Tuesday, June 12, 2012

अर्द्धांगिनी----10

नल वेण्बा  के कवि  पुकलेंदी  ने निःसंतान की गति पर

अपनी कविता में लिखा है---

स्वर्ण ,यश,और  कई प्रकार की संपत्ति होने पर भी
  पुत्र भाग्य न मिलने पर
असंतोष ही रहेंगे।

तमिल:-
          पोंनुदैयारेनुम  प्कलुदैयारेनुम  मत्रेंनुदैयारेनुम  उडैयरो  -इन्नाडि सिल
          पुक्कालैयुन्त  तामरैक  कैप  पूनारुंच  सेय्वाय
          मक्कालैयिंग  किल्लातवर।

संतान भाग्य होने के बाद पिताजी का फ़र्ज़ बढ़ जाता है।
 पिताजी का कर्त्तव्य अपने पुत्र को दरबार में मुखिया बनाना।
 अपने पुत्र को ऊंची शिक्षा देना भी पिताजी का कर्त्तव्य हैं।
अपने पुत्र को शिक्षितों की सभा में आगे जाने की शिक्षा देना।
 अपने पुत्र को वीर बनाना ;अपने पुत्र को धनी बनाना ;

आदि पिताजी के लालन -पालन पर अवलंबित है।

 कवि   पोंनमुडी  भी  पिताजी का फ़र्ज़ अपने पुत्र को
शिक्षित महान आदमी बनाना कहते हैं।.


वल्लुवर  ने  कहा है---अपने पुत्र को शिक्षा-दीक्षा में अपने से बड़ा बनाकर
 देखने  में    वास्तविक आनंद है; सुख है।

माता अपने पुत्र को अपने पति देव से ऊंचा देखना चाहती है।
वह अपने पुत्र को अजय और विजय देखना चाहती है।
अपने पुत्र पर दुःख की छाया न मिलें ,यही माँ की कामना है।

फिर अपने पुत्र के कल्याण की बात सोचती रहती है।
इस मां का विचार पक्का होने पर विचार साकार बनता है।
अपने पेट में पले पुत्र सारे संसार को सुख प्रदान करें।

कुरल:
1.तनतै  मकर्क   काटरूम  नन्री  अवैयत्तु   मुन्तियिरुप्प  सेयल .
2.तम्मिन  तम  मक्कल  अरिवुडमै   मानिलत्तु   मन्नुयिर्क्कू  एल्लाम इनितु।
3.एन्नीय  एन्नियांगु एय्तुब. एन्नियर  तिन्नियाराकप्पेरिन।

 THAT THEIR CHILDREN SHOULD POSSES KNOWLEDGE IN MORE PLEASING TO ALL MEN OF THIS EARTH  THAN TO THEMSELVES.

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