Friday, February 10, 2023

परिपाडल

 




  परिपाडल एक परिचय.

शोध सार —-
संघ काल का परिचय,परिपाडल का विवरण, विष्णुदेव का वर्णन, बलदेव का रूप,वराह कल्प का ज्ञान, नदी वैगै का वर्णन, बाढ के आते ही सबको नदी में नहाने जाना,जल-क्रीडाएँ,-प्राकृतिक वर्णन -


परिपाडल—--

    परिपाडल के कवि हैं तेरह.
परिपाडल कविताओं के संकलन कर्ता हैं
उ.वे.स्वामिनाथऐयर ।इसकी व्याख्या परिमेलअळकर ने किया है।
परिपाडल के कवि :-
१.कटुवन इल ऍयिननार,२.इलंपेरुवळुतयर कीरत्तैयार,३.नल्लंतुवनार ४. करुंपिल्ळ्ळै भूतनार ५मैयोडक्कोवार ६ कुरुंभूतनार ७.नलवलुतियार ८.नलवलुसियार९.कुन्ऱमभूतनार १०.नप्पण्णनर ११.नल्लच्चुदनार १२.केसवनार १३.नल्ललिसियार


  संघकाल :---   

तमिल़ साहित्य भारतीय भाषाओं के साहित्यों में अति प्राचीन और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भारतीय एकता का प्रतीक होते हैं। तमिल़ साहित्य  का संघ काल तमिल साहित्य का स्वर्ण  युग होता है। संघकाल के साहित्य पत्तुप्पाट्टु,एट्टुत्तोकै है । तोकै का मतलब है संकलन।
 
 
दस ग्रंथों का संकलन पत्तुप्पाट्टु,आठ ग्रंथों का संकलन एट्टुत्तोकै ।
एट्टुत्तोकै में परिपाडल को विशेष स्थान मिला है। उस के संबंध में एक गीत है ।

ग्रंथ की विशेषता :-
"नट्ऱिनै नल्ल कुरुंतिणै ऐंगुरु नूरु ,
ओॅत्त पतिट्रुप्पत्तु ओंगु परिपाडल ।"


ओंगु का मतलब है ऊँचा । इसमें इयल,इसै,नाटक अर्थात आम तौर पर व्यवहारिक भाषा,संगीत और नाटक की भाषा इन तीनों के रूप परिपाडल में मिलते हैं।

यह विष्णु भक्त ग्रंथ है। वैष्णव , शैव और विश्वधर्मों का समन्वयत्मक ग्रंथ है।प्रकृति के कार्यकलापों में ईश्वरीय शक्ति का आधार का महत्व मिलता है ।

        तमिळ छंदों में परिपाडल छंद केवल इस ग्रंथ  में है।तमिल के चार प्रसिद्ध छंद आसिरियप्पा,वेण्बा,कलिप्पा,वंचिप्पा आदि से छूट्कर उन चारों के आम छंद के रूप में परिपाडल है ।
परि का अर्थ होता है अश्व।कुछ शोध कर्ताओं का कहना है कि अश्व की चाल जैसे संगीत होने से यह परिपाडल है.(अश्वगीत)।
इस ग्रंथ की और एक विशेषता है कि धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष आदि चारों का वर्णन तुलना आदि ।
यह ग्रंथ ताडपत्र में था, माननीय विद्वान उ.वे.स्वामिनाथ अय्यर ने ताड पत्रों की खोज की और१९१९ में इस ग्रंथ का प्रकाशित किया ।
  परिपाडल कुल सत्तर होते हैं।

विष्णु भगवान का यशोगान में आठ, 

भगवान कार्तिकेय के यशोगान में  इकतीस,

कोट्रवै (काली) के लिए एक,

वैगै नदी पर छब्बीस,

मदुरै शहर पर चार । कुल सत्तर ।

ये सारे के सारे अब नहीं मिलते ।ये गीत गाने योग्य होते  हैं।

    अभी इन सत्तर गीतों में बाईस ही मिलते हैं।
  विष्णु के छे,

मुरुगन (कार्तिकेय) के आठ,

वैकै नदी के आठ।
गीत कारों के कारण गीतों  के शब्दों में तोडमरोड अधिक होते हैं ।इनमें संस्कृत की पौराणिक कथाएँ अधिक होने से ई.पू. के बीच के माननेवाले विद्वान भी होते हैं ।
परिपाडल ही तमिळ भाषा  का सर्वप्रथम  गीत ग्रंथ हैं.
परिपाडल की बडी विशेषता आंतरिक और बाह्य ,काम और भक्ति की विशेषताएँ मिलती हैं ।
प्रकृति में ईश्वरत्व का वर्णन इसकी विशिष्टता है।

विष्णुदेव का रूप वर्णन :---(बलदेव )
आयिरम् विरित्त अणंकुडै अरुंतलै
ती उमिळ तिरळोडु मुडिसै अणवर
मायुडै मलर मार्पिन मै इळ वाळ वळै मेनिच
चेय उयर पणै मिसै ऍळिल वेळम एंतिय
वाय वांगुम वळै नांचिल ओॅरु कुलै ओॅरु वनै ।

  हे विष्णु! 

सभी जीवों को भयभीत करानेवाले
आदी शेष नाग अपूर्व हजारों सरवाले ,
क्रोधागनि उगालते हुए तेेरे सिर पर छाया दे रहा है ।
श्री लक्ष्मी देवी ,तेरी चौडी छाती पर विराजमान है ।
बढिया बाँस के ऊँचे खंभ पर
बाँधे हाथी के झंडे जो "हल" जैसे है,
उसे उठाकर श्वेत रंग के तू,
एक कान में कर्णाभूषण पहनकर
बलदेव सम दीख पडता है।
आगे भगवान के कमल नयन को जलनेवाली लाल ज्वाला की तुलना करते हैं ।

परिपाडल के प्रार्थना गीत में कवि अगजग के हर कार्य में ईश्वर की देन का वर्णन करते हैं ।
  हे  विष्णु ,
ब्राह्मण द्वारा रक्षित धर्म तू है,
भक्तों का प्यार तू है।
अधर्मियों के रक्षक तू है ।
शिव तू है ,
ब्रह्मा तू है,
सृष्टियों के कर्ता तू है ।
बादल तू है,
आकाश तू है,
भूमि तू है,
हिमाचल तू है।


खगोल शास्त्र ज्ञान —-
  दो हजार वर्ष के इस पुराने ग्रंथ में,

  भूमि कैसे बनी का वर्णन है।
इससे तमिल कवियों के वैज्ञानिक ज्ञान विशिष्टता का पता चलता है।
  कवि कटुवन इल एयिननार ने   प्रकृति में   विष्णु के गुणों को देखते हैं।

निन वेम्मैयुम विलक्कमुम ञायिट्रिल उळ --तेरी गर्मी और उज्ज्वलता सौरमंडल में
निन तण्मैयुम सायलुम तिंगल उळ– –   तेरी करुणा और कोमलता चंद्रमंडल में
निन करत्तलुम वण्मैयुम मारि उलतेरी -    तेरा अनुग्रह और दानशीलता बादल में ।
निन पुरत्तलम नोन्मैयुम ञालत्तु उळ —   तेरी सहनशीलता और आश्रयशीलता भूमि में ।
निन नाट्ऱमुम ओॅण्मैयुम पूवै उळ – –     तेरा सुगंध और प्रकाश पुष्प में
निन तोट्रमुम अकलमुम नीरिन उळ—   -   तेरा रूप और बडप्पन सागर में

निन उरुवमुम ओलियुम आकायत्तु उळ   -   तेरा आकार और ध्वनियाँ आकाश में
निन वरुतलुम ओडुक्कमुममरुत्तिन उळ —---तेरा जन्म और मृत्यु वायु में
अतनाल इव्वुम उव्वुमिरउम एमम आर्त्त —-  इसलिए तू इत्र तत्र सर्वत्र और सभी में व्यापित
निऱ पिरिन्दुमेवल चान्रन एल्लाम —--------सब में विद्यमान  रहकर 

अपना काम करवाने के                                                          मूलाधार तू है।

अगजग की उत्पत्ति कैसे हुई? :---

      दो हजार वर्ष  के पहले ही परिपाडल में कवि कीरंदैयार ने जिक्र किया है ।
    तमिल मूल :-

   तोलमुऱै इयऱकैयिन मतियॊ

—-मरबिट्रु

विसुंबिल ऊऴि ऊऴ ऊऴ चेल्लक

करु वळर वानत्तु इसैयिन तोन्रि

उरु अऱिवारा ऒन्ऱन ऊऴियुम

चेंतीच चुडरिय ऊऴियुम पनियोडु

तण पेयजल तलैइय ऊऴियुम अवैयिट्रु 

उळ मुरै वेळ्ळम मूऴकि आर तरुपु।

 अर्थ :--

 कई युग बीत गये।

उसके बाद मूल प्रकृति से

 अपने गुण तेज ध्वनि के साथ
वायु जैसे भूत गणों के परिवर्तन  करनेवाले सूक्ष्म कण बढने का स्थान बना।
आकार हीन आकाश में पहला युग,
उस आकाश से वस्तुओं की गति देनेवाली

 हवा बही,
फिर हवा से दूसरे युग का भूतगण 

लाल अग्नि,

उस आग से तीसरे भूत गण जल ,बर्फ,

ठंडी वर्षा के साथ चौथे युग का भूत गण,
फिर चौथे भूत गणों के सूख जाने से 

भूमि भूत गण
पाँचवाँ भूत गण का उदय हुआ।
पेड़ पौधे कमल जैसे फूल,
सागर तट की भूमि,
फिर अंधकार मय भूमि में से
  तेरा वराहावतार ,
  श्वैत वराह कल्पम संस्कृत में उल्लिखित है।

 ऐसे महान शक्ति शाली विष्णु को प्रणाम।।

 आधुनिक वैज्ञानिक बातें दो हजार साल पहले ही वर्णित है तो तमिऴ भाषा के कवियों का ज्ञान वर्णनातीत है।

   वैगै नदी के प्रवाह वर्णन में पता चलता है कि 

   कवि ने कितने प्राकृतिक  दृश्यों का अध्ययन किया है।

  और नायक नायिका वेश्या के वर्णन में 
  भावनात्मक वर्णन में अति पटु होते हैं।

  परिपाडल में हर पद्य में अद्भुत भक्ति चमकती है।
  ईश्वरीय महक महकता है।
  यह अपने आप एहसास करने का ग्रंथ है।

  वेदों के महत्व में चतुर्वेद,
  श्रुति, मौखिक, आंतरिक,बाह्य आदि प्रशंसा का महत्व मिलते हैं।

  वेदों के आंतरिक अर्थ ही ईश्वरीय रूप होता है।

  परिपाडल में उपमेय -उपमा  : —

  वैगै नदी के वर्णन में ,
  नायक-नायिका के संयोग -वियोग रूठ में,
  नदी के बाढ़ में,
  नहाते समय की क्रीड़ा में
  हर बात में कई उपमाएंँ मिलती हैं।

 दो किनारों में टकराकर बहनेवाली नदी की आवाज  की तुलना
  मेघ गर्जन से की गती है। 

 "उरु इडि चेर्न्द मुऴक्कम पुरैयुम।

वैगै नदी का प्रवाह आकाश से निकलने वाली गंगा के समान है –

" मिन आरमपूत्त वियन गंगै नंदिय

वानम पेयर्न्त मरुंगु ओऑत्तल" (वै_१६,चरण ३६,३७)

समुद्र उमड़ने के जैसे बाढ़ की वैगै नदी लगती है –"

नळि कडल् मुन्नियतु पोलुम थीम नीर वळि वरल वैयै वरउ "।

  वैगै नदी के बाढ़ को बाढ़ देखने आते आम लोगों की इच्छाओं की तरह की उपमा देते हैं।

 "वैयै नीर, वैयैक्करैतर वंदन्रु,

काणपवर ईट्टम् निवंदतु,

नीत्तुम करै मेला नीत्तम कवर्न्तदुपोलुम काण्पवर कातल।(वै१२,चरण ३२-३५).

नायक नायिका की रूठ दूर करने अति वेग से जैसा आता है,
वैसा है की तुलना नायिका की रूठ जल्दी दूर करने के सहज प्रयत्न का उल्लेख है।

 

"उणर्त्त उतरा ॵळ इऴै मातरैप् पुणर्तिय इच्चत्तुप् पेरुक्कत्तिन तुनैन्तु"(.वै ७ चरण ३६-३७).

 मानव के मनोभावों की तुलना नदी के बाढ़ से करना अन्यत्र कहीं ‌नहीं मिलती।

नायक के मनोवेग के समान नदी के बाढ़ का वेग
कैसी मनोवैज्ञानिक कल्पना दुर्लभ है।

नहाने की क्रीड़ाएँ :--

 नदी में नये बाढ के आते ही लोग नहाने आते हैं। उनके हाथ में नाना प्रकार के जल क्रीड़ाओं के साधन होते हैं। पिचकारियाँ हाथ में एक दूसरे पर छिटकाने, रंगबिरंगे गोल गोल थालियाँ, आनंद से जल क्रीडाएँ, युवक युवतियों की अठखेलियाँ  और नदी के बहाव का दृश्य पांडव राजा के रणक्षेत्र के समान दिखाई देता है।

 नल्लऴिसियार के गीत सौंदर्य:--
    परिपाडल में विष्णु,कार्तिक,वैगै नदी के दिव्यात्मक वर्णन.
मदुरै को समृद्धियाँ देनेवाली वैगै,तिरुप्परंकुन्रम में असुरों को वध कर विजेता बने कार्तिकेय,
विष्णु पधारे अलकर कोयिल ,
तीनों  का मानवानुकरण,दिव्यानुकरण,प्रकृति का मानवीकरण आदि
परिपाडल ग्रंथ की विशेषताएँ होती हैं ।

कार्तिकेय —

  प्राकृतिक उपमेय उपमान के साथ अतिरोचक ढंग से किया गया है।
  मुरुगन, विष्णु,वैगै नदी  के  भक्ति रस पूर्ण परिपाडल में चेव्वेऴ के बारे में
नल्लऴिसियार ने एक दिलचस्प गीत गाया है।
  इसके संगीतकार है नल्लच्चुदनार।
तिरुप्परंकुन्रम के भगवान कातिकेय के दर्शन के लिए जब कवि  जा रहे थे,
तब उन्होंने इस कविता की रचना की है ।

तेंपडु मलर कुऴै पूंतुहिल वडि मणि

एंतु इवै सुमंतु चांतम विरै इस

विडै अरै असैत्त वेलन कटिमरम
पाविनर उरैययोडु पण्णिय इसैयिनर
विरिमलर मधुविन मरम ननै कुन्रत्तु (चेव्वेल -१- ५)
मशाला,वाद्य यंत्र ,चंदन जैसे सुगंधित वस्तुएँ तोरण झंडेेे आदिएक ओर ले आनेवाले  लोग,
शहद की बूंदें टपकनेवाली सुमन भरी शाखाएँ,
अति आनंदित प्राकृतिक सुंदरता भरी तिरुप्परंकुनरम दिव्य क्षेत्र है।

परिपाडल में ईश्वर की आराधना करने सपरिवर मंदिर जाने की बात कही गयी है।
            तैयलवरोडुम तंतावरोडुम

   कैम्मकवोडुम कातलवरोडुम

   तेय्वम  पेणिततिसै तोलुतिनर चेल्मिन ”

घर की महिलाएँ ,पत्नी,माता-पिता,बच्चों के साथ चलना।

तिरुप्परंकुन्रम का प्राकृतिक वर्णन –
ओरु तिरम कण आर कुळलिन करैपु य़ेळ
ओरु तिऱम पण आर तुंपि परंतु इसै ऊत
ओरु तिरम मण आर मुलविन इसै एल
ओरु तिरम अण्णल नेडु वरै अरुवि नीर ततुंब
ओरु तिरम पाडल नल विरलियर ओल्कुु नुडंग
ओरु तिऱम वाडै उलरवयिन पूंकोडि नुडंग ओरु तिरमपाडिनी मुरलुम पालै अम कुरलिन
नीडुकिलर किलमै निरै कुऱै  तोन्ऱ
ओरु तिरम आडु चीर मञ्ञै अरिक्कुरल तोन्ऱ
मारु मारु उट्रन पोल मारु एतिर कोडल।
भावार्थ –
शत्रु  असुरों की सफलता के बाद श्री मुरुगन का तिरुप्परंकुन्ऱम .
वहाँ एक ओर गायक की वीणा की मधुर ध्वनी,
एक ओर फूलों पर भ्रमरों की गुंजन ध्वनी ,
दूसरी ओर पति के बाँसुरी वादन,
और एक ओर ढोल का गर्जन,
अन्य दिशा में पहाड पर से गिरनवले जलप्रपात की जोर  की कल कल आवाज़,
दूसरी ओर नर्तकियों  का गाना,

पायल ध्वनी,
मयूर  का किलकारना,

इस प्रकार मदुरै में  

प्राकृतिक  संगीत

विभन्न वाद्य यंत्रों  की मधुर ध्वनियाँ बज रही हैं, बजा रहे हैं।नागरिक अति खुशी का अनुभव कर रहे हैं।

परिपाडल तमिल संघ काल के  अंतिम  समय में रचित ग्रंथ है । दो हजार साल के  पुराने ग्रंथों में  तमिलनाडु  केलोगोंकेरीति-रिवाज,खगोलीय ज्ञान,भौतिक ज्ञान,प्राकृतिक प्रेम,ईश्वरीय ज्ञान,भारत की आध्यात्मिक एकता,पौराणिक कथा,नायक-नायिकाओं की अठखेलियाँ,रूठ,वेश्यागमन,जल-क्रीडाएँ जल-क्रीडों के उपकरण आदि वर्णन आज भी ताजी लगते हैं।

संदर्भ ग्रंथ.---

1.परिपाडल --पुलियूर केसिकन,गौरा प्रकाशक,

2, परिपाडल  चेन्नै नूलकम

3.परिपाडल, निबंध.दिनममणी।

4.परिपाडल भाषण  यू ट्यूब

5. परिपाडल, आरुमुख नावलार


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