Monday, June 12, 2023

धर्म अलग है। संप्रदाय,मत/मजहब अलग है।

 धर्म अलग है। संप्रदाय,मत/मजहब अलग है।


  आधुनिक भारतीय विदेशी भाषा अंग्रेज़ी में जीविकोपार्जन के द्वार अष्टदिक में खुले हैं। बगैर अंग्रेज़ी के भारत में भी नौकरी असंभव है। मातृभाषा माध्यम के स्कूल में न जिलादेश का बच्चा, न सरकारी स्कूलों के अध्यापक के बच्चे न सांसद विधायक के बच्चे।
न मंत्री के बच्चे।
जय मातृभाषा–चुनाव के समय का ऐलान। कोने कोने में हर गाँव में अंग्रेज़ी स्कूल की चमक ।
अशोक गिरी के पूरुषोत्तम टंडन के विचार श्रेष्ठ है। पर हिंदी में एक लिखकर प्रकाशन के लिए पंजीकरण शुल्क 500से 1500तक। अमीर लेखकों की भाषा बन रही है हिंदी।भूखा भजन न गोपाल।
धर्म अलग है। संप्रदाय,मत/मजहब अलग है। धर्म तटस्थ हैं । संप्रदाय में /मजहब में मानव मानव में भेद ,नफरत शिव बड़ा है या राम बड़ा है या कृष्ण बडा है या अल्लाह बड़ा है? ईसा बड़ा है? इन संप्रदाय या मजहब में मानवता नहीं है।
यह पशुत्व है।
मानव मानव में लड़वाकर स्वार्थ मजहबी राजनीति है।
मजहब या संप्रदाय ही शैतान है या माया। इनसे बचाने उद्धव के निराकार परप्रह्म की उपासना करनी चाहिए।
सनातनवादी जनता को पागल बनाने सोनिया गांधीजी को मंदिर बनवाता है। तब कांग्रेस मंदिर।
खुशबू को मंदिर बनवाया है, वह अभिनेत्री चाहक मंदिर। मोदीजी को मंदिर बनवाया है, वह भाजपा दल के मंदिर। जयललिता व एम जी आर का मंदिर । वह अण्णा द्रमुकवालों का मंदिर। मेरे गाँव में किसी ने अपने लिए मंदिर बनवाया है।
चेन्नै मैलापूर में अप्पर स्वामिकळ जीव समाधी के ऊपर शिवलिंग है।
अहम् ब्रह्मास्मी “मैं भगवान हूँ”
तब करोड़ों मंदिर।

दुई जगदीस कहाँ ते आया, कहु कवने भरमाया।

अल्लह राम करीमा केसो, हजरत नाम धराया॥

गहना एक कनक तें गढ़ना, इनि महँ भाव न दूजा।

कहन सुनन को दुर करि पापिन, इक निमाज इक पूजा॥

वही महादेव वही महंमद, ब्रह्मा−आदम कहिये।

को हिन्दू को तुरुक कहावै, एक जिमीं पर रहिये॥

बेद कितेब पढ़े वे कुतुबा, वे मोंलना वे पाँडे।

बेगरि बेगरि नाम धराये, एक मटिया के भाँडे॥

कहँहि कबीर वे दूनौं भूले, रामहिं किनहुँ न पाया।

वे खस्सी वे गाय कटावैं, बादहिं जन्म गँवाया॥
यही कबीर हठयोगी की एकता की सीख।।

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