तमिल सिद्ध मनोशक्ति कवि तिरुमूलर
तमिल में सिद्ध कवियों ने अष्टांग योग द्वारा ईश्वरीय शक्ति प्राप्त करके अनेकानेक चमत्कारपूर्ण कार्य करके
आम जनता में अष्टयोग साधना का मार्ग दिखाया है । तमिल सिद्धपुरुषों की संख्या अधिक हैं । उनमें अठारह सिद्ध
अति प्रसिद्ध हैं । आम लोगों का विश्वास है कि एक दीप जलाकर लौकिकता तजकर इन सिद्धों के नाम जपने से ये सिद्ध
प्रत्यक्ष दर्शन देंगे और हमें दिव्य शक्ति प्रदान करेंगे ।
तमिल के अठारह प्रसिद्ध सिद्ध पुरुष हैं ------
1.अगस्त्यर 2. पुलत्तियर ३.काकभुजंडर ४.नंदीदेवर५.तिरुमूलर् ६ .भोगर७.कोंकणवर ८.मच्छमुनि ९.गोरखर १०.चट्टमुनि
११.सुंदरानंदर १२.कुदंबै १३.करुऊरार्१४. इडैक्काडार १५.कमलमुनि १६.पतंचलि १७.धनवंत्री १८.बोधगुरु.
इन अठारह सिद्ध पुरुषों में तिरुमूलर् को अव्वल स्थान मिला है । तिरुमूलर के गुरु नंदी हैं ।तिरुमूलर का असली नाम् सुंदरनाथर था। मूलन नामक गायें चरानेवाला गायें चराते चराते मर गया। तब सुंदरनाथर ने अपने दिव्य चमत्कार द्वारा अपने शरीर तजकर मूलन के शरीर में प्रवेश कर मूलन के यहाँ गया। फिर अपने शरीर में घुसने गया तो शरीर नदारद । वे मूलन के शरीर में ही अपने योग सिद्ध कार्य में रहे.कुल ३००० पद्यों की रचनाएँ की ।उन्होंने लिखा है कि संस्कृत के आगमों को तमिल में ही लिखने के लिए भगवान शिव ने मेरी सृष्टि की है ।
संस्कृत के ज्ञाता शिव भगवान के शिष्य सुंदरनाथर तिरुमूलर् के नाम से तमिल भाषा में पहले पहलअष्टांग योग की व्याख्या की है ।
उन्होंने ही तमिल लोगों को समझाया कि शरीर में छे आधार हैं । १.मूलाधार चक्र--गुदा के पास है।
२.स्वाधिष्ठान चक्र --गुदा केऊपर और नाभी के नीचे हैै.
३.मणिपुर चक्र--नाभी है.
४.अनाहत चक्र----छाती है
५. विशुद्ध चक्र--कंठ है
६. आज्ञा चक्र -----भौहों के बीच में है .
इन चक्रों को तमिल भाषा में तिरुमूलर ने ही परिचय दिया है । तिरुमूलर के बाद असंख्य सिद्ध पुरुषों ने इन चक्रों को प्रयोग करके सिद्धियाँ प्राप्त की है ।
तिरुमूलर की अष्टमा सिद्धियाँ हैं ---जिनको तमिल में अट्टमा सिद्धिकल् कहते हैं। कट्टर तमिल लोग ष का उच्चारण
ड ही करते हैं जैसे वर्ष को वरुडम्, विषय को विडयम् . विष को विडम््आदि .
अब अट्टमा सिद्धि पर विचार करेंगेे ---
१. अणिमा----शरीर को छोटा बनाा लेना.
२. महिमा---तन को विराट रूप में बना लेना
३.गरिमा----तन को अत्यधिक मोटा बना लेना
४. लघिमा----तन को हल्का बना लेना
५. प्राप्ति--जैसा चाहते हैं वैसा बनने की क्षमता
६.प्रकाम्य - ---अपनी हर इच्छा को पूर्ण करने की क्षमता
७. ईशतव ---संसार की हर वस्तु को अपने वश में करने की क्षमता
८. वशित्व ------संसार के जीवों को अपने वश में लाकर अपनी इच्छा के अनुसारर नचाने कीी क्षमता।
तिरुमूलर इन अष्ट सिद्धियों को प्राप्त शिव योगी थे ।
तिरुमंत्र की सक्तिया ँ--
१.एक ही मानव कुल., एक ही भगवान । भला सोचना,न यम भय ।
२. जो ईश्वरीय सुखानुभूति मिली,वह सबको अगजग को मिलें ।
मंत्र तो महसूसस करने,
३.अंतःकरण में देखने में ही आनंद है ।
४.अपने को पहचानने के बाद ,और कुछ न जाना न पहचाना ।
५. अपने को जानने पहचानने के बाद न कोई बरबाद ।
६.सुष्म्ना नाडी के पहचान से दर्पण -सा ईश्वरीय मिलन -मिश्रण।।
७. चेहरे के नयनों से देखने में आनंद नहीं ,मानसिक नेत्रों से देखने में ही दर्शनानंद।.
तिरुमंत्र के लाभ
नश्वर शरीर को योग शक्ति द्वारा मंदिर बना सकते हैं ।
प्राणायाम् ,ध्यान,तपस्या द्वारा दीरघायु से बढकर ज्यादा साल जी सकते हैं ।
आध्यात्मिक जीवन ब्रह्मानंद जीवन का साधन है ।
मानव को अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए ।
दुर्बल शरीर कोई भी काम करनेनहीं देता ।
शरीर से प्राण निकल जाने के पहले कुछ करना चाहिए । सवस्थ शरीर मंदिर है । मन ही भगवान है ।
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