नमस्ते वणक्कम
एस.अनंतकृष्णन का।
मैं तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी
प्रचारक और लेखक अनुवादक।
अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक, स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान,लखनू द्वारा
सौहार्द सम्मान प्राप्त हिंदी सेवक
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मानवता न तो मानव पशु समान।
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मन है तो मान है मान।
मान -सम्मान चाहिए तो
मानव को चाहिए मानवता।।
मानवता या इन्सानियत
मानव को सम्मान ही नहीं
मानवेतर चमत्कार का अधिकारी
बना देता है।
मानवता ही पाषाण युग के
पशु तुल्य मानव को,
मानव बनाया मान।।
नंगे शिकारी जीवन,
हरा माँस खानेवाला,
पेड़ के खोखले में रहनेवाला,
जंगली पशु ही मानव।।
मानव का जीवन अस्थिर था।
ईश्वर ने बुद्धि बल दिया तो
मानव में स्थिरता आती।।
आग , चक्र,खेती का पता लगाया।
स्थिरता आयी, स्थिरता में संस्कार।
संस्कार में सभ्यता,
मन में उच्च विचार।।
परोपकार की भावना।
दान धर्म का अपनाना,
धन जोड़ना तन छोड़ने के दिन
न आएगा काम।
काम, क्रोध,मद,लोभ,ईर्ष्या ,
मानव को पशु ही बना देता है जान।।
मानवता ही मानव की मर्यादा।।
पुण्य काम करने की प्रेरणा,
मित्रता निभाने का आधार।
माता-पिता गुरुजनों को देवतुल्य मानना।
मन में आदर्श विचार लाना,
जीने और जीने देने की सोच।।
कर्तव्य निभाना, काल की याद रखना।।
जानो मानो मानव का मान प्राप्त करने
मनुष्यता या इन्सानियत या मानवता निभाना।।
स्वरचित एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।।
प्रधान अध्यापक, अवकाश प्राप्त।
स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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