Tuesday, March 22, 2016

जासूसी /चर --अर्थ भाग -तिरिक्कुरल --५७१ से ५८०

जासूसी  --अर्थ भाग  -तिरिक्कुरल --५७१  से  ५८०

१, एक शासक  की दो  आँखें हैं   १, ईमानदारी और चतुर - चर /जासूस २.नैतिक  धर्म -ग्रन्थ।


२,एक शासक को जासूसी /चरों  के  द्वारा  जान लेना  चाहिए  कि   दोस्त  कौन  हैं ?

दुश्मन  कौन है और तटस्थ

 कौन है ? उन तीनों  के दैनिक कार्यों  को  भी जान  लेना  चाहिए.


३.चरों के द्वारा देश-विदेश की   घटनाओं  को जन-समझकर  परिणामों पर  भी ध्यान रखना चाहिए.

ऐसा  न  करें  तो वह स्थायी  शासन  नहीं  कर  सकता.

४. ईमानदार चर वे  हैं  जो तटस्थ रहता हैं और भेद नहीं करता

कि  वह दोस्त है / दुश्मन  है /रिश्तेदार  है /अपना है या पराया है.

५. वही चर  का काम  कर  सकता हैं  जो देखने पर संदिग्ध नहीं दीखता  और पता लगने  पर  भी रहस्यों  को

प्रकट नहीं  करता  ; जो भी हो  रहस्यों  का भंडा  नहीं  फोड़ता.

६. साधू -संत के  वेश  में  जाकर भेदों  को  जानने में क्षमता रखनेवाला ही सफल  जासूस  है /चर  है;

सभी प्रकार  के  कष्टों  को  सहकर  भी दृढ़ रहनेवाला  ही निपुण चर  है.

७. चर   वही  है जोगोपनीय बातों को जानने  में कुशल  हो और जिसने रहस्य्मयी कार्य किया  है ,उसके  मुख से

ही जानने की क्षमता रखता हो और जो  कुछ  जनता  हैं ,उसमे जरा भी सक  न  हो.

८।   एक चर  जो कुछ जानकर   आया   है ,उसी बात को दुसरे चर  द्वारा  पता लगाकर  तुलना  करना  चाहिए।
तुलना  करके  सही हो  तो तभी निर्णय पर  आना चाहिए.

९. चरों   को भेजते समय चरों को अपरिचित रखना चाहिए. तीन  चर  एक  ही रहस्य  का  पता लगाकर  आने के बाद  भी सच्चाई  पर शोध करना  चाहिए.

१०. एक   चर की  प्रशंसा खुले  स्थान पर  करना उचित नहीं  है; उसको  पुरस्कार  भी गोपनीय रखना चाहिए, ऐसा  चर का   कार्य खुल जाएँ  तो सही नहीं है. रहस्य भी प्रकट होगा; चर   का परिचय भी हो जायेगा. 

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