Monday, August 28, 2023

मधुर शब्द है औषधि

 

 एस.अनंतकृष्णन, 

चेन्नई का नमस्कार।

शीर्षक -- हम बिक जाते हैं,

             चंद मीठे लफ़्ज़ों  में।।

विधा --- सरस्वती की देन।

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मानव ही नहीं,

दानव ही नहीं,

 पशु-पक्षी भी  नहीं,

 सर्वेश्वर भी  मधुर श्ब्दों  में

 अपने को भूल 

 बिक जाते हैं।

घोर तपस्या वीणावादन

रावण को शक्ति मिली।

हिरण्यकश्यप को  

अनंत शक्ति मिली।

ईश्वर को भूल,

उसी का नाम लेते रहे।

 नानक के सदुपदेशों से

 मानव में मानवता आयी।।

डाकू ने कहा,

 डाका भी डालता  रहूँ।

आत्मा को भी शांति मिलें।

गुरुनानक ने कहा,

सबेरे से शाम तक,

जो निर्दयता पूर्ण 

 काम करते हो,

 उसे लिखते रहना।

शामको मेरे प्रवचन की भरी सभा में पढ़ना।

डाकू सुधर गया।

 अंगुलिमाल निर्दयी लूटता,

लूटने के बाद  उंगलियों की माला पहनता।

 बुद्ध के सामने खड़ा रहा निर्दयी 

बुद्ध  की मधुर वाणी ने

 अंगुलिमाल को  बुद्ध भिक्षु बनाया।

क्रोधी परशुराम को राम की मधुर वाणी ने 

शांत कर दिया।

महाविष्णु को भृगु मुनि ने लात मारा।

 विष्णु की मुस्कुराहट ने 

मुनि को लज्जित किया।

मध्य वचन है औषधि,

खटीक वचन है तीर।

 सोचो, विचारों, जानो, समझो,

 संपेरे के बजाने से साँप भी वश हो जाता।

 मधुर संगीत नाच ने  बड़े बडेतपस्वियों को

 भी हिला दिया है।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

स्वचिंतक स्वरचनाकार अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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