Saturday, June 23, 2012

12.mantriमंत्री=अमात्य=सामंत++++

वल्लुवर   कर्म -दृढता  और विचार की दृढ़ता  दोनों को एक दूसरे  का  आश्रित मानते हैं।

कर्म की सफलता के लिए ,अपने मंजिल पर पहुँचने के लिए  अपने विचार पर दृढ़ता  की ज़रुरत है।
 मनुष्य जैसे   सपना  देखते  है, , वैसे ही  उसे   साकार  करने के  लिए,अपने     कर्म पर पूरे ध्यान  देने  की  ज़रुरत है।
 फल  प्राप्त करने केलिए अनिवार्य  कर्म करना और अपने लक्ष्य पर  दृढ़  रहना  आवश्यक  है। कार्य क्षमता  और  कौशल  जिसमें  होते हैं,वे अपने विचारों को कार्यान्वित करके सफलता प्राप्त करेंगे।

कुरल: एन्निय  वेंनियांग केय्तुब   वेन्नियार   तिन्नीय  राकप पेरिन।

ONE WILL REALIZE HIS ASPIRATIONS,IF HE HAS THE DETERMINATION TO PURSUE HIS PLANS.

मंत्री-शास्त्र के सभी कुरलों में मंत्री   के गुणों की व्याख्या करते हैं।

उसमे मंत्रित्व की विशेषता और मुख्यत्व बताना ही कवि  का  पूरा ध्यान रहा। एक  मंत्री में
कर्म  करने की दृढ़ता और कौशलता  न होने पर,  मंत्री पद के लिए नालायक ही है।

मन की दृढ़ता,बुध्दी की स्थिरता,बुद्धि-बल,शारीरिक बल,कर्म -बल आदि आतंरिक बल है।इनके जैसे ही शस्त्र -बल,काल-बल,सैनिक बल आदि;
 कर्म में दृढ़ता  और कामयाबी के लिए सच्चे प्रयत्न की ज़रुरत है।नहीं तो कोई प्रयोजन नहीं है।लोक उसे नहीं चाहेगा।

कुरल:   एनैततिट्प  मेय्तियक  कन्नुम  विनैत्तिटपं   वेंडारै  वेन्डातु    उलगु।


SEE G.U.POPE'S TRANSLATION---THE GREAT WILL NOT ESTEEM THOSE WHO ESTEEM
NOT IN FIRMNESS OF ACTION.WHATEVER OTHER ABILITIES THE LATTER MAY POSSESS.

मंत्री जो कर्म की पवित्रता,कर्म-करने की दृढ़ता को खूब जानता है,वे ही कर्म के प्रकारों को जान-समझ सकते  है।
पावन-कर्म  और कर्म करने की दृढ़ता दोनों  बड़े द्वार के दो दरवाजे के समान है।
दोनों दरवाजा के खुलने पर ही भीतर प्रवेश करके कर्म- फल प्राप्त कर सकते हैं।
 इसी  कारण से वल्वर ने पावन-कर्म,कर्म-बल,कर्म  करने के तरीके आदि  तीन  अध्याय में तीस कुरल लिखे  हैं।
मन क्कुडवर  ने कहा --कर्म-प्रकार का मतलब है  कर्म-करने केलिए कहना,और कर्म करने की दृढ़ता  और कर्म बल पर जोर देते है। दृढ़ इच्छा से कर्म करना।
जो काम धीरे करना है,उसे धीरे करना ;जो काम जल्दी करना है,उसे जल्दी करना चाहिए।
धीरे करना,तेज़ करना दोनों कर्म की अति आवश्यकता पर निर्भर है।
जो काम सोकर  करना हैउसे सोकर करो ;जो काम बिना सोकर करना है ,  तब मत सोओ.

कुरल: तून्गुह  तून्गीच  सेयर्पाल  तून्गरक   तून्गातु  सेय्युम  विनै .

g.U.POPE--GOOD DEEDS NEED TO BE EXECUTED IMMEDIATELY WHILE OTHER ACTIONS NEED CAREFUL EVALUATION.
जो भी काम हो उसे  पूरा  करके ही आराम लेना चाहिए,अधूरा छोड़ना ठीक नहीं है।यही -COURSE OF ACTION  है।
वल्लुवर कहते है--शोध  करने से प्रकट होता है---अधूरा काम और बिन मिटाए दुश्मनी दोनों  बिना बुझाकर छोड़े हुए  आग के सामान है;फिर बढ़कर  जो  अधूरा  छोड़कर गए है,  उनको सर्व-नाश कर देगा।

बड़े दुश्मन को दबाने के आत्म संतोष के कारण छोटे दुश्मन को छोड़ रखना दुश्मनी  शेष रखनी  है;
बाढ़ के बढ़ने पर उसे बांधकर रोकने के बाद ,     छोटे से छेद  छोड़ रखना बाढ़ रोकने का    अधूरा    काम    है।
बड़े रोग के इलाज में छोटे घाव या भाग को छोड़ना चिकित्सा में अधूरी  है।

कुरल:  विनै  पकै यिनरी रंदिनेच्च  निनैयुन्गार  रीएच्चम  पोलत  तेरुम।

ये कमियाँ ,हमें कुछ नहीं करेंगी ---यों सोचकर लापरवाही से रहना  खतरे को मोल लेना है।अतः जो भी काम हो , उसे पूरा करके ही दम लेना चाहिए।


दुसरे उदाहरण भी वल्लुवर देते हैं ,धान के पौधे  में उगे घास को पूरा नहीं निकालेंगे , तो घास  धान के पौधों को
नष्ट कर देगा।
g.u.pope--WHEN DULY CONSIDERED,THE  INCOMPLETE EXCUTION OF AN UNDERTAKING AND HOSTILITY WILL GROW AND DESTROY ONE LIKE THE (UNEXTINGUISHED)REMNANT OF A FIRE.


  

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