Friday, May 20, 2016

धन्य हिन्दी प्रचारक

मंच न देखा , पंच न देखा
छंद न जाना, पंथ न जाना।
बनाया भाग्य ने हिंदी अध्यापक।
हिंदी विरोध क्षेत्र में।
दूर ही रहा खुद अपने भाग्य को सराहा।
चंद विद्यार्थ, कर्ता -धर्ता हम।
रिटायरड हुआा, नयी नियुक्ति के छात्र नहीं।
  मेरै  दोस्त सब रिटयर्ड ,
हिंदी को स्कूलों में स्थान नहीं।
दूर कोने में  विरेध क्षेत्र में हिन्दी का प्रचार।
न केंद्र का न प्रांत का समर्थन।
न पेंशन , न वेतन, न प्रोत्साहन
फिर भी कर रहे हैं हिंदी का प्रचार।
हमारी स्तुति हम  न करेंगे तो कौन करेगा?
तमिलनाडु के हिंदी प्रचारक घन्य।
जो कर रहे हैं राष्ट्र भाषा प्रचार।गाँव गाँव
शहर शहर   हिंदी है हजारों का जीविकोपार्जन।
धन्य महात्मा करमचंद  जिन्होंने किया
मद्रास में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना।
धन्य है कार्य कारिणी समिति जिनके
अथक परिश्रम से देशोत्तम कार्य
चल रहा है सुचारू रूप से।
केंद्र सरकार के हिन्दी अफसर  वेतन भोगी।
प्रचारक है निस्वार्थ सेवक।

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