Monday, December 23, 2019

धूप छाँव

मंच  के संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको
तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक
 यस -अनंतकृष्णन का प्रणाम।
 आनंद कृष्णन। मतिनंत।

 शीर्षक:   धूप-छाँव।
 जिंदगी  सहर्ष  जीने के लिए।
पानी चाहिए। बिन पानी सब सून।
पानी चाहिए  तो भाप बनना है।
काले बादल  छा जाना है।
तब धूप  चाहिए।
धूप  न तो वर्षा  नहीं।
वर्षा न तो हर्ष  नहीं।
हरियाली  नहीं।
छाया नहीं  सांसारिक माया नहीं।
 पंचतत्वों से बने जीव में
आग नहीं  तो शरीर ठंड
पड जाएगा तो मानव शवयान में।
ज्वर बढ जाएँ  तो  ठंडे कपडे माथे पर।
बिलकुल ठंड होने न देते।
प्रकृति के संतुलन में
गरम  तो आग।
आग बुझाने  पानी।
बिलकुल  बुझा न पाए तब
वर्षा। पानी।हवा ।पतझड।
पनपना यही।
धूप छाँव  की जिंदगी।
माया -छाया मन माया जिंदगी।
 छाया का महत्व गर्मी  मैं।
केवल छाया तो पनप नहीं।
अतः धूप में चुस्ती,छाँव में सुस्ती।
यही है मानव जीवन।
पाश्चात्य देशों  में  ठंड अधिक।
परिश्रम अधिक।
भारत देश में सब बराबर।
दिगंबर महावीर की आराधना।
अघोरी दर्शन ठंड  में नंगा।
सिकंदर हार गया  ठंड में  नंगे पडे।
स्वर्ण  से मुँह फेर साधु देख।
गर्मी  शीत  बराबरी
भारत महान।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन  आनंद कृष्णन।
जीवन में  गरम अधिक ठंड कम।
बिलकुल ठंड जीवन का अंत।

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