वही मंत्री हैं,जो देश की प्रगति के कार्यों को खोजकर बताने में पटु हो।
फिर उन कर्यों में कामयाबी होने का मार्ग निकालना,जो वास्तविक बातें देखते-समझते हैं उनको कहने और अपनी रायें प्रकट करने का साहस आदि तीनों में जो सिद्धहस्त है,वही मंत्री हैं।
दूत कौन है?--दूत भी मंत्री ही है।आजकल विदेशी मंत्रालय है।जब दो देशों के बीच मतभेद होता है,तब उसके बारे में दोनों देश मिलकर एक निर्णय पर पहुँचने राजदूत होते हैं
।आजकल विदेश मंत्रालय और मंत्री के जैसे प्राचीन काल में हर देश में दूत होते थे, जो विदेश मंत्री का काम करते थे।
दूत के लक्षण पर वल्लुवर कहते हैं----
सूक्ष्म ज्ञान,आकर्षक रूप,उच्च शिक्षा आदि दूत के लक्षण हैं।
विस्तार से दूत के बारे में सोचें तो उनके काम है, राजा को माफ करना, राजा को अलग करना,राजा की प्रशंसा करके उत्थान करना आदि। दूसरे राजा से अपने राजा के बारे में कहना, मंत्री,दूत और कवि का काम है।दूत का काम मंत्री किया करते थे।
तमिल में कवयित्री अव्वैयार तोंडै मान और अतियमान राजाओ के बीच दूत बनकर गयी थी;यह तो अपवाद मात्र है।
दूत के रूप में दो तरह के लोग चलते थे।एक संदेश को समझाकर कहने वाला और दूसरा राजा के सन्देश को ज्यों ही त्यों देनेवाला।
व्याख्याता दूत विदेशी राजा के सारे प्रश्नों के उत्तर देने का अधिकार रखनेवाला दूत है।उनमें चतुराई और होशियारी होती हैं।
संदेशवाहक दूत केवल सन्देश देता है।
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फिर उन कर्यों में कामयाबी होने का मार्ग निकालना,जो वास्तविक बातें देखते-समझते हैं उनको कहने और अपनी रायें प्रकट करने का साहस आदि तीनों में जो सिद्धहस्त है,वही मंत्री हैं।
दूत कौन है?--दूत भी मंत्री ही है।आजकल विदेशी मंत्रालय है।जब दो देशों के बीच मतभेद होता है,तब उसके बारे में दोनों देश मिलकर एक निर्णय पर पहुँचने राजदूत होते हैं
।आजकल विदेश मंत्रालय और मंत्री के जैसे प्राचीन काल में हर देश में दूत होते थे, जो विदेश मंत्री का काम करते थे।
दूत के लक्षण पर वल्लुवर कहते हैं----
सूक्ष्म ज्ञान,आकर्षक रूप,उच्च शिक्षा आदि दूत के लक्षण हैं।
विस्तार से दूत के बारे में सोचें तो उनके काम है, राजा को माफ करना, राजा को अलग करना,राजा की प्रशंसा करके उत्थान करना आदि। दूसरे राजा से अपने राजा के बारे में कहना, मंत्री,दूत और कवि का काम है।दूत का काम मंत्री किया करते थे।
तमिल में कवयित्री अव्वैयार तोंडै मान और अतियमान राजाओ के बीच दूत बनकर गयी थी;यह तो अपवाद मात्र है।
दूत के रूप में दो तरह के लोग चलते थे।एक संदेश को समझाकर कहने वाला और दूसरा राजा के सन्देश को ज्यों ही त्यों देनेवाला।
व्याख्याता दूत विदेशी राजा के सारे प्रश्नों के उत्तर देने का अधिकार रखनेवाला दूत है।उनमें चतुराई और होशियारी होती हैं।
संदेशवाहक दूत केवल सन्देश देता है।
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