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Friday, May 27, 2016

जागो

साहित्य जो है आँखें मारकर ,
आमंत्रित वारांगना नहीं,
देश भक्ति जगने- जगाने-जगवाने  की वीरांगनाएँ।
तुलसी ने कहा ,संतोष हीन संपत्तियाँ  धूरी समान।
उनकी पत्नी ने भयंकर देवी बन चीखा चिल्लाया
अस्थाई  सुंदरता पर मोह, शाश्वत प्रेम तो सर्वेश्वर से।
  कबीर ने कहा बाह्याडंबर छोड,
फूल के सुगंध समान , कस्तूरी मृग के पेट कै
कस्तूरी सम तेरा साई तुझमें।
आज भी अमर साहित्य, हमें देती सीख।
राजा मन पसंद राजकुमारी के लिए
वीरों की विधवाओं पर  किसी का ध्यान नहीं गया।
ईश्वर की आरादना में मनुष्यता मर गई।
निर्गुण - सगुण  के नाम  मनुष्य मन में द्वेष।
रीतिकाल में तो ऐश-आराम,अंग्रेज आये,
प्रेम प्रेम भारतीय लोगों में आयी जागृति।
भेदों को भूल भारतीयों में हुई एकता।
आजादी  के सत्तर साल के बाद
स्वार्थ राजनीति फिर  मजहब,संप्रदाय ,धन के लोभ में
जनता जनता में प्रांतीय, मजहबी, जातीय  मोह भटकाके  देश की प्रगति में आडे पड रहे हैं।
जागो जनता,जागो युवकों! देश द्रोहियों को पहचानो।
हम चंद सालों में मिट जाएँगे ।
देश रहेगा शाश्वत। हमारी पीढी को सुखी  रखना है,
पुर्वजों का गुणगान करना है।
निंदा से हमें दूर रहना है,जागो! जनता जागो।

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