Friday, March 25, 2016

साहसी /बल ---अर्थ भाग -५९१ से ६०० तिरुक्कुरल

साहसी ---अर्थ भाग -५९१ से ६०० तिरुक्कुरल 

१. जिसमें बल  और साहस है, वही सर्व सम्प्पन्न व्यक्ति है ; साहस नहीं हैं तो एनी संपत्ति हिने पर भी वह सम्पत्तिहीन ही माना जाएगा .

२. साहस  ही स्थायी  संपत्ति है ; बाकी संपत्ति अस्थायी ही है. 

३. साहसी और पुरुषार्थ लोग संपत्ति के खोने पर भी दृढ़ रहेंगे .वे साहस खोकर दुखी नहीं  होंगे .

४. पदोन्नती और प्रगति साहसी लोगों की खोज में आयेगी.

५.कमल के नाल की लम्बाई पानी की गहराई   तक ही होगी ; 

वैसे ही एक मनुष्य में जितना साहस और पुरुषार्थ है ,उतनी तरक्की  जीवन  पर होगी .

६. जो  कुछ सोचते हैं ,ऊँचा सोचना चाहिए. उसमें असफल होने पर भी साहसी सोचना न छोड़ेगा.
७. हाथी अपने शारीर भर बाण घुसने पर भी दृढ़ रहेगा. वैसे  ही साहसी दुखों के घेरे में भी साहस  न छोड़ेंगे.
८. जिसमें साहस नहीं हैं ,वे दूसरों को दान देकर दानी नाम पाने में असमर्थ ही रहेंगे.

९, हाथी का शरीर मोटा  ताज़ा  है; फिर भी उससे बलवान  बाघ को देखकर भयभीत हो  जाएगा.

१०.  एक  मनुष्य का  बल साहस  ही है;  जिसमें साहस  नहीं है ,
वे आकार से मनुष्य है पर चलते -फिरते पेड़ के समान  है.

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