Wednesday, June 7, 2023

हिंदी

 हिंदी
 हिंदी कोई उद्यान की भाषा नहीं. न बाग की भाषा, न नंदवन की भाषा ।

न माली  की जरूरत, न बागवान की आवश्यक्ता ,

वह तो  घना वन ।

कुछ लोगों के लिए वह जडी-बूटी है,

कुछ लोगों के लिए लाभप्रद पेड हैं,

कुछ लोगों के पहाडी शहद है,

कुछ लोगों के लिए छायादार वट वृक्ष है ।

. वह तो जंगली भाषा है,बगैर जंगल के

न मौसमी हवा,न मौसमी वर्षा,

न मौसमी फल।

जंगल अपने अपने ढंग से स्वविकसित है ।

डेढ  लाख की खडी बोली ,

हिंदुस्तानी, हिंदी का रूप लेकर

तत्सम,तद्भव,देशज,विदेशज,

शब्दों को अपनाकर ,

जंगल सा, बाग सा उद्यान सा नंदवन सा 

माली रहित, माली सहित पनप रही है.

जिन्होने जंगल मिटा दिया, वे खुद जंगल  बनवा रहे हैं ।

बिना जंगल के धरती गरपागरम ।

बगैर  हिंदी के दाल न गलेगा जान।.

स्वरचित स्वचिंतक एस .अनंतकृष्णन.

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