Tuesday, March 22, 2016

अनुग्रह/ दया अर्थ भाग --तिरुक्कुरल --५७१ से ५८०

अनुग्रह/दया --अर्थ भाग --तिरुक्कुरल --५७१  से ५८० 
  १. संसार   की  श्रेष्ठता  प्यार ,दया आदि 
अनुग्रह  करनेवाले दयालु लोगों पर  निर्भर  है.

२. जो प्यार ,दया ,अनुग्रह आदि सद्गुणों  को अपनाते  हैं ,वे ही संसार के हैं; जिनमें  ये  गुण  नहीं  हैं ,वे संसार के भार रूप हैं.
३.  गीत राग और संगीत के अनुसार न हो तो ठीक  नहीं  होगा. 
वैसे  ही दया दृष्टी के बगैर  आँखें बेकार  है. 
४. प्यार  और दयाहीन दृष्टी न  होने पर
 चेहरे की आँखों  से कोई लाभ नहीं  है। 
५. दया और प्रेम पूर्ण दृष्टी के  नेत्र  ही नेत्र हैं; दया  और प्रेम हीन आँखें आँखें  नहीं ,चेहरे के दो  घाव  हैं। 
६. दया दृष्टी के होते ,दया   और प्रेम न दिखानेवाले  पेड़  के  समान  है.
७. दयालुओं  की  आँखें ही आँखें हैं ; निर्दयी आँखें होकर  भी अंधे  हैं. 
८. जो अपने कर्तव्य ठीक  तरह  से  निभाते  हैं ,दया रखते हैं ,
उनकी प्रशंसा संसार करेगी। वे  संसार के अधिकारी होंगे. 
९. अपने को दुःख पहुँचानेवाले  पर  भी दया दृष्टी डालना  श्रेष्ठ गुण  है.
१०. दयालु और सुसंस्कृत  लोग अपने प्रिय जन विष पिलाने  पर भी पी लेंगे। 

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