Saturday, December 21, 2019

तन्हाई

संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
  शीर्षक:  यादें  तन्हाइयां 22-12-19।
 बचपन से अब तक  की यादें
कितना परिवर्तन।
सामाजिक  परिवर्तन।
वैज्ञानिक आविष्कार  में  परिवर्तन।
शिक्षा के माध्यम  में  परिवर्तन।
अध्यापक की इज्ज़त में परिवर्तन।
टट्टी के आकार में  परिवर्तन।
भोजन पोशाक पोशाक में  परिवर्तन।
वर्दी में  परिवर्तन।
कुछ अच्छे कुछ बुरे।
संतोष असंतोष  परिवर्तन।
सत्तर साल की आजादी के बाद भी
सरकारी सार्वजनिक संपत्ति
रेल बस जलाना सरकार
  कानून चुप रहना ।
पटरियाँ  उखाड़े देख।
एंबुलेंस को भी रोकते देख
सार्वजनिक  स्थानों  की थूक।
कूडे की बद्बू महसूस  कर
दुख  ही दुख होता है मन में।
नदियों  की चौड़ाई कम।
सार्वजनिक कुएँ सूख गए।
हजारों  झील नदारद  हो गए।
मातृभाषा माध्यम  केवल  नाम मात्र।
मातृभाषा में  बोलना अपमान की बातें।
स्नातक स्नातकोत्तर  शिक्षित समुदाय।
साफ सुथरे मंदिरों की दीवार पर।
ताजमहल जैसे सुंदर यादगारों में
ऐ रिव्यू लिखना, अनुशासन हीन शिक्षा।
पैसे  के लिए  अध्यापक  छात्रों  का गुलाम  बनना,शासकों के बेगार पुलिस।
न्यायालय  तो अन्याय निलय।
मंदिर  वाणिज्य  केंद्र।
तन्हाई में  बहुत  विचार  आते हैं।
 अंत में  सांत्वना  दिलासा
निश्चिंतता तुलसीदास जी का पद
सबहिं नचावत राम गोसाई।
भले-बुरे  आँधी-तूफान  की सृजन कर्ता
खट्टे -मिट्ठे फल की सृष्टि कर्ता।
सुंदर  असुंदर खुशबू-बदबू के
रचनाकार  का दायित्व।
ध्यान मग्न हो बैठ जाना ।
देश की भलाई  भगवान के भरोसे पर।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम

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