Friday, June 23, 2023

 सबको मेरा प्रणाम ।

 सार्थक है हिंदी प्रचार।

अर्थ की अवनति,

अर्थ पूर्ण जिंदगी,

 हिंदी प्रचार  में।

 अनर्थ नहीं, 

सार्थक है हिंदी प्रचार।

 नागरी लिपि सीखने 

 क्यों तमिलनाडु में संकोच?

पता नहीं, 

द्रमुक दल का प्रचार है

 गजब, घझढधब  के उच्चारण में

 पेप्टिक अलसर की संभावना।

 द्राविड़ पार्टी छोड़ दें,

 यहाँ के विप्र भी न जानते नागरी।

 क1क2क3क4 तमिल में वेद मंत्र की किताबें।

 पता नहीं, तमिलनाडु की वेदपाठ शालाओं में  देवनागरी लिपि सिखाते हैं कि नहीं।

    यकीनन  अर्थ की कमी,

   सार्थक जीवन 

  तमिलनाडु के 

   प्रचारकों का।।

  कोई भी प्रचारक 

 अपनी युवा पीढ़ियों को

 जीविकोपार्जन के लिए

 हिंदी पढ़ का

 समर्थन न करते जान।

 परिस्थिति ऐसी है तो

 हिंदी का  विकास 

 न होगा जान।।

 करोड़ों का खर्च,पर

 सरकार की जवान पत्नी है अंग्रेज़ी।।

 दशरथ चुप कारण जवान कैकेई।।

 सरकार चुप कारण अंग्रेज़ी।

 

 

  अर्थ नहीं,पर है सार्थक जीवन।

  भाग्यवश जो हिंदी प्राध्यापक ,

  सरकारी अध्यापक, हिंदी अधिकारी, बने,

हिंदी विकास की प्रशंसा बढ़ा-चढ़ाकर बोलते।

  ऐलान करने का दिल नहीं,

 सिर्फ हिंदी राज भाषा।

वास्तव में  स्वतंत्रता संग्राम की 

एकता अंग्रेज़ों के थप्पड़ से

 विदेश में  शुरु।

 गोखले, मोहनदास करमचंद गाँधी, आधुनिक गाँधी परिवार, नेहरु ,पटेल ,तिलक, लाल,बाल,पाल अंग्रेज़ी में  पारंगत। 

  अंग्रेज़ी सीखने के बाद

 भारतीय भाषाएँ सीखना

 अति मुश्किल जान।

तमिलनाडु की युवा पीढ़ी,

 40000/+2छात्र  तमिल भाषा में अनुत्तीर्ण ।।

 कर्ड रैस,  लेमन रैस,  ओयइट चटनी,
रेड चट्नी ग्रीन चट्नी

जिन्हें हम  जवानी में कहते 

नारियल चट्नी, तक्काली चट्नी, पुदीना /कोत्तमल्लि चट्नी।

 अंग्रेज़ी मगर मच्छर निगल रहा है

 तमिल भाषा को।।
भारतीय भाषाओं को ।




   नागरी लिपि और भारतीय भाषाओं के  विकास में  अद्भुत शक्ति रही।  
भगवान  की सृष्टियों में कमी रहित सृष्टि नहीं है.
मानव मानव में रंग भेद,आकार भेद, गुण भेद ,उच्चारण में भेद।
जब भाषाओं में लिपि भेद है ,तो कोई भी लिपि  मानक नही है ।
भारत में लिपि सहित भाषाएँ  और लिपि रहित  बोलियाँ हैं ।
देवनागरी लिपि को अति वैज्ञानिक लिपि कहते हैं । लेकिन तमिल भाषा के ऍ,ओॅ  ध्वनियाँ नहीं हैं ।
पर आजकल ए के ऊपर शशिकला लगाकर वह कमी दूर किया जा रहा है । 
तमिल में तीन ल हैं । ल,ल, ल,दो रा है । देवनागरी में ल, ल है, ल के नीचे बिंदु लगाकर तीसरे ल की कमी  दूर हो गयी ।
र, र है,र के  पहले र्   आने पर   मुट्रम ट्  लगाते  हैं ।
तमिल में  ट-ण, त-न, र -न   तीन न है । 
 कर्ण,सुंदर, मन.तब देवनागरी में एक न की कमी है । 
आ सेतु पर्यावरण में भेद --
 कश्मीर से  कन्याकुमरी तक प्राकृतिक विविधता है । कश्मीर के फल दक्षिण में नहीं मिलते ।
पहाडी पेड,पौधे, जडी बूटियाँ  मैदान में नहीं मिलते ।उत्तर में ऊँचे हिमालय पहाड है तो तीन समुद्रों का संगम् 
हिंदु महासगर है। जलवायु, पैदावर के अनुसार  पोशाक,भोजन में भेद होते हैं । 
विचारों की एकता में सत्य,दान,धर्म,परोपकार सर्वमान्य है. बाकी  राजनीति,मजहब,भाषा,अभिवादन प्रणालियाँ आदि में
भिन्नताएँ हैं ।
 सिवा तमिऴ के अन्य सभी भाषाओं  में अल्पप्राण,महाप्राण ,अंतस्त,ऊष्म  वर्णमाला है । पर तमिल में क,च,ट,त,प,
य,र,ल,व, ल,ल,ल,र ,र, न,ड.,ञ,ण,न,न,म है ।
   १९६५ में तमिलनाडू में हिंदी राजभाषा की घोषणा के विरुद्ध  बहुत बडा आंदोलन चला । तब के द्राविड दल के नेता ,
भाषण कला में पटु थे. वे ऐसे मोहक आवाज में जोरदार भाषण देते कि महाप्राण अक्षरों के उच्चारण  लगातार करोगे तो पेट में अलसर हो जाएगा । हिंदी आएगी तो तमिल की मृत्यु हो जाएगी । हिंदी  के प्रति नफरत जगाना ही द्राविड दलों की राजनीति है ।
तमिल प्रांत के लोग तो जान-समझ चुके हैं  कि भारत भर  के संपर्क के लिए हिंदी आवश्यक है । फिर भी सत्ता हासिल करने के लिए हिंदी विरोध को अस्त्र- शस्त्र  के रूप में  प्रयोग  करते हैं । हिंदी के पक्ष में जो नेता थे, वे भी हिंदी का विरोध करने लगे । चक्रवर्ति  १९३७ में मद्रास प्राविन्स के मुख्य मंत्री थे,तब स्कूलें में हिंदी को अनिवार्य भाषा बनायी ।तब  जस्टिस पार्टि के  ई.वे. रामसामी नायक्कर ने हिंदी के विरोध में आंदोलन चलाया।  १९६५ ई. में लालबहादूर शास्त्री ने राजभाषा घोषित की तो हिंदी विरोध में बहुत बडी क्रांति शुरु हो गई । रेल -बस जलाने लगे । हिंदी अक्षरों को रेलवे स्टेशन,डाक- घर में मिटाने लगे। लगभग सौ लोग पुलिस की  गोलियों के शिकार हो गये ।  अण्णादुरै  ,करुणानिधि,राजाजी और बडे बडे लोग हिंदी के विरोध में नारा लगाने लगेे । परिणाम स्वरूप कांग्रस हार गया। १९६७ से आज तक तमिलनाडु में प्रांतीय दल का हिंदी विरोध शासन चल रहा है । अंग्रेजी माध्यम स्कूल की संख्या बढने लगी।तमिल माध्यम स्कूल बंद  होने लगे । लोग तो हिंदी सीखना चाहते हैं,पर हिंदी को राजभाषा बनाना नहीं चाहते ।
  मैं पचास साल से तमिलनाडू का हिंदी प्रचारक हूँ। हर छात्र से साक्षात्कार करता हूँ। वे तो हिंदी पढना चाहते हैं । पर राजभाषा कहते ही नफरत के शिखर पर पहुँच जाते। हिंदी ही नहीं अपनी मातृभाषा तमिल को भी नहीं चाहते । तमिल तो लिखित तमिल अलग ,बोलचाल की तमिल अलग है । आप आइए--बोलचाल तमिल में नींग वांग काफी है । लिखित तमिल में नींगल वारुंगल। 
अंग्रेजी माध्यम के  बढते  बढते भारतीय भाषाएँ पढना मुश्किल  हो जाते हैं । 
मैंने पूछा -आप को अपनी मातृभाषा तमिल क्यों कठिन लगता है .
छात्रों ने कहा-   सभी सर्वनामों के लिए    रोट.wrote.पर तमिल में  तो  नान  एलुतिनेन । नी एलुतिनाय. अवन एलुतिनान .
नांगल एलुतिनोम  नींगल एलुतुकिरीरकलअवर एलुतिनार .  अवरकल एलुतिनारकल ।क्रिया के  इतने परिवर्तन । wrote .
 अंग्रेजी माध्यम पढनेवालों को देवनागरी लिपी भी मुश्किल  लगता है ।

  तमिऴ अति प्राचीनतम भाषा है। तमिऴ भाषा में आ सेतु हिमाचल   के आम शब्द पाये जाते हैं। शुद्ध को चुत्तम् कहते हैं।

आध्यात्मिक क्षेत्र में  पूजा,अर्चना, ध्यान,अष्टमा सिद्धि, प्राणायाम ,योगा  सहस्रनाम,अष्टोत्तरी आदि शब्द पाये जाते हैं।

अधिकांश व्यक्तिवाचक संज्ञा भारत भर के चालू शब्द हैं।

तमिऴ नाम रखना नहीं चाहते।  श्याम, श्वेता, श्रेया, सरोजा,

कमला,जलजा नीरजा,पद्मा, निर्मला, कमला,विमला,लक्ष्मी,प्रेमा,मीनलोचनी,सुलोचना,विजया,

कामाक्षी,अजित,रजनी,सत्यराज,राजकुमार,कामराज, वीरास्वामी,पुरुषोत्तम, षण्मुखम्, आरोग्त सामी, ये नाम भारत भर में चालू है।  हिंदी सिखाते समय इन नंद नामों का तमिल अर्थ बताएँगे तो हिंदी आसान हो जाएगी। भारत भर में बोलनेवाले आम शब्द हजारों तमिऴ में मिलते हैं। निर्वाह, निवारण, परिवर्तन,प्रयत्न, प्रयास, सहायक, व्यापार, विरोध,द्रोह,लाभ-नष्ट, बंद,घेरो,तीर्थ यात्रा, विश्वास, वर, उपयोग,

जैसे हजारों शब्द  आ सेतु हिमालय में व्यवहार में हैं।

नगर, ग्राम, ग्राम पंचायत, अधिकारी , जन्म,मरण,पाप,पुण्य,

दरिद्र, रोग, चिकित्सा, प्रायश्चित ।

ऐसे भारत भर के आम शब्द के कारण  भारतीय भाषाओं की एकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

  आचार्य विनोबा भावे के भूदान यज्ञ में तमिलनाडु के गाँव गाँव में हिंदी गूँज उठी है। हमें उनके देवनागरी लिपि 

सिद्धांत  के अनुसार भारतीय सभी भाषाओं को देवनागरी लिपी द्वारा सिखाना चाहिए। मैंने तमिल सीखिए किताब को हिंदी देवनागरी लिपी में ही लिखा है। उसकी pdf भी  नागरी लिपि परिषद  , हिंदी गौरव सम्मान, मेरे ब्लाग तमिल हिंदी संपर्क में भेजा है।

तमिल के प्रसिद्ध चित्रपट के कवि सम्राट कण्णदआसन ने भाषाई एकता की कविता में लिखा है "हिंदी मोर नाचो नाचो, धीरे-धीरे , मातृभूमि तुमको अपनाएगा।

हिंदी और देवनागरी लिपि की सरलता को युवकों को समझाने का प्रयत्न करना चाहिए। मातृभाषा माध्यम के छात्रों को ही सरकारी कार्यालयों में नियुक्त करना चाहिए। भारतीय भाषा माध्यम पाठशालाओं की ओर जनता को खींचना चाहिए।पर आज़ादी के पच्हत्तर साल के बाद भी  अंग्रेज़ी का मोह बढ़ रहा है तो अंग्रेज़ी ही जीविकोपार्जन की भाषा है।

१९५७ की स्वतंत्रता भारतीय भाषाओं के विकास के लिए, पर

अंग्रेज़ी माध्यम पाठशालाएँ बढ़ रही है। भारतीय भाषा माध्यम की पाठशाला केवल गरीब वर्ग  का हो रहा है। सांसद,वि नंद आयकर, जिलादेश ही नहीं सरकारी स्कूल के अध्यापक भी निजी स्कूलों में ही अपने बच्चों को भर्ती कर रहे हैं जहाँ मातृभाषा बोलने पर जुर्माना लगाते हैं। सोचिए, कितना खेद का  विषय है। 

धन्यवाद।

जय हिन्द। जय हिन्दी।

 








 




  



  











  










 

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