन निश्चित. है!  उन्हें  देखकर हमें सुधरना  चाहिए .


१०   अपने लक्ष्य पर लगातार प्रयत्नशील मनुष्य   जरूर मंजिल पर पहुँच जाएगा. उसे अपने लक्ष्य को भूलना न चाहिए!

Saturday, March 12, 2016

सोच- विचारकर काम करना --५११ से ५२० तक --अर्थ भाग --तिरुक्कुरल

सोच-  विचारकर  काम करना --५११ से ५२० तक --अर्थ भाग  --तिरुक्कुरल 

१.  वही  कर्मवीर है ,जो भले -बुरे के विचार करके लाभ प्रद कार्य करते हैं .

२. वही कर्म वीर है ,जो आय के स्रोतों को सोच लेता है और आनेवाली बाधाओं को हटाने में सफल हो  जाता है. 
आय  और लाभ ही जिसका उद्देश्य हो .कर्म वीर को ऐसा काम चुनना है .
३. वही कर्मवीर बन सकता  है  जिसमें प्यार,ज्ञान ,निस्संदेह कार्य चुनने  की क्षमता  हो और   अधिक चाह न हो.
४. भली-भाँती सोच-समझकर कार्य  चुनने के बाद क्रियान्वित करने में बदलनेवाले लोग भी है.
५.  जिसमें कार्य करने की क्षमता हो , 
बाधाओं को मिटाकर कर्म पूरा कर सकता हो 
उसी को ही कार्य करने  में लगाना चाहिए . 
अपने वंशज या अपनी जाति के क्षमता हीन
 लोगों के हाथ सौंपना हानीहारक है.
६,  कर्ता का कौशल देखकर  ,समय को जानकर काम करने को सौंपना चाहिए.
७. किसी व्यक्ति को काम सौंपने के पहले सोचना है कि  उसमें वह कार्य करने की क्षमता है या नहीं.  सोच समझकर ही काम देना चाहिए.
८. योग्यता जानकार उसके अनुकूल काम ही  करने को देना चाहिए.

९.  एक कार्य करने में जिसमें क्षमता है  और प्रयत्न शील है ,उनको गलत समझकर नाता तोडनेवाला कभी नेता नहीं  बन सकता.
१०. जब तक मेहनत करनेवाले 
मजदूर सकुशल रहेंगे तब तक देश समृद्ध रहेगा.  अतः सफल सरकार को अपने कर्मचारियों को संतुष्ट रखना चाहिए. 

Wednesday, March 2, 2016

नाते -रिश्ते ---तिरुक्कुरल ---५१० से ५२० अर्थ -भाग

नाते -रिश्ते  ---तिरुक्कुरल ---५१०  से ५२०  अर्थ -भाग 

१.  गरीबी  में  भी   मिल-जुलकर  सम्बन्ध रखनेवाले  ही रिश्तेदार  होते  हैं  /. जब  मनुष्य दीनावस्था में हैं ,तब साथ  देनेवाला  ही  रिश्तेदार  है.

२.परिस्थिति  जैसे  भी हों ,    बिना  प्यार की कमी  के   स्थायी  दोस्त मिलने पर तरक्की  ही होगी.

३. नाते -रिश्तों  से मिलकर न रहनेवाले के जीवन ,किनारे रहित तालाब  में  पानी भरने के सामान बेकार ही चला  जाएगा.

४.अपने -नाते -रिश्तों  से मिलकर  जीने में ही बढ़िया सम्पात्ति  है. दौलत मात्र आनंद न देता. धनी  होने के बाद मिलकर रहना ही सबसे बड़ा धन है.
५.उसी के साथ ही नाते-रिश्ते घेर कर रहेंगे ,जो मधुर भाषी हैं  और  दानी है.

६.संसार में जो बड़ा  दानी है और क्रोध नहीं दिखाता हैं ,उनके साथ  ही कौए  के सामान अपने पास के धन रिश्तों की भीड़ रहेगी.
७.  कौए भोजन  मिलते ही काँव  -काँव  करके अपने रिश्तों को बुलाता हैं ; वैसे  ही मनुष्य अपने रिद्श्तेदारों को बुलाने पर  उसके इर्द -गिर्द भीड़ इकट्ठी होगी.
८.राजा अपनी प्रजा को  समान  रूप  में  न  देखकर  ,प्रजा  की योग्यता जान -समझकर   उनसे मदद   या  काम  लेगा तो    उसके चाहक सदा उनके  पास ही रहेंगे.

९. किसी कारण से या गलतफहमी से बिछुड़े नाते -रिश्ते ,चन्द समय  के  बाद सही समझ  लेंगे तो फिर रिश्ता जोड़  लेंगे.
१०. जो पहले दोस्ती निभाकर , बीच  में छोड़कर  दुश्मनों से मिल जाते  हैं।,फिर चन्द दिनों  के  बाद वापस  आते हैं तो सतर्क रहना चाहिए. बड़ी सावधानी से फिर दोस्त  बनाना  है.

Tuesday, March 1, 2016

திருக்குறள் ---तिरुक्कुरल --५०१से ५१० . समझकर समझदारी स्पष्टीकरण

திருக்குறள் ---तिरुक्कुरल --५०१से  ५१० . समझकर  समझदारी  स्पष्टीकरण

१.  एक  पदाधिकारी  की  नियुक्ति   तभी  करनी है,  जब   वे  निम्न  चार  बातों  में  दृढ़ हो;  ----
       अ )धर्म -कर्म में दृढ़ हो।  आ.)सुन्दर स्त्रीयों  के संपर्क में संयम इ)अर्थ संपत्ति देकर उ )प्राण को खतरे  में डालकर.   इन सब में योग्य हो तो वही नेता बन सकता  है.

२. अच्छे कुल में  जन्म लेकर  ,निर्दोषी    और  अपयश के बुरे  काम  करने से शर्मिंदा आदमी  पर ही विश्वास रखना चाहिए.

३. अपूर्व ग्रंथों  को पढ़कर जो ज्ञानी   रहता हैं ,उनमें  अज्ञानता देखना दुर्लभ है.

४.किसी एक व्यक्ति को बुरा  या  अच्छा  कहने  के पहले   समझ लेना  चाहिए  कि  उसमें  बुरे गुण ज्यादा है या  सद्गुण .   बुरे  गुण  ज्यादा है तो बुरा ; अच्छे गुण  ज्यादा हो तो  अच्छा.
५. एक व्यक्ति   अच्छा  है   या  बुरा  इसपर  निर्णय करने का कसौटी  है , उसके कर्म /दैनिक आचरण.

६.जिनको नाते -रिश्ते का  सम्बन्ध नहीं ,उनपर भरोसा रखना उचित  नहीं  है. क्योंके वे अपयश  या निदनीय कर्म करने  न संकोच  न  करेंगे .
७. बुद्धि  जिसमें  नहीं हैं ,उनको   प्रेम के वशीभूत चुनने  पर ,उच्च पदवी  पर बिठाने पर
 उसका बुरा प्रभाव पडेगा.

८. एक व्यक्ति के गुण और कार्यों को छान बीन करके  अपना बनायेंगे तो खुद को ही नहीं पूरे खानदान को कष्ट  होगा.
९. किसी को  देखते ही उसपर  विशवास  न  करना  चाहिए; खूब सोचकर जान -समझकर ही विश्वास रखना चाहिए .
१० .बिना सोचे-विचारे  -समझे  किसीको चुनना और चुनने के बाद उनपर  शक करना असाध्य दुःख देगा.