Friday, March 18, 2016

तटस्थता --तिरुक्कुरल-- अर्थ भाग ५४१ से५५०

तटस्थता  ५४१ से ५५०

१.न्याय वही है जिसमें  तटस्थता  न हो!

अपराध क्या  है ?
 अपराध  की छानबीन  करके सच्चाई  जानकर
 तटस्थता से फैसला सुनाना ही  न्याय है!

२. सांसारिक जीव राशियों और वनसपति  जगत के लिए
 जैसे वर्षा प्रधान है ,
वैसे ही नागरिकों के सुखी  जीवन के लिए 
सुशासन प्रधान है!

३ . ब्राह्मणों  से सराहित वेदों और धर्म के आधार पर
जग की सुरक्षा में  सुशासन करना  ही 
राजा की तटस्थता  है.
  ४. सांसारिक शाश्वस्तता  के लिए
 ईमानदारी से पूर्ण तटस्थ शासकों की जरूरत है.
वैसे शासकों को नागरिक बहुत चाहेंगे .
५. तटस्थ न्यायी  के शासन में  मौसम पर वर्षा  होगी.
देश समृद्ध रहेगा.

६. एक सुशासन  की सफलता  अस्त्र-शस्त्रों   में नहीं है,
नागरिकों के प्रति तटस्थ  न्याय पूर्ण शासन. ही  है.

७. तटस्थ न्याय पूर्ण शासन करने पर 

उस देश के राजा और  प्रजा  को न्याय देवता  खुद रक्षा करेगी.

८.जिस देश  का शासक  न्याय की माँग की
 तटस्थता से नहीं करता,
बाह्याडंबर को प्रधानता देता है,
वह खुद पतन के गड्ढे में गिरेगा और अपयश 
प्राप्त  करेगा .

९.  एक सुशासन  का कर्तव्य   है'नागरिकों की रक्षा करना है!
तटस्थता  से   दंड देना, और  अपयश से बचना.
१०. हत्या जैसे कठोर अपराधियों  को दंड. देना,
फसल की रक्षा के लिए अनावश्यक पौधों  को उखाड फेंकने  के समान. है.





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