Wednesday, March 2, 2016

नाते -रिश्ते ---तिरुक्कुरल ---५१० से ५२० अर्थ -भाग

नाते -रिश्ते  ---तिरुक्कुरल ---५१०  से ५२०  अर्थ -भाग 

१.  गरीबी  में  भी   मिल-जुलकर  सम्बन्ध रखनेवाले  ही रिश्तेदार  होते  हैं  /. जब  मनुष्य दीनावस्था में हैं ,तब साथ  देनेवाला  ही  रिश्तेदार  है.

२.परिस्थिति  जैसे  भी हों ,    बिना  प्यार की कमी  के   स्थायी  दोस्त मिलने पर तरक्की  ही होगी.

३. नाते -रिश्तों  से मिलकर न रहनेवाले के जीवन ,किनारे रहित तालाब  में  पानी भरने के सामान बेकार ही चला  जाएगा.

४.अपने -नाते -रिश्तों  से मिलकर  जीने में ही बढ़िया सम्पात्ति  है. दौलत मात्र आनंद न देता. धनी  होने के बाद मिलकर रहना ही सबसे बड़ा धन है.
५.उसी के साथ ही नाते-रिश्ते घेर कर रहेंगे ,जो मधुर भाषी हैं  और  दानी है.

६.संसार में जो बड़ा  दानी है और क्रोध नहीं दिखाता हैं ,उनके साथ  ही कौए  के सामान अपने पास के धन रिश्तों की भीड़ रहेगी.
७.  कौए भोजन  मिलते ही काँव  -काँव  करके अपने रिश्तों को बुलाता हैं ; वैसे  ही मनुष्य अपने रिद्श्तेदारों को बुलाने पर  उसके इर्द -गिर्द भीड़ इकट्ठी होगी.
८.राजा अपनी प्रजा को  समान  रूप  में  न  देखकर  ,प्रजा  की योग्यता जान -समझकर   उनसे मदद   या  काम  लेगा तो    उसके चाहक सदा उनके  पास ही रहेंगे.

९. किसी कारण से या गलतफहमी से बिछुड़े नाते -रिश्ते ,चन्द समय  के  बाद सही समझ  लेंगे तो फिर रिश्ता जोड़  लेंगे.
१०. जो पहले दोस्ती निभाकर , बीच  में छोड़कर  दुश्मनों से मिल जाते  हैं।,फिर चन्द दिनों  के  बाद वापस  आते हैं तो सतर्क रहना चाहिए. बड़ी सावधानी से फिर दोस्त  बनाना  है.

No comments:

Post a Comment