पुनर्मिलन की चाह --तिरुक्कुरळ -- काम - १२८१ से१२९०
१. मद्यपान करने से ही नशा चढेगी. कामेच्छा तो देखने -मिलने से काम. की नशा चढ. जाएगी.और चरमोत्कर्ष होगा.
२. ताड के पेड बराबर कामेच्छा बढ जाती है तो य्रेससी को अपने प्रेमी से तिल. पर. भी रूठना नहीं चाहिए.
३.
प्रेमी मुझे न. चाहकर अपने कर्म. में ही लगने पर. भी मेरी आँखें उनके दर्शन के बिना शांति नहीं पाती.
४. प्रेयसी अपने सखी से कहती है कि मेरा दिल अपने प्रेमी से लूटने गया. पर उनसे मिलते ही दिल प्रेम. में मग्न होना ही चाहता है.
५.
काजल लगाते समय आँखें काजल लगाने की तूरिका पर ध्यान. नहीं देता. उसी प्रकार प्रेमी के देखते ही उनके अपराध भल जाता है . मिलन सुख भोगना ही चाहता है.
६. प्रेयसी कहती हैं कि अपने प्रेमी से मिलते समय उनके अपराध की यादें नहीं आती.
उनके बिछुडन. के वक्त सिर्फ. उनके अपराध ही याद आती हैं.
७. बाढ के आने पर. सब को खींचकर ले जाता है. मालूम होने पर भी बाढ में कूदनेवाले होते हैें, वैसे ही
रूठने से फायदा नहीं है,फिर. भी दिल रूठता है ,उससे कौन -सा लाभ मिलेगा?
८. प्रेयसी कहती हैं कि प्रेमी के अपमान. के बाद. भी नशे की गुलाम जैसे
प्रेमी छाती का नशा बढती ही जाती है. कम. होती नहीं है.
९. कामेच्छा फूल. से अधिक. कोमलतम है, उसे जान-समझकर भोगनेवाले बहुत कम. ही होते हैं.
१०. आँखों से अति क्रोध दिखानेवाली मेरी प्रेमिका, संभोग में मुझसे अधिक तेज थी.
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