Wednesday, November 6, 2019

पचपन/बचपन

प्रणाम।वणक्कम
बचपन
शिशु को किसीने कहा ,
नन्हा मेहमान।
पत्नी का सारा  प्यार,
चुंबन आलिंगन शिशु की ओर।
शिशु बच्चा,तब बचपन।
पाठशाला गमन,
खेलकूद,गिल्ली ठंडा,
गोली खेलना,कबडी
न चित्रपट,न दूरदर्शन न मोबाइल।
न ट्युसन,न क्रीकट कोच,
न की बोर्ड,न कराते।
खल खेल में पढाई।
आज दो साल में प्रि के जी,
किस के लिए?
मातृभाषा भूलने के लिए।
तब से टियुसण।
हमारा बचपन पैदल चल,
पेड  की  छाया में,
दौड धूप में आँख मिचौनी में बीता।
आज के जल्दी जल्दी
 किताबों की बोझ पीठ में ढोते,
 स्कूल बस के आते ही दौडना,
ज़रा भी आजाद नहीं,
वैसे ही बचपन गुलाम सा,
बेगार सा,न माँ  का प्यार,
न दादा दादी की आशीषें,
न हँसी,न खेल कूद,
बीत  जाता  बचपन।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन
पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।

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