Saturday, October 17, 2020

बड़ा आदमी

 बड़ा आदमी 

मैं हूं बड़ा आदमी,
भूखा प्यासा भटक रहा था।
अत्यंत प्रयत्न कठोर परिश्रम
अब आलीशान होटल, इमारत,
नौकर चाकर मेरे मेहनत का फल।
चंद सालों में रोते बिलखते मिला,
संपत्ति अधिक,पर संतान ऐसा,
एक असाध्य रोगी,न इलाज।
दूसरा फिजूलखर्ची, करोड़ों का बरबाद।
हजोरों की सुविधाएं,पर न शान्ति,न संतोष न आनंद।।
,ही है सबहिं नचावत राम गोसाईं।।

स्वचिंतक स्वरचित कविता अनंत कृष्णन,चेन्नै।।

No comments:

Post a Comment